murli 31-07-2023

31-07-2023प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम बाप को याद करो, यही याद विश्व के लिए योगदान है, इसी से विश्व पावन बनेगा, बेड़ा पार हो जायेगा”
प्रश्नः-किन बच्चों की सम्भाल अन्त समय में स्वयं बापदादा करते हैं?
उत्तर:-जो बच्चे बहुत समय से कांटों को फूल बनाने की सर्विस में तत्पर रहते हैं। बाप के पूरे-पूरे मददगार हैं, ऐसे बच्चों की अन्त समय में बाप स्वयं सम्भाल करते हैं। बाबा कहते – मैं अपने मददगार बच्चों को वन्डरफुल सीन-सीनरियां दिखलाकर खूब बहलाऊंगा। वह अन्त में बहुत सुख देखेंगे। साक्षात्कार करते रहेंगे। 2- जिन्हें “एक बाप दूसरा न कोई” यह पाठ पक्का है, ऐसे बच्चों को ही बाप की मदद मिलती है।
गीत:-प्रीतम आन मिलो……..

ओम् शान्ति। प्रीतम और प्रीतमायें। प्रीतम एक है और प्रीतमायें अनेक हैं। प्रीतमायें बुला रही हैं एक भगवान् को। अनेक भक्त बुला रहे हैं, किसलिए? सुख के लिए। कन्या बुलाती है प्रीतम आन मिलो। किसलिए? सुख के लिए। सगाई होती है सुख के लिए। परन्तु अब बच्चे जान गये हैं जबकि रावण राज्य है तो प्रीतम से कोई सुख मिल नहीं सकता। रावण राज्य में सुख हो न सके। प्रीतमायें सब शोकवाटिका में हैं तब तो बुलाती हैं। अशोक वाटिका में तो कोई बुलाते नहीं। कोई दु:ख वा शोक नहीं तो बुलायेंगे क्यों? दु:ख में ही प्रीतम को याद करते हैं फिर प्रीतम मिल जाता है तो आधाकल्प प्रीतमायें याद करने से छूट जाती हैं। अभी तुम जानते हो – सबसे मीठा, सबसे प्यारा प्रीतम है ही एक परमपिता परमात्मा, सबसे ऊंचा सबसे श्रेष्ठ। यहाँ कोई मनुष्य अपने को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कह न सके। भल कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है, शिवोहम् परन्तु एक-दो से श्रेष्ठ तो होते ही हैं ना। साधू लोगों में जो ऊंच होते हैं उनको और साधू लोग दण्डवत प्रणाम करते हैं। परन्तु सबसे ऊंच ते ऊंच एक ही प्रीतम परमपिता परमात्मा गाया हुआ है। सब उनको याद करते हैं – जरूर सुख के लिए। जब बहुत दु:ख होता है तो बहुत प्रीतमायें याद करती हैं। अभी बच्चों को इतना दु:ख का अनुभव नहीं है। अजुन तो बहुत दु:ख आने वाला है। जिसको बुलाया जाता है वह आयेंगे तो जरूर ना। तो बाप भी आते हैं। बाप का बनने से एक सेकेण्ड में सुख का वर्सा मिल जाता है। बच्चों को निश्चय होना चाहिए – हमने बाप की गोद ली है तो सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली है। बच्चा पैदा होता है तो गोद में आ जाता है फिर निश्चय हो जाता है कि यह वारिस है। यह भी बेहद का बाप है। अब अच्छी रीति इनको पहचान लेते हैं। पहचान में कोई तकलीफ नहीं है। बच्चे बहुत हैं, गाया जाता है सन शोज़ फादर। तो किसको कहने की दरकार नहीं। ढेर के ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। इतने ढेर बच्चे सिवाए ईश्वर के और किसको होते नहीं। श्रीकृष्ण तो दैवीगुणों वाला मनुष्य है। मनुष्य को इतने बच्चे हो नहीं सकते। तुम जानते हो हम शिवबाबा के बच्चे हैं। तुम कह सकते हो कोई भी मनुष्य को इतने बच्चे होते नहीं। कितने ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। गायन तो है ना प्रजापिता ब्रह्मा का। याद करते हैं त्रिकालदर्शी परमात्मा को। भगवान् को ही इतने बच्चे हो सकते हैं। तो वह निराकार जब साकार में आये तब तो एडाप्ट करे। शरीर न हो तो गोद कैसे ले? तुम ईश्वर की गोद में आये हो। जानते हो वही प्रीतम है। सबसे मीठा, सबसे प्यारा है। प्यार करने वाले को प्रीतम कहा जाता है। तुम जानते हो – हमारा ऊंचे ते ऊंचा प्रीतम वह है जिससे हम प्रीतमाओं को स्वर्ग के सुख घनेरे मिलते हैं। उनके सम्मुख बैठे हैं। भक्ति-मार्ग में गाते भी हैं – राम का नाम लेने से मनुष्य पार हो जाते हैं इसलिए राम-राम बहुत कहते हैं। जैसे गंगा नदी को पतित-पावनी समझते हैं। मनुष्य वहाँ जाकर पत्ते पर दीवा जलाते हैं। जैसे श्रीकृष्ण को पत्ते पर सागर में अंगूठा चूसता हुआ दिखाते हैं। यह फिर दीवा जगाकर पत्ते पर रखते हैं। आत्मा भी दीपक है। मनुष्यों को तो पूरा ज्ञान नहीं है। उन्हों के लिए तो जैसे एक रस्म हो गई है। दीवा जगाकर कहते हैं – आत्मा पार हो जाती है। परमपिता परमात्मा को तो खिवैया कहा जाता है। विषय सागर से पार ले जाते हैं। उन्होंने अक्षर सुनकर एक रस्म बना दी है। बाप आत्मा का दीवा जगाते हैं। यह सब निशानियां हैं। आत्मा को ही यह शरीर छोड़ जाना पड़ता है – उस पार परमधाम में। तुम जानते हो – आत्मा अज्ञान सागर से उस पार जा रही है। खिवैया तो बाप ही है। गंगा जी को खिवैया अक्षर नहीं दिया जा सकता। खिवैया अथवा साजन तो साथ-साथ चाहिए। कितनों को साथ में उस पार ले जाते हैं, भिन्न-भिन्न नाम रख दिये हैं। बाकी बोट में वा स्टीमर में बिठाए कोई ले नहीं जाते हैं। तुम बच्चे जानते हो कैसे याद की यात्रा में रहते हैं। इसमें कुछ मुख से राम-राम कहने की दरकार नहीं। मनुष्य तो कहते हैं राम-राम कहो। समझते हैं हम यह नाम दान करते हैं। बाप फिर दान देते हैं – अविनाशी ज्ञान रत्नों का। कहते हैं मीठी-मीठी लाडली आत्मायें मुझ बाप को याद करो। यही बाप की याद विश्व के लिए योगदान है। शिवबाबा को याद करो। वास्तव में राम भी परमपिता परमात्मा को कहते हैं परन्तु फिर रघुपति राघो राजा राम कह देते हैं। तुम बच्चों ने अब ड्रामा को जाना है। स्वर्ग से लेकर के तुमको सब मालूम है कौन-कौन आया है? कैसे फिर आयेंगे? जो कुछ होता आया है वह सब ड्रामा में नूँध है। यह भोग आदि लगाया जाता है – यह सब ड्रामा में नूँध है। नई कोई बात नहीं। तुम साक्षी हो देखते हो। हरेक एक्टर है। जानते हैं वह अपना पार्ट बजाए वापिस जाते हैं खुशी से।

मनुष्य कहते हैं मरा तो स्वर्गवासी हुआ। तुम जानते हो हम स्वर्गवासी बनने के लिए पुरुषार्थ करते हैं। मनुष्य काशीवास करते हैं ना। गंगा जी के किनारे पर बैठते हैं। शिव का तो मन्दिर है। शिव की याद में सदैव रहते हैं। गंगा की भी महिमा करते हैं। शिव की भी महिमा करते हैं। गंगा में कोई काशी कलवट नहीं खाते। बरोबर पतित-पावन तो शिव ही है। यह भेद हैं। शिव का मन्दिर है। आगे एक कुएं में शिव पर बलि चढ़ते थे। तुम बनारस वालों को अच्छी रीति ज्ञान दे सकते हो। बोलो – तुम यहाँ बैठे हो, गंगा का कण्ठा भी है। शिव का मन्दिर भी है। फिर तुम शिव पर बलि क्यों चढ़ते हो? शिव पतित-पावन है वा गंगा? वास्तव में पतित-पावन तो शिव ही है। भगवान के पास ही बलि चढ़ते हैं। भगवान्, भगवान् पर बलि थोड़ेही चढ़ेंगे। यह तो हो नही सकता। ऐसे नहीं हम भी भगवान्, तुम भी भगवान्। भगवान् पतित थोड़ेही हो सकता है जो गंगा पर स्नान करने जाते हो। सर्वव्यापी के ज्ञान को तुम झट उड़ा सकते हो। पतित-पावन शिव है – यह सिद्धकर बताना है। बच्चों को प्वाइन्ट दी जाती हैं समझाने लिए। काशी में समझाना सबसे सहज और अच्छा है। शिव का मन्दिर है तो जरूर कभी आया है। शिव को हमेशा बाबा कहा जाता है। उनको अपना शरीर कभी मिलता नहीं। ऐसे तो शिव नाम बहुत बच्चों के हैं। अथवा श्रीकृष्ण भी लाखों के नाम होंगे। परन्तु वह श्रीकृष्ण तो सतयुग में था ना। श्रीकृष्ण के भक्त श्रीकृष्ण की मूर्ति उठाए पूजा करेंगे। मनुष्य की तो नहीं करेंगे। तो सिद्ध होता है श्रीकृष्ण सतयुग में होता है। मनुष्यों को पता नहीं हैं – राधे-कृष्ण कौन हैं? उन्होंने कब राजाई की है? यह बाप बैठ समझाते हैं।

तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी। विष्णु के ऊपर यह स्वदर्शन चक्रधारी नाम कैसे पड़ा, क्या किया – यह तो कोई समझा नहीं सकते हैं। बाप तो है निराकार। विष्णु को इतने हथियार कहाँ से आये – कोई जानते नहीं हैं। हम समझते हैं यह सब ड्रामा में नूँध है। भक्ति मार्ग में भी जिन्होंने चित्र बनवाये हैं वही बनायेंगे। सब बना-बनाया खेल है। आधाकल्प भक्ति आधाकल्प ज्ञान मार्ग चलता है। इन बातों को तुम जानते हो। तुमको ही मज़ा आता होगा। जो सच्ची-सच्ची प्रीतमायें हैं, वह प्रीतम तो झूठा है, झूठी और सच्ची चीज़ में फ़र्क तो है ना। झूठा प्रीतम और सच्चा प्रीतम। पत्नि, पति को प्यारा कहती है ना। अभी तुम जानते हो – हम प्रीतमाओं को कैसा मीठा प्रीतम मिला है। उनको प्रीतम भी कहते हैं तो बाप भी कहते हैं। बाप का भी प्यार होता है। बाप से फिर भी वर्सा मिलता है। प्रीतम से प्रीतमाओं को कोई वर्सा नहीं मिलता। अपने को प्रीतमा समझने से भी, बच्चा समझने से वर्से की टेस्ट आती है। शिव को हमेशा बाबा कहते हैं। शिवबाबा को शिवपति कभी नहीं कहेंगे। अभी तुमको कोई शिव का नाम नहीं जपना है। सिर्फ बाबा को याद करो। बच्चे आते हैं तो पूछा जाता है – कब ईश्वर के बने? बच्चा जब तक न बनें तब तक वर्सा मिल न सके। मात-पिता है तो सम्मुख मिलना है। निश्चय किया, मिले नहीं और मर गया तो वर्सा नहीं मिल सकता। ऐसे बहुत हैं जो वर्सा नहीं पाते। प्रजा में चले जाते हैं। बाप कहते हैं निश्चय हो गया यह वही मात-पिता है तो सम्मुख आना पड़े। फिर सर्विस कर आपसमान बनाना है। प्रजा बनानी है और फिर अपना वारिस भी बनाना है। घर बैठे तो नहीं होगा, मेहनत करनी है। इन बातों पर बच्चे विचार सागर मंथन नहीं करते। श्रीकृष्ण लीला मशहूर है। लीला तो सतयुग में होती है। यहाँ थोड़ेही हो सकती। यह तो कॉपी करते रहते हैं। स्वर्ग में क्या-क्या होगा, कैसे महल होंगे – यह तो बच्चे महसूस कर सकते हैं। वहाँ की तो बात मत पूछो। मुख पानी होता है। बाप सुख ही देते हैं। दु:ख के लिए बाप का आह्वान थोड़ेही करते है। दुनिया में बड़ा दु:ख है। एक घर में अगर बहू छटेली आ जाती है तो घर को डांवाडोल कर देती है। ऐसे बहुत घर बाबा के देखे हुए हैं। अभी समय बहुत थोड़ा है। बाप के बनो तब बाबा मदद दे। वारिस ही नहीं बनते तो वर्सा देने वाले की मदद कैसे मिले? बाप कहते हैं डरो मत। साहूकार लोग तो डरते हैं। यह बाप तो दाता है। भक्ति मार्ग में भी तुम मेरे अर्थ गरीबों को देते थे। उस अनुसार जन्म मिलता था। अब डायरेक्ट कहता हूँ – हमारा बनो तो तुमको राज्य-भाग्य दूँगा। शिवबाबा को तो कुछ मकान आदि बनाना नहीं है। तुमसे पूछते हैं जबकि सब खलास हो जाना है तो फिर यह मकान आदि क्यों बनाते हो? अरे, तब रहे कहाँ? पिछाड़ी में भी आकर बच्चों को रहना है। तुम पिछाड़ी में बहुत सीन-सीनरियां देखेंगे। बहुत खुशी में रहेंगे। जितना नजदीक समय आता जायेगा, बाबा द्वारा बहुत साक्षात्कार होते रहेंगे। जो मददगार हो जायेंगे वह पिछाड़ी में बहुत सुख देखेंगे। दु:ख के समय बहुत सुख देखेंगे। वह वन्डरफुल सुख हैं। पाकिस्तान में भी तुम मौज में बैठे थे। वैकुण्ठ में कैसे स्वयंवर होते हैं, लक्ष्मी-नारायण का कैसे राज्य चलता है – सब बाबा साक्षात्कार कराते थे। तुम बहुत देखेंगे अगर शिवबाबा की मत पर कांटों को फूल बनाने में मदद करते रहेंगे, तो कहा जाता है – हिम्मते मर्दा मददे खुदा। ऐसे प्रीतम को तो बहुत याद करना चाहिए। दुनिया थोड़ेही जानती है। इतने ढेर बच्चे हैं तो जरूर उनका मात-पिता होगा ना – जिससे सुख घनेरे मिलते हैं। यह महिमा कोई लौकिक माँ-बाप की थोड़ेही है। तुम प्रैक्टिकल देखते हो कितने ढेर बच्चे हैं। क्रियेटर गॉड फादर है। क्रियेट करेंगे तो एडाप्ट करेंगे ना। किस द्वारा? यह है मुख वंशावली। समझाना बहुत सहज है। अभी ईश्वर की गोद लेते हो फिर दैवी गोद मिलेगी। फिर आसुरी। इस ईश्वरीय गोद से हम शान्तिधाम, सुखधाम जाते हैं। आसुरी गोद से दु:खधाम जाते हैं। यह मंत्र याद कर लो। बांधेली गोपिकायें पुकारती हैं। तो उन्हों के लिए कोई न कोई प्रयत्न करना पड़ता है। बाबा छोटे-छोटे गांव में तो जा नहीं सकेंगे। बड़े गांव में आकर मिलते हैं। जाना तो पड़ता ही है। समझाया जाता है बलिहार भी कैसे जाना है। राजा जनक बलि चढ़ा फिर कहा गया अब ट्रस्टी हो सम्भालो। रचना की पालना तो तुमको जरूर करनी है। तुम अपने को आत्मा ट्रस्टी समझो। माया रावण दु:ख देने वाली है इसलिए रावण का कोई मन्दिर नहीं है। बाकी बुत बना देते हैं। रावण ने बहुत दु:ख दिया है। जितना दु:ख दिया है उतना ही वर्ष-वर्ष उनको जलाते रहते हैं। शिवबाबा ने सुख दिया है, तो उनका मन्दिर बड़ा आलीशान है। रावण दु:ख देने वाले का मन्दिर हो ही नहीं सकता। उसको तो खत्म कर देते हैं। जो कुछ देखने में ही नहीं आता। शिवबाबा का मन्दिर तो देखने में आता है। कितनी पूजा होती है। वास्तव में एवर पूज्य है ही एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। तुम फिर पूज्य से पुजारी बनते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप की याद में रहना है और सबको याद दिलाना है, यही दान करते रहना है। बाप पर बलि चढ़कर फिर ट्रस्टी हो सम्भालना है।

2) साक्षी हो हरेक एक्टर का पार्ट देखना है। हम पार्ट पूरा कर खुशी से वापस जा रहे हैं – इस स्मृति में सदा रहना है।

वरदान:-सदा बाप समान बन अपने सम्पन्न स्वरूप द्वारा सर्व को वरदान देने वाले वरदानी मूर्त भव
भारत में विशेष देवियों को वरदानी के रूप में याद करते हैं। लेकिन ऐसे वरदानी मूर्त वही बनते हैं जो बाप के समान और समीप रहने वाले हों। अगर कभी बाप समान और कभी बाप समान नहीं लेकिन स्वयं के पुरुषार्थी हैं तो वरदानी नहीं बन सकते क्योंकि बाप पुरुषार्थ नहीं करता वो सदा सम्पन्न स्वरूप में है। तो जब समान अर्थात् सम्पन्न स्वरूप में रहो तब कहेंगे वरदानी मूर्त।
स्लोगन:-याद की तीव्र दौड़ी लगाओ तो बाप के गले का हार, विजयी मणके बन जायेंगे।