30-07-23 | प्रात:मुरली ओम् शान्ति” अव्यक्त- बापदादा” | रिवाइज: 25-03-95 मधुबन |
ब्राह्मण जीवन का सबसे श्रेष्ठ खजाना – संकल्प का खजाना
आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के खजानों के खाते देख रहे थे। हर एक बच्चे को खजाने बहुत मिले हैं और अविनाशी अनगिनत खजाने मिले हैं। सिर्फ इस जन्म के लिये नहीं लेकिन अनेक जन्मों की गैरेन्टी है। अब भी साथ हैं और आगे भी साथ रहेंगे। तो आज विशेष जो सबसे श्रेष्ठ खजाना है और सर्व खजानों का विशेष आधार है वो ही विशेष देख रहे थे कि सबके खाते में जमा कितना है? मिला अनगिनत है लेकिन जमा कितना है? तो सबसे श्रेष्ठ खजाना संकल्प का खजाना है और आप सबका श्रेष्ठ संकल्प ही ब्राह्मण जीवन का आधार है। संकल्प का खजाना बहुत शक्तिशाली है। संकल्प द्वारा सेकेण्ड से भी कम समय में परमधाम तक पहुँच सकते हो। संकल्प शक्ति एक ऑटोमेटिक रॉकेट से भी तीव्र गति वाला रॉकेट है। जहाँ चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। चाहे बैठे हो, चाहे कोई कर्म कर रहे हो लेकिन संकल्प के खजाने से वा शक्ति से जिस आत्मा के पास पहुँचना चाहो उसके समीप अपने को अनुभव कर सकते हो। जिस स्थान पर पहुँचना चाहो वहाँ पहुँच सकते हो। जिस स्थिति को अपनाना चाहो, चाहे श्रेष्ठ हो, खुशी की हो, चाहे व्यर्थ हो, कमजोरी की हो, सेकेण्ड के संकल्प से अपना सकते हो। संकल्प किया – मैं श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा हूँ तो श्रेष्ठ स्थिति और श्रेष्ठ अनुभूति होगी और संकल्प किया मैं तो कमजोर आत्मा हूँ, मेरे में कोई शक्ति नहीं है, तो सेकेण्ड के संकल्प से खुशी गायब हो जायेगी। परेशानी के चिन्ह स्थिति में अनुभव होंगे। लेकिन दोनों स्थिति का आधार संकल्प है। याद में भी बैठते हो तो संकल्प के आधार से ही स्थिति बनाते हो। मैं बिन्दु हूँ, मैं फरिश्ता हूँ… यह स्थिति संकल्प से ही बनी। तो संकल्प कितना शक्तिशाली है!
ज्ञान का आधार भी संकल्प ही है। मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं हूँ – ये संकल्प करते हो। सारा दिन मन-बुद्धि को शुद्ध संकल्प देते हो वा मनन में शुद्ध संकल्प करते हो तो मनन शक्ति का आधार भी संकल्प शक्ति है। धारणा करते हो, मन-बुद्धि को संकल्प देते हो कि आज मुझे सहनशक्ति धारण करनी है तो धारणा का भी आधार संकल्प है। सेवा करते हो, प्लैन बनाते हो तो भी शुद्ध संकल्प ही चलते हैं ना! शुद्ध संकल्प द्वारा ही प्लैन बनता है। अनुभव है ना! तो ब्राह्मण जीवन का विशेष श्रेष्ठ खजाना है संकल्प का खजाना। अगर आप संकल्प के खजाने को सफल करते हो तो आपकी स्थिति, कर्म सारा दिन बहुत अच्छा रहता है और संकल्प के खजाने को व्यर्थ गँवाते हो तो रिज़ल्ट क्या होती? जो स्थिति चाहते हो वो नहीं होती। और आप सब जानते हो कि व्यर्थ संकल्प बुद्धि को भी कमजोर करते हैं और स्थिति को भी कमजोर करते हैं। जिनका व्यर्थ चलता है उनकी बुद्धि कमजोर होती है, कन्फ्युज्ड होती है। निर्णय ठीक नहीं होगा। सदा मूंझा हुआ होगा। क्या करूँ, क्या न करूँ, स्पष्ट निर्णय नहीं होगा। और व्यर्थ संकल्प की गति बहुत फास्ट होती है। व्यर्थ संकल्प का तो सबको अनुभव होगा। विकल्प नहीं, व्यर्थ का अनुभव सभी को है। तो फास्ट गति होने के कारण उसको कन्ट्रोल नहीं कर पाते हैं। कन्ट्रोल खत्म हो जाता है। परेशानी या खुशी गायब होना या मन उदास रहना, अपने जीवन से मज़ा नहीं आना – ये व्यर्थ संकल्प की निशानियाँ हैं। कइयों को मालूम ही नहीं पड़ता कि मेरी स्थिति ऐसी हुई ही क्यों? वो मोटी-मोटी बातें देखते हैं कि कोई विकर्म तो किया ही नहीं, कोई गलती तो की नहीं फिर भी खुशी कम क्यों, उदासी क्यों, क्यों नहीं आज जीवन में मज़ा आ रहा है! मन नहीं लग रहा है। कारण? विकर्म को देखते, विकल्प को देखते, बड़ी गलतियों को चेक करते लेकिन ये सूक्ष्म गलती व्यर्थ खजाने गँवाने की होती है। जरूर वेस्ट का, व्यर्थ गँवाने का खाता बढ़ा हुआ है। जैसे शारीरिक रोग पहले बड़ा रूप नहीं होता, छोटा रूप होता है लेकिन छोटे से बढ़ते-बढ़ते बड़ा रूप हो जाता है और बड़ा रूप दिखाई देता है, छोटा रूप दिखाई नहीं देता है, वैसे ये व्यर्थ का खाता, गँवाने का खाता बढ़ता जाता, बढ़ता जाता। पाप का खाता अलग है, ये खजाने गँवाने का खाता है। पाप तो स्पष्ट दिखाई देता है तो महसूस कर लेते हो कि आज ये किया ना इसीलिये खुशी गुम हो गई। लेकिन व्यर्थ गँवाने का खाता, उसकी चेकिंग कम होती है। और आप समझते हो कि चलो, आज का दिन भी बीत गया, अच्छा हुआ, कोई ऐसी गलती नहीं की, लेकिन ये चेक किया कि अपने संकल्प के श्रेष्ठ खजाने को जमा किया या व्यर्थ गँवाया? यदि जमा नहीं होगा तो गँवाने का खाता होगा ना! अन्दर समझ में आता है कि बहुत कुछ कर रहे हैं, लेकिन खाता चेक करो कि आज क्या-क्या खजाना जमा किया? चेक करना आता है? अपना चेकर बने हो या दूसरे का चेकर बने हो? क्योंकि अपने को अन्दर से देखना होता है, दूसरे को बाहर से देखना होता है, वो सहज हो जाता है। तो बापदादा देख रहे थे कि जो विशेष श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना है वह व्यर्थ बहुत जाता है। पता ही नहीं पड़ता है कि व्यर्थ गया या समर्थ है?
ब्रह्मा बाप को इकॉनॉमी का अवतार कहते हैं। आप सभी कौन हो? आप भी मास्टर हो या नहीं? इकॉनॉमी नहीं आती है? खर्च करना आता है! वैसे डबल फॉरेनर्स को लौकिक जीवन के हिसाब से जमा का खाता बनाना कम आता है। खाया और खर्चा, खत्म। बैंक बैलेन्स कम रखते हैं। लेकिन इसमें तो इकॉनॉमी का अवतार बनना पड़ेगा। तो बापदादा देख रहे थे कि जितना मिला है, जितना संकल्प का श्रेष्ठ खजाना जमा होना चाहिये उतना नहीं है, व्यर्थ का हिसाब ज्यादा देखा। अगर संकल्प व्यर्थ हुआ तो और खजाने व्यर्थ स्वत: ही हो जाते हैं। संकल्प व्यर्थ तो कर्म और बोल क्या होगा? व्यर्थ ही होगा ना! फाउण्डेशन है संकल्प। तो संकल्प को चेक करो। हल्का नहीं छोड़ो। ठीक है, सिर्फ दो मिनट ही तो हुआ, ज्यादा नहीं हुआ… लेकिन दो मिनट में आप चेक करो कि कितने संकल्प चलते हैं? व्यर्थ संकल्प तो तेज होते हैं ना! एक सेकेण्ड में आबू से अमेरिका पहुँच जायेंगे। वैसे पहुँचने में कितने घण्टे लगते हैं! तो इतनी फास्ट गति है, उस गति के प्रमाण चेक करो, अपने संकल्प शक्ति की बचत करो और फिर रात्रि को चेक करो। अगर अटेन्शन दे करके कोई भी चीज़ की बचत करते हैं तो चाहे बचत थोड़ी हो लेकिन बचत की खुशी एक्स्ट्रा होती है। अगर 10 पाउण्ड या डॉलर खर्च होना है और आपने एक पाउण्ड या डॉलर बचा लिया तो एक पाउण्ड की बड़ी खुशी होगी कि बचाकर आये हैं। तो अपने संकल्पों के ऊपर कन्ट्रोलिंग पॉवर रखो। ये नहीं कहो – चाहते तो नहीं थे, समझते तो हैं लेकिन क्या करें हो जाता है…। कौन कहता है हो जाता है? मालिक या गुलाम? मालिक के तो कन्ट्रोल में होते हैं ना। अगर मालिक को भी कोई धोखा दे दे तो वो मालिक है क्या? तो ये चेक करो – कन्ट्रोलिंग पॉवर है? एक तो बचत करो, वेस्ट के बजाय बेस्ट के खाते में जमा करो और दूसरा अगर बचत नहीं कर सकते हो तो व्यर्थ को समर्थ संकल्पों में परिवर्तन करो। यदि कन्ट्रोल नहीं हो सकता है तो परिवर्तन तो कर सकते हो ना? उसकी रफ्तार को जल्दी से चेंज करना। नहीं तो आदत पड़ जाती है। एक घण्टे को भी चेक करो तो एक घण्टे में भी देखेंगे कि 5-10 मिनट भी जो वेस्ट संकल्प जा रहे थे, वह 5 मिनट भी वेस्ट से बेस्ट में जमा हो गये तो 12 घण्टे में 5-5 मिनट भी कितने हो जायेंगे? और खुशी कितनी होगी? और जितना श्रेष्ठ संकल्पों का खाता जमा होगा तो समय पर जमा का खाता काम में आयेगा। नहीं तो जैसे स्थूल धन में अगर जमा नहीं होता तो समय पर धोखा खा लेते हैं। ऐसे यहाँ भी जब कोई बड़ी परीक्षा आ जाती है तो मन और बुद्धि खाली-खाली लगती है, शक्ति नहीं लगती है। तो क्या करना है? जमा करना सीखो। अगले वर्ष अगर देखें तो सबके श्रेष्ठ संकल्पों का खाता भरपूर हो। खाली-खाली नहीं हो। यही श्रेष्ठ संकल्पों का खजाना श्रेष्ठ प्रालब्ध का आधार बनेगा। तो जमा करना आता है? राजयोगी अर्थात् चेक करना भी आता और जमा करना भी आता। जिसका खाता जमा होगा उसकी चलन और चेहरा सदा ही भरपूर दिखाई देगा। ऐसे नहीं, आज देखो तो चेहरा बड़ा चमक रहा है और कल देखो तो उदासी की लहर – ऐसा नहीं होगा। सारे दिन में चेक करो तो आपके पोज़ कितने बदलते हैं? कभी चेक किया है? बहुत पोज़ बदलते हैं। बापदादा तो सबके पोज़ देखते हैं ना! कभी-कभी देखते हैं कि कई बच्चे कर्म करने में इतना टाइम नहीं लगाते लेकिन किये हुए कर्म के पश्चाताप् में टाइम बहुत गँवाते हैं। फिर कहते हैं तीन दिन हो गये, खुशी गुम हो गई है। क्यों खुशी गुम हुई, कहाँ गई, कौन ले गया? खजाना तो आपका है लेकिन ले कौन गया? पश्चाताप् करना अच्छी चीज़ है, क्योंकि पश्चाताप् परिवर्तन कराता है लेकिन उसमें ज्यादा टाइम नहीं लगाओ। पश्चाताप् का रोना करेंगे तो सारा सप्ताह रोते रहेंगे। पश्चाताप् किया, बहुत अच्छा लेकिन पश्चाताप् करना और प्राप्ति की खुशी लाना। आगे के लिये सेकेण्ड में निर्णय करो कि ये करना है या ये नहीं करना है। पहले सुनाया है ना – नॉट और डॉट ये दोनों शब्द याद रखो। नॉट सोचा और डॉट लगाया। चार घण्टा रोते रहे, चलो पानी नहीं आया, अन्दर रोते रहे। आधा घण्टा पानी बहाया और चार घण्टा मन से रोया तो इतना पश्चाताप् नहीं करो। यह बहुत है। पश्चाताप् की भी कोई हद रखो।
बापदादा को डबल फॉरेनर्स की एक विशेषता बहुत अच्छी लगती है, रोना नहीं अच्छा लगता लेकिन एक विशेषता अच्छी लगती है। कौन सी? सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। सच बताने में डरेंगे नहीं, छिपायेंगे नहीं। तो सच्ची दिल है इसके कारण बाप के डबल प्यार के भी पात्र हो। तो सच्ची दिल रखी, साहेब को तो राज़ी कर लिया लेकिन परिवर्तन भी फिर इतना जल्दी करना चाहिये। उसको बार-बार अपने अन्दर में वर्णन नहीं करो – ये हो गया, ये हो गया…। हो गया, फिनिश। आगे के लिये अटेन्शन। लेकिन कभी-कभी अटेन्शन के बजाय टेन्शन कर लेते हो, वो नहीं करना है। बड़े ते बड़ा जस्टिस बनो। यहाँ भी चीफ जस्टिस होते हैं ना, आप तो चीफ जस्टिस के भी चीफ हो। अपने प्रति जल्दी से जल्दी जस्टिस करो – राँग, राइट। राँग है तो नॉट और डॉट। ऐसा नहीं होता तो ऐसे होता, ऐसे नहीं करते तो ऐसा होता… ये गँवाने का खाता जमा करते हैं। कमाई खत्म हो जाती, जमा का खाता खत्म होता। सोचो लेकिन व्यर्थ नहीं। और बचाकर दिखाओ – एक घण्टे से इतना बचाया, ये रिजल्ट दिखाओ कि व्यर्थ चालू हुआ लेकिन हमने चेंज किया और जमा किया। वेस्ट को बचाओ। ये बचत का खाता बहुत खुशी दिलायेगा।
इस वर्ष बापदादा सभी के बचत का खाता भरपूर देखना चाहते हैं। कर सकते हो ना? तो अभी फास्ट गति से करना क्योंकि टाइम भी तो फास्ट जा रहा है ना! फिर देखेंगे – इसमें नम्बरवन कौन जाता है? बचत का खाता किसका सबसे ज्यादा होता है? बचत के खाते में नम्बरवार कौन-कौन होते हैं, वो लिस्ट निकालेंगे। और अगर आपने संकल्प को कन्ट्रोल किया तो औरों को कन्ट्रोल करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। कई कहते हैं बोलना नहीं चाहते हैं लेकिन पता नहीं मुख से निकल गया। लेकिन जब बोल निकलता है या कर्म भी होता है तो पहले तो संकल्प आता है। अगर किससे क्रोध भी करना है तो पहले संकल्प में प्लैन बनता है – ऐसे करुँगा, ऐसे बोलूँगा, ये क्या समझता है… प्लैन चलता है। फिर समय को भी उसमें यूज़ करते हैं। समय देखते रहेंगे कब आता है, कौन आता है…। तो संकल्प के खजाने के पीछे समय का खजाना भी वेस्ट जाता है। सम्बन्ध है। तो संकल्प को बचाने से समय को, बोल को बचाना स्वत: ही हो जायेगा।
तो वर्ष बीतता जा रहा है। अभी संकल्प में साधारण संकल्प नहीं करो, प्रतिज्ञा करो। शरीर जाये लेकिन प्रतिज्ञा नहीं जाये। कितना भी सहन करना पड़े, परिवर्तन करना पड़े लेकिन प्रतिज्ञा नहीं तोड़ो। इसको कहा जाता है दृढ़ संकल्प। सोचते बहुत अच्छा हो, बापदादा भी खुश हो जाते हैं। ये करेंगे, ये करेंगे, ये नहीं करेंगे – खुश तो कर देते हो लेकिन इसमें दृढ़ता द्वारा सदा शब्द एड करो। थोड़ा समय तो प्रभाव दिखाते हो। उसके लिये जैसे पहले सुनाया ना कि अपने को सदा इकॉनॉमी का अवतार समझो। साथ-साथ इकॉनॉमी, एकनामी और एकान्तवासी। ज्यादा बोल में नहीं आओ। एकान्तवासी बनो। देखा जाता है जो बोल में सारा दिन आते हैं उनके संकल्प, समय सब खजाने ज्यादा वेस्ट होते हैं। एकान्तवासी का डबल अर्थ है। सिर्फ बाहर की एकान्त नहीं लेकिन एक के अन्त में खो जाना, एकान्त। नहीं तो सिर्फ बाहर की एकान्त होगी तो बोर हो जायेंगे, कहेंगे – पता नहीं दिन कैसे बीतेगा! लेकिन एक बाप के अन्त में खो जाओ। जैसे सागर के तले में चले जाते हैं तो कितना खजाना मिलता है। अन्त में चले जाओ अर्थात् बाप से जो प्राप्तियाँ हैं उसमें खो जाओ। सिर्फ ऊपर-ऊपर की लहरों में नहीं लहराओ, अन्त में चले जाओ, खो जाओ। फिर देखो कितना मजा आता है। तो सर्व खजानों में इकॉनॉमी करो, और एक बाप दूसरा न कोई, इसको कहते हैं एकनामी। ऐसे स्थिति में रहने वाले अपने सर्व खजानों को जमा कर सकेंगे, नहीं तो जमा नहीं होता है। तो इकॉनॉमी करना जानते हो ना? अच्छा!
चारों ओर के रूहानी सच्चे डायमण्ड आत्माओं को, सदा इकॉनॉमी के अवतार विशेष आत्माओं को, सदा एकनामी, एकान्त-प्रिय विशेष आत्माओं को अपने वायब्रेशन वृत्ति की चमक से विश्व में प्रकाश फैलाने वाले चमकती हुई आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दादियों से:- सब कार्य सफल हुए ही पड़े हैं। सफलता स्वरूप आत्मायें निमित्त हो। आप सभी निमित्त आत्मायें कौन-से सितारे हो? सफलता के सितारे हो ना! ये सारा संगठन सफलता के सितारे हैं। यह सारा संगठन ब्राह्मण परिवार के तारा मण्डल में सफलता के सितारे चमकते हुए हैं। अच्छा।
वरदान:- | खुशी के खजाने से अनेक आत्माओं को मालामाल बनाने वाले सदा खुशनसीब भव खुशनसीब उन्हें कहा जाता जो सदा खुश रहते हैं और खुशी के खजाने द्वारा अनेक आत्माओं को मालामाल बना देते हैं। आजकल हर एक को विशेष खुशी के खजाने की आवश्यकता है, और सब कुछ है लेकिन खुशी नहीं है। आप सबको तो खुशियों की खान मिल गई। खुशियों का वैरायटी खजाना आपके पास है, सिर्फ इस खजाने के मालिक बन जो मिला है वो स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति यूज़ करो तो मालामाल अनुभव करेंगे। |
स्लोगन:- | अन्य आत्माओं के व्यर्थ भाव को श्रेष्ठ भाव में परिवर्तन कर देना ही सच्ची सेवा है। |