MURLI 27-10-2023
27-10-2023 | प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा”‘ | मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम्हारी दिल में खुशी के नगाड़े बजने चाहिए क्योंकि बेहद का बाप तुम्हें बेहद का वर्सा देने आया है” | |
प्रश्नः- | माया ने मनुष्यों को किस भ्रम में भरमा दिया है जिस कारण वे स्वर्ग में चलने का पुरुषार्थ नहीं कर सकते? |
उत्तर:- | माया का यह जो पिछाड़ी का पाम्प है, 100 वर्ष के अन्दर एरोप्लेन, बिजली आदि क्या-क्या निकल गया है…… इस पाम्प को देखते हुए मनुष्य समझते हैं स्वर्ग तो यहाँ ही है। धन है, महल हैं, गाड़ियां हैं…… बस, हमारे लिए यहाँ ही स्वर्ग है। यह माया का सुख है जो भरमा देता है। इसके कारण ही वे स्वर्ग में चलने का पुरुषार्थ नहीं करते हैं। |
गीत:- | माता ओ माता….. Audio Player |
ओम् शान्ति। अभी यह तो बच्चों को समझाया गया है कि जो होकर जाते हैं उनकी महिमा गाई जाती है। भारतवासी तो जानते नहीं। विद्धान पण्डित भी नहीं जानते। जगत अम्बा अर्थात् जगत के मनुष्यों को रचने वाली। तुम जानते हो जिसको जगत अम्बा कहते हैं वह अभी बच्चों के सम्मुख बैठी है। भक्तिमार्ग में तो ऐसे ही गाते आये हैं। तुम बच्चों को अभी ज्ञान मिला है अर्थात् जगत अम्बा का परिचय मिला है। जगत अम्बा के नाम से भी भिन्न-भिन्न अनेक चित्र बनाये हैं। वास्तव में है तो एक ही जगत अम्बा, उनको ही काली कहो, सरस्वती कहो, दुर्गा कहो, ढेर नाम रखने से मनुष्य मूँझ गये हैं। काली कलकत्ते वाली भी कहते हैं। परन्तु ऐसा चित्र तो होता नहीं। बाप कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। जबसे भक्ति मार्ग शुरू होता है तब से रावण राज्य भी शुरू होता है। यह तो मनुष्य जानते नहीं कि रावण क्या है, राम क्या है, यह बेहद की कहानी है। तुम बच्चे अब जानते हो रावण राज्य पूरा हो फिर रामराज्य शुरू होता है। राम जरूर सुख देने वाला होगा, रावण जरूर दु:ख देने वाला होगा। भारत में रावण राज्य है तो उनको शोकवाटिका कहा जाता है। बाप ने समझाया है तुम सब इस समय रावण राज्य में हो। मुख्य भारत की ही बात है। रावण राज्य में तुम भ्रष्टाचारी बन गये हो। राम अर्थात् बेहद का बाप है सुख देने वाला। इस समय सभी मनुष्य हैं आसुरी मत पर। बाकी रावण कोई 10 शीश वाला नहीं है। यह है 5 विकारों की मत, जिसको रावण मत कहा जाता है। शिवबाबा की मत है श्रीमत। अभी आसुरी सम्प्रदाय है ना। यह बेहद की बात है। श्रीमत से 21 जन्म सुख पाते हो। आसुरी मत से 63 जन्म तुमने दु:ख पाया है।
तुम जानते हो यह रावण है बड़े ते बड़ा दुश्मन, जिसको जलाते रहते हैं। समझते नहीं कि आखरीन रावण को जलाना हम बन्द कब करेंगे? कहते हैं – यह रावण को जलाना तो परम्परा से चला आता है। एफ़ीजी बनाए जलाते रहते हैं। बरोबर इस रावण ने सबको दु:ख दिया है, ख़ास भारत को। तो रावण बड़ा दुश्मन हुआ ना। परन्तु इस बेहद के दुश्मन का किसको पता नहीं है। बेहद का बाप आकर बेहद का सुख देते हैं। ऐसी सहज बात भी कोई विद्वान-पण्डित आदि नहीं जानते। तुम बच्चे जानते हो – हमको बेहद के बाप से सुख का वर्सा लेना है। परन्तु फिर घड़ी-घड़ी तुम बाप को भूल जाते हो। भक्ति मार्ग में तुम पुकारते आये हो – हे बाबा, रहम करो, मर्सी ऑन मी। मर्सी तो करता रहता हूँ। जिस-जिस भावना से देवताओं की पूजा करते हैं तो अल्पकाल का सुख जरूर देता हूँ। और कोई सुख दे नहीं सकता। मैं ही हूँ सुख दाता। भक्ति मार्ग में भी देने वाला मैं हूँ। कहते हैं गॉड फादर ने यह दिया। भगवान् के लिए कहते हैं। फिर ऐसे क्यों कहते हो यह धन फलाने साधू ने दिया। जबकि सुख देने वाला है ही एक बाप। गाते भी हैं – हे भगवान्, हमारे दु:ख दूर करो। फिर ऐसे क्यों कहते फलाने साधू ने हमारा यह दु:ख दूर किया, बच्चा दिया। समझते हैं उनकी कृपा से सुख मिला। धन्धे में फ़ायदा होता है तो समझते हैं गुरू कृपा हुई। नुकसान होता है तो ऐसे नहीं कहते हैं कि गुरू की अकृपा हुई। बिचारे भक्त लोग समझने बिगर जो आया सो कहते रहते हैं। जो सुनते उस पर फालो करते रहते हैं। यह भी ड्रामा।
अब बाप आकर तुम्हें अपना बनाते हैं। बाप से प्रीत रखने में भी माया बहुत विघ्न डालती है। एकदम मुँह फिरा देती है। 21जन्म का सुख देने वाले बाप से फारकती दिला देती है। बाप समझाते हैं भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में रात-दिन का फ़र्क है। भक्ति करते-करते जब कंगाल बन जाते हैं तब फिर बाप आकर ज्ञान देकर 21 जन्म के लिए तुमको मालामाल कर देते हैं। वह भक्ति तो तुम जन्म बाई जन्म करते रहे, अल्पकाल सुख मिलता है। दु:ख तो बहुत है ना। बाप कहते हैं – मैं आया हूँ तुम्हारा जो गंवाया हुआ राज्य है वह देने। बेहद की बात हुई ना। बाकी और कोई बात नहीं। यह लक्ष्मी-नारायण आदि वाइसलेस देवतायें थे। उन्हों के महलों में कितने हीरे-जवाहरात होंगे। तुम आगे चलकर बहुत कुछ देखेंगे। जितना नज़दीक आते जायेंगे उतना स्वर्ग की सीन देखते जायेंगे। कितनी बड़ी-बड़ी दरबार होगी। खिड़कियों पर सोने, हीरे, जवाहरों का कितना अच्छा श्रृंगार होगा। बस, यह रात पूरी होकर दिन शुरू होगा। जो वैकुण्ठ तुम दिव्य दृष्टि से देखते हो वह प्रैक्टिकल में जरूर देखेंगे। जो विनाश दिव्य दृष्टि से देखा है वह फिर प्रैक्टिकल में देखेंगे। तुम्हारे अन्दर तो खुशी के नगाड़े बजने चाहिए। हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं। यह चित्र तो कोई एक्यूरेट नहीं हैं। वह तुम सब दिव्य दृष्टि से देखते हो। वहाँ जाकर रास आदि करते हो। कितने चित्र आदि बनाते थे। जो कुछ दिव्य दृष्टि से बाप ने दिखाया है वह फिर प्रैक्टिकल जरूर होगा। तुम जानते हो यह छी-छी दुनिया ख़त्म हो जायेगी। तुम यहाँ बैठे हो श्रीमत पर अपना स्वराज्य लेने के पुरुषार्थ में। कहाँ वह भक्ति मार्ग, कहाँ यह ज्ञान मार्ग। यहाँ भारत का हाल देखो क्या हुआ है – खाने के लिए अन्न नहीं, बड़े-बड़े प्लैन बना रहे हैं। टाइम है बाकी थोड़ा। उनका प्लैन और तुम्हारा प्लैन देखो कैसा है! यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। रामायण आदि में कितनी कहानियां लिख दी हैं। परन्तु ऐसे तो है नहीं। रावण को फिर वर्ष-वर्ष क्यों जलाते हैं। रावण को जलाया तो वह ख़त्म हो जाना चाहिए ना। भक्ति मार्ग की आमदनी कैसी और ज्ञान मार्ग की आमदनी कैसी है! बाबा एकदम भण्डारा भर देते हैं। उसके लिए मेहनत है। पवित्र जरूर रहना पड़े। गाते भी हैं अमृत छोड़ विष काहे को खाए। अमृत नाम से अमृतसर में एक तालाब बना दिया है। तालाब में डुबकी मारते हैं। मानसरोवर नाम का भी एक तालाब बना दिया है। मानसरोवर का अर्थ भी नहीं समझते हैं। मानसरोवर अर्थात् निराकार परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर मनुष्य के तन में आकर यह ज्ञान सुनाते हैं। मनुष्यों ने कथायें आदि कितनी बैठ बनाई हैं। सर्व शास्त्रमई शिरोमणी गीता…….. फिर उसमें श्रीकृष्ण वाच लिख दिया है। फिर श्रीकृष्ण के लिए भी कितनी बातें लिख दी हैं। सर्प ने डसा, स्त्रियों को भगाया…… कितने झूठे कलंक लगाये हैं। अभी तुम समझा सकते हो। श्रीकृष्ण की तो बात ही नहीं है। यह तो ब्रह्मा द्वारा परमपिता परमात्मा सभी वेदों शास्त्रों ग्रंथों का सार बैठ बतलाते हैं। नम्बरवन है श्रीमद्भगवत गीता। भारतवासियों का धर्मशास्त्र एक ही है, उसको खण्डन कर दिया है तो बाकी जो बाल-बच्चे वेद-शास्त्र हैं सब खण्डन हो गये।
बाप कितनी अच्छी रीति समझाते हैं फिर भी चलते-चलते माया के थप्पड़ खाते रहते हैं, धारणा नहीं करते हैं। यह है युद्ध-स्थल। तुम हो बच्चे, जो ब्राह्मण बने हो। गीता आदि में तो कोई ऐसी बातें लिखी नहीं हैं। ब्रह्मा की मुख वंशावली हैं, ब्रह्मा द्वारा यज्ञ रचा गया। रूद्र ज्ञान यज्ञ तो बरोबर है फिर युद्ध का मैदान कहाँ से आया? गाया भी हुआ है राजस्व अश्वमेध यज्ञ। यह जो रथ है उसको हम बलि चढ़ाते हैं। वह फिर दक्ष प्रजापति का यज्ञ रच घोड़े को बैठ स्वाहा करते हैं। क्या-क्या लिख दिया है। तुम जानते हो सतयुग में भारत स्वर्ग था तो जरूर वहाँ बहुत थोड़े ही होंगे। देवी-देवता थोड़े थे। जमुना के कण्ठे पर बरोबर राज्य होगा। सिर्फ देवी-देवतायें राज्य करते होंगे। वहाँ तो गर्मी आदि होती नहीं जो कश्मीर, शिमला आदि जाना पड़े। तत्व भी बिल्कुल सतोप्रधान हो जाते हैं। यह भी समझने वाले समझें। सतयुग को स्वर्ग कहा जाता है, कलियुग को नर्क कहा जाता है। द्वापर को इतना नर्क नहीं कहेंगे। त्रेता में भी दो कला कम होती हैं। सबसे जास्ती सुख स्वर्ग में है। कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। परन्तु स्वर्ग का अर्थ नहीं समझते हैं। स्वर्गवासी हुआ, तो जरूर नर्क में था ना। हर एक मनुष्य नर्क में है। अभी बाप तुमको बेहद का राज्य देते हैं। वहाँ तो सब कुछ तुम्हारा रहेगा। तुम्हारी पृथ्वी, तुम्हारा आकाश…… तुम अटल, अखण्ड, शान्तिमय राज्य करेंगे। दु:ख का नाम ही नहीं होगा। तो उसके लिए कितना पुरुषार्थ करना चाहिए। अवस्थायें बच्चों की कैसी हैं। जानते भी हैं हमारे मम्मा बाबा बहुत अच्छी रीति पुरुषार्थ करते हैं, क्यों नहीं हम भी पुरुषार्थ कर वर्सा लेवें।
बाप कहते हैं – बच्चे, थक मत जाना, श्रीमत पर चलते रहना। श्रीमत को कभी भूलना नहीं। इसमें बड़ी सावधानी चाहिए। जो कुछ करो, पूछो – बाबा हम इसमें मूँझते हैं, इसे करने में हमारे ऊपर कोई पाप तो नहीं लगेगा। बाबा कभी कोई से लेता नहीं है। भक्तिमार्ग में भी ईश्वर अर्थ दान करते हैं तो रिटर्न में फिर लेते हैं। शिवबाबा लेकर क्या करेंगे उनको कोई महल तो नहीं बनाने हैं। सब कुछ बच्चों के लिए करते हैं। मकान बनवाते हैं वह भी तुम्हारे पिछाड़ी में रहने लिए। तुम्हारा यादगार मन्दिर भी यहाँ है। तुम भी यहाँ बैठे हो। जो सर्विसएबुल बच्चे हैं वह आगे चल बहुत रौनक देखेंगे। यहाँ बैठे-बैठे चक्र लगाते रहेंगे स्वर्ग में। फिर वहाँ जाकर महल बनायेंगे। मकान की काम्पीटीशन होती है ना। अभी 100 वर्ष में कितना बनाया है। भारत को जैसे बहिश्त बना दिया है। तो वहाँ 100 वर्ष में समझते हो क्या नहीं होगा। साइंस सारी तुमको वहाँ काम में आती है। साइंस का सुख ही वहाँ है। यहाँ तो दु:ख है। साइंस पर कितनी मेहनत करते हैं। तुम बच्चे समझते हो कि यह सिर्फ फाफा मार रहे हैं (अपनी बड़ाई कर रहे हैं), अल्पकाल क्षणभंगुर सुख है, यह माया का पिछाड़ी का पाम्प है। यह एरोप्लेन, रॉकेट आदि में अभी जाते हैं। आगे यह सब साधन थे नहीं। बिजली आदि भी नहीं थी। यह सब है माया का सुख, जो मनुष्य को भरमाता है। मनुष्य समझते हैं – बस, यही स्वर्ग है। विमान आदि स्वर्ग में थे, अभी स्वर्ग है ना। यह नहीं समझते कि स्वर्ग के लिए तो अब तैयारी हो रही है। समझते हैं धन है, महल हैं बस, हमारे लिए यहाँ ही स्वर्ग है। अच्छा, तुम्हारी तकदीर में यहीं स्वर्ग है। हमको तो मेहनत कर सच्चे-सच्चे स्वर्ग में चलना है, जिसके लिए तुम पुरुषार्थ करते हो। पुरुषार्थ में ढीला नहीं पड़ना है। गृहस्थ व्यवहार में रह पुरुषार्थ करना है। सर्विस करनी है। खुद पवित्र बन फिर अपने मित्र-सम्बन्धियों आदि को भी लायक बनाओ, मीठी-मीठी बातें सुनाओ। बाबा ने दो बाप की प्वाइन्ट बहुत अच्छी रीति समझाई है। वर्सा बाप से मिलता है जायदाद का। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पुरुषार्थ में कभी भी थकना नहीं है। बड़ी सावधानी से श्रीमत पर चलते रहना है। मूँझना नहीं है।
2) कोई भी पाप कर्म नहीं करना है। सच्चे-सच्चे स्वर्ग में चलने लिए पवित्र बनने और बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:- | निश्चयबुद्धि बन लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाले डबल सेवाधारी ट्रस्टी भव कई बच्चे सेवा करते-करते थक जाते हैं, सोचते हैं यह तो कभी बदलना ही नहीं है। ऐसे दिलशिकस्त नहीं बनो। निश्चयबुद्धि बन, मेरेपन के संबंध से न्यारे हो चलते चलो। कोई कोई आत्माओं का भक्ति का हिसाब चुक्तू होने में थोड़ा समय लगता है इसलिए धीरज धर, साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो, शान्त और शक्ति का सहयोग आत्माओं को देते रहो। लौकिक में अलौकिक भावना रखो। डबल सेवाधारी, ट्रस्टी बनो। |
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