murli 2-05-23

02-05-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – आत्म-अभिमानी भव, एक बाप की श्रीमत पर चलते रहो, तुम्हारा ऊंच कुल है, तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनो”
प्रश्नः-शिव शक्ति पाण्डव सेना प्रति बाप का डायरेक्शन कौन-सा है?
उत्तर:-बाप का डायरेक्शन है – श्रीमत पर चल तुम इस भारत का बेड़ा पार करो। सर्व धर्मान् परित्यज… मामेकम् याद करो। पावन बनकर औरों को पावन बनाओ। तुम शिव शक्ति, पाण्डव सेना पवित्र बन अपने तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करो। तुम श्रीमत पर नानवायोलेन्स (अहिंसा) के बल से भारत की सच्ची सेवा करो।
गीत:-ओम् नमो शिवाए…. Audio Player

ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। यह है निराकार शिव परमपिता परमात्मा की महिमा। उनको भगवान कहा जाता है। भगवान एक ही होता है। भारतवासियों के भगवान अनेक हैं। कुत्ता, बिल्ली, पत्थर, भित्तर सबको भगवान मान लेते हैं और खुद को भी भगवान समझते हैं इसलिए भगवान कहते हैं यह सब नास्तिक हैं। परमपिता परमात्मा की तो बहुत महिमा है, पतित सृष्टि को पावन करते हैं अथवा कौड़ी जैसे कंगाल भारत को हीरे जैसा सिरताज बनाते हैं। 5 हज़ार वर्ष की बात है जबकि भारत डबल सिरताज था। यह कौन समझाते हैं? वही परमपिता परमात्मा शिव, जिसको ज्ञान का सागर भी कहते हैं। महिमा रचता बाप की है, बाकी तो सब हैं रचना। भारतवासी कहते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे। भारत को सुख घनेरे थे, अब नहीं हैं। अब है आसुरी रावण सम्प्रदाय। हरेक नर-नारी में 5 विकार व्यापक हैं, इसमें राजा-रानी, साधू-संन्यासी आदि सब आ जाते हैं। कोई न कोई विकार है जरूर। यह है ही पतित दुनिया, पतित भारत। सतयुग में भारत पावन था। पवित्र गृहस्थ धर्म, पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। अभी है अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग। भारत डबल सिरताज था, अथाह धन था, हीरे-जवाहरों के महल थे, बाद में मुसलमानों आदि ने लूटकर अपने मस्ज़िदों, कब्रों आदि में हीरे-जवाहर लगाये हैं। भारतवासी तो बिल्कुल ही कंगाल बन गये हैं। मेरे को भूलने कारण नास्तिक बन पड़े हैं। मैं तो भारतवासियों को देवता बनाता हूँ। महिमा भी है कि तुम मात-पिता… तो जरूर बाप से ही स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। उनसे स्वर्ग के सुख घनेरे मिल सकते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ – राजयोग और ज्ञान सिखला करके। परमपिता परमात्मा आत्माओं को आकर पढ़ाते हैं, कहते हैं आत्म-अभिमानी भव। ऐसे नहीं, परमात्म-अभिमानी भव। यह रांग है। ईश्वर सर्वव्यापी है नहीं। बाप है शिव और बच्चे हैं सालिग्राम। दोनों ही परमधाम में रहते हैं। तो हम सब आत्मा ठहरे। संन्यासी फिर कह देते ब्रह्मो-हम्, ब्रह्म ही ब्रह्म है। बाकी सब झूठ है। हम भी ब्रह्म हैं। अब श्री श्री 108 जगत गुरू, पतित-पावन तो एक है, उनको ही सतगुरू कहा जाता है। जो पतित दुनिया में रहने वाले हैं उनको पतित-पावन कैसे कहेंगे? वह खुद ही पतित हैं तो औरों को पावन कैसे करेंगे। जो पहले पवित्र हैं उनको भी शादी कराए और ही पतित बना देते हैं।

अब शिवबाबा कहते हैं – बच्चे, आत्म-अभिमानी भव। अपने को आत्मा निश्चय करो। बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। श्रीकृष्ण को भगवान नहीं कहा जा सकता। वह है दैवी गुणों वाला मनुष्य। सतयुग का प्रिन्स था। परमपिता परमात्मा की महिमा बहुत भारी है। खुद आत्माओं को कहते हैं – हे आत्मायें, तुम जब सतयुग में थी तो कितनी पावन थी, अब पतित बन पड़ी हो। अब अगर तुमको फिर से सुखी बनना है तो श्रीमत पर चलो। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत है ही भगवान की। मनुष्य तो एक तऱफ कहते – भगवान नाम-रूप से न्यारा है फिर कह देते – वह सर्व-व्यापी है, इसको कहा जाता है धर्म ग्लानि। कोई को पता नहीं कि भारत में आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। वह किसने स्थापन किया – कुछ नॉलेज नहीं। बाप और बाप की रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं। मनुष्य ही जानेंगे, जानवर तो नहीं जानेंगे। शिवबाबा को भी बाबा कहा जाता है। फिर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण कुल की स्थापना होती है। कोई भी मनुष्य नहीं जानते कि परमपिता परमात्मा हमको कैसे रचते हैं और फिर कैसे पालना कराते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा है मनुष्य सृष्टि को रचने वाला, फिर परमपिता परमात्मा को भी क्रियेटर कहते हैं। वह आत्माओं का बाप है। तो सब हो गये शिव की सन्तान ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। वर्सा उस मात-पिता से मिलता है। बाबा कहते हैं मैंने तुमको जन्म दिया तो याद फिर भी मुझे करना है और वर्से को भी याद करो। मौत सामने है। मरने समय कहते हैं भगवान को याद करो। अब भगवान खुद कहते हैं – बच्चे, तुम मेरी श्रीमत पर चलो। एक है यादव मत, दूसरी है कौरव मत। यह है पाण्डव मत। पाण्डवों को मिलती है ईश्वरीय मत। गाया भी हुआ है विनाश काले विप्रीत बुद्धि। पाण्डवों की है प्रीत बुद्धि।

तुम जानते हो – यह है झूठ खण्ड। पाँच हज़ार वर्ष पहले था सचखण्ड। देवतायें राज्य करते थे। भारतवासी सारे विश्व के मालिक थे, जो अभी नहीं हैं। अभी तुम फिर से विश्व के मालिक बन रहे हो। सतयुग में वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी का राज्य था, अभी वह नहीं है। बाप कहते हैं फिर से मैं स्थापन कर रहा हूँ। बाकी सब धर्म खलास हो जायेंगे। अब तुम पतित-पावन परमात्मा को याद करो, अपने को आत्मा समझो। पाप-आत्मा, पुण्य-आत्मा कहा जाता है। भारत में सब पुण्य-आत्मायें थे, अभी पाप-आत्मायें हैं। पुण्य-परमात्मा नहीं कहेंगे। तुम बच्चों के अब 84 जन्म पूरे हुए हैं। अब मैं आया हूँ बच्चों को वापस ले जाने, मैं तुम्हारा बेहद का बाप टीचर भी हूँ। तुमको बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी का राज़ बतलाकर स्वदर्शन चक्रधारी बनाता हूँ। देवतायें स्वदर्शन चक्रधारी नहीं होते। ब्राह्मणों का है सबसे ऊंच कुल। ब्राह्मण चोटी हैं ना। प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान जो फिर देवता बनने वाले हैं। बाप कहते हैं तुम पहले ब्राह्मण थे, फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने। पुनर्जन्म लेते आये। अब फिर तुमको शिक्षा दे देवी-देवता बनाता हूँ। इस समय भारतवासी बिल्कुल कब्रदाखिल हैं और अपने को बड़े-बड़े टाइटिल देते रहते हैं – सर्वोदया लीडर। सर्व अर्थात् सारी सृष्टि के मनुष्य मात्र पर दया, सो तो मनुष्य कर न सके। नॉलेजफुल, ब्लिसफुल एक ही बाप को कहा जाता है। अब बाबा कहते हैं सर्व धर्मान् परित्यज…. मामेकम् याद करो तो योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। ऐसे नहीं, पतित-पावनी गंगा है। पतित-पावन एक ही बाप है। यह है शिव शक्ति पाण्डव सेना, जो पवित्र रहते हैं। यह भारत की मातायें शिव शक्ति पाण्डव सेना हैं जो तन-मन-धन से इस भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। एक तऱफ है नानवायोलेन्स, दूसरे तरफ है वायोलेन्स। वह क्या करते हैं और तुम क्या करते हो? यादगार खड़ा है, 5 हज़ार वर्ष पहले जो सेवा की थी उनका यादगार है। तुम सर्विस करते हो। यह नॉलेज है, इसमें अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं। तुम शिव के मन्दिर में जाते हो परन्तु जानते नहीं कि शिवबाबा तो स्वर्ग का रचयिता है। तो उनसे जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलना चाहिए। परमात्मा हमेशा बच्चों को सुख का वर्सा देते हैं इसलिए सब उनको याद करते हैं – पतित-पावन आओ। हे बाबा, हमको आकर फिर से स्वर्ग का राज्य-भाग्य दो, आकर जीवनमुक्ति दो। सद्गति दाता भगवान ही है। पावन बनकर औरों को पावन बनाने वाले तुम शिवशक्ति पाण्डव सेना हो। तुम श्रीमत पर भारत का बेड़ा पार करने वाले हो। तुम्हें बाप की श्रीमत मिली हुई है – सर्व धर्मान् परित्यज.. मामेकम् याद करो। वह बाप है सत्-चित-ज्ञान का सागर, सुख का सागर..। वह आते हैं बच्चों को पढ़ाने। बाप आत्माओं से बात करते हैं। आत्मायें सुनती हैं। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप कहते हैं तुम हो सिकीलधे बहुतकाल से बिछुड़े हुए…. परमधाम से पहले कौन सी आत्मायें आती हैं? जिनको अन्त तक यहाँ रहना है। स्वर्ग के आदि में यह देवी-देवतायें थे। उन्होंने ही पूरे 84 जन्म भोगे हैं। जब परमपिता परमात्मा आते हैं तो बहुत काल से जो बिछुड़ी हुई आत्मायें हैं वही पहले-पहले आकर बाप से वर्सा लेती हैं। बच्चे, गृहस्थ व्यवहार में रहते बाबा को याद करो, कमल फूल समान रहो, श्रीमत पर फिर से ऐसा श्रेष्ठ बनो। आधाकल्प तुमने बहुत सुख भोगा था फिर माया रावण ने आसुरी मत से तुमको गिराया। जो सूर्यवंशी थे वही चन्द्रवंशी बने…. अब फिर शूद्र से ब्राह्मण बने हो। तुम हो गुप्त। तुमको कोई पहचानते नहीं। बेहद का बापू जी कहता है मैं सारे सृष्टि का बापू जी हूँ, स्वर्ग तो मैं ही स्थापन करूँगा। हद के बापू जी ने फॉरेनर्स को भगाया। यह फिर सबको इस सृष्टि से भगाकर ले जाते हैं। अनेक धर्मों का विनाश, एक धर्म की स्थापना हो रही है। इन सब बातों को समझेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले समझा होगा। जो सूर्यवंशी राज्य में आते हैं वही फिर आकर राज्य करेंगे। यह बड़ा झाड़ है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लग रहा है। कलियुग है काँटों का जंगल और सतयुग है फूलों का बगीचा। जो एक दो को सुख देते हैं उनको कहा जाता है दैवी सम्प्रदाय। जो दु:ख देते हैं उनको कहा जाता है आसुरी सम्प्रदाय। शिवबाबा आकर शिवालय स्थापन करते हैं। तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। भारत में पहले दैवी सम्प्रदाय थे फिर आसुरी सम्प्रदाय अथवा शूद्र सम्प्रदाय बने हैं। अब फिर तुम दैवी सम्प्रदाय बनेंगे। अब तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय बने हो फिर देवता बनेंगे। इस चक्र को अच्छी रीति समझना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। वन्दे मातरम्। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सबको सुख दे दैवी सम्प्रदाय का बनना है। आसुरी सम्प्रदाय वाला कोई भी कर्तव्य नहीं करना है। शिवालय की स्थापना में मददगार बनना है।

2) आत्म-अभिमानी होकर रहना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बाप को ही याद करना है। योग अग्नि से अपने विकर्म दग्ध करने हैं।

वरदान:-अटेन्शन और अभ्यास के निज़ी संस्कार द्वारा स्व और सर्व की सेवा में सफलतामूर्त भव
ब्राह्मण आत्माओं का निज़ी संस्कार “अटेन्शन और अभ्यास” है। इसलिए कभी अटेन्शन का भी टेन्शन नहीं रखना। सदा स्व सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ करो। जो स्व सेवा छोड़ पर सेवा में लगे रहते हैं उन्हें सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए दोनों का बैलेन्स रख आगे बढ़ो। कमजोर नहीं बनो। अनेक बार के निमित्त बने हुए विजयी आत्मा हो, विजयी आत्मा के लिए कोई मेहनत नहीं, मुश्किल नहीं।
स्लोगन:-ज्ञानयुक्त रहमदिल बनो तो कमजोरियों से दिल का वैराग्य आयेगा।