21-05-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 14-12-94 मधुबन |
समय, संकल्प, बोल द्वारा कमाई जमा करने का आधार – तीन बिन्दी लगाना
आज बापदादा किस सभा में आये हैं? ये सारी सभा किन आत्माओं की है? बापदादा देख रहे हैं कि हर एक हाइएस्ट, रिचेस्ट हैं। दुनिया वाले तो कहते हैं रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड लेकिन आप सभी हैं रिचेस्ट इन कल्पा। इस समय का जमा किया हुआ ख़ज़ाना सारा कल्प साथ में चलता है। सारे कल्प में ऐसा कोई भी नहीं मिलेगा जो ये सोचे कि इस जन्म में तो रिचेस्ट हूँ लेकिन भविष्य में भी अनेक जन्म साहूकार से साहूकार रहेंगे। और आप सभी निश्चय और नशे से कहते हो कि हमारा ये ख़ज़ाना अनेक जन्म साथ रहेगा। गैरन्टी है ना? तो ऐसा रिचेस्ट सारे कल्प में देखा? तो आज बापदादा अपने शाहन के भी शाह, राजाओं के भी राजा बच्चों को देख रहे हैं। एक-एक दिन में कितनी कमाई जमा करते हो? हिसाब निकालो, जमा का खाता कितना तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है? और बढ़ाने का साधन कितना सहज है! इसमें मेहनत है क्या? आपकी कमाई वा जमा खाता बढ़ने का सबसे सहज साधन है – बिन्दी लगाते जाओ और बढ़ाते जाओ। आप भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में भी बीती को बिन्दी लगाना। तो कमाई का आधार है बिन्दी लगाना। और कोई मात्रा है ही नहीं। क्या, क्यों, कैसे – ये क्वेश्चन मार्क की मात्रा, आश्चर्य की मात्रा, किसी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल बन गये। तो ‘कैसे’ शब्द ‘ऐसे’ में बदल गया। बदल गया या अभी भी ‘कैसे-कैसे’ कहते हो? ‘पता नहीं’ ये शब्द संकल्प में भी बदल गया? त्रिकालदर्शी ये स्वप्न में भी नहीं सोच सकते तो मुख से तो बोलने का सवाल ही नहीं है। संगम पर सारा खेल ही तीन बिन्दियों का है। सबसे सहज बिन्दी होती या क्वेश्चन मार्क सहज है? बिन्दी सहज है ना? बिन्दी लगाने में कितना टाइम लगता? सेकेण्ड से भी कम। बिन्दी लगाना आता है कि कलम खिसक जाती है? कई बार बिन्दी के बजाय कलम भी लम्बी लकीर खींच लेती है। बिन्दी लगाने से एक सेकेण्ड में आपके कितने ख़ज़ाने बच जाते हैं। ख़ज़ानों की लिस्ट तो जानते हो ना? अगर बिन्दी के बजाय और कोई मात्रा लगाते हो वा लग जाती है, तो सोचो ज्ञान का ख़ज़ाना गया, शक्तियों का ख़ज़ाना गया, गुणों का ख़ज़ाना गया, संकल्प का ख़ज़ाना गया, एनर्जी गई, श्वांस सफल के बजाय असफलता में गया, समय गया! कितना गया? लम्बी लिस्ट हो गई ना? तो ये कभी भी नहीं सोचो कि एक-दो सेकेण्ड ही तो गया। लेकिन एक सेकेण्ड में गँवाया कितना? एक सेकेण्ड भी कितना भारी हो गया? हर समय अपने जमा का खाता बढ़ाते चलो। कमाया क्या और गँवाया क्या? इन सभी ख़ज़ानों में से कितने ख़ज़ाने गँवाये? बापदादा भी बच्चों के जमा के खाते चेक करते रहते हैं। जब खाता देखते हैं तो मुस्कराते रहते हैं। क्या देखते होंगे जो मुस्कराते हैं? अमृतवेले मिलन भी मनाते, रूहरिहान भी करते, वायदे भी बहुत अच्छे करते कि ये करेंगे, ये करेंगे, बहुत अच्छी-अच्छी बातें करते हैं लेकिन चलते-चलते सारे दिन में कोई न कोई ख़ज़ाना गँवा भी देते हैं। फिर आधार क्या बनाते हैं? बापदादा को भी अपनी अच्छी-अच्छी बातें सुनाने लगते हैं। अगर व्यर्थ संकल्प चला तो क्या ये जमा हुआ या गँवाया? तो फिर बातें क्या करते हैं? सिर्फ संकल्प में चला ना वो तो ठीक हो जायेगा, बाप को भी दिलासे दिलाते हैं कि ठीक हो जायेगा, पुरुषार्थी हैं ना, सम्पूर्ण तो नहीं हुए हैं, हो जायेगा…। तो बापदादा कहते हैं कि ये गा-गा के गीत सारे दिन में बहुत सुनते हैं लेकिन ये भी कब तक? क्या अंत में सम्पूर्ण होना है? कि बहुत काल के अभ्यास से बहुत काल का वर्सा पाना है? वर्सा अविनाशी चाहते हो? सम्पूर्ण वर्सा चाहते हो कि अधूरा चलेगा? और पुरुषार्थ में अधूरा पुरुषार्थ चलेगा? तो पुरुषार्थ के समय तो करेंगे, देखेंगे, बनेंगे, कर ही लेंगे, हो ही जायेगा… ये सोचते हो और प्राप्ति के समय गे-गे करेंगे? उसमें तो सम्पूर्ण प्राप्ति चाहिये, सम्पूर्ण वर्सा चाहिये। सभी लक्ष्मी-नारायण बनने में हाथ उठाते हो। मालूम भी है कि लक्ष्मी-नारायण की भी आठ गद्दियाँ चलेंगी लेकिन हाथ तो लक्ष्मी-नारायण में उठाते हो ना? तो लक्ष्मी-नारायण का अर्थ है नम्बरवन पास विद् ऑनर होना। बापदादा बच्चों की हिम्मत को देखकर खुश भी होते हैं। राम-सीता में कोई नहीं हाथ उठाता। हिम्मत अच्छी है और हिम्मत वाले को मदद भी मिलती है। सिर्फ पुरुषार्थ के समय भी जैसे बाप के आगे संकल्प करते हो वैसे ही ये बोल और कर्म में लाओ।
बापदादा ने देखा समय के ख़ज़ाने का महत्व जितना रखना चाहिये उतना कई बच्चे नहीं रखते हैं। एक दिन का भी चार्ट चेक करें तो मैजारिटी का समय वेस्ट के खाते में जाता दिखाई देता है। द्वापर काल से व्यर्थ सुनने, देखने और फिर सोचने की आदत न चाहते भी आकर्षित कर लेती है और इसी कारण समय का ख़ज़ाना वेस्ट के खाते में चला जाता है। पहले भी सुनाया कि सेकेण्ड का भी कितना महत्व है! दूसरी बात, मैजारिटी व्यर्थ बोल में भी समय वेस्ट करते हैं। एक घण्टे के अन्दर भी चेक करो कि जो भी बोल बोला, हर बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना है? बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती है। अगर हर बोल में शुभ भावना, श्रेष्ठ भावना नहीं है तो अवश्य माया की भावनायें हैं। वो तो अनेक हैं, ईर्ष्या, हषद, घृणा, ये भावनायें चाहे किसी भी परसेन्ट में समाई हुई होती है। कई बार बोल के टेप रिकॉर्ड बापदादा सुनते हैं। हर एक की ऑटोमेटिक टेप भरती जाती है और जिस घड़ी जिसकी भी सुनना चाहे वो सुन सकते हैं। हर बोल का सार नहीं होता। कई बार कहते भी हो मेरी भावना, मेरा भाव खराब नहीं था, ऐसे ही निकल गया वा बोल दिया लेकिन जिस बोल में आत्मिक भाव और शुभ भावना नहीं, वो किस खाते में जमा होगा? वेस्ट में हुआ ना? तो कमाई का खाता ज्यादा होगा या गँवाने का खाता ज्यादा होगा? ये तो गँवाया ना? तो बोल में भी गँवाने का खाता ज्यादा होता है। तो बोल को भी चेक करो। ऐसे ही बोल दिया ये भाषा बदली करो। समर्थ बोल का अर्थ ही है जिस बोल में किसी आत्मा को प्राप्ति का भाव वा सार हो। अगर सार नहीं है तो जमा का खाता तो नहीं होगा ना? जितना एक दिन में जमा कर सकते हो, तो बापदादा ने देखा जितने के हिसाब से उतना नहीं है। तो क्या करना पड़ेगा? लक्ष्मी-नारायण तो बनना ही है ना? कि नहीं बने तो भी हर्जा नहीं! पहले जन्म से लेकर श्रेष्ठ प्रालब्ध पानी है कि दूसरे-तीसरे जन्म से शुरू करेंगे? पहले जन्म में नहीं आओ, दूसरे-तीसरे में आओ, पसन्द है? नहीं पसन्द है ना? तो इतना जमा का खाता है? अगर खाता कम जमा होगा तो प्रालब्ध क्या खायेंगे? उतना ही खायेंगे जितना जमा किया है। तो आज बापदादा ने सभी के जमा के खाते देखे। दूसरों को समय का महत्व बहुत अच्छा सुनाते हो, संगमयुग की महिमा कितनी अच्छी करते हो! तो स्वयं भी सदा समय के महत्व को सामने रखो। समय के पहले अपने श्रेष्ठ भाग्य के आधार से प्राप्तियों का खाता फुल जमा करो।
संगमयुग के समय की विशेषता है कि तीनों रूप की प्राप्ति है। एक वर्से के रूप में, दूसरा पढ़ाई को सोर्स ऑफ इनकम कहते हैं तो पढ़ाई की प्राप्ति के आधार से और तीसरा है वरदान के रूप में। वर्सा भी है, इनकम भी है और वरदान भी है। प्राप्ति बहुत भारी है, बहुत बड़ी है! सिर्फ सम्भालने वाले बनो। वर्सा भी बेहद है, इनकम भी बेहद है और वरदान भी बेहद के हैं। कभी सोचा था कि रोज़ भगवान का वरदान मिलेगा? इतने वरदान किसी को भी, कभी भी नहीं मिल सकते। लेकिन आप तो कहते हो हमारा तो अधिकार है। वर्से पर भी, पढ़ाई पर भी और वरदान पर भी। छोटी बात नहीं है, बहुत बड़ी है! तीनों ही सम्बन्ध से तीनों के ऊपर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया ना? सभी फ़खुर से कहते हैं ना बाप मेरा है। ये कहते हो क्या कि मेरा नहीं, तेरा है? हमारे लिये बाप पढ़ाने आता है ये समझते हो ना? तो पढ़ाई पर अधिकार है ना? और वरदाता के पास वरदान है ही किसके लिये? हरेक सोचता है कि मेरे लिये ही वरदाता बाप है। तो तीनों पर अधिकार है। कहने में तो बहुत साधारण है इसीलिये तो दुनिया वाले हंसते हैं कि, हैं क्या और कहते क्या हैं? तो अधिकार को सदा स्मृति में रख कदम उठाओ। इमर्ज रूप में रखो, मर्ज रूप में नहीं। हैं तो ब्रह्माकुमार, हैं ही बाबा के… ऐसे नहीं। इमर्ज रुप में, मन में, बुद्धि में, कर्म में इमर्ज रखो। मन में ये संकल्प इमर्ज हो कि मैं ये हूँ, बुद्धि में स्मृति स्वरूप हो और कर्म में अधिकारी के निश्चय और नशे से हर कर्म हो। ऐसे नहीं, अमृतवेले तो इमर्ज रहता है फिर सारे दिन में मर्ज हो जाता है। नहीं, सदा इमर्ज रूप में रहे। तो जमा का खाता बढ़ाओ। तीव्र गति से बढ़ाना, ढीला-ढाला नहीं करना क्योंकि समय आप मास्टर रचयिता के लिये रुका हुआ है। अभी भी प्रकृति को ऑर्डर करें तो क्या नहीं कर सकती है? अगर पांचों ही तत्व हलचल मचाना शुरू कर दें तो क्या नहीं हो सकता और कितने में हो सकता? तो समय, प्रकृति और माया विदाई के लिये इन्तज़ार कर रही है। आप सम्पूर्णता की बधाइयाँ मनाओ तो वो विदाई लेकर ही जायेगी। माया भी देखती है अभी ये तैयार नहीं हैं तो चांस लेती रहती है। प्रकृति को ऑर्डर करें? पुरुष तैयार हैं? प्रकृति तो तैयार हो जायेगी। ऑर्डर करें? कि ज्ञान सरोवर तैयार हो पीछे ऑर्डर करें? ऐसे एवररेडी हो, कि रेडी हो? शक्तियाँ एवररेडी हैं? सम्पूर्ण हो गये? थोड़े को तो एवररेडी नहीं कहेंगे ना? ये सोचो, चेक करो कि अगर इस घड़ी भी महाविनाश हो जाये तो अपनी तस्वीर देखो नॉलेज के आइने में, कि मैं क्या बनूँगा? आइना तो सबके पास है ना? क्लीयर है ना? तो अपने तकदीर की तस्वीर देखो। बाप को क्या टाइम लगेगा? जब ब्रह्मा के लिये गायन है कि संकल्प से सृष्टि रच ली तो क्या संकल्प से विनाश नहीं हो सकता? बाप जानते हैं राजधानी चलनी है तो उसमें एक ब्रह्मा क्या करेगा? साथी चाहिये ना? तो ब्रह्मा बाप भी आप साथियों के लिये रुके हुए हैं। तो बाप बच्चों से प्रश्न करते हैं, बच्चे तो बाप से प्रश्न बहुत कर चुके हैं। अभी बाप बच्चों से प्रश्न करते हैं कि डेट फिक्स करो। सभी काम की डेट फिक्स करते हो ना? तो इसकी भी डेट फिक्स करो, इसका भी मुहूर्त होना है ना। ज्ञान सरोवर की भी डेट फिक्स है, हॉस्पिटल की भी डेट फिक्स है। इसकी डेट क्या है? ये किसको फिक्स करनी है? बाप को नहीं करनी है। ये बाप ने आप बच्चों के हाथ में दिया है। कोई काम तो आप भी करेंगे, कि सब बाप करेंगे? डेट फिक्स का प्रोग्राम बनाना। अच्छा!
(नये बच्चों को देखते हुए) देखो, आप नये-नये बच्चे जो आये हैं, आप से सबका कितना प्यार है? पहला चांस आप सबको ही देते हैं। सब खुश-राज़ी हैं? कितने पैर पृथ्वी मिली है? दो पैर या तीन पैर? (दो पैर) दो पैर में भी राज़ी तो हो, तकलीफ तो नहीं है ना? खाना-पीना तो अच्छा मिल रहा है ना? मेले में ऐसी पालना और कोई की हो ही नहीं सकती। मेले देखे हैं ना? ऐसा ब्रह्मा भोजन, ऐसा परमात्म परिवार कहाँ मिलता है? सर्दी लगती है? मौसम की भी मिठाई होती है। तो ये सर्दी भी मौसम की मिठाई है, मिठाई तो खानी चाहिये ना? सबको शालों की सौगात तो मिलती है ना? कोई मेले में ऐसी सौगात मिलती है या खाली होकर आते हो? अच्छा नयों की दिल पूरी हुई, मधुबन देख लिया? पहले स्वप्न में था, अभी साकार में हो गया। कितना भी स्थान बढ़ायेंगे लेकिन कम होना ही है, क्यों? सोचो, अभी 9 लाख जमा हुए हैं? पहले जन्म की संख्या ही तैयार नहीं हुई है। वो तो होनी है ना? कितने मकान बनायेंगे? कितने ज्ञान सरोवर बनायेंगे? सभी कहते हैं संख्या बढ़ाओ। जितना संख्या बढ़ायेंगे, उतनी संख्या दूसरे वर्ष और हो जायेगी तो क्या करेंगे? जितना मिले उतने में राज़ी रहो। मेला भी करना है ना? (तलहटी में ब्राह्मणों का विशाल संगठन होना है) ये तो मेले में आने नहीं हैं, ये तो आ गये। दूसरों के लिये इतना बड़ा मेला पसन्द है? दस हज़ार सोयेंगे! भीड़ नहीं हो जायेगी? ये तो समझते हैं हमको तो चांस मिलना नहीं है। इन्तज़ार की घड़ियाँ भी प्यारी होती हैं। एक साल के बाद जाना है ये इन्तज़ार होता है ना? तो इन्तज़ार में पुरुषार्थ कितना अच्छा चलता है! और जब होकर चले जायेंगे तो देख लिया, फिर क्या होगा? फिर अलबेलापन आयेगा? नहीं आयेगा? और आगे बढ़ेंगे? ये भी ड्रामा में जो विधि बनी है वो बहुत ही फायदे वाली है। एक साल में पक्के तो हो जाते हो ना? नहीं तो कच्चे-कच्चे आ जाते फिर युद्ध करनी पड़ती।
हर साल में आपके यहाँ (मधुबन में) इन्टरनेशनल मेले कितने लगते हैं? अभी भी ये मेला क्या है? इन्टरनेशनल है ना? देश-विदेश सब तरफ के हैं ना? दुनिया वाले तो सोचते हैं इन्टरनेशनल प्रोग्राम पांच साल में एक किया तो बहुत कर लिया। और मधुबन में कितने होते हैं, पता पड़ता है? इन्टरनेशनल मेला हो गया। और सब खुश! मज़ा आता है ना? लेकिन आना टर्न पर। अभी तो देखो दस हज़ार में भी टेन्ट तो मिलेगा ना? आखिर में ये सब साधन समाप्त हो जायेंगे। सारे आबू के पहाड़ों को सोने के स्थान बना लो तो कितने रह सकते हैं? अच्छा!
चारों ओर के हाइएस्ट और रिचेस्ट श्रेष्ठ आत्माओं को, हर ख़ज़ानों के मालिक सम्पन्न आत्माओं को, सदा स्वयं को एवररेडी बनाने वाले तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा समय, संकल्प, बोल द्वारा श्रेष्ठ कमाई का खाता जमा करने वाले अति समीप आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दादी जी से:- सब सहज चल रहा है ना? मेला चल रहा है या खेल चल रहा है? सन्तुष्टता का खेल चल रहा है। सन्तुष्ट करने वाले सन्तुष्ट करते हैं और सन्तुष्ट होने वाले सन्तुष्ट होते हैं। ये सन्तुष्टता का खेल सभी को प्यारा लगता है। और सब ठीक है? (तलहटी में दो टर्न का सोचा है) पहले लिस्ट देखो, पीछे दो बारी भी होगा तो कोई बात नहीं। बाप बच्चों की सब आशायें पूर्ण करता है। बाप को आने में तो कोई तकलीफ नहीं है ना। चाहे मधुबन, पाण्डव भवन में आये, चाहे तलहटी में आये, उनको आने में कोई तकलीफ नहीं है। तकलीफ तो बच्चों को है, लेकिन वो तकलीफ नहीं लगती। जब बच्चे हिम्मत रखते हैं कि हमारे लिये तकलीफ नहीं है, मनोरंजन है, तो बाप को तो तन में ही आना है ना, बस। संगम पर करना ही क्या है? मेला और खेला। सेवा है खेल। मेला मनाओ, सेवा का खेल करो, और क्या करना है? खाओ-पियो, ब्रह्मा भोजन खाओ। अच्छा।
वरदान:- | बाबा शब्द की डायमण्ड “की”(चाबी) द्वारा सर्व खजाने प्राप्त करने वाले परमात्म स्नेही भव जो परमात्म स्नेही बच्चे हैं उन्हें बापदादा एक डायमण्ड शब्द की बहुत बढ़िया सौगात देते हैं – वह शब्द है “बाबा”। इस चाबी को सदा साथ रखो तो सर्व खजानों की प्राप्ति हो जायेगी। इस चाबी की, की चेन है – सदा सर्व सम्बन्धों से स्मृति स्वरूप रहना। साथ-साथ प्रतिज्ञा के कंगन और सर्व गुणों के श्रृंगार से सजे सजाये रहो तब विश्व के आगे फरिश्ते रूप वा देव रूप में प्रख्यात होंगे। |
स्लोगन:- | बीती को पास करके, बापदादा के पास (समीप) रहो तो पास विद आनर बन जायेंगे। |
सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष योग अभ्यास के समय मास्टर सर्वशक्तिवान के शक्तिशाली स्वरूप में स्थित हो सर्व शक्तियों का महादान करें। दु:खियों की पुकार सुनें, उपकार करें।