murli 30-06-2023

30-06-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – इस पुरानी दुनिया, पुराने माण्डवे से अब दिल हटा लो, तुम्हें बाप के पास वापस जाना है इसलिए घर को याद करो”
प्रश्नः-अपनी अवस्था अच्छी बनाने के लिए किस बात का बहुत-बहुत ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:-भोजन का। सेन्सीबुल बच्चे अपने हाथ से योग में रहकर भोजन बनायेंगे और खायेंगे। अगर कोई बाबा को याद कर, प्रेम से बैठ भोजन बनाये और खाये तो अवस्था बहुत अच्छी हो सकती है। बाबा की याद में भोजन बनायेंगे तो बाबा भी वासना लेंगे। सर्विसएबुल बच्चों को बहुत फुर्त बनना चाहिए। हर प्रकार की सेवा अपने हाथ से करनी है।
गीत:-मुझको सहारा देने वाले….. Audio Player

ओम् शान्ति। बच्चों प्रति बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं – हम आत्मायें परमपिता परमात्मा बाप से सुन रही हैं। आगे सतसंगों में तुम ऐसे नहीं समझते थे कि हम आत्मायें परमपिता परमात्मा से सुन रही हैं। यहाँ बच्चे बाप के और बाप बच्चों के सम्मुख हैं। बाप निराकार है और आत्मा भी निराकार है ना। कितने ढेर के ढेर बच्चे हैं। यह बाप बिगर और कोई कह न सके। जो बाप के सम्मुख ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ हैं उनको ही बाप बैठ समझाते हैं। तुम जानते हो इस समय सब पाप आत्मायें हैं, यह कोई पुण्य आत्माओं की दुनिया नहीं है। पुण्य आत्माओं की दुनिया सतयुग को कहा जाता है। अभी तुम बच्चों को बेहद का बाप राजयोग सिखला रहे हैं। अब बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया में देह सहित जो कुछ है, उनको भूलना है। उनसे वैराग्य आना चाहिए। यह है बेहद का वैराग्य। तुमको कोई जंगल में नहीं जाना है। रहना गृहस्थ व्यवहार में ही है। परन्तु इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है। यह कलियुग का माण्डवा है। इस माण्डवे में जब सतयुग था तो देवी-देवताओं का राज्य था। उन्हों का पार्ट बजता था। अब यह माण्डवा पुराना हो गया है। पुण्य आत्माओं की दुनिया सतयुग को कहा जाता है। अभी तुम इन ऑखों से जो कुछ देखते हो वह पुरानी चीज़ ही है। यह 84 जन्म पूरे करने हैं तो इस पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगानी है। दिल लगानी है नई दुनिया से। अब तो यह पुराना शरीर छोड़कर हमको वापिस जाना है। खुशी रहनी चाहिए – बाबा हमको फिर से वापिस ले जाने आये हैं। फिर से हमको स्वर्ग में जाकर पार्ट बजाना है। गोया गृहस्थ व्यवहार में रहते ममत्व मिटा देना चाहिए। पुरानी दुनिया को कब्रिस्तान बनना ही है। नाटक के एक्टर्स पार्ट पूरा करते हैं तो फिर घर याद पड़ता है। तुम भी जानते हो हम ब्राह्मणों ने 84 जन्मों का पार्ट बजाया, 84 का चक्र ही कहा जाता है। वर्णों को याद करना पड़ता है।

शिवबाबा बैठ फूलों को देखते हैं। इनकी आत्मा भी देखती है और फिर बाबा को भी याद करती है – बाबा ने हमको यह ज्ञान सुनाया है। वही बाप, टीचर, सतगुरू है। कोई शास्त्र तो हाथ में नहीं हैं। बच्चियाँ भी कहेंगी शिवबाबा ने सृष्टिचक्र की नॉलेज दी है, वह आपको सुनाते हैं। तो सतगुरू ही याद पड़ेगा। आत्माओं के रूप से बाबा भी याद आता है। सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी याद पड़ती है। यह भी जानते हो – वहाँ हम आत्मायें नंगी रहती हैं। बाप तो सदैव अशरीरी है। अभी हमको इस शरीर द्वारा कल्प पहले मुआफिक शिक्षा दे रहे हैं। बरोबर हम आत्मा हैं। पुण्य आत्मा, पाप आत्मा कहा जाता है। पाप वा पुण्य परमात्मा नहीं कहा जाता है। संन्यासियों को भी महान् आत्मा कहेंगे। अगर परमात्मा सर्वव्यापी हो तो महान् परमात्मा कहा जाये। ऐसे तो हो नहीं सकता कि परमात्मा बैठ यज्ञ-तप आदि करे। भक्त भगवान को ढूँढते हैं। यह भी ड्रामा के अन्दर भक्ति मार्ग की नूँध है। तुमको फिर से 21 जन्म सुख भोग फिर 63 जन्म भक्ति मार्ग के अन्दर चक्र में आना है। तुम जानते हो हमारा पार्ट सबसे न्यारा है। हरेक अविनाशी आत्मा को अविनाशी पार्ट मिला हुआ है। शरीर तो खत्म हो जाता है। आत्मा कहती है हमने 84 जन्म का पार्ट बजाया। अभी हमको पार्ट पूरा करके वस्त्र छोड़ना है, इनमें ममत्व नहीं रखना है। आत्मा ही सब कुछ करती है। आत्मा पढ़ती है। कहती है – हमने इतना पढ़ा है, इन आरगन्स द्वारा। आत्मा इनसे निकल जाती है तो शरीर को मुर्दा कहा जाता है। आत्मा कहती है – मैं अमर हूँ। तुम्हारी बुद्धि में अभी रहता है – बरोबर इस बेहद के ड्रामा में हमारा 84 जन्म का पार्ट है। अनेक एक्टर्स भिन्न-भिन्न धर्म के हैं। भारत की बड़ी भारी महिमा है। क्रिश्चियन लोगों को भी भारत के लिए रिगॉर्ड है। समझते हैं भारत ही प्राचीन है। उस समय क्रिश्चियन नहीं थे। परन्तु वह सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं कि भारत प्राचीन था, जानते नहीं हैं। वहाँ तो देवी-देवताओं का राज्य था, जिनको भगवती-भगवान् कहते हैं। गॉड कृष्णा नहीं, लॉर्ड कृष्णा कहते हैं। श्रीकृष्ण के अथवा देवताओं के बहुत पुराने ते पुराने चित्र मांगते हैं क्योंकि फिर भी सबके बड़े हैं ना देवी-देवतायें। भारत की बड़ी महिमा है। गीता में अगर नाम न बदलते तो सब जानते कि हम मनुष्य आत्माओं के बाप का यह भारत खण्ड जन्म स्थान है। शिव के मन्दिर तो जहाँ-तहाँ हैं। पतित-पावन बाप पतित दुनिया में ही आकर सबको पावन बनाते हैं तो ऊंच हुआ ना। महिमा भी होती है शिवाए नम:। तुम मात-पिता हम बालक तेरे…. तुम ज्ञान के सागर हो। तुम्हारी गत मत न्यारी है। तुम्हारी महिमा अपरमअपार है। परन्तु फिर उनको भूल जाते हैं, इसलिए भारत की महिमा उड़ गई है। अब बच्चे बाहर विलायत में जायेंगे तो उन्हों को समझाना है – सब आत्माओं का बाप वह निराकार है। तुम गॉड फादर को पुकारते हो, परन्तु वह कब आते हैं – यह पता नहीं है। वह यूरोपवासी यादव भी जानते हैं – हमने यह जो मूसल बनवाये हैं इनसे जरूर हम अपने कुल का विनाश करेंगे। महाभारत लड़ाई मशहूर है। सामने मौत खड़ा है। भारत प्राचीन है तो उसके मददगार भी बहुत बनते हैं। समझते हैं भारत बहुत धनवान था। इतना तो खजाना था, जो बाद में मुसलमानों ने हीरे-मणियाँ आदि ले जाकर कब्रों में लगाई हैं। बच्चे जानते हैं – बरोबर भारत में देवी-देवताओं का राज्य था। अभी हम फिर से वह राज्य ले रहे हैं। सिवाए योगबल के कोई विश्व का मालिक बन न सके। क्रिश्चियन लोग हैं एक ही धर्म के, फिर भी आपस में लड़कर अपने कुल का विनाश कर देते हैं। यादव कुल वाले मूसलों द्वारा आपस में लड़ते हैं। यह जानते हैं कि बाम्ब्स से सारी दुनिया ही उड़ जायेगी। हम राज्य कर नहीं सकेंगे। तुम जानते हो दो बन्दर लड़ेंगे, मक्खन बीच में हमको मिल जायेगा। तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। अब तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से वैराग्य आना चाहिए क्योंकि जानते हैं यह सब खत्म होने वाले हैं। याद एक बाप को करना है। कब्रिस्तान को क्या याद करना है। कब्रिस्तान खत्म हो फिर परिस्तान बनना है। नहीं तो सतयुग में इसी ही भारत में हीरे-जवाहरात की खानियाँ थीं, अब तो सब खत्म हो गई हैं। बच्चों ने साक्षात्कार किया है कैसे विमानों में सोना आदि ले आते हैं। वह सृष्टि ही नई बन जायेगी। वहाँ कितने अच्छे-अच्छे फल-फूल होते हैं। हर चीज़ वहाँ अच्छी होती है। गन्द करने वा दु:ख देने वाली कोई चीज़ होती ही नहीं इसलिए उनको स्वर्ग कहा जाता है।

तो अब एक ही साजन सब सजनियों को ले जाने आये हैं। शरीर तो सबके यहाँ खलास हो जायेंगे। यह होलिका आदि सब यहाँ के उत्सव हैं। परन्तु उनके महत्व का यथार्थ किसको पता नहीं है। रक्षाबन्धन का भी उत्सव है। रावण को जलाने का भी उत्सव है। बाबा ने समझाया है सारी सृष्टि इस समय रावण का घर है। सब शोक वाटिका में हैं। कितने दु:खी हैं। तो सबसे ममत्व मिटा देना चाहिए। अभी हम वापिस घर जा रहे हैं। घर को ही याद करना है। सतयुग में जब शरीर बूढ़ा होगा तब समझेंगे अब यह पुराना शरीर छोड़ नया लेते हैं। अभी तुम समझते हो हमको वापिस जाना है, इसलिए देह-अभिमान छोड़ना है। दुनिया इन बातों को नहीं जानती है। कह देते आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। बाप समझाते हैं – यह झूठ है। अगर भक्त ही भगवान् हैं तो फिर भगवान् को क्यों याद करते हो। पतित-पावन तो एक निराकार बाप गाया हुआ है। कहते हैं मुझे पतित दुनिया में ही आना पड़ता है। फिर इनको और तुम सब बच्चों को पावन बनाता हूँ। सारी दुनिया को पावन बनाकर वापिस ले जाता हूँ। वहाँ परमधाम में सब आत्मायें पवित्र ही रहती हैं। फिर यहाँ सतो, रजो, तमो में पास कर अन्त में पतित बन पड़ी हैं। यह है सबका अन्तिम जन्म। लक्ष्मी-नारायण भी अब अन्तिम जन्म में हैं। पतित-पावन एक ही बाप है। इस सृष्टि चक्र को समझना बहुत सहज है। मातायें भी इस गोले पर अच्छी रीति समझा सकती हैं, इसमें सिर्फ बुद्धि की समझ चाहिए। चित्र पर समझाना बहुत सहज है। बाप बिगर यह नॉलेज कोई समझा नहीं सकता। और कोई पास यह चित्र हैं नहीं। इन चित्रों का बहुत-बहुत मान होगा। बाबा कहते हैं – जो पढ़े-लिखे हैं उन्हों को यह झाड़, त्रिमूर्ति का चित्र भेजो। विलायत में भी भेज दो। इनसे फर्स्ट क्लास सर्विस हो सकती है। रूबरू जाकर समझा सकते हो। यह भी नॉलेज है ना। कॉलेजों में यह होनी चाहिए। तो उन्हों को बेहद के हिस्ट्री-जॉग्राफी की नॉलेज मिले। जो ब्राह्मण कुल के होंगे उन्हों को तीर लग जायेगा। भिन्न-भिन्न प्रकार के डायरेक्शन बाबा देते रहते हैं। बच्चों को कभी जोश आता है फिर ठण्डे सोडावाटर हो जाते हैं। बड़ी-बड़ी युनिवर्सिटीज में यह चित्र दो। चित्र जायेंगे तब तो किसको तीर लगेगा ना। विलायत के बड़े-बड़े आदमियों को फ्री दो। बेहद का बाप कहते हैं तुम फ्री दे सकते हो। परन्तु ऐसे नहीं ट्राम व बस में जो मिले उनको देते रहो। लायक भी देखना है। इनमें बड़ी अच्छी नॉलेज है। बड़े-बड़े दुकानों पर भी दे सकते हो। मेहनत करनी चाहिए ना। सर्विसएबुल बच्चे सर्विस कर सकते हैं। हरेक की अपनी-अपनी सर्विस है। माताओं को भी घर में सर्विस करनी है। चित्र उठाकर फिर प्यार से बैठ समझाओ। छोटे-छोटे बच्चों को चित्र पर बताया जाता है ना। कोई 4 मास का बच्चा है, कोई 6 मास का, कोई दो मास का। अब तुम्हारी बुद्धि में है कि 84 जन्म कैसे लेते हैं। अब ब्राह्मण बने हैं, फिर देवता बनेंगे फिर क्षत्रिय। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी चाहिए। तुम पारलौकिक बाप से बातें करने वाले हो। यह है विचार सागर मंथन करना। जितनी सर्विस करेंगे, उतना इजाफा मिलेगा। तुम गॉडली सर्विस पर हो। बाबा कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार की सम्भाल करो। आठ घण्टा इस सर्विस में लगाओ। तुमको बेहद का खजाना मिलता है। सारा दिन बुद्धि में यह स्वदर्शन-चक्र फिरना चाहिए। चौरासी का चक्र याद आना चाहिए। यह भूल क्यों जाते हो? जितना सिमरण करेंगे उतना बाप के गले का हार बनेंगे। फिर विष्णु के गले का हार बनेंगे। घड़ी-घड़ी बच्चों को समझाया जाता है, यहाँ धारणा अच्छी होगी, क्योंकि यहाँ कोई मित्र-सम्बन्धी आदि तो हैं नहीं। सर्विसएबुल वह जो सारा दिन सर्विस में लगा रहे, बाबा की मुरली सुने, रिपीट करे, नोट करे। टीचर समझते हैं हमारे स्कूल से बहुत पास हो निकलें तो गवर्मेन्ट इजाफा देगी। तुम ब्राह्मणों को भी ऐसा रहना चाहिए। हम झुण्ड का झुण्ड अच्छा तैयार कर बाबा के पास ले जायें। इसको कहेंगे सेन्सीबुल। अगर कोई मेहनत नहीं करते तो रिपोर्ट आती है। आराम तो हराम है। टीचर ऐसा फुर्त होना चाहिए जो 10 सेन्टर्स सम्भाले। इधर-उधर भागता रहे। 5-6 घण्टा नींद काफी है। बाकी मेहनत करनी चाहिए। अच्छे सेन्सीबुल बच्चे कोशिश कर भोजन भी अपने हाथ से बनायेंगे। बाबा को याद कर प्रेम से बैठ भोजन बनाये और खाये तो अवस्था बहुत अच्छी रहेगी। बाबा भी चाहते हैं अपने हाथ से बनावें। बाबा को याद कर बनायेंगे तो बाबा को भी वासना मिलेगी। बाप की याद से बहुत अच्छी उन्नति होगी। स्वदर्शन-चक्र फिराते रहो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपने आपसे वा पारलौकिक बाप से बातें कर विचार सागर मंथन में बुद्धि को बिजी रखना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।

2) अभी हम वापिस घर जा रहे हैं, यह शोक वाटिका है, इससे ममत्व मिटा देना है। नई दुनिया से अपनी दिल लगानी है।

वरदान:-दिलाराम बाप की याद द्वारा तीनों कालों को अच्छा बनाने वाले इच्छा मुक्त भव
जिन बच्चों की दिल में एक दिलाराम बाप की याद है वह सदा वाह-वाह के गीत गाते रहते हैं, उनके मन से स्वप्न में भी “हाय” शब्द नहीं निकल सकता क्योंकि जो हुआ वह भी वाह, जो हो रहा है वह भी वाह और जो होना है वह भी वाह। तीनों ही काल वाह-वाह है अर्थात् अच्छे ते अच्छा है। जहाँ सब अच्छा है वहाँ कोई इच्छा उत्पन्न नहीं हो सकती क्योंकि अच्छा तब कहेंगे जब सब प्राप्तियां हैं। प्राप्ति सम्पन्न बनना ही इच्छा मुक्त बनना है।
स्लोगन:-संस्कारों को ऐसा शीतल बना लो जो जोश वा रोब के संस्कार इमर्ज ही न हों।