03-12-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 18-01-97 मधुबन |
अपनी सूरत से बाप की सीरत को प्रत्यक्ष करो तब प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा
आज बापदादा दो विशाल सभायें देख रहे हैं। एक तो साकार रूप में आप सभी सम्मुख हो और दूसरी अव्यक्त रूप की विशाल सभा देख रहे हैं। चारों ओर के अनेक बच्चे इस समय अव्यक्त रूप में बाप को सम्मुख देख रहे हैं, सुन रहे हैं। दोनों ही सभा एक दो से प्रिय हैं। आज विशेष सभी के दिल में ब्रह्मा बाप की याद इमर्ज है क्योंकि ब्रह्मा बाप का इस ड्रामा में विशेष पार्ट है। सभी का ब्रह्मा बाप से दिल का स्नेह है क्योंकि ब्रह्मा बाप का भी एक-एक बच्चे से अति प्यार है। जैसे आप बच्चे यहाँ साकार में ब्रह्मा बाप के गुण और कर्तव्य याद करते हो वैसे ब्रह्मा बाप भी आप बच्चों की विशेषताओं का, सेवा का गुणगान करते हैं। तो ब्रह्मा का अव्यक्त आवाज आप सबको पहुंचता है? आप सब विशेष अमृतवेले से लेकर जो मीठी-मीठी बातें करते हो वा मीठे-मीठे उलाहनें भी देते हो, वह ब्रह्मा बाप सुनकर मुस्कराते रहते हैं और क्या गुण गाते हैं? वाह मेरे सिकीलधे, लाडले बाप को प्रत्यक्ष करने वाले बच्चे वाह! ब्रह्मा बाप अब बच्चों से क्या शुभ आशायें रखते हैं, वह जानते हो?
बाप यही चाहते हैं कि मेरा हर एक बच्चा अपनी मूर्त से बाप की सीरत दिखायें। सूरत भिन्न-भिन्न हो लेकिन सबकी सूरत से बाप की सीरत दिखाई दे। जो भी देखे, जो भी संबंध में आये – वह आपको देखकर आपको भूल जाये, लेकिन आप में बाप दिखाई दे तब ही समय की समाप्ति होगी। सबके दिल से यह आवाज निकले हमारा बाप आ गया है, मेरा बाप है। ब्रह्माकुमारियों का बाप नहीं, मेरा बाप है। जब सभी के दिलों से आवाज निकले कि मेरा बाप है, तब ही यह आवाज चारों ओर नगाड़े के माफिक गूँजेगा। जो भी सांइस के साधन हैं, उन साधनों में यह नगाड़ा बजता रहेगा – मेरा बाप आ गया। अभी जो भी कर रहे हो, बहुत अच्छा किया है और कर रहे हो। लेकिन अभी सबका इकट्ठा नगाड़ा बजना है। जहाँ भी सुनेंगे, एक ही आवाज सुनेंगे। आने वाले आ गये – इसको कहा जाता है बाप की स्पष्ट प्रत्यक्षता। अभी नाम प्रसिद्ध हुआ है। पहला कदम नाम प्रत्यक्ष हुआ है कि ब्रह्माकुमारियां-ब्रह्माकुमार अच्छा काम कर रहे हैं। विद्यालय वा कार्य की, नॉलेज की अभी महिमा करते हैं, खुश होते हैं। यह भी समझते हैं कि ऐसा कार्य और कोई कर नहीं सकता, इतने तक पहुँचे हैं। यह बात स्पष्ट हुई है, चारों ओर इस बात की महिमा है। लेकिन इस बात का अभी स्पष्टीकरण नहीं हुआ है कि बापदादा आ गये हैं। अभी थोड़ा-थोड़ा पर्दा खुलने लगा है लेकिन स्पष्ट नहीं है। जानते भी हैं कि इन्हों का बैकबोन कोई अथॉरिटी है लेकिन वही बापदादा है और हमें भी बाप से वर्सा लेना है, यह दीवार अभी उमंग-उत्साह में आगे आ रही है, वो अभी होना है। एक कदम उठाते हैं, वो एक कदम है – सहयोग का। एक कदम उठने लगा है, सहयोग देने की प्रेरणा अन्दर आने लगी है, अभी दूसरा कदम है – स्वयं वर्सा लेने की उमंग में आये। जब दोनों ही कदम मिल जायेंगे तो चारों ओर बाजे बजेंगे। कौन से बाजे? – मेरा बाबा। तेरा बाबा नहीं, मेरा बाबा। जैसे कार्य की महिमा करते हैं, ऐसे करन-करावनहार बाप की महिमा झूम-झूम कर गायें। होने वाला ही है। आपको भी यह नज़ारा आंखों के समाने दिल में, दिमाग में आ रहा है ना! क्योंकि बाप और दादा आये हैं – सब बच्चों को वर्सा देने के लिए। चाहे मुक्ति का, चाहे जीवनमुक्ति का, लेकिन वर्सा मिलना जरूर है। कोई भी वंचित नहीं रहेगा क्योंकि बाप बेहद का मालिक है, बेहद का बाप है। तो बेहद को वर्सा लेना ही है। भल योगबल से अपने जन्म-जन्म के पाप नहीं भी काट सकें लेकिन सिर्फ इतना भी जान लिया कि बाप आये हैं, तो कुछ न कुछ पहचान से वर्से के अधिकारी बन ही जायेंगे। तो जैसे बाप को बेहद का वर्सा देने का संकल्प है और निश्चित होना ही है। ऐसे आप सबके दिल में ये शुभ भावना, शुभ कामना उत्पन्न होती है कि हमारे सब भाई-बहन बेहद के वर्से के अधिकारी बन जायें? तो ये शुभ भावना और शुभ कामना कब तक प्रत्यक्ष रूप में करेंगे? उसकी डेट पहले से अपने दिल में फिक्स करो, संगठन से पहले दिल में करो फिर संगठन में करो तो विनाश की डेट आपेही स्पष्ट हो जायेगी, उसकी चिन्ता नहीं करो। रहम आता है या इसी मौज में रहते हो कि हम तो अधिकारी बन गये? मौज में रहो, यह तो बहुत अच्छा है लेकिन रहमदिल बाप के बच्चे अभी बेहद पर रहम करो। जब दूसरे पर रहम आयेगा तो अपने ऊपर रहम पहले आयेगा, फिर जो एक ही छोटी सी बात पर आपको पुरुषार्थ करना पड़ता है, वह करने की आवश्यकता नहीं होगी। मास्टर रहमदिल, मास्टर दयालू, मर्सीफुल बन जाओ। इस गुण को इमर्ज करो। तो औरों के ऊपर रहम करने से स्वयं पर रहम आपेही आयेगा।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि बाप-दादा को बच्चों की कौन सी बात अच्छी नहीं लगती है, जानते हो? बापदादा को बच्चों का मेहनत करना वा बार-बार युद्ध करना, यह अच्छा नहीं लगता है। बाप कहते भी हैं – हे मेरे योगी बच्चे, योद्धे बच्चे नहीं कहते हैं, योगी बच्चे। तो योगी बच्चों का क्या काम है? युद्ध करना। युद्ध करना अच्छा लगता है? परेशान भी होते हो और फिर युद्ध भी करते हो। आज प्रतिज्ञा करते हो कि युद्ध नहीं करेंगे और कुछ समय के बाद फिर योगी के बजाए योद्धे बन जाते हो। यह क्यों? बापदादा समझते हैं कि बच्चों को योग से प्यार कम है, युद्ध से प्यार ज्यादा है। तो आज से क्या करेंगे? योद्धे बनेंगे वा निरन्तर योगी बनेंगे?
बापदादा ने देखा – कितनी 18 जनवरी भी बीत गई! और विशेष ब्रह्मा बाप आप बच्चों का आह्वान कर रहा है कि मेरे बच्चे समान बन वतन में आ जाओ। वतन अच्छा नहीं लगता? क्या युद्ध करना ही अच्छा लगता है? युद्ध नहीं करो। आज से युद्ध करना बन्द करो। कर सकते हो? बोलो हाँ जी। फिर वहाँ जाकर पत्र नहीं लिखना कि माया आ गई, युद्ध करके भगा दिया। किसी को अपनी माया आती है और कोई-कोई दूसरों की माया को देख खुद माया के असर में आ जाते हैं। यह क्यों, यह क्या… यह दूसरों की माया अपने अन्दर ले आते हैं। यह भी नहीं करना। माया से छुड़ाना बाप का काम है, आप स्व पुरुषार्थ में तीव्र बनो, तो आपके वायब्रेशन से, वृत्ति से, शुभ भावना से दूसरे की माया सहज भाग जायेगी। अगर क्यों, क्या में जायेंगे, तो न आपकी माया जायेगी न दूसरे की जायेगी इसलिए जैसे नये वर्ष में पुराने वर्ष को विदाई दी। अभी 96 नहीं कहेंगे, 97 कहेंगे ना! अगर कोई गलती से कह दे तो आप कहेंगे 96 नहीं है, 97 है। ऐसे आज क्यों-क्या, ऐसे-वैसे, इन शब्दों को विदाई दे दो। क्वेश्चन मार्क नहीं करो। बिन्दी लगाओ, नहीं तो क्वेश्चन मार्क हुआ और व्यर्थ का खाता आरम्भ हुआ। और जब व्यर्थ का खाता आरम्भ हो जाता है तो समर्थी समाप्त हो जाती है। और जहाँ समर्थी समाप्त हुई, वहाँ माया भिन्न-भिन्न रूप से, भिन्न-भिन्न सरकमस्टांश से अपना ग्राहक बना देती है। फिर क्या बन जाते? योगी या योद्धे? योद्धे नहीं बनना। पक्का प्रामिस किया? या बाप-दादा कहता है तो हाँ किया? पक्का किया? बाहर जब अपने देश में जायेंगे तो थोड़ा कच्चा होगा? शक्तियां क्या कहती हैं? होगा या नहीं? सब हाँ नहीं करते, माना थोड़ा अपने में शक्य है। (सबने हाँ जी कहा) देखना टी.वी. में फोटो निकल रहा है! फिर बापदादा टी.वी. की कैसेट भेजेंगे क्योंकि बाप का हर बच्चे के साथ – चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं लेकिन जिसने दिल से कहा मेरा बाबा, सिर्फ कहा नहीं लेकिन माना और मानकर चल रहे हैं, उस एक-एक के साथ बाप का दिल का प्यार है, कहने वाला प्यार नहीं।
बापदादा बहुत बच्चों की रंगत देखते हैं – आज कहेंगे बाबा, ओ मेरे बाबा, ओ मीठा बाबा, क्या कहूँ, क्या नहीं कहूँ… आप ही मेरा संसार हो, बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं और दो चार घण्टे के बाद अगर कोई बात आ गई तो भूत आ जाता है। बात नहीं आती, भूत आता है। बापदादा के पास सभी का भूत वाला फोटो भी है। देखो, एक यादगार भी भूतनाथ का है। तो भूतों को भी बापदादा देखते हैं – कहाँ से आया, कैसे आया और कैसे भगा रहे हैं। यह खेल भी देखते रहते हैं। कोई तो घबराकर, दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। फिर बापदादा को यही शुभ संकल्प आता है कि इनको कोई द्वारा संजीवनी बूटी खिलाकर सुरजीत करें लेकिन वे मूर्छा में इतने मस्त होते हैं जो संजीवनी बूटी को देखते ही नहीं हैं। ऐसे नहीं करना। सारा होश नहीं गँवाना, थोड़ा रखना। थोड़ा भी होश होगा ना तो बच जायेंगे।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि इस फाइनल पढ़ाई में हर एक बच्चे को तीन सर्टीफिकेट लेने हैं – एक स्वयं, स्वयं से सन्तुष्ट – यह सर्टीफिकेट और दूसरा बापदादा द्वारा सर्टीफिकेट और तीसरा परिवार के संबंध-सम्पर्क में आने वालों द्वारा सर्टीफिकेट। यह तीन सर्टीफिकेट जब मिलें तब समझो पढ़ाई पूरी हुई। ऐसे नहीं समझना कि बापदादा तो हमारे से सन्तुष्ट हैं। लेकिन तीनों ही सर्टीफिकेट चाहिए, एक नहीं चलेगा। तो चेक करो तीन सर्टीफिकेट से कितने सर्टीफिकेट मिले हैं? बाप के बिना भी कुछ नहीं मिलता। लेकिन परिवार की सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट इससे भी बहुत कुछ मिलता है। परिवार की जितनी आत्माओं से सर्टीफिकेट जिसको मिलता है, जितने ब्राह्मण सन्तुष्ट हैं उतने ही भगत भी आपकी पूजा सन्तुष्टता से करेंगे, काम चलाऊ नहीं, दिल से करेंगे। तो यहाँ ब्राह्मण जीवन में जितने ब्राह्मणों का आपके प्रति स्नेह, सम्मान अर्थात् रिगार्ड होगा, दिल से सन्तुष्ट होंगे, उतना ही पूज्य बनेंगे। पूज्य के लिए स्नेह और सम्मान होता है। तो जब जब जड़ चित्रों की पूजा होगी, तब इतना ही स्नेह और रिगार्ड मिलेगा। सारे कल्प की प्रारब्ध अभी बनानी है। सिर्फ आधाकल्प राज्य की प्रारब्ध नहीं, पूज्य की प्रारब्ध भी अभी बनती है। ऐसे नहीं समझो – हमारा तो बाप से ही काम चल जायेगा। नहीं। बाप का परिवार से कितना प्यार है। तो फॉलो फादर करो। ब्रह्मा बाप को देखा, कैसा भी बच्चा हो, शिक्षादाता बन शिक्षा भी देते लेकिन शिक्षा के साथ प्यार भी दिल में रखते। और प्यार कोई बाहों का नहीं, लेकिन प्यार की निशानी है – अपनी शुभ भावना से, शुभ कामना से कैसी भी माया के वश आत्मा को परिवर्तन करना। कोई भी है, कैसी भी है, घृणा भाव नहीं आवे, यह तो बदलने वाले ही नहीं हैं, यह तो हैं ही ऐसे। नहीं। अभी आवश्यकता है रहमदिल बनने की क्योंकि कई बच्चे कमजोर होने के कारण अपनी शक्ति से कोई बड़ी समस्या से पार नहीं हो सकते, तो आप सहयोगी बनो। किससे? सिर्फ शिक्षा से नहीं, आजकल शिक्षा, सिवाए प्यार या शुभ भावना के कोई नहीं सुन सकता। यह तो फाइनल रिजल्ट है, शिक्षा काम नहीं करती लेकिन शिक्षा के साथ शुभ भावना, रहमदिल यह सहज काम करता है। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, मालूम भी होता कि आज इस बच्चे ने भूल की है, तो भी उस बच्चे को शिक्षा भी तरीके से, युक्ति से देता और फिर उसको बहुत प्यार भी करता, जिससे वह समझ जाते कि बाबा का प्यार है और प्यार में गलती के महसूसता की शक्ति उसमें आ जाती। तो ब्रह्मा बाप को आज बहुत याद किया ना! तो फॉलो फादर। बाप समान बनने की हिम्मत है? मुबारक हो हिम्मत की। बापदादा आपके दिल की तालियां पहले ही सुन लेता है आप खुशी से तालियां बजाते हो लेकिन बाप को दिल की तालियां पहले पहुंचती हैं।
बापदादा भी हंसी की बात सुनाते हैं। ब्रह्मा बाबा की रूहरिहान चली! तो ब्रह्मा बाप कहते हैं कि मेरे को एक बात के लिए डेट-कॉन्सेसनेस है। बच्चों को तो कहते हैं डेट-कॉन्सेस नहीं बनो लेकिन ब्रह्मा बाप एक बात में डेट-कॉन्सेस हैं, कौन सी डेट? कि कब मेरा एक-एक बच्चा जीवन मुक्त बन जाए! ऐसे नहीं समझना कि अन्त में जीवनमुक्त बनेंगे, नहीं। बहुतकाल से जीवनमुक्त स्थिति का अभ्यास, बहुतकाल जीवनमुक्त राज्य भाग्य का अधिकारी बनायेगा। उसके पहले जब आप अभी जीवनमुक्त बनो तो आप जीवनमुक्त स्थिति वालों का प्रभाव जीवनबंध वाली आत्माओं का बंधन समाप्त करेगा। तो यह सेवा नहीं करनी है क्या? करनी है ना! तो आप ब्रह्मा बाप को डेट कॉन्सेस का जवाब दो। वह डेट कब होगी जब सब जीवनमुक्त हों? कोई बंधन नहीं। बंधनों की लम्बी लिस्ट वर्णन करते हो, क्लासेज कराते हो तो बंधनों की बड़ी लम्बी लिस्ट निकालते हो लेकिन बाप कहते हैं सब बन्धनों में पहला एक बंधन है – देह भान का बंधन। उससे मुक्त बनो। देह नहीं तो दूसरे बंधन स्वत: ही खत्म हो जायेंगे। अपने को वर्तमान समय मैं टीचर हूँ, मैं स्टूडेंट हूँ, मैं सेवाधारी हूँ, इस समझने के बजाए अमृतवेले से यह अभ्यास करो कि मैं श्रेष्ठ आत्मा ऊपर से आई हूँ – इस पुरानी दुनिया में, पुराने शरीर में सेवा के लिए। मैं आत्मा हूँ – यह पाठ अभी और पक्का करो। आप आत्मा का भान धारण करो तो यह आत्मिक भान, माया के भान को सदा के लिए समाप्त कर देगा। लेकिन आत्मा का भान – यह अभी चलते फिरते स्मृति में रहे, वह अभी और होना चाहिए। ब्रह्मा बाप ने आत्मा का पाठ आदि से कितना पक्का किया! दीवारों पर भी मैं आत्मा हूँ, परिवार वाले आत्मा हैं, एक-एक के नाम से दीवारों में भी यह पाठ पक्का किया। डायरियां भर दी – मैं आत्मा हूँ, यह भी आत्मा है, यह भी आत्मा है। आपने आत्मा का पाठ इतना पक्का किया है? मैं सेवाधारी हूँ, यह पाठ कुछ पक्का लगता है लेकिन आत्मा सेवाधारी हूँ, तो जीवनमुक्त बन जायेंगे। रोज़ शरीर में ऊपर से अवतरित हो, मैं अवतार हूँ, इस शरीर में अवतरित आत्मा हूँ, फिर युद्ध नहीं करनी पड़ेगी। आत्मा बिन्दू है ना? तो सब बातों को बिन्दू लग जायेगा। कौन सी आत्मा हूँ? रोज एक नया-नया टाइटल स्मृति में रखो। आपके पास बहुत से टाइटल की लिस्ट तो है ना। रोज़ नया टाइटल स्मृति में रखो कि मैं ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हूँ। सहज है या मुश्किल है? आत्मा बिन्दू रूप में रहेगी, तो ड्रामा बिन्दू भी काम में आयेगा और समस्याओं को भी सेकेण्ड में बिन्दू लगा सकेंगे और बिन्दू बन परमधाम में बिन्दू जायेगी। जाना है या सीधा स्वर्ग में जायेंगे? कहाँ जायेंगे? पहले घर जायेंगे या राज्य में जायेंगे? बाप के साथ घर तक तो चलना है ना कि सीधा राज्य में चले जायेंगे, बाप को पूछेंगे नहीं! तो बिन्दू बाप के साथ बिन्दू बन पहले घर जाना है। वैसे राज्य का पासपोर्ट नहीं मिलेगा। परम-धाम से राजधानी में जाने का पासपोर्ट आटोमेटिक मिल जायेगा, किसको देने की आवश्यकता नहीं। जितना नजदीक होंगे, उतना नम्बरवार परमधाम से राज्य में आयेंगे, परमधाम से पहली आत्मा कौन सी जायेगी? किसके साथ जायेंगे? ब्रह्मा बाप के साथ जायेंगे! सभी राज्य में भी साथ में जायेंगे या दूसरे तीसरे जन्म में आयेंगे? जाना है ना? प्यार है ना? ब्रह्मा बाप को छोड़ेंगे तो नहीं, साथ जायेंगे? तो बापदादा को डेट बतायेंगे या नहीं? (बापदादा बतायें) बापदादा तो कहते हैं अभी बनो। तो बाप भी डेट कॉन्सेस से बदल जायेगा। देखो, ब्रह्मा बाप ने कल को देखा? तुरत दान महादान किया। तीव्र पुरुषार्थ, पहला पुरुषार्थ किया। कल को नहीं देखा। कल क्या होगा! परिवार कैसे चलेगा! सोचा? जो आज हो रहा है वह अच्छा और जो कल होगा वह भी अच्छा। तभी तो तुरत दान महापुण्य और पहला नम्बर का महान बना। अभी बच्चों को तुरत दानी बनना चाहिए। संकल्प किया और तुरत दान महाबलि बनें। जब हाथ उठवाते हैं कि पहले डिवीजन में कौन आयेगा? तो सभी हाथ उठाते हैं। अभी भी उठवायेंगे तो सब उठायेंगे। बापदादा जानते हैं कि कोई भी हाथ नीचे नहीं करेंगे। जब पहले डिवीजन में आना है तो पहले नम्बर को फॉलो तो करो। फॉलो करना सहज है – बस ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखो। कॉपी करो। कापी करना आता है कि नहीं आता है! फॉलो करना आता है? तो फॉलो करो और क्या करना है! अच्छा।
अभी-अभी सभी जो भी बैठे हैं एक सेकेण्ड में अशरीरी आत्मिक स्थिति में स्थित हो जाओ। शरीर भान में नहीं आओ। आत्मा, परम आत्मा से मिलन मना रही है। (बापदादा ने ड्रिल कराई) ऐसा अभ्यास बार-बार कर्म करते, करते रहो। स्विच ऑन किया और सेकेण्ड में अशरीरी बनें। यह अभ्यास कर्मातीत स्थिति का अनुभव करायेगा।
चारों ओर के सदा समर्थ आत्माओं को, सदा बापदादा को फॉलो करने वाले सहज पुरुषार्थी बच्चों को, सदा एक बाप, एकाग्र बुद्धि, एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले, बिन्दू बन बिन्दू बाप के साथ चलने वाले ऐसे सर्व बाप के स्नेही, सहयोगी, सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:- | अविनाशी सुहाग और भाग्य के तिलकधारी सो भविष्य के राज्य तिलकधारी भव संगमयुग पर देवों के देव के सुहाग और परमात्म वा ईश्वरीय सन्तान के भाग्य का तिलक प्राप्त होता है। यदि यह सुहाग और भाग्य का तिलक अविनाशी है, माया इस तिलक को मिटाती नहीं है तो यहाँ के सुहाग और भाग्य के तिलकधारी सो भविष्य के राज्य तिलकधारी बनते हैं। हर जन्म में राज्य तिलक का उत्सव होता है। राजा के साथ रॉयल फैमिली का भी तिलक दिवस मनाया जाता है। |
स्लोगन:- | सदा एक के स्नेह में समाये रहो, तो यह मुहब्बत मेहनत को समाप्त कर देगी। |