25-03-2023 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘ | मधुबन |
“मीठे बच्चे – यह वन्डरफुल पाठशाला है जहाँ तुम्हें ज्ञान सागर पतित-पावन बाप ज्ञान अमृत पिलाकर पावन बनाते हैं, ऐसी पाठशाला और कोई होती नहीं” | |
प्रश्नः- | बाप की कौन सी एक राय स्वीकार करो तो बाप हर पल तुम्हारा मददगार है? |
उत्तर:- | बाबा राय देते बच्चे तुम जिन्न के मुआफिक मुझे याद करते रहो। खाते-पीते, चलते बुद्धियोग मेरे में लगाओ और सब तरफ से बुद्धि हटाते जाओ। तुम बाप और स्वर्ग को याद करने की सेवा करो, यही तुम्हारी मदद है। यह याद ही तुम्हें स्वर्ग का मालिक बनायेगी। यही सस्ता सौदा है। हिम्मत रखो तो बाबा हर पल तुम्हारा मददगार है। हिम्मते मर्दा मददे खुदा। |
गीत:- | मुझको सहारा देने वाले….. Audio PlayerVideo Player |
ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। यह बच्चे-बच्चे कहने वाला कौन है? जरूर बच्चा कहने वाला बाप ही है। यूं तो दुनिया भी जानती है कि बच्चे कहने वाला एक तो है परमपिता, जिसको परम आत्मा यानी परमात्मा कहा जाता है, तुम सब बच्चे हो। तुम बच्चे मनुष्य से देवता बनने के लिए इस पाठशाला में पढ़ते हो। तुम जानते हो कि हमको बेहद का बाप पढ़ाते हैं। वह बाप भी है तो टीचर भी है। मात-पिता के बहुत बच्चे हैं। बच्चे तो बहुत वृद्धि को पाते जायेंगे। परमपिता परमात्मा बैठ पढ़ाते हैं। यह वन्डर है ना। ऐसी वन्डरफुल विचित्र पाठशाला दूसरी कोई होती नहीं। बच्चे जानते हैं ज्ञान सागर जो पतित-पावन है, वही ज्ञान अमृत पिलाकर पावन बनाते हैं। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। तो जरूर यह पतित दुनिया है और पावन दुनिया भी है, नई दुनिया नये घर को पावन कहेंगे। फिर वही घर पुराना होना ही है। तो बच्चे जानते हैं – यह पुरानी दुनिया है, नई दुनिया थी – वहाँ बहुत सुख था। बच्चों ने गीत सुना। वह तो सिर्फ भक्तिमार्ग में गाते हैं तुम तो अब प्रैक्टिकल में हो। भक्ति मार्ग के गीतों को हम ज्ञान में ले आते हैं। तुम बच्चे जानते हो बाप सभी को वापस लेने लिए आये हैं। पतित-पावन है तो पावन बनाकर ले जायेंगे। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करनी हैं। यह जरूर पतित दुनिया है। पावन देवताओं को वा पावन संन्यासियों को पतित मनुष्य नमन करते हैं। परन्तु पतित-पावन बाप एक ही है। सभी उस पावन बनाने वाले को याद करते है क्योंकि सारी दुनिया को दु:ख से लिबरेट करना, यह बाप का ही काम है। दु:ख कौन देते हैं? विकार। विकारों का नाम क्या है? काम का भूत, क्रोध का भूत, अशुद्ध अहंकार का भूत। शरीर को भी भूत कहा जाता है क्योंकि 5 भूतों (तत्वों) का बना हुआ शरीर है। आत्मा तो इनसे न्यारी है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। अब तुम बच्चे नई दुनिया भी देख रहे हो और उसके लिए पढ़ते हो। मनुष्य भी समझते हैं विनाश होना है, महाभारी लड़ाई लगनी है। परन्तु फिर क्या होगा, यह नहीं जानते क्योंकि गीता के भगवान को द्वापर में ले गये हैं। राजयोग तो गीता के भगवान ने सिखलाया। श्रीकृष्ण तो सिखला न सके। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल उनको द्वापर में ले गये हैं। यह है मुंझारा। हम तुम भी इस मुंझारे में थे, अब निकल आये हैं। मनुष्य तो दुर्गति को पाये हुए हैं, हम अब ज्ञान से सद्गति दिन में जा रहे हैं।
बाप कहते हैं मैं ज्ञान सागर हूँ और कोई भी ज्ञान दे न सके। ज्ञान सागर एक को ही कहा जाता है फिर उनसे ज्ञान गंगायें निकलती हैं। शिव शक्ति ज्ञान गंगायें कहा जाता है। वह है पानी की गंगा जो बहती रहती है। ऐसे तो नहीं पानी की गंगा जहाँ चाहे वहाँ जा सकती है, नहीं। तुम ज्ञान गंगायें जहाँ चाहे वहाँ जाकर ज्ञान दे सकती हो। वहाँ ही ज्ञान गंगा प्रगट हो जाती है। वह फिर समझते हैं फलानी जगह गंगा निकली फिर एक गऊमुख बना देते हैं। वास्तव में गऊमुख तो तुम बच्चियां हो। तुम गऊ के मुख से यह ज्ञान निकल रहा है। तुम हो ज्ञान सागर से निकली हुई सच्ची-सच्ची गंगायें। तुमको सृष्टि चक्र के आदि मध्य अन्त का नॉलेज समझाया जाता है। बाप को ही नॉलेजफुल कहा जाता है। वही वर्ल्ड आलमाइटी सर्वशक्तिमान है। वह सब वेदों ग्रंथों को जानते हैं। सबका सार समझाते हैं। हर एक धर्म का शास्त्र एक ही होना चाहिए। जैसे श्रीमद् भगवत गीता एक है, बाइबिल एक है। इब्राहम ने आकर इस्लाम धर्म स्थापन किया, फिर उनके पीछे आते जाते हैं। वह जो उच्चारण करते हैं उनका फिर बाद में धर्म शास्त्र बनाते हैं। फौरन नहीं बनाते हैं। उसी समय तो उनको धर्म की स्थापना करनी है। वह सब शास्त्र बाद में बनाते हैं। बाप कहते हैं यह वेद शास्त्र जप तप आदि सब है भक्ति कल्ट। यह है ज्ञान कल्ट। भक्ति की आयु अभी पूरी होती है, फिर बाप आकर ज्ञान दे पतितों को पावन बनाते हैं। अब तुम जानते हो अभी हम सो ब्राह्मण हैं फिर हम सो देवता बनेंगे। 84 जन्मों का पूरा हिसाब-किताब बुद्धि में है। अभी हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं। पहले हम शूद्र कुल के थे, अभी हम ब्राह्मण कुल के बने हैं। यह भी तुम ब्राह्मण ही जानते हो। देवी-देवता धर्म वाले तो कोई हैं नहीं। हिन्दू थोड़ेही जानते कि हम असुल देवी-देवता कुल के थे। अभी हम शूद्र कुल के हैं। अपने धर्म को भूल धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट कंगाल बन पड़े हैं। अभी बाप द्वारा तुम बच्चों ने हम सो, सो हम का अर्थ समझा है। हम सो आत्मा परमधाम की रहवासी हैं। यहाँ आकर पार्ट बजाते हैं। पहले-पहले हम सतयुग में देवता कुल में आये फिर वैश्य शूद्र कुल में आये। फिर जायेंगे देवता कुल में। तुम जानते हो कितने जन्म किस कुल में रहेंगे। बाकी बाबा एक-एक जन्म का तो नहीं बैठ बतायेंगे। नटशेल में बताते हैं। बीज और झाड को जानो, बस। बाप बीजरूप है। हम कल्प वृक्ष के भाती हैं। हम परमधाम से आये हैं पार्ट बजाने। सतयुग से लेकर चक्र लगाया फिर और धर्म वाले फलाने-फलाने समय पर आते हैं फिर जब विनाश होता है तो सब आत्मायें वापिस जाती हैं। फिर अपने-अपने समय पर नम्बरवार आती हैं धर्म स्थापन करने। यह सब राज़ तुम्हारी बुद्धि में हैं। बच्चे कहते हैं बाबा आप जो पढ़ाते हैं उससे हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं। आप जैसा सुख और कोई नहीं दे सकते। मनुष्य मात्र तो सब अल्पकाल सुख देने वाले हैं। वह तो जानवर भी देते हैं। मनुष्य का जीवन तो अमूल्य कहा जाता है। मनुष्य ही देवी-देवता बन सकता है। मनुष्य विश्व का मालिक बन सकता है। बाबा आपने जो सुख दिया है वह कोई भी दे नहीं सकता। बाबा आप तो हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। आप विश्व के रचयिता हैं। तुम तो सिर्फ बाप को याद करते हो। बस और कोई हठयोग आदि की बात नहीं। तुम बाप के बने हो जानते हो बाबा नये विश्व का रचयिता है। बाबा परमधाम से आये हैं। मोस्ट बिलवेड बाप है, सब उनको याद करते हैं। भल कोई भी धर्म वाला होगा ओ गॉड फादर, हे भगवान वा अल्लाह जरूर कहते रहेंगे। बाप कहते हैं मैं सभी को सुख देकर जाता हूँ तब भक्ति मार्ग में मुझे याद करते हैं। अभी फिर सुख देने आया हूँ, फिर आधाकल्प मुझे कोई भी याद नहीं करेंगे। वहाँ माया रहती नहीं जो दु:ख दे। तुम विश्व के मालिक देवी-देवता बन जाते हो तो तुम बच्चों की दिल में रात दिन यह रहना चाहिए। बाबा आप हमको विश्व का मालिक बनाते हो। हम हकदार भी हैं। बाप नया विश्व स्वर्ग रचते हैं तो जरूर बच्चों को ही मालिक बनायेंगे ना। गॉड फादर हेविन रचते हैं तो फिर हम सब हेविन में क्यों नहीं हैं। सभी हेविन में हों तो हेल होवे नहीं। यह तो हार जीत, सुख दु:ख का खेल है। नई दुनिया फिर पुरानी बनती है। नया कौन बनाते, पुराना कौन बनाते, यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, यह बुद्धि में रहता है। सतयुग त्रेता में हैं सूर्यवंशी चन्द्रवंशी, फिर द्वापर में और-और धर्म इमर्ज होते है, जो जिस प्रकार कल्प पहले हुआ है, वैसे ही फिर रिपीट होना है।
तुम बच्चे जानते हो अभी फिर से सतयुग स्टार्ट होने वाला है। पुरानी दुनिया खत्म हो नई आने वाली है। मनुष्य समझते हैं यह दुनिया अजुन पुरानी होती ही रहेगी। बहुत समय पड़ा है। बाप कहते हैं तुम घोर अन्धियारे में हो, विनाश सामने खड़ा है। मैं आ गया हूँ – पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाने। आगे तो कोई था नहीं। अभी ब्रह्मा मुख से सन्तान पैदा होते जाते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के जरूर अनेक बच्चे होंगे। जो बैठ पढ़ते हैं, जिनको फिर देवता बनना है। जो बाप से प्रतिज्ञा करते हैं, पवित्र बनते हैं और स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं – वही राज्य-भाग्य लेंगे। सब तो नहीं लेंगे। बाकी सब अपना-अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस जायेंगे। बाबा देवता धर्म की फिर से स्थापना कर रहे हैं और सभी धर्म विनाश होने हैं। महाभारी लड़ाई भी सामने खड़ी है। यह हिस्ट्री-जॉग्राफी का राज़ गीता का भगवान बैठ समझाते हैं। भगवान की महिमा अलग, श्रीकृष्ण की महिमा अलग है। श्रीकृष्ण को मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी नहीं कहेंगे। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी एक है। सूर्यवंशी की महिमा अलग है। चन्द्रवंशी की महिमा अलग है। वैश्य और शूद्रवंशी की महिमा अलग है। हर एक की महिमा अपनी है। चीफ मिनिस्टर – चीफ मिनिस्टर है, गवर्नर – गवर्नर है। सब एक समान थोड़ेही हो सकते हैं। यह सब समझने की बातें हैं। मनुष्य थोड़ेही जानते कि तुम भारत को स्वर्ग बनाते हो। तुम अपने लिए राज्य स्थापन कर रहे हो गुप्त रीति और नान वायोलेन्स से। न काम कटारी की हिंसा, न हाथ पांव चलाने की, न गोली मारने की हिंसा। तुमको कोई हथियार आदि नहीं उठाना है। तुम ब्राह्मण जानते हो हम बाबा की मदद से कल्प पहले मुआफिक भारत को फिर से हीरे जैसा बना रहे हैं। यह है रूहानी सेवा। मनुष्य तो जिस्मानी सेवा करते हैं। हम बाबा की श्रीमत से श्रेष्ठ बन रहे हैं। बाकी सब मनुष्य मत से भ्रष्ट ही बनते जाते हैं। नीचे उतरना है जरूर। भक्ति भी पहले अव्यभिचारी होती है। वेरी गुड भक्ति। एक की ही पूजा करते फिर सेकेण्ड ग्रेड में देवताओं की करते, फिर तो कुत्ते बिल्ली पत्थर मिट्टी आदि 5 भूतों की भी भक्ति करने लग पड़ते। उनको कहा जाता है व्यभिचारी भक्ति। अव्यभिचारी से व्यभिचारी बन पड़ते हैं। अब बाप तुमको अव्यभिचारी योग सिखलाते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते, खाते-पीते सिर्फ बाप और वर्से को याद करना है। मेहनत सारी इसमें हैं। भल अपने घर जाओ आओ सिर्फ गुप्त रीति से बुद्धि से याद करो। मुख से राम-राम अथवा शिवाए नम: कहने की भी दरकार नहीं। सिर्फ बाप को याद करो। बाबा है गुप्त, ज्ञान का सागर। सारे इस सृष्टि चक्र का उनको पता है। उनको कहा जाता है परम आत्मा। यह आत्मा है, इनको उस बाप से ज्ञान मिल रहा है। इन सब बातों को धारण कर और फिर कराना चाहिए। बिचारे रास्ता ढूंढते रहते हैं, जानते नहीं हैं। तुम जानते हो शान्तिधाम है निर्वाणधाम। जहाँ से हम आत्मायें आती हैं। स्वर्ग है सुखधाम, नर्क है दु:खधाम, मायापुरी। वह स्वर्ग विष्णुपुरी और यह नर्क है रावणपुरी। बाप कहते हैं तुम सिर्फ बाप और वर्से को याद करो। बस। अगर बीच में बुद्धि और तरफ चली जाती है तो उनको हटाओ। खाते-पीते, चलते सिर्फ मुझ बाप को याद करो, बहुत सहज है। समझो विलायत में कोई रहता है उनकी मेमसाहेब हिन्दुस्तान में हैं तो दूर रहते भी उसकी याद बुद्धि में रहेगी ना। हम भी कितने दूर हैं परन्तु बुद्धि से बाप को याद करना है जिससे बहुत सुख मिलता है और सबसे तो दु:ख मिलता है। मनुष्य, मनुष्य को कभी भी सदा सुख नहीं दे सकता। बाप कहते हैं जिन्न के मुआफिक याद करते रहो। बस बाप और स्वर्ग को याद करो, यही हमारी सेवा करो। हम तुम्हारी सेवा करते हैं – याद कराने की। तुम फिर याद करने की सेवा करो। यह राय अंगीकार (स्वीकार) करो। यही तुम्हारी मदद है। हिम्मते मर्दा मददे खुदा। यह याद ही तुमको स्वर्ग का मालिक बनायेगी। कितना सस्ता सौदा है। वो गुरू लोग तो बहुत धक्के खिलाते हैं। एक ही सतगुरू जब आते हैं तो फिर कोई गुरू करने की दरकार नहीं रहती है। गुरूपना ही निकल जाता है। सभी सद्गति को पा लेते हैं। एक सतगुरू के आने से फिर अनेक गुरू करने की रसम-रिवाज आधाकल्प के लिए निकल जाती है। फिर भक्ति मार्ग में वह रसम चलती है। सतयुग में गुरू कोई होता नहीं। वहाँ अकाले मृत्यु कभी होता नहीं। हेल्थ वेल्थ और हैपीनेस 21 जन्मों के लिए मिलती है। ऐसे और कोई दे न सके। तुमको बाप द्वारा ही हेल्थ वेल्थ और हैपीनेस मिलती है। बाकी सब निर्वाणधाम में चले जाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रीमत पर भारत को हीरे जैसा बनाने की रूहानी सेवा करनी है। गुप्त रीति से बाप को याद कर श्रेष्ठ बनना है।
2) अपने आपसे बातें करनी है, रूहरिहान करना है बाबा आपने जो सुख दिया है वह कोई दे नहीं सकता। बाबा आपकी पढ़ाई से हम विश्व का मालिक बनते हैं। आप नई सृष्टि रचते हो उसके हम हकदार हैं।
वरदान:- | भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अन्तर्मुखता का रस लेने वाले सच्चे तपस्वीमूर्त भव जो बच्चे अपने बोल पर कन्ट्रोल कर एनर्जी और समय जमा कर लेते हैं, उन्हें स्वत: अन्तर्मुखता के रस का अनुभव होता है। अन्तर्मुखता का रस और बोलचाल का रस – इसमें रात दिन का अन्तर है। अन्तर्मुखी सदा भ्रकुटी की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। वो व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन और व्यर्थ बोल से मुख का मौन रखता है इसलिए अन्तर्मुखता के रस की अलौकिक अनुभूति होती है। |
स्लोगन:- | राज़युक्त बन हर परिस्थिति में राज़ी रहने वाले ही ज्ञानी तू आत्मा हैं। |