Murli 26-02-2023

26-02-23प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा”रिवाइज: 31-12-93 मधुबन

नये वर्ष में सदा उमंग-उत्साह में उड़ना और सर्व के प्रति महादानी, वरदानी बन व्यर्थ को समाप्त करना

आज नव युग नई सृष्टि के रचता बापदादा अपने नवयुग के आधारमूर्त बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा के साथ-साथ आप सभी बच्चे सदा सहयोगी हो, इसलिये आप ही आधारमूर्त हो। दुनिया के हिसाब से आज का दिन वर्ष का संगम है। पुराना वर्ष जा रहा है और नया वर्ष आ रहा है। ये है वर्ष का संगम दिन और आप बैठे हो बेहद के संगमयुग पर। आप सभी नव वर्ष के साथ-साथ नव युग की सभी को मुबारक देते हो। एक दिन की मुबारक नहीं, लेकिन नव युग के अनेक जन्मों की मुबारक देते हो। इस संगम पर अच्छी तरह से अनुभव करते हो कि इस समय हम ब्राह्मण आत्माओं की नई जीवन है। नई जीवन में आ गये हो ना। ब्राह्मणों का संसार ही नया है। अमृतवेले से देखो तो नई रीत, नई प्रीत है। पुरानी दुनिया की दिनचर्या और नये जीवन ब्राह्मण जीवन की दिनचर्या में कितना अन्तर है! सब नया हो गया – स्मृति नई, वृत्ति नई, दृष्टि नई, सब बदल गया ना। और नई जीवन कितनी प्यारी लगती है! वैसे भी नई चीज़ सबको प्यारी लगती है। पुरानी चीज़ छोड़ना चाहते हैं और नई चीज़ लेना चाहते हैं। तो इस समय का यह छोटा-सा नया संसार है। संसार भी नया और संस्कार भी नये, इसलिये दुनिया वाले भी नये वर्ष को धूमधाम से मनाते हैं।

मनाने का अर्थ है उमंग-उत्साह में आना। उत्साह होता है, इसीलिये मनाने के दिन को उत्सव कहा जाता है। उत्साह से ही एक-दो को बधाइयां वा मुबारक देते हैं वा ग्रीटिंग्स देते हैं। आप ब्राह्मण आत्माओं के लिये हर दिन उत्सव है। सदा उत्सव अर्थात् उमंग-उत्साह में रहते हो। यह उमंग-उत्साह ही ब्राह्मण जीवन है। दुनिया की रीति प्रमाण विशेष दिन को मनाते हो, आज मनाने के लिये इकट्ठे हुए हो ना। लेकिन आपका नव युग नई जीवन का उमंग-उत्साह सदा ही है। ऐसे नहीं कि 2 तारीख हो जायेगी तो उमंग-उत्साह खलास हो जायेगा, एक मास हो गया तो और खत्म हो जायेगा। हर दिन उमंग-उत्साह बढ़ता जाता है, कम नहीं होता। ऐसे है ना? कि अपने-अपने स्थान पर जायेंगे तो उत्साह खत्म हो जायेगा? हर घड़ी उमंग-उत्साह की है क्योंकि उमंग-उत्साह ही आप ब्राह्मणों की उड़ती कला के पंख है। इस उमंग-उत्साह के पंखों से सदा उड़ते रहते हो। अगर कार्य अर्थ कर्म में भी आते हो फिर भी उड़ती कला की स्थिति से कर्मयोगी बन कर्म में आते हो। तो उड़ती कला वाले हो ना, तो बिना पंखों के तो उड़ नहीं सकते। यह उमंग-उत्साह उड़ती कला के पंख सदा साथ हैं। यह उमंग-उत्साह आप ब्राह्मणों के लिये बड़े से बड़ी शक्ति है। नीरस जीवन नहीं है। दुनिया वाले तो कहेंगे कि क्या करें, रस नहीं है, नीरस है, बेरस है और आप क्या कहेंगे उमंग-उत्साह का रस है ही है। कभी दिलशिकस्त नहीं हो सकते हो। सदा दिल खुश। कैसी भी मुश्किल बात हो, लेकिन उमंग-उत्साह मुश्किल को सहज कर देता है। उत्साह त़ूफान को भी तोह़फा बना देता है, पहाड़ को भी राई नहीं लेकिन रुई बना देता है। उत्साह किसी भी परीक्षा वा समस्या को मनोरंजन अनुभव कराता है इसलिये उमंग-उत्साह में रहने वाले नव युग के आधारमूर्त नव जीवन वाले ब्राह्मण आत्मायें हो। अपने को जानते हो। मानते भी हो या स़िर्फ जानते हो? क्या कहेंगे? जानते भी हैं, मानते भी हैं और उसी में चलते भी हैं। सदा यह उत्साह रहता है कि कल्प पहले भी हम ही थे, अब भी हैं और अनेक बार हम ही बनेंगे। तो अविनाशी उत्साह हो गया ना। थे, हैं और सदा होंगे – तीनों काल का हो गया ना। पास्ट, प्रेजेन्ट और फ्युचर तीन काल हो गये। तो अविनाशी हो गया ना। बापदादा देख रहे थे कि अविनाशी उमंग-उत्साह में रहने वाली आत्मायें नम्बरवार हैं या सब नम्बरवन हैं? जब हैं ही निश्चयबुद्धि विजयी तो विजयी तो ज़रूर नम्बरवन होंगे ना, नम्बरवार थोड़ेही होंगे।

तो सदा नव जीवन के इस उत्साह में उड़ते चलो क्योंकि आप आधारमूर्त हो। स़िर्फ अपने जीवन के लिये आधार नहीं हो लेकिन विश्व के सर्व आत्माओं के आधारमूर्त हो। आपकी श्रेष्ठ वृत्ति से विश्व का वातावरण परिवर्तन हो रहा है। आपके पवित्र दृष्टि से विश्व की आत्मायें और प्रकृति – दोनों पवित्र बन रही हैं। आपके दृष्टि से सृष्टि बदल रही है। आपके श्रेष्ठ कर्मों से श्रेष्ठाचारी दुनिया बन रही है। तो कितनी ज़िम्मेवारी है! विश्व की ज़िम्मेवारी का ताज पहना हुआ है ना? कि कभी भारी लगता है तो उतार देते हो? क्या करते हो? जो डबल लाइट रहते हैं उनको ये ज़िम्मेवारी का ताज भी सदा लाइट (हल्का) अनुभव होगा, भारी नहीं लगेगा। इस समय के ताजधारी भविष्य के ताजधारी बनते हैं। तो नये वर्ष में क्या करेंगे? अव्यक्त वर्ष भी मनाया, अव्यक्त वर्ष अर्थात् फ़रिश्ता बन गये कि अभी बनना है? फरिश्ते क्या करते हैं?

अव्यक्त का अर्थ ही है फ़रिश्ता। वर्ष पूरा किया तो फ़रिश्ता बने ना, कि नहीं? अव्यक्त वर्ष अभी लम्बा कर दें? दो वर्ष का एक वर्ष बना दें? अभी और आगे बढ़ना है ना। अव्यक्त वर्ष मनाया, अब फ़रिश्ता बनकर क्या करेंगे?

सदा हर दिन, हर समय महादानी और वरदानी बनना है। तो यह वर्ष महादानी वरदानी वर्ष मनाओ। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उस आत्मा को महादानी बन कोई न कोई शक्ति का, ज्ञान का, गुण का दान देना ही है। तीनों ख़ज़ाने कितने भरपूर हो गये हैं! ज्ञान का ख़ज़ाना भरपूर है कि थोड़ा कम है? मास्टर नॉलेजफुल हो ना। तो ज्ञान का ख़ज़ाना भी है, शक्तियों का ख़ज़ाना भी है और गुणों का ख़ज़ाना भी है। तीनों में सम्पन्न हो कि एक में सम्पन्न हो, दो में नहीं? वर्तमान समय आत्माओं को तीनों की बहुत आवश्यकता है। सारे दिन में कोई न कोई दान देना ही है, चाहे ज्ञान का, चाहे शक्तियों का, चाहे गुणों का, लेकिन देना ही है। महादानी आत्माओं का बिना दान दिये हुए कोई भी दिन न हो। ऐसे नहीं, वर्ष पूरा हो जाये और कहो हमें तो चान्स नहीं मिला। चान्स लेना भी अपने ऊपर है कि चान्स देने वाला दे तब चान्स ले सकते हैं या स्वयं भी चांस ले सकते हैं, लेना आता है? कि कोई देवे तो लेना आता है? कोई चान्स नहीं देगा तो क्या करेंगे? देखते, सोचते रहेंगे? सारे दिन में चाहे ब्राह्मण आत्माओं के, चाहे अज्ञानी आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में तो आते ही हो ना, जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ उनको कोई न कोई दान अर्थात् सहयोग दो। दान शब्द का रूहानी अर्थ है सहयोग देना। तो रोज़ महादानी वा वरदानी बन वरदान कैसे देंगे? वरदान देने की विधि क्या है? आपके जड़ चित्र तो अभी तक वरदान दे रहे हैं। तो वरदान देने की विधि है – जो भी आत्मा सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उनको अपने स्थिति के वायुमण्डल द्वारा और अपने वृत्ति के वायब्रेशन्स द्वारा सहयोग देना अर्थात् वरदान देना। कैसी भी आत्मा हो, गाली देने वाली भी हो, निन्दा करने वाली हो लेकिन अपनी शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा, वृत्ति द्वारा, स्थिति द्वारा ऐसी आत्मा को भी गुण दान या सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो। अगर कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आपके सामने आये तो आग में तेल डालेंगे या पानी डालेंगे? पानी डालेंगे ना कि थोड़ा तेल का भी छींटा डालेंगे? अगर क्रोधी के आगे आपने मुख से क्रोध नहीं किया, मुख से तो शान्त रहे लेकिन आंखों द्वारा, चेहरे द्वारा क्रोध की भावना रखी तो भी तेल के छींटे डाले। क्रोधी आत्मा परवश है, रहम के शीतल जल द्वारा वरदान दो। तो ऐसे वरदानी बने हो? कि जिस समय आवश्यकता है उस समय सहनशक्ति का तीर नहीं चलता है? अगर समय पर कोई भी अमूल्य वस्तु कार्य में नहीं लगी तो उसको अमूल्य कहा जायेगा? अमूल्य अर्थात् समय पर मूल्य कार्य में लगे। तो इस वर्ष क्या करेंगे? महादानी, वरदानी बनो। चैतन्य में संस्कार भरते हो तब तो जड़ चित्रों द्वारा भी वरदानी मूर्त बनते हो। संस्कार तो अभी भरने है ना, कि जिस समय मूर्ति बनेगी उस समय भरेंगे?

महादानी-वरदानी मूर्त बनने से व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जायेगा क्योंकि जो महादानी हैं, वरदानी हैं, दूसरे को देने वाले दाता हैं तो दाता का अर्थ ही है समर्थ। समर्थ होगा तब तो देगा। तो जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जाता है। समर्थ स्थिति है स्विच ऑन होना। जैसे इस स्थूल लाइट का स्विच ऑन करना अर्थात् अन्धकार को समाप्त करना, ऐसे समर्थ स्थिति अर्थात् स्विच ऑन करना। तो स्विच ठीक है या कभी ठीक, कभी लूज़ हो जाता है या फ्यूज़ हो जाता है? ऑन करना तो आता है ना। आजकल तो छोटे-छोटे बच्चे भी स्विच ऑन करने में होशियार होते हैं। टी.वी. का स्विच ऑन कर देते हैं ना। तो स्विच ऑन होने से एक-एक व्यर्थ संकल्प को समाप्त करने की मेहनत से छूट जायेंगे। अव्यक्त फ़रिश्तों का यही श्रेष्ठ कार्य है। और क्या नवीनता करेंगे? अव्यक्त वर्ष में अपना चार्ट रखा था कि कभी रखा, कभी नहीं रखा? कभी-कभी वाले बने या सदा वाले बनें? कभी-कभी वाले ज्यादा हैं।

इस नये वर्ष में नया चार्ट रखना। क्या नया चार्ट रखेंगे? चार सब्जेक्ट को तो अच्छी तरह से जानते हो। तो इस वर्ष का यही चार्ट रखना कि चारों ही सब्जेक्ट में – चाहे ज्ञान में, चाहे योग में, धारणा में, सेवा में, हर सब्जेक्ट में हर रोज़ कोई न कोई नवीनता लानी है। ज्ञान अर्थात् समझदार बनना, समझ देना और समझदार बन चलना। ज्ञान में भी नवीनता का अर्थ है जो अपने में कमी है उसको धारण किया तो नवीनता हुई ना। ना से हाँ हुई तो नया हुआ ना। इसी रीति से योग के प्रयोग में हर रोज़ कोई न कोई नया अनुभव करो। योग में बहुत अच्छे बैठे, बहुत अच्छा योग लगा, लेकिन नवीनता क्या हुई? परसेन्टेज़ बढ़ना भी नवीनता है। आज अगर आपकी परसेन्टेज़ योग की 50 प्रतिशत है और कल 50 से वृद्धि हो गई तो नवीनता हो गई। ऐसे नहीं कि एक ही मास में 50-50 लगाते जाओ। तो चारों ही सब्जेक्ट में स्व के प्रगति में नवीनता, विधि में नवीनता, प्रयोग में नवीनता, औरों को सहज योगी बनाने में और परसेन्टेज़ बढ़ना माना नवीनता। किसको दु:ख दिया, किसको क्रोध किया यह तो कॉमन चार्ट है। यह तो आपकी जो रॉयल प्रजा है वह भी रखती है। आप रॉयल प्रजा हो वा राजा हो? तो नवीनता से स्वत: ही तीव्र पुरुषार्थ के समीपता की अनुभूति होती रहेगी। समझा क्या चार्ट रखना है? और हर तीन मास में रोज़ का नहीं यहाँ भेजना, काम बढ़ जायेगा। इस वर्ष तो आपको इकॉनामी भी करनी है ना। यह वर्ष विशेष इकॉनामी का है। एक नामी और इकॉनामी। ज्ञान सरोवर बना रहे हो तो सबमें इकॉनामी करना। सब ख़ज़ानों में, समय में भी, संकल्प में भी, सम्पत्ति में भी, सबमें इकॉनामी। तो हर तीन मास का स्वयं ही साक्षी हो कर चार्ट चेक करके शॉर्ट में अपना समाचार देना। हर तीन मास में देखना प्रगति है या जैसे हैं वैसे ही हैं? गिरती कला में तो जाना नहीं। लेकिन ऐसा भी नहीं कि जैसा है, वैसा ही हो। पुरुषार्थ में मिडगेट नहीं बनना। मिडगेट अच्छा लगेगा! ऐसे नहीं कहना कि चाहते तो थे लेकिन क्या करें…! क्या-क्या नहीं कहना। ब्राह्मणों की यह भाषा नहीं है कि क्या करें, कैसे करें, ऐसा करें, वैसा करें… लेकिन दूसरों को भी सहयोग देंगे कि ऐसे करो। समझा क्या चार्ट रखना है? अब देखेंगे कौन-कौन क्या-क्या करता है?

बापदादा स्नेह के कारण नाम एनाउन्स नहीं करते हैं। किसने क्या-क्या किया, जानते तो हैं ना। आजकल टी.वी. का फ़ैशन है बापदादा के पास भी टी.वी. है। बापदादा जानते हैं जो पिछले वर्ष काम दिया वो किसने कितना किया? नाम एनाउन्स करें ह़ाफ कास्ट कितने रहे, फुल कॉस्ट कितने रहे?

तो इस वर्ष महादानी-वरदानी मूर्त स्वयं प्रति भी और सर्व प्रति भी बनो और हर रोज़ कोई न कोई नवीनता अर्थात् प्रोग्रेस अवश्य करो। तो ये हुआ स्व के पुरुषार्थ के प्रति। सेवा में क्या करेंगे? सेवा में भी नवीनता लानी है ना। मेले भी बहुत कर लिये, प्रदर्शनियां तो अनगिनत कर लीं, सेमीनार-कॉन्फ्रेन्स भी बहुत की, अभी आवाज़ बुलन्द करने वाले माइक तो तैयार करने ही हैं लेकिन उसकी विधि क्या है? वैसे पहले भी सुनाया है लेकिन किया कम है। सेवा की रिजल्ट में देखा गया है कि बड़े निमित्त आत्माओं को समीप लाने के पहले चाहे कोई नेता है, चाहे कोई बड़े इन्डस्ट्रियलिस्ट हैं, चाहे कोई बड़े ऑफिसर हैं, लेकिन उन्हों को समीप लाने का साधन है उन्हों के सेक्रेटरी को अच्छी तरह से समीप लाओ। आप लोग बड़ों के ऊपर टाइम देते हो। वो अच्छा-अच्छा कहकर फिर सो जाते हैं। उन्हों को फिर जगाने के लिये इतना टाइम तो मिलता नहीं, न वो देते हैं, न आप जा सकते हो, इसलिये सेक्रेटरी जो होते हैं वो बदलते भी नहीं हैं, बड़े तो सब बदल भी जाते हैं। आज एक मिनिस्टर की सेवा करते हो और कल वो प्रजा बन जाता है। सेक्रेटरी काफी सहयोगी बन सकते हैं। तो किसी भी वर्ग की सेवा में इस वर्ष विशेष सेक्रेटरी, मैनेजर्स या प्राइवेट असिस्टेन्ट जो भी शक्तिशाली हों, बड़ों के समीप हों, उन आत्माओं की सेवा विशेष करो।

दूसरी बात, पहले भी इशारा दिया है कि वर्तमान समय ‘कम खर्चा और नाम बाला’ उसकी विधि है कि जो भी छोटी या बड़ी संस्थायें हैं, एसोसिएशन्स हैं उन्हों से सम्बन्ध-सम्पर्क रखो, बनी-बनाई स्टेज पर नाम बाला करो। कम खर्चा, नाम बाला। करते हो लेकिन और तीव्र गति से। हर देश में या हर गांव में या हर जिले में जो भी भिन्न-भिन्न प्रकार के एसोसिएशन्स हैं या बहुत वर्ग के कार्य करने वाले हैं, कॉन्फ्रेन्स करने वाले हैं या सम्मेलन करते हैं तो बनी-बनाई स्टेज पर सन्देश दो। तो समय और मेहनत, दोनों बच जायेंगी। अभी इसको तीव्र गति में लाओ। चेक करो कि जिस देश के या जिस स्थान के निमित्त बने हैं उस स्थान की कोई भी संस्था वंचित नहीं रह जाये क्योंकि वर्तमान समय वायुमण्डल परिवर्तन हो गया है। अभी डर कम है, स्नेह ज्यादा है, अच्छा मानते हैं। अच्छा बनते नहीं हैं लेकिन अच्छा मानते हैं इसलिये इस दो प्रकार की सेवा को और अण्डरलाइन करो तो सहज माइक तैयार हो जायेंगे। नया वर्ष शुरू किया है तो नया विधि और विधान भी चाहिये ना।

इस नये वर्ष का अमृतवेले सदा यह स्लोगन इमर्ज करना कि “सदा उमंग-उत्साह में उड़ना है और दूसरों को भी उड़ाना है।” बीच-बीच में चेक करना। ऐसे नहीं कि अमृतवेले चेक करो और सारा दिन मर्ज कर दो। फिर रात को सोचो कि आज का दिन तो ऐसे ही रहा। नहीं, बीच-बीच में चेक करो, इमर्ज करो कि उमंग-उत्साह के बजाय कोई और रास्ते पर तो नहीं चले गये? उड़ती कला के बजाय और किसी कला ने तो अपने तरफ आकर्षित नहीं किया? अच्छा!

चारों ओर के नव जीवन अनुभव करने वाले सर्व ब्राह्मण बच्चों को, सदा नव युग के आधारमूर्त श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा संकल्प, बोल और कर्म द्वारा महादानी-वरदानी आत्माओं को, सदा स्वयं की स्थिति द्वारा औरों की परिस्थिति को भी सहज बनाने वाली समर्थ आत्माओं को, सदा हर दिन स्वयं में प्रगति अर्थात् नवीनता अनुभव करने वाले समीप आत्माओं को, सदा एकनामी और इकॉनामी करने वाले बाप समान समीप आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

वरदान:-तन को आत्मा का मन्दिर समझ उसे स्वच्छ बनाने वाले नम्बरवन श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मा भव
हम ब्राह्मण आत्मायें सारे कल्प में नम्बरवन श्रेष्ठ आत्मायें हैं, हीरे तुल्य हैं, इस स्मृति से तन को आत्मा का मन्दिर समझकर स्वच्छ रखना है। जितनी मूर्ति श्रेष्ठ होती है उतना ही मन्दिर भी श्रेष्ठ होता है। तो इस शरीर रूपी मन्दिर के हम ट्रस्टी हैं, यह ट्रस्टीपन आपेही स्वच्छता वा पवित्रता लाता है। इस विधि से तन की पवित्रता सदा रूहानी खुशबू का अनुभव कराती रहेगी।
स्लोगन:-रूहानियत में रहने का व्रत लेना ही ज्ञानी तू आत्मा बनना है।