Murli 24-07-2023

24-07-2023         प्रात:मुरलीओम् शान्ति”बापदादा”‘     मधुबन

“मीठे बच्चे – ज्ञान रत्नों की लेन-देन कर तुम्हें ज्ञान से एक-दो की पालना करनी है, आपस में बहुत-बहुत प्यार से रहना है”

प्रश्नः-   बीमारी अथवा कर्मभोग होते भी अपार खुशी किस आधार पर रह सकती है?

उत्तर:-  विचार सागर मंथन करने की आदत डालो। कोई भी कर्मभोग अथवा बीमारी आती है तो अपने आपसे बातें करो – अब हमने 84 जन्मों का पार्ट पूरा किया, यह पुरानी जुत्ती है। इस पुराने हिसाब-किताब को चुक्तू करना है। फिर हम 21 जन्मों के लिए सब बीमारियों से छूट जायेंगे। कोई बीमारी छूटती जाती है तो खुशी होती है ना।

गीत:-  माता ओ माता…….. Audio Player

ओम् शान्ति। यह है माताओं की महिमा, वन्दे मातरम्। हे माता, तुम शिवबाबा के भण्डारे से सबकी पालना करती हो। तुमको शिवबाबा के भण्डारे से ज्ञान रत्नों का खजाना मिलता है अथवा ज्ञान अमृत के कलष से तुम्हारी पालना होती है। वास्तव में महिमा शिवबाबा की है, वह करनकरावनहार है। माता है जगदम्बा। जरूर और भी मातायें होंगी, जो यह माताओं की महिमा है। माता बहुत-बहुत अच्छी पालना करती है। शिवबाबा के यज्ञ में जो रहने वाले हैं उन्हों की स्थूल में भी पालना होती है और अविनाशी ज्ञान रत्नों से तो सभी की पालना होती है। पालना करने वाली मैजारिटी मातायें हैं। बहुत हैं जो भाई भी बहनों की पालना करते हैं। ऐसे नहीं, सिर्फ बहन भाई की पालना करती है। दोनों ज्ञान रत्नों की लेन-देन से एक-दो की पालना करते हैं – भाई बहन की, बहन भाई की। बच्चों को बहुत प्यार से रहना है। इस दुनिया में तो एक-दो को विकार ही देते हैं इसलिए जैसे एक-दो के दुश्मन हुए। यहाँ अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना देते हैं। वो तो जैसे पत्थर मारते हैं क्योंकि है ही पत्थरबुद्धि। ऐसे नहीं कि पत्थर मारते हैं, यह तो समझानी है। तुम हो बहन-भाई ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। तुम्हारा नाम भी बड़ा भारी है। ब्रह्माकुमारी है तो कुमार भी जरूर हैं। प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर ब्राह्मण-ब्राह्मणियां भी होंगे। बोर्ड पढ़ने से घबराना नहीं चाहिए। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे जरूर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ होंगे। यह बुद्धि से काम लिया जाता है।

गीत में महिमा है माता की। जगत अम्बा सरस्वती कहें तो भी जरूर बच्चे और बच्चियाँ होंगे। जरूर फैमली होगी। यह भी समझने की बात है ना। समझते भी हैं – प्रजापिता लिखा हुआ है ना। ब्रह्मा को कहा जाता है प्रजापिता ब्रह्मा। यह है साकारी सृष्टि का पिता। गाया हुआ है प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण कुल की रचना हुई। आदि सनातन पहले-पहले ब्राह्मण हो जाते हैं। वास्तव में आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहना रांग है। वह तो है सतयुग का धर्म। यह आदि सनातन ब्राह्मणों का धर्म जो है वह प्राय:लोप हो गया है। परमपिता परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म रचते हैं। तो यह संगमयुग हो गया देवी-देवता धर्म से भी ऊंच। पहले यह ब्राह्मण धर्म है, जिसको चोटी कहते हैं। इसको कहा जायेगा संगमयुगी आदि सनातन ब्राह्मण धर्म। कितना अच्छा राज़ है समझने का। बाबा ने समझाया है कि पहले जब कोई आते हैं तो उनको बाप का परिचय दो। यह है मुख्य। ब्राह्मणों को तो राजधानी है नहीं। लिखा जाता है सतयुगी डीटी वर्ल्ड सावरन्टी तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। देवी-देवता धर्म तो बरोबर है। परन्तु उनको यह राजधानी कब और कैसे मिलती है – यह भी समझाना पड़ता है इसलिए त्रिमूर्ति का चित्र सामने जरूर रखना है। इसमें लिखा हुआ है – स्वर्ग की बादशाही तुम्हारा जन्म सिद्ध अधिकार है। किस द्वारा? यह भी लिखना पड़े। यह बोर्ड बनाकर हर एक अपने घर में लगावे। जैसे गवर्मेन्ट के ऑफीसर्स के बोर्ड होते हैं ना। कोई के पास बैज रहते हैं। सबकी अपनी-अपनी निशानी रहती है। तुम्हारी भी निशानी रहनी चाहिए। बाबा डायरेक्शन देते हैं, अमल में लाना तो बच्चों का काम है ना। विहंग मार्ग की सर्विस करनी है। यह बहुत मुख्य चीज़ है। डॉक्टर, बैरिस्टर आदि सबके घर में बोर्ड लगा हुआ होता है ना। तुम्हारा भी बोर्ड लगा हुआ हो – आकर समझो कि शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की बादशाही कैसे मिलती है? बाबा डायरेक्शन देते हैं, जो मनुष्य देखकर वन्डर खायेंगे। अन्दर आयेंगे समझने के लिए। फ्लैट के बाहर भी बोर्ड लगा सकते हो। जिसका जो धन्धा है वह बोर्ड लगाना चाहिए। एक-दो से सीखना चाहिए। परन्तु बच्चों पर माया का वार बहुत होता है, निश्चय नहीं कि हम बाबा के पास जाते हैं। 84 जन्मों का पार्ट पूरा हुआ फिर नई दुनिया, स्वर्ग में आकर वर्सा लेंगे। यह याद नहीं रहता है। बाबा कहते हैं कि भल कर्म करो फिर जितना समय मिले तो बाबा को याद करो। तुम यह ढिंढोरा पीटते रहो कि यह सबका अन्तिम जन्म है। पुनर्जन्म मृत्युलोक में फिर नहीं लेना है। तुम भी जानते हो कि मृत्युलोक अभी खत्म होना है। पहले निर्वाणधाम जाना है। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी चाहिए, इसको विचार सागर मंथन कहा जाता है। बाप कहते हैं तुम कर्मयोगी हो। क्या तुमको कछुए जानवर जैसा भी अक्ल नहीं है! वो भी शरीर निर्वाह अर्थ घास आदि खाकर फिर कर्मेन्द्रियों को समेट शान्त में बैठ जाते हैं। तुम बच्चों को तो बाप की याद में रहना है, स्वदर्शन चक्र फिराना है, अपने को मास्टर बीजरूप समझना है। बीज में झाड़ का सारा ज्ञान है – इनकी उत्पत्ति एवं पालना कैसे होती है, ड्रामा में 84 का चक्र कैसे फिरता है? 84 के चक्र के लिए यह चित्र (चक्र का) बनाया जाता है। मनुष्य समझते हैं कि आत्मा 84 लाख योनियों में जाती है। लेकिन तुम्हें बाप ने समझाया है कि तुम सिर्फ 84 जन्म लेते हो। जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले हैं अर्थात् जो ब्राह्मण से देवता बनते है उनके ही 84 जन्म होते हैं। तुम 84 जन्मों को जानते हो। ब्रह्मा की रात और ब्रह्मा का दिन कहते है, इसमें 84 जन्म आ जाते हैं। त्रिमूर्ति का बोर्ड बनाकर लिखना चाहिए – यह ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है, लेना है तो लो। नाउ आर नेवर (अब नहीं तो कभी नहीं)। इस होवनहार महाभारत लड़ाई के पहले पुरुषार्थ करना है।

राम (शिव) क्या देते हैं और रावण क्या देते हैं? – यह तुम जानते हो। आधाकल्प है रामराज्य, आधाकल्प है रावणराज्य। ऐसे नहीं, परमात्मा ही दु:ख देते हैं। दु:ख देने वाला तो रावण 5 विकार हैं जो ही विशश बनाते हैं। बच्चों को भिन्न-भिन्न प्रकार की समझानी रोज़ मिलती रहती है तो खुशी में रहना चाहिए ना। तुम जानते हो शिवबाबा रोज़ पढ़ाते हैं। ऐसे नहीं कि साकार को याद करना है। शिवबाबा हमको ब्रह्मा बाबा द्वारा सहज राजयोग सिखलाते हैं। शिवबाबा आते ही प्रजापिता ब्रह्मा में हैं। प्रजापिता ब्रह्मा और किसको कह नहीं सकते। ब्राह्मण भी जरूर चाहिए। गाया जाता है सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा अथवा राज्य-भाग्य लो। बच्चे कहते हैं कि हम शिवबाबा के बच्चे हैं। वो है ही स्वर्ग का रचयिता तो जरूर हमको भी स्वर्ग की राजाई देंगे। बाबा कैसा वन्डरफुल है! एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति जनक को मिली – यह भी गाया हुआ है। तुम जानते हो कि अब हम शिवबाबा के बने हैं। शिवबाबा को जरूर याद करना पड़े। जैसे बच्चे धर्म की गोद लेते हैं तो जानते हैं कि पहले हम फलाने का बच्चा था, अब फलाने का हूँ, उनसे दिल हटती जायेगी और उनसे जुटती जायेगी। हम यहाँ भी ऐसे कहेंगे कि हम शिवबाबा के एडाप्टेड बच्चे हैं फिर उस लौकिक बाप को याद करने से फ़ायदा ही क्या? मोस्ट बील्वेड बाप इतनी बड़ी सम्पत्ति देने वाला है। बाप भी मेहनत करके बच्चों को लायक बनाते हैं ना! ऐसे बाप को तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। और तो सभी तुमको दु:ख देने वाले हैं फिर भी उनको याद करते रहते हो और मुझ बाप को तुम भूल जाते हो। रहो भल अपने घर में परन्तु याद बाबा को करो। इसमें मेहनत चाहिए। सिर्फ मेरा होकर रहो। निरन्तर मुझे याद करो और नई दुनिया को याद करो। यह तो सारा कब्रिस्तान बनना है। तुम मेरे बने गोया विश्व के मालिक बने। तुम जानते हो कि हम बाबा के बने हैं फिर स्वर्ग के मालिक हम भविष्य में बनेंगे। खुशी का पारा चढ़ना चाहिए।

यह भी जानते हैं कि यह पुराना शरीर है। कर्मभोग भोगना पड़ता है। मम्मा-बाबा भी खुशी से कर्मभोग भोगते हैं। फिर भविष्य 21 जन्म का सुख कितना भारी है। यह तो पुरानी जुत्ती है। कर्मभोग भोगते रहेंगे। फिर 21 जन्म के लिए इससे छूट जायेंगे। कोई बीमारी छूटती जाती है तो खुशी होती है ना। कोई आ़फत आती है फिर हट जाती है तो खुशी होती है ना। तुम भी जानते हो कि अब जन्म-जन्मान्तर के लिए आफतें हट जायेंगी। अभी हम बाबा के पास जाते हैं। यह है विचार सागर मंथन कर प्वाइंट्स निकालना। बाबा राय तो बतलाते हैं कि ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। हमने 84 का चक्र पूरा किया, अब बाप के पास जाते हैं फिर बाबा का वर्सा पायेंगे। साक्षात्कार भी करते हो। इस समय परोक्ष और अपरोक्ष है। जैसे मम्मा को कोई भी साक्षात्कार नहीं हुआ है, बाबा को तो हुआ है। विनाश और स्थापना का साक्षात्कार हुआ। इनको भविष्य का साक्षात्कार एक्यूरेट हुआ। परन्तु पहले यह समझ में नहीं आया कि हम यह विष्णु बनेंगे। पीछे समझते गये – हम इस विकारी गृहस्थ धर्म से अब निर्विकारी गृहस्थ धर्म में जाते हैं, तत्त्वम्। तुम भी बाबा की पढ़ाई से ऐसे बनते हो। रेस करनी चाहिए। बाकी गीत में है मम्मा की महिमा। तुम तो जान गये हो कि जगत अम्बा किसको कहा जाता है, वास्तव में मात-पिता कौन है? मात-पिता कहने से जगत अम्बा याद नहीं आयेगी। वह तो है निराकार। यह तुम्हारी बुद्धि में है। पिता तो गॉड फादर ठीक है, वह निराकार है। माता तो निराकार हो न सके। फादर निराकार है, जरूर वर्सा देंगे तो यहाँ आना पड़े ना, जो अपना परिचय दे। तो जरूर उनको माता चाहिए। तो यह ब्रह्मा बड़ी माता हो गई। दादा है निराकार। कितनी वन्डरफुल नॉलेज है। परन्तु यह मेल हो गया क्योंकि मुख वंशावली है ना। यह बड़ी वन्डरफुल नॉलेज है। बाप कहते हैं कि कितना गुह्य राज़ समझाता हूँ। कोई की बुद्धि में बैठ नहीं सकता कि मात-पिता कौन है। वो समझते हैं श्रीकृष्ण के लिए। सिर्फ फ़र्क यह किया है। इसको कहा जाता है एकज़ भूल। कोई तो निमित्त बनना चाहिए ना। क्या भूल हुई जो भारत इतना दु:खी होता है? अब तुम जानते हो किसने भुलाया? कारण क्या हुआ जो भूल गये? बरोबर माया रावण ने बेमुख कराया है। जैसे बाबा करनकरावनहार है वैसे माया भी करनकरावनहार दु:ख दाता है। वह करनकरावनहार दु:खदाता और वह (शिवबाबा) करनकरावनहार सुखदाता। माया बाप से बेमुख कराती है। अब बाप खुद कहते हैं कि हे आत्मायें, निरन्तर मुझ बाप को याद करो। तुम हमारे बच्चे हो, तुमको वर्सा लेना है। सिर्फ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। बेहद के बाप की मत मिलती है – ब्रह्मा द्वारा। गुरू ब्रह्मा कहते हैं ना। यह तो है भक्ति मार्ग की महिमा। गुरू ब्रह्मा मशहूर है। वह फिर कह देते ईश्वर सर्वव्यापी है। आगे हम भी समझते थे कि ठीक कहते है। अब समझते हैं कि माया ने इन्हों से ऐसा कह-लाया है। माया भूल कराती है नीचे गिराने के लिए और बाबा अभुल बनाते हैं ऊंच चढ़ाने के लिए। बाप बहुत अच्छी तकदीर बनाते हैं। बाप को याद करना है – यह तो बहुत सहज है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपने को मास्टर बीजरूप समझ कर्मेन्द्रियों को समेट शांत में बैठने का अभ्यास करना है।

2) विचार सागर मंथन कर खुशी में रहना है और खुशी-खुशी से पुराना कर्मभोग चुक्तू करना है। अपने आपसे बातें करनी है कि हमने 84 का चक्र पूरा किया, अब जाते हैं बाबा के पास…।

वरदान:- रिगार्ड मांगने के बजाए सदा ऊंची स्थिति में रहने वाले सर्व के पूज्यनीय भव

कई बच्चे सोचते हैं कि हम तो आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दूसरे हमको आगे बढ़ने का रिगार्ड नहीं देते हैं। लेकिन रिगार्ड मांगने के बजाए स्वयं का रिगार्ड स्वयं रखो तो दूसरे स्वत: रिगार्ड देंगे। अपना रिगार्ड रखना अर्थात् अपने को सदा महान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करना। जैसे मूर्ति जब आसन पर है तब पूज्यनीय है। ऐसे आप भी सदा अपनी ऊंची स्थिति में स्थित रहो तो पूज्यनीय बन जायेंगे। सब आपेही रिगार्ड देंगे।

स्लोगन:-      माया का तिरस्कार करने वाले ही सर्व के सत्कारी बनते हैं।