26-03-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 01-02-94 मधुबन |
त्रिकालदर्शी स्थिति के श्रेष्ठ आसन द्वारा सदा विजयी बनो और दूसरों को शक्ति का सहयोग दो
आज त्रिकालदर्शी बापदादा अपने सर्व मास्टर त्रिकालदर्शी बच्चों को देख रहे हैं। त्रिकालदर्शी बनने का साधन बापदादा ने हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान वा ब्राह्मण जन्म की विशेष सौगात दी है क्योंकि दिव्य बुद्धि द्वारा ही बाप को, अपने आपको और तीनों कालों को स्पष्ट जान सकते हो। दिव्य बुद्धि तथा याद द्वारा ही सर्व शक्तियों को धारण कर सकते हो। इसलिये पहला वरदान दिव्य बुद्धि है। ये वरदान बापदादा ने सर्व बच्चों को दिया है। लेकिन इस वरदान को प्रत्यक्ष जीवन में नम्बरवार कार्य में लगाते हो। दिव्य बुद्धि त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव कराती है। चारों ही सब्जेक्ट धारण करने का आधार दिव्य बुद्धि है। चारों ही सब्जेक्ट को सभी बच्चे अच्छी तरह से जानते हैं, वर्णन भी करते हैं लेकिन जानना, वर्णन करना यह सभी को आता है। चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, इसमें सभी होशियार हैं लेकिन धारण करना इसमें नम्बर बन जाते हैं। दिव्य बुद्धि की विशेषतायें, दिव्य बुद्धि वाली आत्मायें कोई भी संकल्प को कर्म वा वाणी में लाने समय हर बोल और हर कर्म को तीनों काल से जान कर फिर प्रैक्टिकल में आती हैं। साधारण बुद्धि वाली आत्मायें बहुत करके वर्तमान को स्पष्ट जानती हैं लेकिन भविष्य और भूतकाल को स्पष्ट नहीं जानती। दिव्य बुद्धि वाली आत्मा को पास्ट और फ्युचर भी इतना ही स्पष्ट होता है जैसे प्रेजेन्ट स्पष्ट है। तीनों ही काल साथ-साथ स्पष्ट अनुभव होता है। वैसे सभी कहते भी हैं कि जो सोचो, जो करो, जो बोलो, आगे-पीछे को सोच-समझ करके करो। कर्म के पहले परिणाम को सामने रखो, परिणाम हुआ भविष्य। तो नम्बरवन है त्रिकालदर्शी बुद्धि। त्रिकालदर्शी बुद्धि कभी असफलता का अनुभव नहीं करेगी। लेकिन बच्चों में तीन प्रकार की बुद्धि वाले हैं। पहला नम्बर सुनाया सदा त्रिकालदर्शी बुद्धि। दूसरा नम्बर कभी त्रिकालदर्शी और कभी एक कालदर्शी। तीसरा नम्बर अलबेली बुद्धि, जो सदा वर्तमान को देखते, सदा यही सोचते कि जो अभी हो रहा है या मिल रहा है वा चल रहा है इसमें ठीक रहें, भविष्य क्या होगा इसको क्या सोचें। लेकिन अलबेली बुद्धि आदि-मध्य-अन्त को न सोचने के कारण सदा सफलता प्राप्त करने में धोखा खा लेती है। तो बनना है त्रिकालदर्शी बुद्धि।
त्रिकालदर्शी स्थिति ऐसा श्रेष्ठ आसन है जिस आसन अर्थात् स्थिति द्वारा स्वयं भी सदा विजयी और दूसरों को भी विजयी बनने की शक्ति वा सहयोग देने वाले हैं। दिव्य बुद्धि विशाल बुद्धि है। दिव्य बुद्धि बेहद की बुद्धि है। तो चेक करो कि स्वयं की बुद्धि किस नम्बर की बनाई है? बापदादा ने बच्चों की रिजल्ट में देखा कि ज्ञान, गुण, शक्तियों का ख़ज़ाना जमा सभी बच्चों के पास है लेकिन जमा होते भी नम्बरवार क्यों हैं? ऐसा कोई भी नहीं दिखाई दिया जिसके पास ख़ज़ाने जमा नहीं हों। सभी के पास जमा हैं ना! फिर नम्बरवार क्यों? अगर किसी से भी पूछेंगे – स्वयं का ज्ञान है, बाप का ज्ञान है, चक्र का ज्ञान है, कर्मों के गति का ज्ञान है? सभी के पास सर्वशक्तियाँ हैं? कि कोई हैं, कोई नहीं हैं? ज्ञान में सभी ने हाँ किया और शक्तियों में हाँ क्यों नहीं किया? अच्छा, सभी गुण हैं? सर्व गुण बुद्धि में हैं? बुद्धि में ज्ञान भी है, शक्तियाँ भी हैं फिर नम्बरवार क्यों? फ़र्क क्या होता है? ख़ज़ाने को विधिपूर्वक कार्य में लगाना नहीं आता है समय बीत जाता है फिर सोचते हैं कि ऐसे करते थे, इस विधि से चलते थे तो सिद्धि मिल जाती थी। तो समय को जानना और समय प्रमाण शक्ति वा गुण वा ज्ञान को कार्य में लगाना इसके लिये दिव्य बुद्धि की विशेषता आवश्यक है। वैसे ज्ञान की प्वाइंट्स बहुत सोचते रहते हैं, सुनाते भी रहते हैं, कॉपियों में भी भरी हुई रहती हैं, सबके पास कितनी डायरियां इकट्ठी हुई होंगी, काफी स्टॉक हो गया है ना, तो जैसे बाप के लिये गाया हुआ है कि मैं जो हूँ, जैसा हूँ वैसे मुझे जानने वाले कोटों में कोई हैं। जानते तो सभी हैं लेकिन अण्डरलाइन है – जो हूँ, जैसा हूँ, उसमें अन्तर पड़ जाता है। इसी रीति जैसा समय और जो ज्ञान की प्वाइंट या गुण या शक्ति आवश्यक है वैसा कार्य में लगाना इसमें अन्तर पड़ जाता है और इसी अन्तर के कारण नम्बर बन जाते हैं। तो कारण समझा? एक तो समय प्रमाण विधि का अन्तर पड़ जाता है, दूसरा कोई भी कर्म वा संकल्प त्रिकालदर्शी बन नहीं करते, इसलिये नम्बर बन जाते हैं। कोई भी संकल्प बुद्धि में आता है तो संकल्प है बीज, वाचा और कर्मणा बीज का विस्तार है, अगर संकल्प अर्थात् बीज को त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर चेक करो, शक्तिशाली बनाओ तो वाणी और कर्म में स्वत: ही सहज सफलता है ही है। संकल्प को चेक नहीं करते अर्थात् बीज शक्तिशाली नहीं होता तो वाणी और कर्म में भी सिद्धि की शक्ति नहीं रहती। लक्ष्य सभी का सिद्धि स्वरूप बनने का है ना, तो सदा सिद्धि स्वरूप बनने की विधि जो सुनाई, उसको चेक करो। बीच-बीच में बुद्धि अलबेली बन जाती है इसलिये कभी सिद्धि अनुभव करते और कभी मेहनत अनुभव करते।
बापदादा का सभी बच्चों से प्यार की निशानी है कि सब बच्चे सदा सहज सिद्धि स्वरूप बन जायें। आपके जड़ चित्रों द्वारा भक्त आत्मायें सिद्धि प्राप्त करती रहती हैं, तो चैतन्य में सिद्धि स्वरूप बने हो तब तो जड़ चित्रों द्वारा भी और आत्मायें सिद्धि प्राप्त करती रहती हैं। जो त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहते हैं तो त्रिकालदर्शी स्थिति समर्थ स्थिति है। इस समर्थ स्थिति वाले व्यर्थ को ऐसा सहज समाप्त कर देते हैं जो स्वप्न मात्र भी व्यर्थ समाप्त हो जाता है। अगर त्रिकालदर्शी बुद्धि द्वारा कर्म नहीं करते हैं तो व्यर्थ का बोझ बार-बार ऊंचे नम्बर में अधिकारी बनने नहीं देता। तो दिव्य बुद्धि का वरदान सदा हर समय कार्य में लगाओ।
बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है कि ज्ञानी-योगी आत्मायें बने हो, अब ज्ञान और योग के शक्ति को प्रयोग में लाने वाले प्रयोगशाली आत्मायें बनो। जैसे साइन्स की शक्ति का प्रयोग दिखाई देता है ना, लेकिन साइन्स की शक्ति के प्रयोग का भी मूल आधार क्या है? आज जो भी साइन्स ने प्रयोग कर साधन दिये हैं, उन सब साधनों का आधार क्या है? साइन्स के प्रयोग का आधार क्या है? मैजारिटी देखेंगे लाइट है। लाइट द्वारा ही प्रयोग होता है। अगर कम्प्युटर भी चलता है तो किसके आधार से? कम्प्युटर माइट है लेकिन आधार लाइट है ना। तो आपके साइलेन्स की शक्ति का भी आधार क्या है? लाइट है ना। जब वह प्रकृति की लाइट द्वारा एक लाइट अनेक प्रकार के प्रयोग प्रैक्टिकल में करके दिखाती है तो आपकी अविनाशी परमात्म लाइट, आत्मिक लाइट और साथ-साथ प्रैक्टिकल स्थिति लाइट, तो उससे क्या नहीं प्रयोग हो सकता! आपके पास स्थिति भी लाइट है और मूल स्वरूप भी लाइट है। जब भी कोई प्रयोग करना चाहते हो तो पहले अपने मूल आधार को चेक करो। जैसे कोई भी साइन्स के साधन को यूज़ करेंगे तो पहले चेक करेंगे ना कि लाइट है या नहीं है। ऐसे जब योग का, शक्तियों का, गुणों का प्रयोग करते हो तो पहले ये चेक करो कि मूल आधार आत्मिक शक्ति, परमात्म शक्ति वा लाइट (हल्की) स्थिति है? अगर स्थिति और स्वरूप डबल लाइट है तो प्रयोग की सफलता बहुत सहज कर सकते हो, और सबसे पहले इस अभ्यास को शक्तिशाली बनाने के लिये पहले अपने पर प्रयोग करके देखो। हर मास वा हर 15 दिन के लिये कोई न कोई विशेष गुण वा कोई न कोई विशेष शक्ति का स्व प्रति प्रयोग करके देखो क्योंकि संगठन में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में पेपर तो आते ही हैं तो पहले अपने ऊपर प्रयोग में चेक करो कोई भी पेपर आया लेकिन जो शक्ति वा जो गुण का प्रयोग करने का लक्ष्य रखा, उसमें कहाँ तक सफलता मिली? और कितने समय में सफलता मिली? जैसे साइन्स का प्रयोग दिन-प्रतिदिन थोड़े समय में प्रत्यक्ष रूप का अनुभव कराने में आगे बढ़ रहा है तो समय भी कम करते जाते हैं। थोड़े समय में सफलता ज्यादा – यह साइन्स वालों का भी लक्ष्य है। ऐसे जो भी लक्ष्य रखा उसमें समय को भी चेक करो और सफलता को भी चेक करो। जब स्व के प्रति प्रयोग में सफल हो जायेंगे तो दूसरी आत्माओं के प्रति प्रयोग करना सहज हो जायेगा और जब स्व के प्रति सफलता अनुभव करेंगे तो आपके दिल में औरों के प्रति प्रयोग करने का उमंग-उत्साह स्वत: ही बढ़ता जायेगा। अन्य आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में स्व के प्रयोग द्वारा उन आत्माओं को भी आपके प्रयोग का प्रभाव स्वत: ही पड़ता रहेगा। जैसे एक दृष्टान्त सामने रखो कि मुझे सहनशक्ति का प्रयोग करना है तो जब स्वयं में सहनशक्ति का प्रयोग करेंगे तो जो दूसरी आत्मायें आपकी सहनशक्ति को हिलाने के निमित्त हैं वो भी बच जायेंगी ना, उनका भी तो किनारा हो जायेगा। और जैसे छोटे-छोटे संगठन में रहते हो, सेन्टर्स हैं तो सेन्टर्स पर छोटे संगठन हैं ना तो पहले स्व के प्रति ट्रायल करो फिर अपने छोटे संगठन में ट्रायल करो। संगठन रूप में कोई भी गुण वा शक्ति के प्रयोग का प्रोग्राम बनाओ। उससे क्या होगा? संगठन की शक्ति से उसी गुण वा शक्ति का वायुमण्डल बन जायेगा, वायब्रेशन फैलेगा और वायुमण्डल वा वायब्रेशन का प्रभाव अनेक आत्माओं के ऊपर पड़ता ही है। तो ऐसे प्रयोगशाली आत्मायें बनो। पहले स्वयं में सन्तुष्टता का अनुभव करो फिर औरों में सहज हो जायेगा क्योंकि विधि आ जायेगी। जैसे साइन्स के कोई भी साधन को पहले सैम्पल के रूप में प्रयोग करते हैं फिर विशाल रूप में प्रयोग करते हैं, ऐसे आप पहले स्वयं को सैम्पल के रीति से यूज़ करो। जितना यह प्रयोग करने की रूचि बढ़ती जायेगी, बुद्धि-मन इसमें बिजी रहेगा, तो छोटी-छोटी बातों में जो समय लगाते हो, शक्तियाँ लगाते हो उनकी बचत हो जायेगी। सहज ही अन्तर्मुखता की स्थिति अपनी तरफ आकर्षित करेगी क्योंकि कोई भी चीज़ का प्रयोग और प्रयोग की सफलता स्वत: ही और सब तरफ से किनारा करा देती है। ये प्रयोग तो सभी कर सकते हो ना, कि मुश्किल है? इस वर्ष प्रयोगशाली आत्मायें बनो। समझा क्या करना है? और हर एक स्वयं के प्रति प्रयोग में लग जायेंगे तो प्रयोगशाली आत्माओं का संगठन कितना पॉवरफुल बन जायेगा! वह संगठन की किरणें अर्थात् वायब्रेशन्स बहुत कार्य करके दिखायेंगी। इसमें सिर्फ दृढ़ता चाहिये – ‘मुझे करना ही है’। दूसरों के अलबेलेपन का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिये। आपकी दृढ़ता का प्रभाव औरों पर पड़ना चाहिये क्योंकि दृढ़ता की शक्ति श्रेष्ठ है या अलबेलेपन की शक्ति श्रेष्ठ है? बापदादा का वरदान है जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है ही। तो क्या बनेंगे? प्रयोगशाली, त्रिकालदर्शी आसनधारी। और तीसरा क्या करेंगे? जैसा समय, वैसी विधि से सिद्धि स्वरूप। तो वर्ष का ये होमवर्क है। ये होमवर्क स्वत: ही बाप के समीप लायेगा। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा – कोई भी कर्म करने के पहले आदि-मध्य-अन्त को सोच-समझ कर्म किया और कराया। अलबेलापन नहीं कि जैसा हुआ ठीक है, चलो, चलाना ही है। नहीं। तो फॉलो ब्रह्मा बाप। फॉलो करना तो सहज है ना! कॉपी करना है ना, कॉपी करने का तो अक्ल है ना!
अच्छा, ये ग्रुप चांस लेने वाला ग्रुप है। एक्स्ट्रा लॉटरी मिली है। जो अचानक लॉटरी मिलती है तो उसकी खुशी ज्यादा ही होती है। तो ये लक्की ग्रुप हुआ ना, चांस लेने वाला लक्की ग्रुप। दूसरे सोचते रहते कब जायेंगे और आप पहुँच गये। अब डबल विदेशियों का टर्न शुरू होने वाला है। भारतवासियों ने अपनी लॉटरी ले ली। चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों ने जो रिट्रीट का प्रोग्राम बनाया है उसमें मेहनत अच्छी की। विशेष निमित्त आत्माओं को समीप लाने की विधि अच्छी है। और जितना हिम्मत रख आगे बढ़ते रहे हैं उतनी सफलता हर वर्ष श्रेष्ठ से श्रेष्ठ मिलती रही है। ऐसे अनुभव होता है ना! कोई समय था जो निमित्त विशेष आत्माओं से सम्पर्क करना भी मुश्किल लगता था और अभी क्या लगता है? जितना सोचते हो उससे और ही ज्यादा आते हैं ना! तो ये हिम्मत का प्रत्यक्षफल है। भारत में भी सम्पर्क बढ़ता जाता है। पहले आप निमंत्रण देने की मेहनत करते थे और अभी स्वयं आने की ऑफर करते हैं। फ़र्क पड़ गया है ना! वो कहते हैं हम चलें और आप कहते हो नम्बर नहीं है। ये है ‘हिम्मते बच्चे मददे बाप’ का प्रत्यक्ष स्वरूप। अच्छा!
चारों ओर के मास्टर त्रिकालदर्शी आत्माओं को, सदा समय के महत्व को जानने और समय प्रमाण ख़ज़ाने को कार्य में लगाने वाले दिव्य बुद्धिवान आत्माओं को, सदा अन्तर्मुखता की प्रयोगशाला में प्रयोग करने वाले प्रयोगशाली आत्माओं को, सदा हिम्मत द्वारा बाप के मदद का प्रत्यक्ष अनुभव करने वाली आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दादियों से मुलाकात – आप निमित्त आत्मायें किस प्रयोगशाला में रहते हो? सारा दिन कौन-सी प्रयोगशाला चलती है? नई-नई इन्वेन्शन करते रहते हो ना! नये-नये अनुभव करते जाते हो और नई-नई विधि भी टचिंग होती रहती है क्योंकि जो निमित्त हैं उनको विशेष नई-नई बातें टच होने का विशेष वरदान है। थोड़ा समय भी बीतेगा तो विचार चलते हैं ना, टचिंग आती है ना कि अभी ये हो, अभी ये हो, अभी ये होना चाहिये। तो निमित्त आत्माओं को विशेष उमंग-उत्साह बढ़ाने के वा परिवर्तन शक्ति को बढ़ाने के प्लैन की ज़रूरत है। इसके बिना रह नहीं सकते हैं। बुद्धि चलती है ना। देख-देख आश्चर्यवत् नहीं होते लेकिन उमंग-उत्साह में आगे बढ़ाने के लिए प्लैनिंग बुद्धि बनते हैं। माया संगठन को हिलाने के नये-नये प्लैन बनाती है, नई-नई बातें सुनती हो ना और आप लोग सभी को हिम्मत-उमंग में लाने के प्लैन बनाते हो। कभी आश्चर्य लगता है? नहीं लगता है ना। माया भी पुरानी विधि से थोड़ेही अपना बनायेगी। वो भी तो नवीनता लायेगी ना। अच्छा!
वरदान:- | शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा सेकण्ड में स्वीट होम की यात्रा करने वाले मा0 सर्वशक्तिवान भव साइन्स वाले फास्ट गति के यत्र निकालने का प्रयत्न करते हैं, उसके लिए कितना खर्चा करते हैं, कितना समय और एनर्जी लगाते हैं, लेकिन आपके पास इतनी तीव्रगति का यत्र है जो बिना खर्च के सोचा और पहुंचा, आपको शुभ संकल्प का यत्र मिला है, दिव्य बुद्धि मिली है। इस शुद्ध मन और दिव्य बुद्धि के विमान द्वारा जब चाहे तब चले जाओ और जब चाहे तब लौट आओ। मास्टर सर्वशक्तिवान को कोई रोक नहीं सकता। |
स्लोगन:- | दिल सदा सच्ची हो तो दिलाराम बाप की आशीर्वाद मिलती रहेगी। |