MURLI 27-12-2023 “मीठे बच्चे – देवताओं से भी उत्तम कल्याणकारी जन्म तुम ब्राह्मणों का है क्योंकि तुम ब्राह्मण ही बाप के मददगार बनते हो”

MURLI 27-12-2023

27-12-2023
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – देवताओं से भी उत्तम कल्याणकारी जन्म तुम ब्राह्मणों का है क्योंकि तुम ब्राह्मण ही बाप के मददगार बनते हो”
प्रश्नः-अभी तुम बच्चे बाबा को कौन-सी मदद करते हो? मददगार बच्चों को बाप क्या प्राइज़ देते हैं?
उत्तर:-बाबा प्योरिटी पीस का राज्य स्थापन कर रहे हैं, हम उन्हें प्योरिटी की मदद करते हैं। बाबा ने जो यज्ञ रचा है उसकी हम सम्भाल करते हैं तो जरूर बाबा हमें प्राइज़ देगा। संगम पर भी हमें बहुत बड़ी प्राइज़ मिलती है, हम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानने वाले त्रिकालदर्शी बन जाते हैं और भविष्य में गद्दी नशीन बन जाते हैं, यही प्राइज़ है।
गीत:-पितु मात सहायक स्वामी सखा……..

ओम् शान्ति। यह किसकी महिमा है? यह है परमप्रिय परमपिता परमात्मा जिनका नाम शिव है, उनकी महिमा। उनका ऊंच ते ऊंच नाम भी है तो ऊंचे ते ऊंचा धाम भी है। परमपिता परम आत्मा का भी अर्थ है – सबसे ऊंचे ते ऊंची आत्मा। और किसको भी परमपिता परमात्मा नहीं कहा जाता। उसकी महिमा अपरम्पार है। ऐसे कहते हैं कि इतनी तो महिमा है जो उसका पार नहीं पा सकते। ऋषि-मुनि भी ऐसे कहते थे कि उसका पार नहीं पा सकते। वो भी नेती-नेती कहते आये हैं। अब बाबा स्वयं आकर अपना परिचय देते हैं। क्यों? बाबा का परिचय तो होना चाहिए ना। तो बच्चों को परिचय मिले कैसे? जब तक वह इस भूमि पर न आये तब तक और कोई उनका परिचय दे न सके। जब फादर शोज़ सन, तब सन शोज़ फादर। बाप समझाते हैं मेरा भी पार्ट नूंधा हुआ है। मुझे ही आकर पतितों को पावन करना है। साधू-सन्त भी गाते रहते हैं – पतित-पावन सीताराम आओ क्योंकि रावण का राज्य है, रावण कोई कम नहीं है। सारी दुनिया को तमोप्रधान पतित किसने बनाया? रावण ने। फिर पावन बनाने वाला समर्थ राम है ना। आधाकल्प राम राज्य है तो आधाकल्प रावण का भी राज्य चलता है। रावण क्या है, यह कोई नहीं जानते। वर्ष-वर्ष जलाते रहते हैं। तो भी रावण का राज्य चलता रहता है। जलता थोड़ेही है। मनुष्य कहते हैं परमात्मा समर्थ है, तो रावण को राज्य करने क्यों देते हैं। बाप समझाते हैं यह नाटक है हार जीत का, हेल और हेविन का। भारत पर ही सारा खेल बना हुआ है। यही बना बनाया ड्रामा है। ऐसे नहीं परमपिता सर्वशक्तिमान् है तो खेल पूरा होने के पहले ही आयेगा या आधे में खेल को बन्द कर सकता है। बाप कहते हैं जब सारी दुनिया पतित हो जाती है तब मैं आता हूँ इसलिए शिवरात्रि भी मनाते हैं। शिवाए नम: भी कहते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को फिर भी देवता नम: कहेंगे। शिव को परमात्मा नम: कहेंगे। शिव क्या ऐसा ही है जैसा बबुलनाथ में या सोमनाथ के मन्दिर में है? क्या परमपिता परमात्मा का इतना बड़ा रूप है? वा आत्मा का छोटा, बाप का बड़ा है? क्वेश्चन आयेगा ना? जैसे यहाँ छोटे को बच्चा, बड़े को बाप कहा जाता है, वैसे परमपिता परमात्मा अन्य आत्माओं से बड़ा है और हम आत्मायें छोटी हैं? नहीं। बाप समझाते हैं – बच्चे, मेरी महिमा गाते हो, कहते हो परमात्मा की महिमा अपरमपार है। मनुष्य सृष्टि का बीज है, तो पिता को बीज कहेंगे ना। वह क्रियेटर है। बाकी जो इतने वेद, उपनिषद, गीता, यज्ञ, तप, दान, पुण्य…. यह सब है भक्ति की सामग्री। इनका भी अपना टाइम है। आधा कल्प भक्ति का, आधा कल्प ज्ञान का। भक्ति है ब्रह्मा की रात, ज्ञान है ब्रह्मा का दिन। यह शिवबाबा तुमको समझाते हैं, इनको अपना तन तो है नहीं। कहते हैं मैं तुमको फिर से राजयोग सिखलाता हूँ राज्य-भाग्य दिलाने लिए। अब ब्रह्मा की रात पूरी होती है, वही धर्म ग्लानि का समय आ पहुँचा है। सबसे जास्ती ग्लानी किसकी करते हैं? परमपिता परमात्मा शिव की। लिखा है ना यदा यदाहि….. ऐसे नहीं, मैंने कल्प पहले कोई संस्कृत में ज्ञान दिया है। भाषा तो यही है। तो जब भारत में देवी-देवता धर्म स्थापन करने वाले की ग्लानी होती है, मुझे ठिक्कर-भित्तर में ठोक देते हैं, तब मैं आता हूँ। जो भारत को स्वर्ग बनाते हैं, पतितों को पावन बनाते हैं, उसकी कितनी ग्लानी की है।

तुम बच्चे जानते हो भारत है सबसे पुराना खण्ड, जो कभी विनाश नहीं होता है। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य भी यहाँ ही होता है। यह राज्य भी स्वर्ग के रचयिता ने दिया है। अब तो वही भारत पतित है तब फिर मैं आता हूँ, तब तो उनकी महिमा गाते हैं शिवाए नम:। इस बेहद के ड्रामा में हर एक आत्मा का पार्ट नूंधा हुआ है, जो रिपीट होता है। जिससे ही कोई टुकड़ा निकाल हद का ड्रामा बनाते हैं। अभी हम ब्राह्मण हैं फिर देवता बनेंगे। यह है ईश्वरीय वर्ण। यह है तुम्हारा 84वें जन्म का भी अन्त। इसमें चारों वर्णों का तुमको ज्ञान है इसलिए ब्राह्मण वर्ण सबसे ऊंच है। परन्तु महिमा व पूजा देवताओं की होती है। ब्रह्मा का मन्दिर भी है परन्तु कोई को पता नहीं कि इसमें परमात्मा आकर भारत को स्वर्ग बनाते हैं। जब स्थापना हो रही है तो विनाश भी चाहिए इसलिए कहते हैं कि रूद्र ज्ञान यज्ञ से विनाश ज्वाला निकली।

अब वही बाप बच्चों को समझा रहे हैं – मीठे बच्चे, अब यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है मैं तुमको फिर से स्वर्ग का वर्सा देने आया हूँ। तुम्हारा हक है, परन्तु जो मेरी श्रीमत पर चलेंगे उनको मैं स्वर्ग की प्राइज़ दूँगा। उन्हें भी पीस प्राइज़ आदि मिलती है। परन्तु बाप तो तुम सबको स्वर्ग की प्राइज़ देते हैं। कहते हैं मैं नहीं लूंगा। मैं तुम्हारे द्वारा स्थापना कराता हूँ तो तुमको ही दूंगा। तुम हो शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा के बच्चे। इतने बच्चे तो प्रजापिता ब्रह्मा ही एडाप्ट करते होंगे ना। यह ब्राह्मण जन्म तुम्हारा सबसे उत्तम है। यह कल्याणकारी जन्म है। देवताओं का जन्म या शूद्रों का जन्म कल्याणकारी नहीं है। यह तुम्हारा जन्म बहुत कल्याणकारी है क्योंकि बाप का मददगार बन सृष्टि पर प्योरिटी, पीस स्थापन करते हो। वह इनाम देने वाले थोड़ेही जानते हैं। वो तो कोई अमेरिकन आदि को दे देते हैं। बाप फिर कहते हैं जो मेरे मददगार बनेंगे मैं उनको प्राइज़ दूंगा। प्योरिटी है तो सृष्टि में पीस, प्रासपर्टी भी है। यह तो वेश्यालय है। सतयुग है शिवालय। शिवबाबा ने स्थापन किया है। साधू संन्यासी हैं हठयोगी, गृहस्थ धर्म वालों को सहज राजयोग तो सिखा नहीं सकते। भल हजार बार गीता महाभारत पढ़ें। यह तो सबका बाबा है। सभी धर्म वालों को कहते हैं कि अपना बुद्धियोग एक मेरे से लगाओ। मैं भी छोटा-सा बिन्दू हूँ, इतना बड़ा नहीं हूँ। जैसी आत्मा वैसा ही मैं परमात्मा हूँ। आत्मा भी यहाँ भ्रकुटी के बीच में रहती है। इतनी बड़ी होती तो यहाँ कैसे बैठ सकती। मैं भी आत्मा जैसा ही हूँ। सिर्फ मैं जन्म-मरण रहित सदा पावन हूँ और आत्मायें जन्म-मरण में आती हैं। पावन से पतित और पतित से पावन होती हैं। अब फिर से पतितों को पावन बनाने के लिए बाप ने यह रूद्र यज्ञ रचा है। इसके बाद सतयुग में कोई यज्ञ नहीं होता। फिर द्वापर से अनेक प्रकार के यज्ञ रचते रहते हैं। यह रूद्र ज्ञान यज्ञ सारे कल्प में एक ही बार रचा जाता है, इसमें सबकी आहुति पड़ जाती है। फिर कोई यज्ञ नहीं रचा जाता। यज्ञ रचते तब हैं जब कोई आफतें आती हैं। बरसात नहीं पड़ती है वा अन्य कोई आफतें आती हैं तो यज्ञ करते हैं। सतयुग-त्रेता में तो कोई आफतें आती नहीं। इस समय अनेक प्रकार की आफतें आती हैं इसलिए सबसे बड़े सेठ शिवबाबा ने यज्ञ रचवाया है तो पहले से ही साक्षात्कार कराते हैं। कैसे सब आहुति पड़नी है, कैसे विनाश होना है, पुरानी दुनिया कब्रिस्तान बननी है। तो फिर इस पुरानी दुनिया से क्या दिल लगानी है इसलिए तुम बच्चे बेहद पुरानी दुनिया का संन्यास करते हो। वह संन्यासी तो सिर्फ घरबार का संन्यास करते हैं। तुमको तो घरबार नहीं छोड़ना है। यहाँ गृहस्थ व्यवहार सम्भालते भी इससे सिर्फ ममत्व तोड़ना है। यह सब मरे पड़े हैं, इनसे क्या दिल लगाना। यह तो मुर्दों की दुनिया है, इसलिए कहते हैं कि परिस्तान को याद करो, कब्रिस्तान को क्यों याद करते हो।

बाबा भी दलाल बन तुम्हारी बुद्धि का योग अपने साथ लगाते हैं। कहते हैं ना आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल….. यह महिमा भी उनकी है। कलियुगी गुरू को पतित-पावन कह नहीं सकते। वह सद्गति तो कर नहीं सकते। हाँ शास्त्र सुनाते हैं, क्रिया-कर्म कराते हैं। शिवबाबा का कोई टीचर, गुरू नहीं। बाबा तो कहते मैं तो तुमको स्वर्ग का वर्सा देने आया हूँ। फिर सूर्य-वंशी बनो, चाहे चन्द्रवंशी बनो। वह कैसे बनते हैं, लड़ाई से? नहीं। न लक्ष्मी-नारायण ने लड़ाई से राज्य लिया, न राम-सीता ने। इन्होंने इस समय माया से लड़ाई की है। तुम इनकागनीटो वारियर्स हो इसलिए तुम शक्ति सेना को कोई जानते नहीं। तुम योगबल से सारे विश्व के मालिक बनते हो। तुमने ही विश्व का राज्य गंवाया है फिर तुम ही पा रहे हो। तुमको प्राइज़ देने वाला बाप है। अब जो बाप के मददगार बनेंगे उनको ही आधाकल्प के लिए पीस, प्रासपर्टी की प्राइज़ मिलेगी। बाबा मददगार उन्हें कहते हैं जो अशरीरी होकर बाप को याद करते हैं, स्वदर्शन चक्र फिराते हैं, शान्तिधाम, स्वीट होम और स्वीट राजधानी को याद कर पवित्र बनते हैं। कितना सहज है। हम आत्मा भी स्टार हैं। हमारा बाप परमात्मा भी स्टार है। वह इतना कोई बड़ा नहीं है परन्तु स्टार की पूजा कैसे हो इसलिए पूजा के लिए इतना बड़ा बना दिया है। पूजा तो पहले बाप की होती है, पीछे दूसरों की होती है। लक्ष्मी-नारायण की कितनी पूजा होती है। परन्तु उनको ऐसा बनाने वाला कौन? सबका सद्गति दाता बाप। बलिहारी उस एक की है ना। उनकी जयन्ती (बर्थ) डायमन्ड तुल्य है। बाकी सबके बर्थ कौड़ी तुल्य हैं। शिवाए नम: – यह उनका यज्ञ है, तुम ब्राह्मणों से रचवाया है। कहते हैं जो मुझे प्योरिटी पीस स्थापन करने में मदद करेंगे उनको इतना फल दूंगा। ब्राह्मणों से यज्ञ रचवाया है तो दक्षिणा तो देंगे ना। इतना बड़ा यज्ञ रचा है। और कोई भी यज्ञ इतना समय नहीं चलता है। कहते हैं जो जितना मुझे मदद करेंगे उतनी प्राइज़ दूंगा। सबको प्राइज़ देने वाला मैं हूँ। मैं कुछ नहीं लेता हूँ, सब तुमको देता हूँ। अब जो करेगा सो पायेगा। थोड़ा करेगा तो प्रजा में चला जायेगा। गांधी को भी जिन्होंने मदद की तो प्रेज़ीडेंट, मिनिस्टर आदि बने ना। यह तो है अल्पकाल का सुख। बाप तो तुमको सारे आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान दे आप समान त्रिकालदर्शी बनाते हैं। कहते हैं मेरी बायोग्राफी को जानने से तुम सब कुछ जान जायेंगे। संन्यासी थोड़ेही यह ज्ञान दे सकते हैं। उनसे वर्सा क्या मिलेगा। वह तो गद्दी भी एक को देंगे। बाकी को क्या मिलता है? बाबा तो तुम सबको गद्दी देते हैं। कितनी निष्काम सेवा करते हैं और तुमने तो मुझे ठिक्कर-भित्तर में डाल कितनी ग्लानी की है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। जब कौड़ी जैसे बन जाते हो तब तुमको हीरे जैसा बनाता हूँ। मैंने तो अनगिनत बार भारत को स्वर्ग बनाया है फिर माया ने नर्क बनाया है। अब अगर प्राप्ति करनी है तो बाप के मददगार बन सच्ची प्राइज़ ले लो। इसमें प्योरिटी फर्स्ट है।

बाबा संन्यासियों की भी महिमा करते हैं – वह भी अच्छे हैं, जो पवित्र रहते हैं। यह भी भारत को थामते (गिरने से बचाते) हैं। नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता। परन्तु अब तो भारत को स्वर्ग बनाना है तो जरूर घर गृहस्थ में रहते पवित्र बनना पड़े। बाप-दादा दोनों बच्चों को समझाते हैं। शिवबाबा भी इस पुरानी जुत्ती द्वारा बच्चों को राय देते हैं। नई ले नहीं सकते। माता के गर्भ में तो आते नहीं। पतित दुनिया, पतित शरीर में ही आते हैं, इस कलियुग में है घोर अन्धियारा। घोर अन्धियारे को ही सोझरा बनाना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) इस बेहद की दुनिया का दिल से संन्यास कर अपना ममत्व मिटा देना है, इससे दिल नहीं लगानी है।

2) बाप का मददगार बन प्राइज़ लेने के लिए – 1. अशरीरी बनना है, 2. पवित्र रहना है, 3. स्वदर्शन चक्र फिराना है, 4. स्वीट होम और स्वीट राजधानी को याद करना है।

वरदान:-विशेषताओं को सामने रख सदा खुशी-खुशी से आगे बढ़ने वाले निश्चयबुद्धि विजयी रत्न भव
अपनी जो भी विशेषतायें हैं, उनको सामने रखो, कमजोरियों को नहीं तो अपने आपमें फेथ रहेगा। कमजोरी की बात को ज्यादा नहीं सोचो तो फिर खुशी में आगे बढ़ते जायेंगे। यह निश्चय रखो कि बाप सर्वशक्तिमान है तो उसका हाथ पकड़ने वाले पार पहुंचे कि पहुंचे। ऐसे सदा निश्चयबुद्धि विजयी रत्न बनते हैं। अपने आपमें निश्चय, बाप में निश्चय और ड्रामा की हर सीन को देखते हुए उसमें भी पूरा निश्चय हो तब विजयी बनेंगे।
स्लोगन:-प्युरिटी की रायॅल्टी में रहो तो हद की आकर्षणों से न्यारे हो जायेंगे।-

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