murli 23-06-2023

23-06-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम सबका प्राण आधार आया है तुम्हें जमघटों के दु:खों की पीड़ा से छुड़ाने, वह तुम्हें स्वर्ग का वर्सा देता, वह सर्वव्यापी नहीं है”
प्रश्नः-इस राजयोग में कौन-सा योग सदा कम्बाइण्ड है?
उत्तर:-इस राजयोग में प्रजायोग सदा ही कम्बाइण्ड है क्योंकि राजा-रानी के साथ-साथ प्रजा भी चाहिए। अगर सब राजा बन जायें तो किस पर राज्य करेंगे? सब कहते हैं हम महाराजा-महारानी बनेंगे, हम राजयोग सीखने आये हैं। परन्तु राजा-रानी बनने के लिए तो बहुत हिम्मत चाहिए। पूरा बल होना चाहिए। बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़े तब राजाई में जा सकें।
गीत:-प्रीतम आन मिलो… Audio Player

ओम् शान्ति। प्रीतम को कौन बुलाते हैं? प्रीतमा को सजनी वा भक्ति कहा जाता है। बुलाते हैं साजन को, भगवान को अथवा बाप को। इसमें सर्वव्यापी का ज्ञान तो ठहरता नहीं। प्रीतम को बुलाते हैं कि आन मिलो। जीव-आत्मायें अपने परमपिता परमात्मा को बुलाती हैं – ओ परमपिता परमात्मा आओ, रहम करो। स्वर्ग में तो ऐसे नहीं बुलायेंगे। बरोबर यह दु:खधाम है तो प्रीतम को बुलाते हैं। प्रीतम भगवान एक है। क्रियेटर एक है। विश्व अथवा सृष्टि का चक्र भी एक है। बच्चे जानते हैं कि कलियुग से फिर सतयुग होगा। सतयुग में फिर से एक आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य होगा। यह नॉलेज है ना। तुम बच्चे जानते हो प्रीतम कैसे आये हैं। शिव तो है निराकार। तुम सब निराकारी आत्मायें हो। यहाँ आये हो पार्ट बजाने। अब निराकार बाप कैसे आया? राजयोग किसने सिखलाया? श्रीकृष्ण तो सतयुग स्थापन करने वाला नहीं है, उनको रचयिता नहीं कहेंगे। सभी जीव आत्माओं का प्रीतम एक परमपिता परमात्मा क्रियेटर, निराकार को कहेंगे। कहते हैं – मेरा जन्म शिव जयन्ति मनाते हैं। मेरा जन्म कोई श्रीकृष्ण सदृश्य नहीं होता। श्रीकृष्ण माँ के गर्भ से कैसे जन्म लेते हैं – वह भी बच्चों को साक्षात्कार कराया हुआ है। बाप कहते हैं मेरा नाम रुद्र भी है। गीता में भी है – यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ अर्थात् शिव का रचा हुआ यज्ञ। तो जरूर निराकार शिव को साकार में आना पड़े। बाप बैठ समझाते हैं – इस गीत के दो अक्षर से ही सर्वव्यापी का ज्ञान निकल जाता है। प्रीतम को श्रीकृष्ण नहीं कहेंगे। कहते ही हैं – ओ गॉड फादर। ओ प्राण आधार क्योंकि यह सबका प्राण आधार है। सभी को जमघटों के दु:ख की पीड़ा से छुड़ाते हैं, तो जरूर उनको आना पड़े। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प कल्प के संगमयुगे आता हूँ। यही कल्याणकारी संगमयुग है। सतयुग के बाद तो फिर दो कला कम हो जाती हैं। यही संगमयुग चढ़ती कला का युग है, इसमें बुद्धि से काम लेना चाहिए। नये के लिए तो बहुत सहज समझाते हैं। तुम्हारा बाप निराकार परमपिता परमात्मा शिव है। उनको याद करो, बस। और गुरू गोसाई आदि के मंत्र सब हैं भक्ति मार्ग के। भक्ति आधा-कल्प चलती है फिर ज्ञान का वर्सा आधा-कल्प चलता है। ज्ञान वहाँ नहीं रहेगा। ज्ञान दिया जाता है दुर्गति से सद्गति में ले जाने के लिए। गुरू का काम है शिष्य अथवा फालोअर्स की गति-सद्गति करना। परन्तु वह जानते नहीं कि गति-सद्गति क्या होती है। गाते भी हैं सर्व का सद्गति दाता राम। पतित-पावन सर्व सीताओं का राम। बच्चे जानते हैं कि सतयुग में एक ही धर्म रहता है। सूर्यवंशी राज्य चलता है। फिर राम राज्य त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं। वहाँ रावण आदि होते नहीं। कोई उपद्रव की बात नहीं। यह सारी दुनिया लंका है, रावण का राज्य है। इस समय सब मनुष्य बन्दर से बदतर हैं क्योंकि सभी में 5 विकार प्रवेश हैं। कितना मनुष्यों में क्रोध है। एक दो को कैसे मारते हैं। मरने-मारने की तैयारी करते हैं। तुम सब विकारी थे। अब बाबा आकर रावण पर जीत पहनाते हैं। शास्त्रों में क्या-क्या बातें लिख दी हैं। ऐसे थोड़ेही पूंछ को आग लगी और सारी लंका जल गई। वास्तव में लंका यह सारी दुनिया है। तुम ब्राह्मण कुल भूषण बच्चे भी पहले पतित थे। अभी तुम माया रावण पर जीत पाते हो। बाप ने आकर बुद्धि का ताला खोला है। बुद्धिवानों की बुद्धि बाप है ना। मनुष्य तो क्या-क्या बातें सुनाकर माथा ही खराब कर देते हैं। बाप कहते हैं यह फिर भी होना ही है। सर्वव्यापी का ज्ञान पहले नहीं था। कहते थे परमात्मा बेअन्त है। बेअन्त कह फिर उनको सर्वव्यापी कहना कितनी बड़ी भूल है। शिवोहम् ततत्वम् कह देते हैं। कभी शिवोहम्, कभी फिर ब्रह्मोहम् भी कह देते। यह फिर राँग हो जाता है। ब्रह्म तो रहने का स्थान है। शिव बाबा ब्रह्म तत्व में रहते हैं इसलिए उनका नाम ब्रह्माण्ड है। हम आत्मायें भी वहाँ की रहने वाली हैं। वे लोग फिर शिव को नाम-रूप से न्यारा कह देते हैं, यह सब समझाने की बातें हैं ना। सो भी जब एक हफ्ता रेगुलर समझें तब ज्ञान से चोली रंग जाये। समझाना है तुम्हारा बेहद का बाप भी है, जिससे भारत को जीवन्मुक्ति का वर्सा मिलता है। बाकी सबको मुक्ति का वर्सा मिलता है।

बाप कहते हैं – बच्चे, अभी नाटक पूरा हुआ। तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए हैं। इतना समय पार्ट बजाया है, अब फिर वापस जाना है। बाप आकर हमारे लिए राजधानी स्थापन करते हैं तो जरूर संगम पर स्थापन हो, तब तो सतयुग में तुम वर्सा लो। तुमको कितना अच्छा कर्म सिखलाते हैं। लक्ष्मी-नारायण ने क्या किया जो ऐसे ऊंच बनें? अभी तुम जानते हो बाबा राजयोग सिखलाते हैं। सतयुग में थोड़ेही सिखलायेंगे। वहाँ तो है ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य। यह है कल्याणकारी संगमयुग, इसमें अच्छी रीति पुरुषार्थ करना है। बाप कहते हैं यह देह का भान छोड़ अपने को आत्मा निश्चय कर मुझ बाप को याद करो। तुम धक्के खाकर थक गये हो। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ ही त्रिकालदर्शी बनते हैं। बनाने वाला है बाप।

स्वदर्शन-चक्र भी तुम फिराते हो। विष्णु कोई त्रिकालदर्शी नहीं है। उन्होंने फिर विष्णु को अलंकार दे दिये हैं। वास्तव में त्रिकालदर्शी तुम ब्राह्मण बनते हो। वर्णों का भी समझाया है। चोटी है ब्राह्मण वर्ण। भारतवासी चित्र बनाते हैं। चोटी देते नहीं। ब्राह्मण वर्ण गुम कर दिया है। प्रजापिता ब्रह्मा है ना। तो पहले ब्राह्मणों की चोटी होनी चाहिए। अभी तुम मुख वंशावली ब्राह्मण बने हो।

गीत में भी सुना – प्रीतम आन मिलो… सर्वव्यापी की बात नहीं। अभी तुम प्रीतमायें प्रीतम के सम्मुख बैठी हुई हो। प्रीतम अपना स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं। कितना अच्छा प्रीतम है! कहते हैं श्रीकृष्ण ने भगाया पटरानी बनाने। परन्तु समझते नहीं – पटरानी क्या चीज़ होती है। अभी तुम जानते हो और स्वर्ग का महाराजा-महारानी बनने लिए पुरुषार्थ करते हो। यह राजयोग है, इसमें प्रजायोग कम्बाइण्ड है। सिर्फ राजा-रानी थोड़ेही बनेंगे। सब कहते हैं महाराजा-महारानी बनेंगे। हम आये हैं राजयोग सीखने, परन्तु सब थोड़ेही महाराजा-महारानी बनेंगे। हिम्मत चाहिए। पूरा बल होना चाहिए। भक्ति मार्ग में जब नौधा भक्ति करते हैं तब साक्षात्कार होता है। शिव पर बलि चढ़ते हैं। वास्तव में बलि चढ़ना भी यहाँ की बात है। यह भी समझाया है – गीता, भागवत, रामायण, वेद आदि सतयुग-त्रेता में होते नहीं। ऐसे नहीं परम्परा से यह कोई चले आते हैं। यह तो द्वापर से चले हैं। फिर द्वापर में ही बनेंगे। मुसलमानों ने आकर राज्य लिया, मुहम्मद गजनवी ने लूटा – यह सब बातें तुम जान गये हो। हमने ही पूज्य से पुजारी बन अपना मन्दिर बनाया। तो कितनी हमको मिलकियत होगी! पाँच हजार वर्ष की बात है। सो भी शुरुआत में। फिर भक्ति मार्ग में भी तुमको कितना धन रहता है! जिसने हीरों-जवाहरों का मन्दिर बनाया, उनका अपना महल क्या होगा। नाम कितना ऊंच है। लक्ष्मी-नारायण कितने श्रृंगारे हुए देखते हो। अभी तो बिचारों के पास पैसा नहीं है। आगे तो लक्ष्मी-नारायण के लिए हीरों का सब कुछ बनाते थे। बाद में सब लूट फूट ले गये। वहाँ तो सोने की ईटें होती हैं, तुम उनसे महल बनाते हो। अक्ल भी अच्छा रहता है। अभी तो बेअक्ल हैं, तब तो कंगाल हुए हैं ना। शिवबाबा पर वा देवताओं पर कितने कलंक लगाये हैं इसलिए बाबा कहते हैं यदा यदाहि…. जब इसमें प्रवेश करूँ तब तो ब्राह्मणों को रचूँ। ब्रह्मा मुख से भारत में ही आकर ब्राह्मण रचते हैं। विलायत जाऊंगा क्या। जो नम्बरवन पावन पूज्य था, अब पुजारी बना है, उनके ही पतित शरीर में आता हूँ। त्रिमूर्ति कहते हैं, शिव को निकाल दिया है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा का तो अर्थ ही नहीं निकलता। बाबा कहते हैं कल्प-कल्प संगम पर इस तन में आकर तुम ब्राह्मणों को रचता हूँ। तुम ब्राह्मण-ब्राह्मणियों का यह सर्वोत्तम युग है। अभी तुम ईश्वरीय गोद में हो। ईश्वर बाबा से बेहद का वर्सा लेते हो। जानते हो उनको ही याद करते-करते हम उनके पास पहुँच जायेंगे। कहते हैं ना अन्त काल जो स्त्री सुमिरे…. जैसा सुमिरन वैसा जन्म मिलता है। यह है अन्तकाल का समय। तुमको बाप बैठ समझाते हैं। इस समय मुझ बाप को ही याद करना है। देही-अभिमानी भव, अशरीरी भव। अपने को आत्मा निश्चय कर मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। एक जगह नेष्ठा में नहीं बैठना है। बच्चे तो चलते-फिरते, उठते-बैठते बाप को याद करते हैं ना।

बेहद का बाप कहते हैं – और सभी से बुद्धि निकाल मामेकम् याद करो। इसी में मेहनत है। 84 जन्म लिए, अब यह अन्तिम जन्म है। तुम बाप के बने हो तो उसने ही कितने मीठे नाम दिये हैं। बाबा ने सन्देशी द्वारा नाम भेजे। वहाँ बहुत अच्छे-अच्छे नाम होते हैं। फिर भी वही नाम पड़ेंगे जो कल्प पहले पड़े होंगे। सर्वव्यापी का अर्थ भी समझाना चाहिए ना। सब भक्त भगवान हैं तो फिर उनको मिलेगा क्या। कुछ भी नहीं। अभी तुम ईश्वरीय गोद में हो। ईश्वरीय गोद से तुम ब्राह्मण बनते हो। शूद्र वर्ण खत्म हुआ। यह वर्ण है ही तुम भारतवासियों के लिए। तुम जानते हो हम शूद्र वर्ण से ट्रान्सफर हो ब्राह्मण धर्म में आये हैं। ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ वही बनेंगे जो कल्प पहले बने थे। झाड़ वृद्धि को पाता जाता है। कितनी अच्छी-अच्छी बातें बच्चों को सुनाते हैं। परन्तु माया का तूफान लगने से अच्छे-अच्छे बच्चे भी गिर पड़ते हैं। युद्ध तो है ना। तुम सर्वशक्तिमान के बच्चे हो तो माया भी कम नहीं है। आधा-कल्प रावण का राज्य है। इस समय माया भी जोर से पछाड़ेगी, इसको तूफान कहा जाता है। हनूमान का मिसाल है ना। तुमको माया के कितने भी तूफान आयें परन्तु हिलना नहीं है। सदैव हर्षित रहना है। जितना रुस्तम बनेंगे उतना माया जोर से वार करेगी। देखेगी – लायक है वा नहीं? कहते हैं – बाबा, हमने तो काला मुंह कर दिया। काला मुंह हुआ, बस, बुद्धि को ताला लग जायेगा। धारणा होगी नहीं क्योंकि बाबा को कलंक लगाया ना। लौकिक बाप भी कहते हैं ना तुम कुल-कलंकित हो। बाबा समझाते हैं – तुम कभी भी कुल कलंकित नहीं बनना। बाप परमधाम से आये हैं तुमको पढ़ाने। भगवानुवाच – मैं राजाओं का राजा बनाने आया हूँ। राजाई जरूर स्थापन होगी। इस समय तुम जितने ब्राह्मण बने हो उतने ही बने थे और बनते रहेंगे।

बच्चों को याद रखना है कि उस पारलौकिक बाबा का कोई बाप नहीं है। वह है ही सुप्रीम नॉलेजफुल, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप चैतन्य, पतित-पावन, रहमदिल, नॉलेजफुल, ब्लिसफुल। उन पर कोई ब्लिस करने वाला नहीं है। वह खुद ही बाप, टीचर, सतगुरू है। बेहद बाप के घर में तुम सम्मुख बैठे हो। यह है ईश्वरीय कुटुम्ब। वृद्धि को पाते जायेंगे। 84 का चक्र भी बुद्धि में याद है। हम सो देवता इतने जन्म, हम सो क्षत्रिय इतने जन्म…. फिर हम सो देवता बनेंगे। माया दु:खधाम बनाती है। बाप आकर सुखधाम बनाते हैं। कितना सहज है। खूब पुरुषार्थ करना चाहिए। अब का पुरुषार्थ कल्प-कल्प के लिए तुम्हारा पुरुषार्थ बन जायेगा। कहेंगे कल्प कल्पान्तर हम ऐसा पुरुषार्थ करते आये हैं। मम्मा-बाबा भी पुरुषार्थ करते हैं। यही फिर पूज्य सो देवी-देवता लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। श्रीमत पर हम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) इस अन्तकाल के समय में एक बाप को ही याद करने का अभ्यास करना है। अशरीरी बनना है।

2) कभी भी कुल कलंकित नहीं बनना है, माया के तूफानों में हिलना नहीं है। सदा हर्षित रहना है।

वरदान:-अपने चेहरे रूपी दर्पण द्वारा मन की शक्तियों का साक्षात्कार कराने वाले योगी तू आत्मा भव
जो मन में होता है उसकी झलक मस्तक पर जरूर आती है। ऐसे नहीं समझना कि मन में तो हमारे बहुत कुछ है। लेकिन मन की शक्ति का दर्पण चेहरा अर्थात् मुखड़ा है। कितना भी आप कहो हमारा योग तो बहुत अच्छा है, हम सदा खुशी में नाचते हैं लेकिन चेहरा उदास देख कोई नहीं मानेगा। “पा लिया” इस खुशी की चमक चेहरे से दिखाई दे। खुश्क चेहरा नहीं दिखाई दे, खुशी का चेहरा दिखाई दे, तब कहेंगे योगी तू आत्मा।
स्लोगन:-जब सरल स्वभाव, सरल बोल, सरलता सम्पन्न कर्म हों तब बाप का नाम बाला कर सकेंगे।