MURLI 28-01-2024 | BRAHMA KUMARIS
28-01-24 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 28-11-97 मधुबन |
MURLI 28-01-2024 | BRAHMA KUMARISबेहद की सेवा का साधन – रूहानी पर्सनैलिटी द्वारा नज़र से निहाल करना
आज बापदादा अपने अनेक कल्प के मिलन मनाने वाले लाडले, सिकीलधे बच्चों से फिर से मिलन मनाने आये हैं। अव्यक्त मिलन तो सदा मनाते ही हो लेकिन अव्यक्त से व्यक्त रूप में मिलन मनाने के लिए सभी बच्चे भारत वा विदेश से फिर से अपने घर पहुंच गये हैं। बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर बच्चे अपने-अपने स्थान पर भी मिलन मना रहे हैं। यह मिलन रूहानी अलौकिक मिलन है। इस मिलन में बापदादा और बच्चों के स्नेह का साकार स्वरूप है।
आज बापदादा अपने बच्चों की रूहानी पर्सनैलिटी को देख रहे हैं। हर एक बच्चे की रूहानी पर्सनैलिटी कितनी श्रेष्ठ है। ऐसी रूहानी पर्सनैलिटी सारे कल्प में और किसी की भी नहीं है क्योंकि आप सबकी पर्सनैलिटी बनाने वाला ऊंचे ते ऊंचा बाप है। आप भी अपनी रूहानी पर्सनैलिटी को जानते हैं ना? सबसे बड़े ते बड़ी पर्सनैलिटी है – स्वप्न वा संकल्प में भी सम्पूर्ण प्युरिटी की पर्सनैलिटी। नम्बरवार है लेकिन फिर भी विश्व की सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ है। तो बापदादा हर एक के मस्तक से पर्सनैलिटी की झलक देख रहे हैं। प्युरिटी के साथ-साथ सबके चेहरे और चलन में रूहानियत की भी पर्सनैलिटी है। और पर्सनैलिटी क्या होती है? जो खजानों से सम्पन्न होते हैं, उसकी भी पर्सनैलिटी होती है लेकिन कितने भी बड़े-बड़े सम्पन्न आत्मायें हों, आपके आगे वह सम्पन्न आत्मायें भी कुछ नहीं हैं क्योंकि वह भी अविनाशी सुख-शान्ति के खजाने से खाली हैं। आपके पास जो सम्पत्ति है उसके आगे अरब-खरब-पति भी बाप से सुख-शान्ति मांगने वाले हैं और आप सदा अविनाशी खजानों से भरपूर हो। वह खजाने आज हैं कल नहीं लेकिन आपका खजाना न कोई लूट सकता है, न कोई आत्मा खजाने को हिला सकती है। अखुट है, अखण्ड है। ऐसी पर्सनैलिटी वाले आप बच्चे हो। सबसे ऊंचे ते ऊंची पर्सनैलिटी वाले फिर भी आत्माओं द्वारा, विनाशी धन द्वारा, विनाशी आक्यूपेशन द्वारा पर्सनैलिटीज़ बनती हैं वा कहलाई जाती हैं। लेकिन आपको ऊंचे ते ऊंचे परम आत्मा ने श्रेष्ठ पर्सनैलिटी वाले बना दिया। तो अपने ऊंची पर्सनैलिटी का रूहानी नशा रहता है? रहता है तो हाथ हिलाओ।
बापदादा को इतने श्रेष्ठ पर्सनैलिटी वाले बच्चे देख कितनी खुशी होती है। आपको भी होती है? बापदादा बच्चों की ऐसी श्रेष्ठता को देख क्या गीत गाते हैं, जानते हो? आप भी गाते हैं, बाप भी गाते हैं। बाप का गीत सुनाई देता है या टेप का गीत सुनाई देता है? बापदादा की टेप न्यारी होगी ना, आटोमेटिक है। चलाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती। और दिल का गीत दिल वाले ही सुन सकते हैं। सिर्फ कान वाले नहीं, दिल वाले। तो सभी दिल वाले हो ना? दिलवाला मन्दिर में आपका चित्र है ना? सभी ने अपना चित्र देखा है? बापदादा तो सदा बच्चों के चित्र और चरित्र देखते रहते हैं। तो आज पर्सनैलिटी को देख रहे थे। सदा यह पर्सनैलिटी स्मृति में इमर्ज रहे। है ही, नहीं। है, दिखाई देवे। अनुभव में आये। सदा ऐसी पर्सनैलिटी में रहने वाले की निशानी क्या होगी? जिस निशानी से समझ जाएं कि यह अपने पर्सनैलिटी में है? अगर यह रूहानी पर्सनैलिटी इमर्ज रूप में रहती है तो उनके नयन, उनका चेहरा, चलन, संकल्प और संबंध सब प्रसन्नता वाले होंगे। सदा प्रसन्नचित, प्रश्न चित नहीं, प्रसन्नचित। अगर प्रश्न चित है तो चलन भी पर्सनैलिटी वाली नहीं। चेहरे पर भी प्रसन्नता की झलक नहीं। कुछ भी हो जाए, पर्सनैलिटी वाले की प्रसन्नता छिप नहीं सकती। मर्ज नहीं हो सकती। प्रसन्नचित आत्मा; कोई कैसी भी आत्मा परेशान हो, अशान्त हो उसको अपने प्रसन्नता की नज़र से प्रसन्न कर देगी। जो बाप का गायन है “नजर से निहाल करने वाले”, वह सिर्फ बाप का नहीं है आपका भी यही गायन है। और अभी समय प्रमाण जितना समय समीप आ रहा है तो नज़र से निहाल करने की सेवा करने का समय आयेगा। सात दिन का कोर्स नहीं होगा, एक नज़र से प्रसन्नचित हो जायेंगे। दिल की आश आप द्वारा पूर्ण हो जायेगी। तो सभी क्या समझते हो? आदि सेवा के रत्न क्या समझते हैं? ऐसी सेवा कर सकते हो ना?
अभी देखो आप लोगों ने 40 वर्ष सेवा की या ज्यादा भी की, कोई का एक दो साल कम भी होगा, किसका ज्यादा भी होगा। अभी आप लोगों ने अपने साथियों को यह सेवा सिखा दी और निमित्त भी बना दिया। अभी आप क्या करेंगे? वो सेवा तो वह भी कर रहे हैं। आप आदि रत्न हो तो न्यारी और प्यारी सेवा करेंगे ना? अभी फिर उत्सव मनायेंगे कि नज़र से निहाल कितने किये। 9 लाख में से कितने बनाये? आगे तो 33 करोड़ भी हैं, 9 लाख तो उसके आगे कुछ नहीं हैं। बीज तो यहाँ ही डालना है ना? तो देखेंगे कि आदि सेवा के रत्न अब और क्या कमाल दिखाते हैं। यह कमाल तो दिखाई, सेवाकेन्द्र बनाये, अच्छे-अच्छे प्रोग्राम किये, उसकी तो पदमगुणा मुबारक है। दो प्रकार के बच्चे हैं जो पहले वाले हैं वह हैं स्थापना के निमित्त बच्चे और आप लोग हो विशेष सेवा के आदि के बच्चे। यह (दादियां) हैं जड़ स्थापना वाले और आप सब (सेवा के आदि रत्न) हैं पहला-पहला तना। तो तना तो मजबूत होता है ना। तना पर ही सब आधार होता है। तना से ही सब शाखायें निकलती हैं। जड़ वाले तो सूक्ष्म में शक्ति देते हैं लेकिन जो प्रैक्टिकल में होता है, दिखाई देता है, वह तना दिखाई देता है। तो दादियां अभी गुप्त हो गई हैं, सकाश देने वाली और प्रैक्टिकल में स्टेज पर आने वाले आप निमित्त बनें, (सम्मान समारोह में आई हुई सभी बड़ी बहिनों से बापदादा ने हाथ उठवाया) इसीलिए बापदादा काम दे रहे हैं। समारोह तो बहुत अच्छा मनाया ना। बापदादा ने सब देखा। सजी हुई मूर्तियों को देखा। उस समय तो आप लोगों को भी यही रूहानी अनुभव हो रहा था कि हम चैतन्य मूर्तियां हैं। ऐसे ही लग रहा था जैसे सजी हुई मूर्तियां मन्दिरों से शान्तिवन में पहुंच गई हैं।
तो बापदादा अभी बच्चों से चाहते हैं कि अभी फास्ट सेवा शुरू करो। जो हुआ वह बहुत अच्छा। अब समय प्रमाण औरों को ज्यादा वाणी का चांस दो। अभी औरों को माइक बनाओ, आप माइट बनके सकाश दो। तो आपकी सकाश और उन्हों की वाणी, यह डबल काम करेगी। तब ही 9 लाख सहज बन जायेंगे। अभी आप सभी चाहे फंक्शन में बैठे या और भी महारथी हैं तो महारथियों की अभी सेवा है – सर्व को सकाश देना। बेहद की सेवा के मैदान में आना। जब बाप अव्यक्त वतन, एक स्थान पर बैठे चारों ओर के विश्व के बच्चों की पालना कर सकते हैं, कर रहे हैं तो क्या आप एक स्थान पर बैठे बाप समान बेहद की सेवा नहीं कर सकते हो? आदि रत्न अर्थात् फॉलो फादर। बेहद में सकाश दो। कई बच्चे अपने से भी पूछते हैं और आपस में भी पूछते हैं कि बेहद का वैराग्य कैसे आयेगा? दिखाई तो देता नहीं है, लेकिन बेहद की सेवा में अपने को बिजी रखो तो बेहद का वैराग्य स्वत: ही आयेगा क्योंकि यह सकाश देने की सेवा निरन्तर कर सकते हो, इसमें तबियत की बात, समय की बात – यह सहज हो जाती है। दिन रात इस बेहद की सेवा में लग सकते हो। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा रात को भी कैसे आंख खुली और बेहद की सकाश देने की सेवा होती रही। तो यह बेहद की सेवा इतना बिजी कर देगी जो बेहद का वैराग्य स्वत: ही दिल से आयेगा। प्रोग्राम से नहीं। यह करें, यह करें – यह प्लैन तो बनाते हो, लेकिन बिजी बेहद की सेवा में रहना – यह सबसे सहज साधन है क्योंकि जब बेहद को सकाश देंगे तो नजदीक वाले तो ऑटोमेटिक सकाश लेते रहेंगे। इस बेहद की सकाश देने से वायुमण्डल ऑटोमेटिक बनेगा। अभी यह नहीं सोचो कि इतने सेन्टर के जिम्मेवार हैं वा ज़ोन के जिम्मेवार हैं! आप सभी को स्टेट के राजा बनना है या विश्व का? क्या बनना है? विश्व का ना? आदि रत्न हो तो विश्व को सकाश देने वाले बनो। अगर 20 सेन्टर, 30 सेन्टर या दो अढ़ाई सौ सेन्टर या ज़ोन, यह बुद्धि में रहेगा तो यह भी तना का काम नहीं है। यह तो टाल टालियां भी कर सकती हैं। आप तो तना हो। तना से सबको सकाश पहुंचती है। आप सभी भी यह सोचते हो कि बेहद का वैराग्य आना चाहिए, यह तो बहुत अच्छा। अभी विनाश हो जाए। लेकिन 9 लाख ही तैयार नहीं किये, तो सतयुग के आदि में आने वाली संख्या ही तैयार नहीं है और विनाश हो गया तो कौन आयेगा? क्या 2-3 हजार पर राज्य करेंगे? 4-5 लाख पर राज्य करेंगे? इसलिए अब बेहद की सेवा का पार्ट आरम्भ करो। पाण्डव क्या समझते हैं? बेहद की सेवा करेंगे ना? पाण्डव तैयार हैं? अभी यह हद की बातें बेहद में जाने से आपेही छूट जायेंगी। छुड़ाने से नहीं छूटेंगी। बेहद की सकाश से परिवर्तन होना फास्ट सेवा का रिजल्ट है।
बापदादा जानते हैं कि नाज़ुक परिस्थितियों में निमित्त बनी आत्माओं ने सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया है। लेकिन आप सभी का फाउण्डेशन वा सेकेण्ड का परिवर्तन का मूल अनुभव यही है कि ब्रह्मा बाप को देखा और ब्राह्मण बन गये। सेवा का वरदान मिला और सेवा में लग गये। बापदादा ने सभी के अनुभव भी सुने। अच्छे अनुभव सुनाये। तो जैसे आप लोगों का अनुभव है, ब्रह्मा बाप को देखा और सोचना भी नहीं पड़ा। सहन करने का भी अनुभव नहीं हुआ कि सहन कर रहे हैं। बड़ी बात नहीं लगी। ऐसे अभी हर श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा को देखें और आत्मा में (ब्राह्मण में) ब्रह्मा बाप देखें। यह है सेवा का फास्ट साधन, क्या ब्रह्मा बाप ने आपको कोर्स कराया? कोर्स तो पीछे किया। लेकिन देखा और हो गये। तो जैसे ब्रह्मा बाप में बाप समाया हुआ था इसीलिए मेहनत नहीं लगी। ऐसे आप सभी भी बापदादा को अपने में समाते हुए नज़र से निहाल करो। जो आप सबका अनुभव है, अनुभवी हो। देखा और फिदा हो गये। जैसे अभी सोचते हैं, ट्रेनिंग लेते हैं फिर ट्रायल पर आते हैं, फिर कोई चला जाता है कोई रहता है। इतनी मेहनत आपने ली? ट्रेनिंग की क्या? ट्रायल पर रहे क्या? बस आये और खो गये। ऐसी सेवा जब एक ब्रह्मा बाप ने की तो आप इतने ब्राह्मण आत्मायें नहीं कर सकती हो क्या? आपकी पर्सनैलिटी अपना बना दे। ब्रह्मा बाप की भी पर्सनैलिटी थी ना। चाहे सूरत की, चाहे सीरत की लेकिन पर्सनैलिटी थी तब आकर्षित हुए। तो फॉलो फादर। जब बाप ने आपको आदि में निमित्त बनाया तो जो आदि के हैं, सेवा के निमित्त वा स्थापना के फाउण्डेशन उनको अन्त तक सेवा में रहना ही है। तबियत के कारण शरीर से चक्कर नहीं लगा सकते लेकिन मन से तो लगा सकते हो? उसमें तो खर्चा भी नहीं, बीजा लेने की भी जरूरत नहीं। भाग दौड़ की भी जरूरत नहीं। लेटे-लेटे भी कर सकते हो। क्या समझते हो? अब ऐसा कोई प्लैन बनाओ। नया पाठ शुरू करो। अभी एक फंक्शन तो मना लिया ना। जो सेवा की उसका प्रत्यक्ष फल मिल गया। अभी नई सेवा करो। अच्छा।
बापदादा सिर्फ सामने वालों को नहीं कह रहे हैं, सभी बच्चों को कह रहे हैं। विदेश में भी जो सुन रहे हैं उन्हों को भी कह रहे हैं। जहाँ भी सुन रहे हैं, चाहे शान्तिवन में सुन रहे हैं, चाहे ऊपर पाण्डव भवन में, चाहे विदेश में, जहाँ भी हैं वहाँ बापदादा सभी के लिए कह रहे हैं। अब बेहद के सेवाधारी बनो। समय बेहद की सेवा में लगाओ। बेहद की सेवा में समय लगाने से समस्या सहज ही भाग जायेगी क्योंकि चाहे अज्ञानी आत्मायें हैं, चाहे ब्राह्मण आत्मायें हैं लेकिन अगर समस्या में समय लगाते हैं वा दूसरों का समय लेते हैं तो सिद्ध है कि वह कमजोर आत्मायें हैं, अपनी शक्ति नहीं है। जिसको शक्ति नहीं हो, पांव लंगड़ा हो और उसको आप कहो दौड़ लगाओ, तो लगायेगा या गिरेगा? तो समस्या के वश आत्मायें चाहे ब्राह्मण भी हैं लेकिन कमजोर हैं, शक्ति नहीं है, तो वह कहाँ से शक्ति लायें? बाप से डायरेक्ट शक्ति ले नहीं सकता क्योंकि कमजोर आत्मा है। तो क्या करेंगे? कमजोर आत्मा को दूसरे कोई का ब्लड देकर ताकत में लाते हैं, कोई शक्तिशाली इन्जेक्शन देकर ताकत में लाते हैं तो आप सबमें शक्तियां हैं। तो शक्ति का सहयोग दो, गुण का सहयोग दो। उन्हों में है ही नहीं, अपना दो। पहले भी कहा ना – दाता बनो। वह असमर्थ हैं, उन्हों को समर्थी दो। गुण और शक्ति का सहयोग देने से आपको दुआयें मिलेंगी और दुआयें लिफ्ट से भी तेज राकेट हैं। आपको पुरुषार्थ में समय भी देना नहीं पड़ेगा, दुआओं के रॉकेट से उड़ते जायेंगे। पुरुषार्थ की मेहनत के बजाए संगम के प्रालब्ध का अनुभव करेंगे। दुआयें लेना – वह सीखो और सिखाओ। अपना नेचुरल अटेन्शन और दुआयें, अटेन्शन में टेन्शन मिक्स नहीं होना चाहिए, नेचुरल हो। नॉलेज का दर्पण सदा सामने है ही। उसमें स्वत: सहज अपना चित्र दिखाई देता ही रहेगा इसीलिए कहा कि पर्सनैलिटी की निशानी है प्रसन्नचित। यह क्यों, क्या, कैसे। यह के के की भाषा समाप्त। दुआयें लेना और देना सीखो। प्रसन्न रहना और प्रसन्न करना – यह है दुआयें देना और दुआयें लेना। कैसा भी हो आपकी दिल से हर आत्मा के प्रति हर समय दुआयें निकलती रहें – इसका भी कल्याण हो। इसकी भी बुद्धि शान्त हो। यह ऐसा, यह वैसा – ऐसा नहीं। सब अच्छा। यह हो सकता है? दुआयें देने आती हैं? लेने तो आती हैं, देने भी आती हैं? देंगे नहीं तो लेंगे कैसे? दो और लो। यह करे नहीं, मैं करूँ। ब्रह्मा बाप का सदा स्लोगन रहा, ब्रह्मा बाप बार-बार याद दिलाते रहे – जो कर्म मैं करूंगा, मुझे देख और करेंगे। जब दूसरे करेंगे तब मैं करूँगा… यह स्लोगन नहीं। जो मैं करूंगा मुझे देख और करेंगे। नहीं तो स्लोगन चेंज कर दो और जगदम्बा माँ का विशेष स्लोगन रहा – हुक्मी हुक्म चला रहा है। वह चला रहा है, हम निमित्त बन चल रहे हैं। तो दोनों स्लोगन सदा याद रखो, इमर्ज। है ही, सुना है… याद तो रहता है…, नहीं। कर्म में दिखाई दे। तो क्या करेंगे? दुआयें लेंगे, दुआयें देंगे कि ग्लानी करेंगे, फील करेंगे – यह ऐसा, यह वैसा? नहीं। उसको दुआयें दो। कमजोर है, वशीभूत है। भाषा और संकल्प बदली करो। यह संकल्प मात्र भी न हो कि यह बदले, नहीं। मैं बदलूँ। और बातों में तो मैं मैं का आता है लेकिन जिस बात में मैं आना चाहिए, उसमें और करे तो करें, यह क्या? अच्छा काम होगा तो कहेंगे मैं। और ऐसा कोई काम होगा तो कहेंगे इसने किया, इसने कहा। उल्टा हो गया ना। कोई क्या भी करता है, मुझे क्या करना है, मुझे क्या सोचना है, मुझे क्या कहना है, इसमें मैं-पन लाओ। बॉडी-कॉन्सेस वाला मैं नहीं, सेवा का मैं। तो ऐसे ही श्रेष्ठ वायब्रेशन फैलाओ। अभी वाणी कम काम करती है, दिल का सहयोग, दिल के वायब्रेशन बहुत जल्दी काम कर सकते हैं। अच्छा।
अभी एक मिनट में सभी अपने साइलेन्स की शक्ति इमर्ज करो। एकदम साइलेन्स मन से, तन से इमर्ज करो। (बापदादा ने डेड साइलेन्स की ड्रिल करवाई)
अच्छा। चारों ओर के सर्व विशेष आत्माओं को सदा रूहानी पर्सनैलिटी के नशे में रहने वाली आत्माओं को, सदा बेहद की सेवा में स्वयं को बिजी रखने वाली निमित्त विश्व कल्याणकारी आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप और जगदम्बा का स्लोगन साकार में लाने वाली, ऊंच ते ऊंच नज़र से निहाल करने की सेवा में सदा रहने वाली बाप समान आत्माओं को बापदादा और जगदम्बा माँ का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:- | स्वार्थ से न्यारे और संबंधों में प्यारे बन सेवा करने वाले सच्चे सेवाधारी भव जो सेवा स्वयं को वा दूसरों को डिस्टर्व करे वो सेवा नहीं है, स्वार्थ है। निमित्त कोई न कोई स्वार्थ होता है तब नीचे ऊपर होते हो। चाहे अपना चाहे दूसरे का स्वार्थ जब पूरा नहीं होता है तब सेवा में डिस्ट्रबेन्स होती है इसलिए स्वार्थ से न्यारे और सर्व के संबंध में प्यारे बनकर सेवा करो तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी। सेवा खूब उमंग-उत्साह से करो लेकिन सेवा का बोझ स्थिति को कभी नीचे-ऊपर न करे यह अटेन्शन रखो। |
स्लोगन:- | शुभ वा श्रेष्ठ वायब्रेशन द्वारा निगेटिव सीन को भी पॉजिटिव में बदल दो। |
अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो
करन-करावनहार बाप है, कराने वाला सब कुछ करा रहा है, मैं निमित्त करनहार बन कर रहा हूँ, इस स्मृति से कर्तापन के भान को समाप्त कर न्यारे और प्यारे बनो। सब बोझ बाप के आगे समर्पित कर अपने अनादि स्वरूप की स्मृति से अनादि स्वभाव-संस्कार धारण कर डबल लाइट स्थिति का अनुभव करो।