19-03-23 | प्रात:मुरली ओम् शान्ति ”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 25-01-94 मधुबन |
ब्राह्मणों की नेचर विशेषता की नेचर है – इसे नेचुरल स्मृति स्वरूप बनाओ
आज बापदादा अपने सर्व विश्व की विशेष आत्माओं को देख रहे हैं। ड्रामानुसार आप आत्माओं का कितना विशेष पार्ट नूँधा हुआ है। आज बापदादा हर एक बच्चे की विशेषताओं को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चे को देख ‘वाह बच्चे’ यह स्नेह का गीत दिल में बज रहा था। साथ-साथ यह भी देख रहे थे कि बच्चों के दिल से ये ‘वाह-वाह’ का गीत सदा निकलता है? हर कर्म में, हर कदम में, हर संकल्प में ये श्रेष्ठ अनुभव होता है वा कभी-कभी होता है? साधारण जीवन से विशेष जीवन सदा स्वत: रहती है? वा स्मृति लाने से अनुभव होता है? जब जीवन है तो जीवन का अर्थ ही है सदा और स्वत: रहे। स्मृति में लाया तो अनुभव किया और स्मृति में नहीं लाया तो विशेषता के बजाय साधारण जीवन अनुभव हो – यह आप विशेष आत्माओं की विशेषता नहीं है। ब्राह्मण जन्म ही विशेष जन्म है। जिसका जन्म ही विशेष है उसका जीवन क्या होगा? विशेष होगा या साधारण? ब्राह्मण जन्म भी श्रेष्ठ, ब्राह्मण धर्म भी श्रेष्ठ और ब्राह्मण कर्म भी श्रेष्ठ क्योंकि ब्राह्मण जन्म दाता, ब्राह्मण धर्म स्थापक, सर्वश्रेष्ठ परम आत्मा और आदि आत्मा ब्रह्मा बाप है। तो जैसे रचता सर्वश्रेष्ठ तो रचना भी सर्वश्रेष्ठ अर्थात् विशेष है। ब्राह्मणों का कर्म विशेष क्यों है? क्योंकि कर्म में फ़ालो करने के लिए आप सबके सामने आदि आत्मा ब्रह्मा बाप सैम्पल है। कर्म में फ़ालो साकार ब्रह्मा बाप को करते हो इसलिये भाग्य विधाता अर्थात् कर्म द्वारा भाग्य की रेखा श्रेष्ठ बनाने वाला ब्रह्मा गाया हुआ है। भाग्य की रेखा का कलम कर्म है। तो श्रेष्ठ कर्म का सहज सिम्बल ब्रह्मा बाप है इसलिये आप सभी विशेष पुरुषार्थ का शब्द यही वर्णन करते हो कि बाप समान बनना है।
इस अव्यक्त वर्ष में सभी का लक्ष्य क्या रहा? निराकारी स्थिति में निराकार बाप समान अशरीरी स्थिति का अनुभव किया? साकार कर्म में ब्रह्मा बाप समान बनने का नम्बरवार अनुभव किया? तो विशेष जीवन का आधार विशेष जन्म, धर्म और श्रेष्ठ कर्म है। जैसे लौकिक जीवन में भी अगर किसी आत्मा का जन्म विशेष राज परिवार में हो, राजकुमार हो वा राजकुमारी हो तो यह विशेषता जन्म की होने के कारण हर समय सदा और स्वत: रहती है वा बार-बार स्मृति में लाते हैं कि मैं राजकुमारी हूँ? सहज याद होती है ना। पुरुषार्थ करते हैं क्या? चाहे कर्म अपनी रुचि के कारण कितना भी साधारण हो लेकिन अपने जन्म की विशेषता भूल जाते हैं क्या? नेचुरल और नेचर बन जाती है। तो आप ब्राह्मण आत्माओं की नेचर क्या है? विशेष है या साधारण है? अभी भी कोई-कोई बच्चे जब कोई साधारण कर्म कर लेते हैं तो बापदादा के आगे अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिये क्या कहते हैं? मैं चाहता नहीं था वा चाहती नहीं थी कि ये कर्म करूँ लेकिन मेरी नेचर है इसलिये हो गया। वैसे ये कहना वा सोचना यथार्थ है? मैं कौन? ब्राह्मण जीवन वाले हैं ना। तो ब्राह्मण जीवन वाली आत्मा ये सोच सकती है कि ये मेरी नेचर है? यह कहना राइट है? तो उस समय क्यों बोलते हैं? उस समय ब्राह्मण नहीं बोलता, माया बोलती है। तो जैसे ये साधारण नेचर वा मायावी नेचर नेचुरल काम कर लेती है ना, इसलिये कहते हैं चाहते नहीं थे लेकिन हो गया। तो ब्राह्मण नेचर अर्थात् विशेषता की नेचर भी नेचुरल होनी चाहिये। नेचुरल चीज़ सदा रह सकती है। तो विशेष जीवन की स्मृति नेचर के रूप में नेचुरल होनी चाहिये वा कभी भूलना, कभी याद होना? तो सदा स्मृति स्वरूप में रहो। स्मृति लाने वाले नहीं, स्मृति स्वरूप इसलिये बापदादा देख रहे थे अव्यक्त वर्ष समय प्रमाण समाप्त हुआ लेकिन बापदादा समान स्वयं को सम्पन्न बनाया? इस अव्यक्त वर्ष का विशेष लक्ष्य रखा कि अव्यक्त अर्थात् फ़रिश्ता स्वरूप बनना और बनाना है। सभी ने यही लक्ष्य रखा था ना, फिर रिजल्ट क्या निकली? अपने आपको चेक किया? ‘़फरिश्ता भव’ का वरदान भी वरदाता से मिला तो वरदान और लक्ष्य – दोनों की स्मृति से कहाँ तक सफलता अनुभव की है, ये सूक्ष्म चेकिंग स्वयं की की? वा ये सोचा कि अव्यक्त वर्ष पूरा हुआ, यथाशक्ति जितना भी अनुभव किया उतना ही ड्रामानुसार ठीक रहा? वर्ष परिवर्तन के साथ-साथ स्व परिवर्तन की गति क्या रही – इस विधि से चेक किया? जैसे वर्ष समाप्त हुआ वैसे स्वयं लक्ष्य और लक्षण में सम्पन्न बनें वा ये सोचते हो कि इस वर्ष में और बन जायेंगे? समय और स्वयं की गति समान रही? वैसे तो समय से भी स्वयं की गति तीव्र होनी है क्योंकि समाप्ति के समय को लाने वाली आप विशेष आत्मायें निमित्त हो। तीव्र गति से वर्ष तो सम्पन्न हो गया। मालूम हुआ वर्ष कैसे पूरा हो गया? तो चेक करो मुझ विशेष आत्मा की परिवर्तन की गति तीव्र रही वा कभी तीव्र, कभी मध्यम रही?
फ़रिश्ता अर्थात् जिसका पुराने संस्कार और संसार से रिश्ता नहीं। तो चेक करो पुराने संसार की कोई भी आकर्षण, चाहे सम्बन्ध रूप में, चाहे अपने देह की तरफ आकर्षण वा किसी देहधारी व्यक्ति के तरफ आकर्षण, कोई वस्तु की तरफ आकर्षण कितने परसेन्ट में रही? ऐसे ही पुराने संस्कार की आकर्षण, चाहे संकल्प रूप में, वृत्ति के रूप में, वाणी के रूप में, सम्बन्ध-सम्पर्क अर्थात् कर्म के रूप में कितनी परसेन्ट रही? फ़रिश्ता अर्थात् डबल लाइट। तो निजी लाइट स्वरूप स्मृति स्वरूप में कहाँ तक रहा? साथ-साथ लाइट अर्थात् हल्कापन, स्व के परिवर्तन के पुरुषार्थ में कहाँ तक लाइट अर्थात् हल्के रहे? मन अर्थात् संकल्प शक्ति में व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने में अर्थात् व्यर्थ के बोझ को हल्का करने में कहाँ तक सफल रहे? इसी प्रकार व्यर्थ समय, व्यर्थ संग, व्यर्थ वातावरण – इस सबमें कहाँ तक परिवर्तन करने में हल्के रहे? ब्राह्मण परिवार के सम्बन्ध में, सेवा के सम्बन्ध में कहाँ तक हल्के रहे? इसको कहा जाता है फ़रिश्तापन के तीव्र गति की स्थिति। इस विधि से चेक करो और भविष्य के लिये चेन्ज अर्थात् परिवर्तन करो। अपने ब्राह्मण जन्म की विशेषता को नेचरल नेचर बनाना इसको ही सहज पुरुषार्थ कहा जाता है। सिर्फ एक विशेष आत्मा हूँ – इस स्मृति स्वरूप में स्थित हो जाओ तो बाप समान बनना अति सहज अनुभव करेंगे क्योंकि स्मृति स्वरूप सो समर्थी स्वरूप बन जाते हैं। वर्ष तो पूरा हुआ। बापदादा रिजल्ट तो देखेंगे ना। तो रिजल्ट में यथाशक्ति मैजारिटी हैं और सदा शक्तिशाली, यथाशक्ति के मैजारिटी में मैनारिटी हैं।
स्मृति दिवस भी बहुत स्नेह से मनाया। अब विशेष जैसे स्नेह से मनाया, वैसे स्नेह का सबूत बाप समान स्मृति स्वरूप बनना ही है। सुना रिजल्ट? आगे क्या करना है? यथाशक्ति या सदा शक्ति स्वरूप? तो देखेंगे इस वर्ष में मैजारिटी सदा शक्तिशाली का सबूत कहाँ तक देते हैं? टीचर्स क्या समझती हो? किस लाइन में आयेंगे? सदा शक्तिशाली! सबका टी.वी. में फोटो निकल रहा है। क्या भी हो जाये, कैसी भी परिस्थिति बन जाये लेकिन सदा शक्तिशाली। नाम नोट होते हैं ना कौन-कौन किस ग्रुप में आये? अभी टीचर्स का सम्मेलन होने वाला है ना। तब तक की रिजल्ट सभी टीचर्स की क्या होगी? जिसको करना होता है वो कब को नहीं सोचता है। दृढ़ संकल्प का अर्थ है अब। साधारण संकल्प का अर्थ है कब हो जायेगा! तो ‘कब’ वाले हो या ‘अब’ वाले हो? शक्ति सेना बहुत बड़ी सेना है। ‘कब’ वाली हो या ‘अब’ वाली हो? पाण्डव क्या समझते हो? देखो नाम सबके नोट हैं। अभी नाम नहीं सुनाते हैं आखिर वो समय भी आ जायेगा जो नाम सुनायेंगे। समझा!
सबसे ज्यादा संख्या किस ज़ोन की आई है? देखेंगे पंजाब, इन्दौर क्या कमाल दिखाते हैं? टीचर्स भी ज्यादा आती हैं, संख्या ज्यादा तो टीचर्स भी ज्यादा होती। पंजाब वाले नम्बरवन लेंगे या सेकेण्ड? इन्दौर भी नम्बरवन लेंगे? और कर्नाटक क्या करेंगे? कौन-सा नाटक दिखायेंगे? कर-नाटक, तो हीरो नाटक दिखाना, ऐसा-वैसा नहीं दिखाना। और महाराष्ट्र तो महान् ही बनेंगे ना? और यू.पी. को क्या कहते हैं? यू.पी. में नदियां हैं अर्थात् यू.पी. पतित को पावन करने वाली है। पावन बनने-बनाने में नम्बरवन। तो यू.पी. वाले भी नम्बरवन बनेंगे। इस समय तो कोई भी नम्बर टू नहीं कहेंगे। राजस्थान तो है ही लक्की, जो राजस्थान में ही चरित्र भूमि है। हेड क्वार्टर राजस्थान में हैं ना। तो जहाँ हेड क्वार्टर है वो क्या बनेगा? हेड बनेगा ना! सभी खुशी से कह रहे हैं नम्बरवन लेकिन वहाँ जाकर ऐसे नहीं कहना कि क्या करें… कर नहीं सकते… चाहते तो नहीं, लेकिन हो जाता है… ऐसी भाषा सोचना भी नहीं। अच्छा, डबल विदेशी भी सेवा में रेस अच्छी कर रहे हैं और रेस में नम्बरवन आना है ना। देश वालों को हिम्मत दिलाने में विदेश अच्छा निमित्त बना है। इस हिम्मत दिलाने के कारण एक्स्ट्रा मदद भी मिलती है। समझा! इसी को स्मृति में रख सहज बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। अच्छा!
चारों ओर की सर्व विशेष आत्माओं को, सदा साकार ब्रह्मा बाप के श्रेष्ठ कर्मों को फ़ालो करने वाले कर्मयोगी आत्माओं को, सदा विशेषता को नेचुरल और नेचर बनाने वाली कोटों में कोई आत्माओं को, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा विशेष जन्म, धर्म और कर्म के स्मृति स्वरूप आत्माओं को बापदादा का विशेषता सम्पन्न याद-प्यार और नमस्ते।
दादियों से मुलाकात – आप ब्राह्मण जितने सम्पन्न बनते जायेंगे उतना भविष्य में प्रकृति भी प्रगति को प्राप्त करेगी क्योंकि प्रकृति समय प्रति समय अपना सिग्नल दिखा रही है। तो जितनी प्रकृति की हलचल उतनी अचल स्थिति प्रकृति को परिवर्तन करेगी। कितनी आत्मायें समय प्रति समय दु:ख की लहर में आती है। तो ऐसे दु:खी आत्माओं का सहारा तो बाप और आप ही हो। तो रहम पड़ता है ना। जब समाचार सुनते हो तो क्या दिल में आता है? नथिंग न्यू, अपनी अचल स्थिति के लिये तो ठीक है लेकिन प्रकृति की हलचल से जब आत्मायें चिल्लाती हैं तो किसको चिल्लाती हैं? तो जब मर्सी, रहम मांगते हैं तो आप लोगों को उनके रहम की पुकार पहुँचती तो है ना! ये छोटी-छोटी आपदायें और तड़फाती हैं। ब्राह्मण सम्पन्न हो जाओ तो दु:ख की दुनिया सम्पन्न हो जाये। तो रहम पड़ता है या नहीं? रहम पड़ता है तो फिर क्या करते हो? फिर भी ईश्वरीय परिवार के हैं ना। तो परिवार का कोई भी दु:ख, सुख में परिवर्तन करने का संकल्प तो आता है ना। कोई परिवार में बीमार भी हो तो क्या संकल्प होता है? जल्दी ठीक हो जाये। तो चिल्लाते-चिल्लाते मरना और एकधक से परिवर्तन होना, फ़र्क तो है ना। महाविनाश और रिहर्सल का विनाश, फ़र्क है। महाविनाश अर्थात् महान् परिवर्तन। उसके निमित्त आप हो। सम्पन्न बनेंगे तो समाप्ति होगी। तो जो परेशान हैं वो तो समझते हैं कि प्रत्यक्षता का पर्दा खुल जाये, लेकिन स्टेज पर आने वाले हीरो एक्टर सम्पन्न तैयार होने चाहिये ना, तब तो पर्दा खुलेगा कि आधे में खुल जायेगा? परिवर्तन की शुभ भावना को तीव्र करना अर्थात् अपने को तीव्र गति से सम्पन्न बनाना। आप भी कभी कैसे, कभी कैसे होते हो तो प्रकृति भी कभी बहुत तीव्र गति से कार्य करती, कभी ठण्डी हो जाती। तो अभी क्या करना है? रहम की भावना इमर्ज करो, चाहे स्व प्रति, चाहे सर्व आत्माओं के प्रति। होती है ना! लहर फैलाओ। रहम की भावना से विघ्न भी सहज खत्म हो जायेंगे। जहाँ रहम होगा, वहाँ तेरा-मेरा की हलचल नहीं होगी। पूज्य स्वरूप, मर्सीफुल का धारण करो। ठीक है ना। अभी ये लहर फैलाओ। हर संकल्प में मर्सीफुल। संकल्प में होंगे तो वाणी और कर्म स्वत: ही हो जायेंगे। सब चिल्लाते भी क्या हैं? मर्सी-मर्सी। अच्छा!
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात – माया की छाया से बचने का साधन है – बापदादा की छत्रछाया
सदा अपने को बापदादा की छत्रछाया के नीचे रहने वाली सदा सेफ आत्मायें अनुभव करते हो? सदा छत्रछाया है या कभी बाहर निकल जाते हो? या है बाप की छत्रछाया या है माया की छाया। तो माया की छाया से बचने का साधन है छत्रछाया। तो छत्रछाया में रहने वाले कितने खुश रहेंगे क्योंकि बेफिक्र बादशाह हो गये ना। फिक्र है तो खुशी गुम होती है। कभी भी देखो खुशी गुम होती है तो कारण क्या होता है? कोई न कोई चिन्ता, फिक्र, बोझ खुशी को गुम कर देता है। और खुशी गुम हुई, कमजोर हुए तो माया की छाया का प्रभाव पड़ ही जाता है। कमजोरी माया का आह्वान करती है। जैसे शारीरिक कमजोरी बीमारियों का आह्वान करती है तो आत्मिक कमजोरी माया का आह्वान करती है। फिर उस छाया से निकलने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है। अगर माया की छाया स्वप्न में भी पड़ गई तो स्वप्न भी परेशान करेगा। फिर ब्राह्मण से क्षत्रिय बन जाते हैं तो युद्ध करनी पड़ती है। क्षत्रिय जीवन मेहनत की है और ब्राह्मण जीवन खुशी की है। तो क्या पसन्द है? कभी-कभी युद्ध करनी पड़ती है? युद्ध करना अच्छा लगता है? छोटे से भी व्यर्थ संकल्प की छाया कितनी मेह-नत कराती है इसलिए सदा बाप के याद की छत्रछाया में रहो। याद ही छत्रछाया है। तो सदाकाल के लिए छत्रछाया में रहना आता है? कभी-कभी के लिये नहीं, सदा। अविनाशी बाप है ना। तो वर्सा भी सदा का लेना है। सदा खुश रहने वाले। छत्रछाया अर्थात् खुश रहना। बेफिक्र होंगे ना। सब फिक्र बाप को दे दिया कि एक-दो सम्भाल कर रखा है? क्या करें…, कैसे करें…, ये शब्द फिक्र के हैं। बेफिक्र के बोल सदा विजय के होते हैं। ‘क्या’, ‘कैसे’ के नहीं होते। तो सदा ये याद रखो कि हम सभी बाप की छत्रछाया में रहने वाले हैं। चक्कर लगाने वाले नहीं। संकल्प में भी चक्कर में आये तो चक्कर में आने वाले चकनाचूर हो जायेंगे। आप तो अमर हो ना। अमर हो गये – ये स्मृति सदा ही स्वयं भी बेफिक्र और दूसरों को भी बेफिक्र बनाती रहेगी। सदा खुशी में ये गीत गाते रहेंगे पाना था वो पा लिया। बच्चा बनना माना पाना। बच्चा बने अर्थात् पा लिया। अच्छा!
वरदान:- | सर्व रूहानी खजानों से सम्पन्न बन सदा सन्तुष्ट रहने वाले आलराउण्ड सेवाधारी भवआलराउण्ड सेवाधारी अर्थात् मास्टर सुख दाता, मास्टर शान्ति दाता, मास्टर ज्ञान दाता। दाता सदा सम्पन्न मूर्त होते हैं। जैसा स्वयं होंगे वैसा औरों को बनायेंगे। रूहानी सेवाधारी अर्थात् एवररेडी और आलराउन्ड। आलराउन्डर वही बन सकते जो सम्पन्न हैं, सम्पन्न ही सन्तुष्ट होंगे और सबको सन्तुष्ट करेंगे। किसी भी प्रकार की अप्राप्ति असन्तुष्टता पैदा करती है। सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने की विधि है सम्पन्न और दाता बनना। |
स्लोगन:- | शुभ भावना, शुभ कामना की गोल्डन गिफ्ट साथ हो तो किसी भी आत्मा का परिवर्तन कर सकते हो। |
सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष योग अभ्यास के समय अनुभव करें कि ज्ञान सूर्य सर्वशक्तिवान परमात्मा की किरणें मुझ पर पड़ रही हैं और मुझसे सारे संसार में जा रही हैं, जिससे संसार से अज्ञान-अंधकार दूर होता जा रहा है।