18-05-2023 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘ | मधुबन |
“मीठे बच्चे – इन ऑखों से जो कुछ देखते हो उसे भूलना है, सब शरीरधारियों को भूल अशरीरी बाप को याद करने का अभ्यास करो।” | |
प्रश्नः- | तुम बच्चों का मुख ज्ञान से मीठा होता, भक्ति से नहीं – क्यों? |
उत्तर:- | क्योंकि भक्ति में भगवान को सर्वव्यापी कह दिया है। सर्वव्यापी कहने से बाप और वर्से की बात खत्म हो गई है इसलिए वहाँ मुख मीठा नहीं हो सकता। अभी तुम बच्चे प्यार से बाबा कहते हो तो वर्सा याद आ जाता है, इसलिए ज्ञान से मुख मीठा हो जाता। दूसरा – भक्ति में खिलौनों से खेलते आये, परिचय ही नहीं था तो मुख मीठा कैसे हो। |
गीत:- | ओम् नमो शिवाए… Audio Player |
ओम् शान्ति। शिवाए नम: अथवा नमस्ते भी कहा जाता है। नमस्ते हमेशा बड़ों को की जाती है। मनुष्यों का बुद्धि-योग पतित-पावन बाप के साथ नहीं है। पतित को पावन बनाने वाला है ही एक। उनको कहा जाता है शिवाए नम:। यह भी बुद्धि में आता है कि शिव तो है निराकार। अगर शंकर को नम: करेंगे तो कहेंगे शंकर देवताए नम:। शिवाए नम: वह अलग हो गया। शंकर देवताए नम: वह अलग हो गया। ब्रह्मा देवताए नम: कहते हैं। ब्रह्मा तो है यहाँ। जब तक सूक्ष्मवतनवासी न बनें तब तक उनको देवता कहा न जाए। यहाँ तो है प्रजापिता। जब तक यह प्रजापिता है, मनुष्य तन में है तब तक इनको देवता कह नहीं सकते। देवता तो सूक्ष्मवतनवासियों को या तो जो नई दुनिया में रहते हैं, उनको कहा जाता है। इससे सिद्ध होता है इस समय जबकि प्रजापिता है, तो देवता नहीं कहेंगे। तुमको भी इस समय ब्राह्मण कहा जाता है, परन्तु तुम दैवी बुद्धि अर्थात् देवता बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। देवताओं की तो महिमा है सर्वगुण सम्पन्न….. ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की यह महिमा नहीं है। महिमा मनुष्य मात्र की और देवताओं की अलग-अलग होती है। प्रेजीडेन्ट, प्रेजीडेन्ट है। उनका पार्ट अपना, प्राइम-मिनिस्टर का पार्ट अपना है। ड्रामा में पार्ट तो अलग-अलग होगा ना। तो जब शिवाए नम: कहते हैं तो शिवबाबा ही है। ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: अलग है। शिवबाबा को ऐसे नहीं कहेंगे। उनको कहेंगे परमपिता परमात्मा शिव क्योंकि शिव और सालिग्राम हैं। वह छोटे-छोटे दिखाते हैं, वह बड़ा है। बाबा ने समझाया है – कोई भी छोटे-बड़े नहीं होते हैं। उनको कहा जाता है – परमपिता परमात्मा, गॉड फादर। यह क्यों कहते हैं? आत्मा सालिग्राम, शिव को बाबा कहती है तो जरूर बाप से वर्सा मिलना चाहिए क्योंकि वह है स्वर्ग का रचयिता। जरूर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की रचना परमपिता परमात्मा ने की होगी। और कोई कर न सके। उस बाप को सर्वव्यापी कहने से वर्से का नामनिशान गुम हो जाता है। जैसे कहते हैं कि गॉड इज ओमनी प्रेजेन्ट, हाज़िरा-हज़ूर है। कसम भी जो उठाते हैं वह झूठा। कहते हैं ईश्वर बाप को हाज़िर-नाज़िर जान… बाप को जानते नहीं।
तुम बच्चे जानते हो – अभी ईश्वर हाज़िर है, बरोबर वह सुप्रीम सोल है। उनकी महिमा सबसे न्यारी है। एक तो निराकार है, उसका नाम शिव है। उसका जिस्मानी नाम कभी पड़ता नहीं है। बाकी सभी के नाम होते हैं जिस्म के। जन्म बाई जन्म शरीर के नाम बदलते रहते हैं। बाकी आत्मा, आत्मा ही है, मनुष्य का नाम बदलता है। कहेंगे फलाने का पित्र अथवा श्राध खिलाते हैं। तो वह याद आता है। अब जिस्म तो उनका जल जाता है। बाकी रहती है आत्मा, तो आत्मा को खिलाते पिलाते हैं। आत्मा को निर्लेप कह न सकें। बाप बैठ समझाते हैं – जब कोई शरीर छोड़ते हैं तो शरीर तो खत्म हो गया, फिर किसको खिलाते हैं। भले खिलायेंगे आत्मा को, तो भी शरीर में मोह रहता है। यहाँ बाबा कहते हैं कोई के शरीर के साथ मोह नहीं रखो। बिल्कुल नष्टोमोहा बनो। सब शरीरों को बुद्धि से निकालना है। अब इन ऑखों से जो देखते हो वह भूलना है। बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो। मेरा तो कोई शरीर नहीं है, इसलिए डिफीकल्टी होती है। सगाई की अंगूठी पहनाते हैं ना। अब वह तो निराकार है, उसका कोई चित्र नहीं है। अंगूठी पहनाई जाती है कि निराकार शिवबाबा को याद करो। नई बात हो गई ना। मनुष्य मरता है तो समझो वह खत्म हो गया। उसका पित्र किसको खिलाते हैं। जरूर आत्मा आयेगी। संस्कार आत्मा ले जाती है। यह खारा है, यह मीठा है – किसने कहा? आत्मा कहती है – मेरी जबान को कड़ुवा लगा, मेरे कान बहरे हैं, मेरे माथे में दर्द है। यह कहने वाला कौन है? मनुष्य भूल गये हैं। बाप समझाते हैं – आत्मा ही दु:ख-सुख भोगती है। अभोक्ता सिर्फ बाप है। बाप ही बैठ आत्मा का ज्ञान देते हैं। बाकी आत्मा सो परमात्मा कहना – यह बड़े ते बड़ा अज्ञान है। सारी दुनिया में कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है फिर उनको याद करने से क्या मिलेगा? भक्त उनको याद करते हैं परन्तु उनसे मिलता क्या है, यह कोई नहीं जानते। सर्वव्यापी कहने से मिलने की बात ही नहीं उठती। आसुरी मत पर चलने से मनुष्य नीचे ही गिरते जाते हैं। श्रीमत तो एक ही बाप की है। आसुरी मत देने वाला रावण है, जिसकी मत पर एक दो को दु:ख देने लग पड़ते हैं। अब तुम हो ईश्वरीय सम्प्रदाय, एक दो को सुख देने वाले। बाप है सर्व का सुखदाता।
मनुष्य अपने को सर्वोदया लीडर कहते हैं परन्तु सर्व का मालिक रचयिता तो ईश्वर को ही कहा जाता है। सर्व माना सारी सृष्टि, सारी सृष्टि का सद्गति दाता कोई मनुष्य को नहीं कहेंगे। तो मुख्य बात है – पहले सर्वव्यापी का ज्ञान निकालना पड़े। बाप को सब याद करते हैं। भक्त चाहते हैं भगवान आकर हमको कुछ देवे। बाप ने जरूर कुछ दिया है। रचयिता रचेगा तो देगा भी ना। बाबा देते हैं स्वर्ग की बादशाही। उस बाप को भूलना नहीं है। यही है मेहनत। अब तुम बच्चे तो समझू-सयाने हो। पहले तुम बहुत बेसमझ थे। बाप को सर्वव्यापी कहने से कुछ भी नहीं मिलता। पहले-पहले बाप सिद्ध कर बताते हैं वह है परमपिता। परम अक्षर लौकिक बाप को नहीं दिया जाता। परमपिता है परे से परे परमधाम में रहने वाला, वह है सुप्रीम। वही मनुष्य सृष्टि का बीज रूप है। बाप बीज है ना। स्त्री को एडाप्ट कर फिर रचना रचते हैं। शिवबाबा कहते हैं – मैं भी इनको एडाप्ट करता हूँ। वह है कुख वंशावली और यह है मुख वंशावली। यह ब्रह्मा मेरी स्त्री है, परन्तु चोला तो पुरुष का है। मैं इनको एडाप्ट करता हूँ। इनके मुख से तुमको जन्म देता हूँ। शिवबाबा के बच्चे तो हैं परन्तु शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा नया जन्म दिया है। कहते हो – तुम मात पिता…. वह तो निराकार है। माता कैसे हो सकती। इसमें बहुत सूक्ष्म समझने की बुद्धि चाहिए। बाप को कहा है रचयिता, तो वह क्रियेट कैसे करे। जगत अम्बा सरस्वती जिसको कहते हैं वह तो ब्रह्मा की बेटी मुख वंशावली गाई जाती है। अब माता उनको कहें या इनको? असल रीयल्टी में यह (साकार ब्रह्मा) माता है। परन्तु पुरुष तन है तो माताओं की चार्ज में इनको कैसे रखा जाये, इसलिए फिर जगत अम्बा निमित्त बनी हुई है। बाप कहते हैं – मैं इनमें प्रवेश कर इनको एडाप्ट करता हूँ। फिर तुम कहते हो हम ब्रह्मा द्वारा ईश्वर के बच्चे बने हैं। ईश्वर हमारा दादा है। यह बातें शास्त्रों में हैं नहीं। यह सब हैं भक्ति मार्ग के खिलौने। खिलौनों से मनुष्य का मुख मीठा नहीं होता। यहाँ तो टेम्पटेशन है बाप से वर्सा मिलने की। सर्वव्यापी कहने से किसका मुख भी मीठा नहीं होता है। सारी दुनिया में यह सर्वव्यापी का ही ज्ञान है। इस समय जो बच्चे हैं, उन्हों की ही बुद्धि में हमारी याद है। तो उन्होंने फिर लिख दिया है मैं सर्वव्यापी हूँ। सभी मनुष्य मुझे याद करते हैं परन्तु जानते नहीं हैं तो अर्थ का कितना फ़र्क कर दिया है। रस्सी को साँप बना दिया है। अब बाप कहते हैं – मेरे को याद करो और कोई को नहीं। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सर्वव्यापी हूँ। तुम जानते हो हमारी आत्मा बाबा को याद करती है। तो सर्वव्यापी अक्षर में फ़र्क हो गया। यह भी ड्रामा की भावी है फिर भी ऐसे ही होगा। होना ही है। इस समय जो एक्ट चली, शूट हुआ उसको ड्रामा कहेंगे। अनादि बना बनाया ड्रामा है, इसमें कोई फ़र्क नहीं पड़ सकता। यह चित्र आदि सब ड्रामा अनुसार बच्चों द्वारा बनवाये गये हैं। यह खुद कहते हैं मैं कुछ नहीं जानता था। अब बाप ने दिव्य दृष्टि दी है। दिव्य दृष्टि दाता तो वह है ना। नये-नये चित्र बनवाते रहते हैं। एक बार बनाया फिर प्वाइन्ट निकलती है तो करेक्ट करना पड़ता है। ब्रह्मा के आगे प्रजापिता अक्षर जरूर लिखना पड़े। नहीं तो मनुष्य समझते नहीं। कहते हैं – ब्रह्मा मुख वंशावली तो औलाद हुए ना। ब्रह्मा की औलाद तो ब्राह्मण हुए ना। तुम बच्चे जानते हो – प्रैक्टिकल में हम ब्रह्मा की औलाद, शिव के पोत्रे हैं। पहली-पहली बात है ही बाप और वर्से की, जिससे मुख भी मीठा हो। बाप स्वर्ग का रचयिता है तो जरूर वर्सा मिलना चाहिए। कोई नहीं लेते हैं तो समझो हमारे दैवी धर्म के नहीं हैं। आकर समझेंगे वही जो देवी-देवता पद पाने वाले होंगे। मुख्य बात है पवित्रता की। पवित्र रहने बिगर रक्षाबन्धन हो न सके। बाप से प्रतिज्ञा करते हैं – बाबा हम पवित्र जरूर बनेंगे। पवित्र बनने के बिगर आपके पास कैसे आ सकेंगे! जरूर श्रीमत पर ही श्रेष्ठ बनेंगे। सतयुग में तो नहीं बनेंगे, जरूर कलियुग में बने होंगे। कलियुग अन्त, सतयुग आदि का संगम होगा अर्थात् संगम पर ही बाप आकर बच्चों को स्वर्ग का वर्सा देते हैं। भारत का नाम बहुत बाला है। भारत ही सचखण्ड और झूठखण्ड बनता है। और खण्ड गोल्डन एज में नहीं होंगे। दूसरे सभी खण्ड विनाशी हैं। यह है अविनाशी खण्ड, क्योंकि अविनाशी बाबा फिर से आये हैं। धर्म स्थापना की एक्टिविटी जो हुई है कल्प बाद फिर वही चलेगी। बाप कितना वर्सा देते हैं! मोस्ट बील्वेड बाप है। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए तुम प्रवृत्ति मार्ग वालों को पवित्र जरूर बनना है। संन्यासियों का, निवृत्ति मार्ग वालों का धर्म ही अलग है। वैसे और अलग-अलग अनेक धर्म हैं, वह स्वर्ग में नहीं आयेंगे। जो हमारे धर्म के और धर्मों में मिल गये हैं वही निकलेंगे। अब तुमको कितना ज्ञान मिला है, तुम्हारा तीसरा नेत्र खुला है। त्रिकालदर्शी तुम बन रहे हो। सिवाए तुम ब्राह्मणों के और कोई भी मनुष्य-मात्र त्रिकालदर्शी नहीं होते। देवतायें भी त्रिकालदर्शी नहीं हैं। बाप कहते हैं – तुमको तीसरा नेत्र दे सज्जा बनाता हूँ।
तुम बच्चे जानते हो हमारा अब तीसरा नेत्र खुल रहा है। जैसे बाप में सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है वैसे हम जो उनके बच्चे हैं हमको भी बाबा द्वारा ज्ञान मिला है। गोया हम मास्टर ज्ञान सागर बन रहे हैं और किसको मास्टर ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। परन्तु तुमको भी ज्ञान सागर नहीं कहेंगे, तुम ज्ञान नदियाँ हो। बाकी ऐसे नहीं अर्जुन ने तीर मारा और गंगा निकल आई, न ही गऊ के मुख से पानी निकल आता है। वहाँ गंगा कहाँ से आयेगी। कहाँ तुम दो भुजा वाले, कहाँ वह जगत अम्बा को 4-6 भुजायें दे देते हैं। तुम बच्चों को बहुत कुछ समझाना है। कई बच्चे कहते हैं कि बाबा की याद नहीं रहती है, अपने को आत्मा नहीं समझते, घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। बाप को याद नहीं करेंगे तो वर्सा कैसे मिलेगा। बाबा कहते हैं निरन्तर मुझे याद करो तो उसी योगबल से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। याद नहीं करेंगे तो मम्मा-बाबा के तख्तनशीन कैसे बनेंगे। उनको कपूत कहा जायेगा।
सपूत बच्चे तो बाप को निरन्तर याद करने का खूब पुरुषार्थ करते रहेंगे। अन्त तक करना ही है। बाप को जितना याद करेंगे उतना तुम्हारी कमाई है। अपना चार्ट रखो। जो ओटे सो अर्जुन। उन्हें ही वारिस कहा जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ईश्वरीय मत पर एक दो को सुख देना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है। बाप समान सुखदाता बनना है।
2) इन शरीरों से मोह निकाल नष्टोमोहा बनना है। सपूत बच्चा बन निरन्तर बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है।
वरदान:- | हंस आसन पर बैठ हर कार्य करने वाले सफलता मूर्त विशेष आत्मा भव जो बच्चे हंस आसन पर बैठकर हर कार्य करते हैं उनकी निर्णय शक्ति श्रेष्ठ हो जाती है इसलिए जो भी कार्य करेंगे उसमें विशेषता समाई हुई होगी। जैसे कुर्सी पर बैठकर कार्य करते हो वैसे बुद्धि इस हंस आसन पर रहे तो लौकिक कार्य से भी आत्माओं को स्नेह और शक्ति मिलती रहेगी। हर कार्य सहज ही सफल होता रहेगा। तो स्वयं को हंस आसन पर विराजमान विशेष आत्मा समझ कोई भी कार्य करो और सफलतामूर्त बनो। |
स्लोगन:- | स्वभाव के टक्कर से बचने के लिए अपनी बुद्धि, दृष्टि व वाणी को सरल बना दो। |