22-03-2023 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘ | मधुबन |
“मीठे बच्चे – देही-अभिमानी हो रहना, यही बड़ी मंजिल है, देही-अभिमानी को ही ईश्वरीय सम्प्रदाय कहेंगे, उन्हें बाप और परमधाम के सिवाए कुछ भी सूझेगा नहीं” | |
प्रश्नः- | किस एक बात की धारणा से भविष्य 21 जन्मों के लिए पूंजी जमा हो जाती है? |
उत्तर:- | श्रीमत पर अपने ऊपर तथा दूसरों पर उपकार करने से। उपकार वही कर सकता जो पूरा देही-अभिमानी बनें, जिसकी बुद्धि शुद्ध हो। देह-अभिमान में आने से अपकार हो जाता है और जमा हुई पूंजी खत्म हो जाती है। घाटा पड़ जाता है। क्रोध का भूत भी अपकार कराता है इसलिए अपना स्वभाव बहुत मीठा बनाना है। |
गीत:- | यह कौन आज आया…. Audio Player |
ओम् शान्ति। जब परमात्मा बाप आकरके जीव आत्माओं से मिलते हैं तो जीव आत्मा को अपना जीवपना भूल जाता है। उनको निश्चय हो जाता है कि हम आत्मा हैं और परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। बाकी जो कुछ हम देखते हैं यह देह सहित देह के सर्व सम्बन्धी आदि यह तो याद रहना ही नहीं है। बाप आते ही हैं बच्चों को वापिस ले जाने के लिए। तुम चौंक उठते हो यह क्या होता है। ब्रह्मा की अंधियारी रात पूरी हो सवेरा होता है। देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं वह टूट जाते हैं। तो चौक गये हैं कि क्या हो गया है! यह पुरानी दुनिया देखने में नहीं आती। बस बाप और परमधाम ही सूझता है। यह वन्डर है ना। परन्तु बाप को पूरा न पहचानने के कारण, बुद्धियोग न लगने कारण देह-अभिमान पूरा मिटता ही नहीं है। उनको हम बन्दर सम्प्रदाय कहते हैं। जब देही-अभिमानी बनें तब ईश्वरीय सम्प्रदाय कहें। बन्दर सम्प्रदाय का नारद के रूप में दृष्टान्त हैं। वह भी भक्त था, झांझ बजाता था। उनको बाप ने दिखाया कि देखो तुम बन्दर सम्प्रदाय हो। तो देही-अभिमानी हो रहना बहुत मुश्किल है, बड़ी मंजिल है। भल पवित्र बनते हैं। ऐसे अच्छे और बुरे मनुष्य तो होते ही हैं। अब संन्यासी घरबार छोड़ते हैं, पवित्र बनते हैं। जो घरबार नहीं छोड़ने वाले हैं गृहस्थी, वह जाकर उन्हों को अपना गुरू बनाते हैं। कलियुगी दुनिया के सभी मनुष्य मात्र नास्तिक, निधनके हैं। हे भगवान, हे परमपिता परमात्मा कह पुकारते तो हैं परन्तु उनको जानते नहीं कि आखरीन भी वह कौन है। पुकारते-पुकारते वह थक पड़े हैं। कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। बन्दगी भी करते हैं परन्तु जानते नहीं। यह तो समझने की बात है। भगवानुवाच, गीता में भी भगवानुवाच है ना – यह हैं आसुरी सम्प्रदाय। भगवान ने क्यों कहा है तुम बन्दर मिसल हो? अपनी शक्ल तो आइने में देखो। भगवान को जानते नहीं, ढूंढते रहते हैं इसलिए मनुष्य को ही भगवान मिलना चाहिए। ढूंढते हैं परन्तु मिलते नहीं। तो जब भगवान आये तब आकर अपना परिचय दे। गीता में पूरा परिचय है। कहते हैं मैं रूद्र हूँ। मुझ रूद्र ने यह ज्ञान यज्ञ रचा है। अगर कहें श्रीकृष्ण ने रचा तो कहे मैं श्रीकृष्ण तुमको राजयोग सिखाता हूँ। परन्तु श्रीकृष्ण ज्ञान यज्ञ होता ही नहीं। यह तुम बच्चे ही जानते हो बाकी तो सब मनुष्य-मात्र आइरन एजड हैं। मुख से पत्थर ही निकालते रहते हैं। झूठ बोलने वाले के लिए कहते हैं इनका मुंह काला है। जब संन्यास धर्म की स्थापना होती है, उस समय सृष्टि रजो है। तो भारत को पवित्रता में थमाने लिए यह पवित्र धर्म की स्थापना होती है। उनको रजोगुणी संन्यासी कहा जाता है। संन्यास जरूर करते हैं परन्तु रजोगुणी। वह कोई सतोप्रधान नहीं हैं। जब भारत काम चिता पर चढ़ने से जलना शुरू हो जाता है तब ड्रामा में इस संन्यास का भी पार्ट है। उनको कोई सहज राजयोग नहीं कहेंगे। वह भगवान ने नहीं सिखाया था। वे तो भगवान को ही नहीं जानते। यह बड़ी भारी भूल कर दी है, जो श्रीकृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। बाप बैठ भूले हुए मनुष्यों को समझाते हैं। परन्तु समझाने में बड़ी रिफाइननेस चाहिए। संन्यासी लोग कहते हैं आप संन्यास धर्म की निंदा करते हो। बोलो आकर समझो। पहले बताओ तुम निंदा किसको कहते हो। परमपिता परमात्मा जो सबका बाप है, गीता का भगवान है, उसने समझाया है, श्रीकृष्ण ने नहीं। परमपिता परमात्मा ने आकर कहा है कि यह कलियुग का अन्त है। मनुष्यों की बुद्धि जड़जड़ीभूत आसुरी बन गई है। यह है ही पतित आसुरी राज्य। सतयुग में है पावन दैवी राज्य। वह समझते हैं हम ही ईश्वर हैं परन्तु वो तो हैं नहीं। ईश्वर तो सभी का एक है, जिसको सब याद करते हैं। यह समझने की बाते हैं। समझना हो तो समझो। परन्तु समझाने वाला बड़ा रिफाइन चाहिए। जिनमें क्रोध का भूत होगा वह क्या समझा सकेंगे। क्रोध का भूत, मोह का भूत, लोभ का भूत छोटे बड़े भूत तो होते ही हैं। गन्दी आदते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चों से भी माया कुछ न कुछ करा देती है। यह है सब देह-अभिमान की शैतानी। देह-अभिमान आया तो फिर जैसा बन्दर हो जाता, फिर वह मन्दिर लायक बन न सके।
तुम जानते हो मन्दिर लायक देवी-देवतायें ही बनते हैं। उन्हों के लिए ही मन्दिर बनाया जाता है। सतयुग में तो सारी दुनिया को शिवालय कहा जाता है। सभी मन्दिर में रहते हैं। सृष्टि ही पवित्र मन्दिर बन जाती है। विश्व शिवालय बन जाता है, जिसमें यथा राजा रानी तथा प्रजा सब पवित्र रहते हैं। तो कोई को बड़ा युक्ति से समझाना होता है। चूहा काटता भी है फिर फूंक भी देता रहता है। उनमें यह अक्ल है। कोई संन्यासी आदि आये तो पहले युक्ति से उनकी महिमा करनी चाहिए। आओ संन्यासी जी आप तो बहुत अच्छे हो जो संन्यास किया है, घरबार छोड़ा है। तुमको मालूम है दो प्रकार का संन्यास है। एक है घरबार छोड़ने का संन्यास, दूसरा है घरबार न छोड़ने का संन्यास। गृहस्थ व्यवहार में रहते राजयोग सीख स्वर्ग का मालिक बनना होता है। कभी सुना है? कहेंगे यह बात तो कोई भी शास्त्र में नहीं है। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल द्वापर में ठोक दिया है, तो समझेंगे कैसे? फिर चित्रों पर समझाना होता है। तुम्हारा है घरबार छोड़ने का। सभी तो नहीं छोड़ेंगे। प्रवृत्ति मार्ग है। तुमने प्रवृत्ति में रहते हुए फिर 5 विकारों का संन्यास नहीं किया है, हम कर रहे हैं। हमको मदद मिल रही है परमपिता परमात्मा की। ऐसे गृहस्थ व्यवहार में रहते 5 विकारों का संन्यास करने से हम स्वर्ग का मालिक बनेंगे। सतयुग में देवी-देवतायें पवित्र थे, अभी नहीं हैं। कलियुग के बाद फिर सतयुग आना है। बाप ही आकर सतयुग स्थापन करते हैं। प्रवृत्ति में रहते कमल फूल समान पवित्र बनाते हैं। तुम कहते हो आग कपूस इकट्ठे रह नहीं सकते हैं। परन्तु यहाँ रहते हैं। तुम्हारे पास प्राप्ति की एम आबजेक्ट तो कुछ है नहीं। बेहद का बाप जब आते हैं तब पुरानी सृष्टि का विनाश और नई सृष्टि की स्थापना हो जाती है। यह ज्ञान हमको मिलता ही है नई दुनिया के लिए। बाप कहते हैं देह सहित जो भी तुम्हारे संबंध आदि हैं, सबको भूल अपने को देही समझ मुझे याद करो। यह हमारा राजयोग है सतोप्रधान। अब तो है तमोप्रधान, फिर तमोप्रधान से सतोप्रधान सृष्टि जरूर बननी है। सतोप्रधान बनाने वाला रचयिता बाप ही ठहरा। हम उस बेहद के बाप से यह सीख रहे हैं। भगवान एक है, ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी देवता कहा जाता है। उनसे नीचे तबके वालों को मनुष्य कहा जाता है। भगवान रहते ही हैं परमधाम में। हम आत्मायें भी वहाँ रहती हैं। ऐसे रिफाइननेस से समझाना है। परन्तु योग पूरा नहीं है तो धारणा नहीं होती है। बाबा जो समझाते हैं वह किसको याद थोड़ेही पड़ता है। भल कोई बच्चे कहे हम याद करते हैं परन्तु बाबा मानते नहीं। अगर तुम याद करते हो तो बुद्धि शुद्ध होनी चाहिए और धारणा अच्छी होनी चाहिए। धारणा है तो फिर करानी भी है। उपकार करना है। तुम जानते हो बाप आकर सब पर उपकार करते हैं। माया रावण अपकार करते हैं। बाप आकर एक ही बार इतना उपकार करता है जो 21 जन्म हमारा उपकार हो जाता है। उपकार कहो अथवा कृपा, आशीर्वाद आदि जो कहो द्वापर में फिर अकृपा शुरू हो जाती है। रावण अपकार करते हैं। श्रीमत से ही तुम कोई का भी उपकार कर सकेंगे। फिर देह-अभिमानी बना तो अपकार करना शुरू कर देंगे। उपकार करने से भविष्य 21 जन्मों के लिए पूंजी जमा होती है। अपकार करने से जो जमा हुआ होता वह भी खत्म हो जाता है। जबकि उपकार करना जानते हैं तो करना है। उपकार करना नहीं जानते हैं तो जरूर अपकार ही करेंगे, आसुरी मत पर। मनुष्य हर एक, एक दो पर अपकार ही करते हैं। काम कटारी चलाते हैं। बाप को भूला, उपकार करना भूला तो वह फिर अपकारी जरूर बनेगा। सेकेण्ड में उपकार, सेकेण्ड में फिर अपकार कर देते हैं। अच्छे-अच्छे बच्चे कितने उपकारी थे। उपकार करने की शिक्षा जानते थे। अपने ऊपर भी उपकार करते थे, तो औरों पर भी करते थे। फिर माया के चक्र में आकर भागन्ती हो गये। अपकारी बन पड़े। कितना अपकार करते हैं। मनुष्य समझते हैं कुछ तो होगा जो भागे हैं। हम फिर कैसे जायें। उल्टी सुल्टी बकवाद जाकर करते हैं। गोया जो उपकार करके खाता जमा किया सो फिर अपकार करके अपने खाते को मिट्टी में मिला दिया। ऐसे बहुत हुए हैं और होते रहेंगे। देखो जिसने उपकार किया वही फिर देह-अभिमान में आने से अपकारी बन पड़ा। मनुष्य, मनुष्य पर अपकार ही करते हैं। उपकार कोई कर न सके, जब तक श्रीमत पर न चले। अपकार कराने वाली रावण मत है। अभी-अभी श्रीमत, अभी-अभी रावण मत पर चल पड़ते हैं। क्रोध का भूत आया और अपकार कर लिया। बाप पर अपकार का कलंक लगा दिया। निंदा करा दी। बाप क्या कहेंगे, ईश्वरीय औलाद ऐसे होते हैं! वह फिर दिल से उतर जाते हैं। कोई का भूत निकल जाता है तो फिर महिमा भी करते हैं। क्रोध बहुत खराब है इसलिए बाबा हमेशा कहते हैं मीठे टेम्पर (स्वभाव) वाले बनो। क्रोधी टेम्पर अज्ञान है। बाप समझाते हैं ममत्व को बिल्कुल छोड़ना है। ममत्व टूटते-टूटते जब अन्त का समय आयेगा तब सम्पूर्ण बनेंगे। रेस है ना। बच्चे जानते हैं मम्मा बाबा पहले पहुंचते हैं। तो उनकी मत पर चल फालो करना चाहिए। धारणा करनी चाहिए। मॉ बाप के दिल पर चढ़ेंगे तो तख्त पर भी बैठेंगे। अपने से पूछना है कि हम लक्ष्मी को वरने अर्थात् मॉ बाप के तख्त पर बैठने लायक बने हैं। अगर समझते हैं हमारे में क्रोध है तो वह कभी दिल पर चढ़ न सकें। न भविष्य में महाराजा महारानी बनेंगे। कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। अगर ट्रेटर बन पड़े तो जाकर चण्डाल बनेंगे। हूबहू कल्प पहले वाली बातें बाबा रोज़-रोज़ सुनाते रहते हैं। उनमें कहाँ भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। कितना ज्ञान का नशा रहना चाहिए। परन्तु जो सर्विस पर होंगे उनको रहेगा जो जैसी सर्विस करते हैं, उनको फल जरूर मिलता है। नम्बरवन है नॉलेज देना। उसमें बहुतों को सुख दे चक्रवर्ती बनाना है। औरों को बनायेंगे, सर्विस की युक्तियां तो बहुत अच्छी बताई जाती है। कहाँ भी सर्विस हो सकती है। फिर करके 100 में से एक जगेगा। मेहनत का काम है।
ऐसे-ऐसे रात दिन बाबा का विचार सागर मंथन चलता है। अनेक प्रकार के विचार चलते हैं। कितने विघ्न पड़ते हैं। विश्व को पवित्र स्वर्ग बनाना है। उसके लिए अथाह ख्यालात चलते हैं। ख्यालात करते-करते रात से सुबह हो जाती है इसलिए गाया हुआ है – नींद को जीतने वाले…बाबा को कभी-कभी तो नींद ही नहीं आती। बच्चों को विश्व का मालिक बनाना है तो इतना फिकर रहता है। तुम बच्चों को भी इतना फिकर रहना चाहिए कि हम श्रीमत पर कहाँ तक चलते हैं। बापदादा संग हम बच्चों को ही कुल्हा (कंधा) देना है। सारी पुरानी दुनिया को रवाना करना है। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कभी भी रावण की मत पर चल देह-अभिमान में आकर बाप का अपकार नहीं करना है, निंदा नहीं करानी है। श्रीमत पर अपना तथा सर्व का उपकार करना है।
2) क्रोध का भूत प्रवेश होने नहीं देना है। बहुत मीठा स्वभाव बनाना है। युक्ति से सेवा करनी है।
वरदान:- | सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को सदा सुख की अनुभूति कराने वाले मास्टर सुखदाता भव आप सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हो इसलिए सुख का खाता जमा करते रहो। सिर्फ यह चेक नहीं करो कि आज सारे दिन में किसी को दु:ख तो नहीं दिया? लेकिन चेक करो कि सुख कितनों को दिया? जो भी सम्पर्क में आये आप मास्टर सुखदाता द्वारा हर कदम में सुख की अनुभूति करे, इसको कहा जाता है दिव्यता वा अलौकिकता। हर समय स्मृति रहे कि इस एक जन्म में 21 जन्मों का खाता जमा करना है। |
स्लोगन:- | एक बाप को अपना संसार बना लो तो अविनाशी प्राप्तियाँ होती रहेंगी। |