20-08-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 07-11-95 मधुबन |
“बापदादा की विशेष पसन्दगी और ज्ञान का फाउण्डेशन – पवित्रता”
आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार के स्वरूप बच्चों से मिलने आये हैं। सभी बच्चों के अन्दर बाप का प्यार समाया हुआ है। प्यार सभी बच्चों को दूर से समीप ले आता है। भक्त आत्मा थे तो बाप से कितना दूर थे इसलिए चारों ओर ढूंढते रहते थे और अभी इतना समीप हो जो हर एक बच्चा निश्चय और फ़लक से कहते हैं कि मेरा बाबा मेरे साथ है। साथ है या ढूँढना पड़ता है – इस तरफ है, उस तरफ है? तो कितना समीप हो गया! कोई भी पूछे परमात्मा कहाँ है? तो क्या कहेंगे? मेरे साथ है। फ़लक से कहेंगे कि अब तो बाप भी मेरे बिना रह नहीं सकता। तो इतने समीप, साथी बन गये हो। आप भी एक सेकेण्ड भी बाप के बिना नहीं रह सकते हो। लेकिन जब माया आती है तब कौन साथ होता है? उस समय बाप अगर साथ है तो माया आ सकती है? लेकिन न चाहते भी बीच-बीच में बच्चे बाप से आंख मिचौनी का खेल कर देते हैं। बापदादा बच्चों का यह खेल भी देखते रहते हैं कि बच्चे एक तरफ कह रहे हैं मेरा बाबा, मेरा बाबा और दूसरे तरफ किनारा भी कर लेते हैं। अगर अभी यहाँ ऐसे किनारा करेंगे तो आपको देख नहीं सकेंगे ना। तो आप भी माया की तरफ ऐसे कर लेते हो। बाप को देखने की दृष्टि बन्द हो जाती है और माया को देखने की दृष्टि खुल जाती है। तो आंख मिचौनी खेल कभी-कभी खेलते हो? बाप फिर भी बच्चों के ऊपर रहमदिल बन माया से किसी भी ढंग से किनारा करा लेता है। वो बेहोश करती और बाप होश में लाता है कि तुम मेरे हो। बन्द आंख याद के जादू से खोल देते हैं।
बापदादा पूछते हैं कि सभी का प्यार कितने परसेन्ट में है? तो सभी कहते हैं – 100 परसेन्ट से भी ज्यादा है। पद्मगुणा प्यार है। ऐसा कहते हो ना? अच्छा जिसका पद्मगुणा से कम है, करोड़ है, लाख है, हज़ार है, सौ है, वो हाथ उठाओ। (कोई ने नहीं उठाया) अच्छा, सभी पक्के हैं! बापदादा फिर दूसरा क्वेश्चन करेंगे! फिर नहीं बदलना। अच्छा, ये तो बहुत खुशखबरी सुनाई कि पद्मगुणा प्यार है।
अभी बाप पूछते हैं कि प्यार का सबूत क्या होता है? (समान बनना) तो समान बने हो? (नहीं) फिर पद्मगुणा से तो कम हो गया। आप सभी कहेंगे कि अभी सम्पूर्ण बनने में थोड़ा सा टाइम पड़ा है इसलिए हो जायेंगे – ऐसे? लेकिन अगर प्यार वाला कहता है कि तुम प्यार के पीछे जान कुर्बान कर लो तो वो जान देने के लिए भी तैयार होते हैं। बापदादा जान तो लेते नहीं हैं क्योंकि जान से तो सेवा करनी है। लेकिन एक बात पर बापदादा को थोड़े समय के लिए आश्चर्य करना पड़ता है। आश्चर्य करना नहीं चाहिए, वो तो आपको भी कहते हैं, लेकिन बापदादा को आश्चर्य करना पड़ता है, पार्ट बजाते हैं। जान कुर्बान छोड़ो लेकिन प्यार की निशानी है न्योछावर होना, जो कहे वो करना। तो बाप सिर्फ एक बात में न्योछावर होना देखना चाहते हैं। बातें अनेक हैं, लेकिन बाप अनेक को नहीं लेते सिर्फ एक बात में न्योछावर होना है। उसके लिए हाथ उठा लेते हैं, प्रतिज्ञा भी कर लेते हैं लेकिन प्रतिज्ञा करने के बाद भी करते रहते हैं वो क्या? हर एक स्वयं समझते हैं कि मेरा बार-बार बाप से किनारा होने का मूल संस्कार या मूल कमज़ोरी क्या है। हर एक अपनी मूल कमज़ोरी को जानते हो ना? तो वो कमज़ोरी जानते हुए भी न्योछावर क्यों नहीं करते हो? 63 जन्म की साथी है इसीलिए उससे प्यार है?
प्यार का अर्थ ही है जो प्यार वाला पसन्द करे वो करना। अगर मानो प्यार करने वाला एक बात कहता है और वो दूसरा कुछ करते हैं तो क्या हो जाता है? प्यार होता है या झगड़ा होता है? उस समय प्यार कहेंगे कि अच्छी तरह से लाठी उठाकर एक-दो को लगायेंगे? तो बाप को क्या पसन्द है? बापदादा कहते हैं कि समान बनने में तो कई बातें हैं। ब्रह्मा बाप की विशेषताएं देखो और ब्रह्मा बाप समान ही बनना है तो कितनी बड़ी लिस्ट है! उसके लिए भी बापदादा कहते हैं चलो कोई बात नहीं। एक-दो बात कम है तो भी हर्जा नहीं। लेकिन जो मूल फाउण्डेशन है, जो ब्रह्मा बाप वा ज्ञान का आधार है वो क्या है? ब्रह्मा बाबा शिव बाप की विशेष पसन्दगी क्या है? (पवित्रता, अन्तर्मुखता, निश्चयबुद्धि, सच्चाई-सफाई)। वास्तव में फाउण्डेशन है – पवित्रता। लेकिन पवित्रता की परिभाषा बहुत गुह्य है। पवित्रता जहाँ होगी वहाँ निश्चय, सच्चाई-सफाई, ये सब आ जाता है। लेकिन बापदादा देखते हैं कि पवित्रता की गुह्य भाषा, पवित्रता का गुह्य रहस्य अभी बुद्धि में पूरा स्पष्ट नहीं है। व्यर्थ संकल्प चलना या चलाना, अपने अन्दर भी चलता है और दूसरों को भी चलाने के निमित्त बनते हैं। तो व्यर्थ संकल्प – क्या ये पवित्रता है? तो फिर संकल्प की पवित्रता का रहस्य सभी को प्रैक्टिकल में लाना चाहिए ना। वैसे देखा जाये तो पांचों ही विकार, चाहे काम हो, चाहे मोह हो, सबसे नम्बरवन है काम और लास्ट में है मोह। लेकिन कोई भी विकार जब आता है तो पहले संकल्प में आता है। व्यर्थ संकल्प क्रोध भी पैदा करता है तो काम अर्थात् व्यर्थ दृष्टि, किसी आत्मा के प्रति अगर व्यर्थ दृष्टि भी जाती है तो उस समय पवित्रता नहीं मानी जायेगी। तो यह व्यर्थ संकल्प बाप के प्यार के पीछे न्योछावर क्यों नहीं करते? कर सकते हो? (हाँ जी) हाँ जी कहना बहुत सहज है। लेकिन बापदादा के पास तो सबका चार्ट रहता है ना। अभी तक पांच ही विकारों के व्यर्थ संकल्प मैजारिटी के चलते हैं। फिर चाहे कोई भी विकार हो। ये क्यों, ये क्या, ऐसा होना नहीं चाहिए, ऐसा होना चाहिए… या कॉमन बात बापदादा सुनाते हैं कि ज्ञानी आत्माओं में या तो अपने गुण का, अपनी विशेषता का अभिमान आता है या तो जितना आगे बढ़ते हैं उतना अपनी किसी भी बात में कमी को देख करके, कमी अपने पुरुषार्थ की नहीं लेकिन नाम में, मान में, शान में, पूछने में, आगे आने में, सेन्टर इन्चार्ज बनाने में, सेवा में, विशेष पार्ट देने में – ये कमी, ये व्यर्थ संकल्प भी विशेष ज्ञानी आत्माओं के लिए बहुत नुकसान करता है। और आजकल ये दो ही विशेष व्यर्थ संकल्प का आधार है। तो आप जब सेवा पर जाओ तो एक दिन की दिनचर्या नोट करना और चेक करना कि एक दिन में इन दोनों में से चाहे अभिमान या दूसरे शब्दों में कहो अपमान – मेरे को कम क्यों, मेरा भी ये पद होना चाहिए, मेरे को भी आगे करना चाहिए, तो ये अपमान समझते हो ना। तो ये दो बातें अभिमान और अपमान – यही दो आजकल व्यर्थ संकल्प का कारण है। इन दोनों को अगर न्योछावर कर दिया तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं है। तो क्या न्योछावर करने की शक्ति है? अच्छा, कितने समय में? अभी आज नवम्बर है ना, नया साल आयेगा तो दो मास हो जायेगा ना! नये साल में वैसे भी नया खाता रखा जाता है, तो हर एक चाहे टीचर, चाहे विद्यार्थी हैं, चाहे महारथी हैं, चाहे प्यादा हैं। ऐसे नहीं कि ये तो महारथियों के लिए है, हम तो हैं ही छोटे! राज्य-भाग्य लेने के टाइम तो कोई नहीं कहेगा कि मैं छोटा हूँ, उस समय तो कहेंगे कि सेकेण्ड नारायण मुझे ही बना दो। तो हर एक को सिर्फ दो शब्द अपना समाचार देना है और उस पोस्ट के ऊपर विशेष ये लिखना – “अवस्था का पोतामेल”। तो वो पोस्ट अलग हो जायेगी। और अन्दर लिखना कि व्यर्थ संकल्प किस परसेन्टेज़ में न्योछावर हुए? 50 परसेन्ट या 100 परसेन्ट न्योछावर हुए? बस एक लाइन लिखना, लम्बा-चौड़ा नहीं लिखना। जो लम्बा-चौड़ा लिखेंगे उसको पहले ही फाड़ देंगे। तो तैयार हो? जोर से बोलो – हाँ जी या ना जी? जो समझते हैं कि इसमें हिम्मत चाहिए, टाइम भी चाहिए, तो अभी से हाथ उठा लो तो आपको पहले से ही छुट्टी है। कोई है या पीछे लिखेंगे, पुरुषार्थ तो बहुत किया लेकिन हुआ नहीं। ऐसे तो नहीं लिखेंगे? पक्के हैं? अच्छा।
बापदादा ने देखा कि प्यार मधुबन तक तो ले आता है। लेकिन इसी प्यार से पहुँचना कहाँ है? बाप समान बनना है ना! तो जैसे मधुबन में भागते-भागते आते हो ना, मेरा नाम जरूर लिखो, मेरा नाम जरूर लिखो। और नहीं लिखते तो टीचर को थोड़ी आंख भी दिखा देते हो। तो जैसे मधुबन के लिए प्यार में भागते हो, आते हो ऐसे ही पुरुषार्थ करो कि मेरा नाम बाप समान बनने में पहले हो। तो ये पवित्रता का फाउण्डेशन पक्का करो। ब्रह्मा बाप ने पवित्रता के कारण, एक नवीनता के कारण गालियाँ भी खाई। तो पवित्रता फाउण्डेशन है और फाउण्डेशन का ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना ये तो एक कॉमन बात है लेकिन अभी आगे बढ़े हो तो बचपन की स्टेज नहीं है, अभी तो वानप्रस्थ स्थिति में जाना है। मैं ब्रह्मचारी तो रहता हूँ, पवित्रता तो है ही, सिर्फ इसमें खुश नहीं हो जाओ। वैसे तो अभी दृष्टि-वृत्ति में पवित्रता को और भी अण्डरलाइन करो लेकिन मूल फाउण्डेशन है अपने संकल्प को शुद्ध बनाओ, ज्ञान स्वरूप बनाओ, शक्ति स्वरूप बनाओ। संकल्प में कमज़ोरी बहुत है। क्या करें, कर नहीं सकते हैं, पता नहीं क्या हो गया… क्या ये पवित्रता की शक्ति है? पवित्र आत्मा कहेगी – क्या करें, हो गया, हो जाता है, चाहते तो नहीं हैं लेकिन…? ये कौन सी आत्मा है? पवित्र आत्मा बोलती है कि कमज़ोर आत्मा बोलती है? त्रिकालदर्शी आत्मायें हो। जब क्यों, क्या कहते हो, तो बापदादा कहते हैं इन्हों को जिज्ञासु के आगे ले जाओ, उनको चित्र समझाते हैं कि 84 जन्मों को हम जानते हैं। समझाते हो 84 जन्म और करते हो अभी क्या और क्यों? जब जानते हो तो जानने वाला क्या, क्यों करेगा? वो जानता है कि ये इसलिए होता है। क्या का जवाब स्वयं ही बुद्धि में आयेगा कि माया के प्रभाव के परवश है। चाहे महारथी हो, चाहे प्यादा हो। अगर महारथी से भी ग़लती होती है तो उस समय वो महारथी नहीं है, परवश है। तो परवश वाला कहाँ भी लहर में लहरा जाता है लेकिन आप उस रूप में देखते हो कि ये महारथी होकर कर रहा है! उस समय महारथी नहीं, परवश है। समझा, नये साल में क्या करना है? व्यर्थ के समाप्ति का नया खाता। ठीक है? पक्का? कि कोई न कोई कारण बतायेंगे। अगर कारण होगा तो कोई नया प्लैन बतायेंगे। अभी नहीं बतायेंगे। अभी बतायेंगे तो आप कोई रीज़न निकाल लेंगे। कारण नहीं निवारण। समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप।
अभी प्रकृति भी थक गई है। प्रकृति की भी ताकत सारी खत्म हो गई है। तो प्रकृति भी आप प्रकृतिपति आत्माओं को अर्जी कर रही है कि अभी जल्दी करो। अभी देरी नहीं करो। अच्छा!
बापदादा को भी तन को चलाना पड़ता है। चले, नहीं चले, लेकिन चलाना तो पड़ता है क्योंकि बाप का बच्चों से प्यार है। तो इतने प्यार वाली आत्मायें आवें और बाप रुहरिहान नहीं करे तो कैसे होगा! तो जबरदस्ती भी चलाना ही पड़ता है। अच्छा, सभी खुश हैं? बाप मिला – सन्तुष्ट हैं ना?
चारों ओर के पद्मगुणा प्रेम स्वरूप आत्माओं को, सदा स्वयं को निर्विकल्प बनाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा बाप और निर्विघ्न सेवा के लगन में मग्न रहने वाली आत्माओं को, सदा बाप के स्नेह में न्योछावर होने वाले सभी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
अच्छा! सब खुश! कोई नाराज़ तो नहीं हुआ – मैं नहीं मिला? राज़ को जानने वाले कभी नाराज़ नहीं होते।
दादियों से:- देखो आप आदि रत्नों में सभी का प्यार के साथ-साथ शुद्ध मोह बढ़ता जाता है। सभी देखते हैं कि आदि रत्न ठीक हैं तो सब ठीक हैं। तो आप लोगों में सबका शुद्ध मोह बढ़ गया है। बापदादा इन दोनों (चन्द्रमणी दादी, रतनमोहनी दादी) के ऊपर भी खुश हैं। ज्ञान सरोवर की जिम्मेवारी सम्भाली है। जिम्मेवारी तो क्या, खेल है। भारीपन है क्या? खेल हल्का होता है ना? तो जिम्मेवारी क्या है? खेल है। तो बापदादा खुश है कि समय पर सहयोगी बने हैं और आदि से सहयोगी रहे हैं। आदि से हाँ जी करने वाले हैं – यही साकार बाप का आप सबको विशेष वरदान है। ब्रह्मा बाबा को ‘ना’ शब्द कभी अच्छा नहीं लगता। ये तो मालूम है, अनुभवी हैं।
ईशू दादी से:- इसने आदि से अब तक बहुत अच्छा पार्ट बजाया है। और आपकी (दादी की) तो विशेष सहयोगी है। कोई भी बात में सुनने-सुनाने वाली बहुत अच्छी है क्योंकि गम्भीर रहती है। ये गम्भीरता का गुण बहुत आगे बढ़ाता है। कोई भी बात बोल दी ना, समझो अच्छा किया और बोल दिया तो आधा खत्म हो जाता है, आधा फल खत्म हो गया, आधा जमा हो गया। और जो गम्भीर होता है उसका फुल जमा होता है। कहते हैं ना – देखो जगदम्बा गम्भीर रही, चाहे सेवा स्थूल में आप लोगों से कम की, आप लोग ज्यादा कर रहे हो लेकिन ये गम्भीरता के गुण ने फुल खाता जमा किया है। कट नहीं हुआ है। कई करते बहुत हैं लेकिन आधा, पौना कट हो जाता है। करते हैं, कोई बात हुई तो पूरा कट हो जाता है या थोड़ी बात भी हुई तो पौना कट हो जाता है। ऐसे ही अपना वर्णन किया तो आधा कट हो जाता है। बाकी बचा क्या? तो जब जगदम्बा की विशेषता – जमा का खाता ज्यादा है। गम्भीरता की देवी है। ऐसे और सभी को गम्भीर होना चाहिए, चाहे मधुबन में रहते हैं, चाहे सेवाकेन्द्र में रहते हैं लेकिन बापदादा सभी को कहते हैं कि गम्भीरता से अपनी मार्क्स इकट्ठी करो, वर्णन करने से खत्म हो जाती हैं। चाहे अच्छा वर्णन करते हो, चाहे बुरा। अच्छा अपना अभिमान और बुरा किसका अपमान कराता है। तो हर एक गम्भीरता की देवी और गम्भीरता का देवता दिखाई दे। अभी गम्भीरता की बहुत-बहुत आवश्यकता है। अभी बोलने की आदत बहुत हो गई है क्योंकि भाषण करते हैं ना तो जो भी आयेगा वो बोल देंगे। लेकिन प्रभाव जितना गम्भीरता का पड़ता है इतना वाणी का नहीं पड़ता। अच्छा।
वरदान:- | रूहानी गुलाब बन चारों ओर रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले आकषर्ण मूर्त भव सदा स्मृति रहे कि हम भगवान के बगीचे के रूहानी गुलाब हैं। रूहानी गुलाब अर्थात् कभी भी रूहानियत से दूर होने वाले नहीं। जैसे फूलों में खुशबू समाई हुई होती है, ऐसे आप सबमें रूहानियत की खुशबू ऐसी समाई हुई हो जो ऑटोमेटिक चारों ओर फैलती रहे और सबको अपनी ओर आकर्षित करती रहे। अभी आप ऐसे खुशबूदार वा आकर्षण मूर्त बनते हो तब आपके यादगार मन्दिर में भी अगरबत्ती आदि से खुशबू करते हैं। |
स्लोगन:- | परोपकारी वह है जो स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन करने के निमित्त बनते हैं। |
सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सायं 6.30 से 7.30 बजे तक विशेष योग अभ्यास में अनुभव करें कि बापदादा के मस्तक से शक्तिशाली किरणें निकलकर मेरी भृकुटी पर आ रही हैं और वही किरणें मेरे द्वारा अपने निजी संस्कारों का परिवर्तन करते हुए संसार परिवर्तन का कार्य कर रही हैं।