MURLI 18-01-2024 | BRAHMA KUMARIS
18-01-24 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | मधुबन |
पिताश्री जी के पुण्य स्मृति दिवस पर सुनाने के लिए बापदादा के मधुर महावाक्य
MURLI 18-01-2024 | BRAHMA KUMARISमीठे बच्चे – बाप की दिल अन्दर बच्चों को सदा सुखी बनाने की फर्स्टक्लास आश रहती है, बाप यही चाहते हैं कि मेरे बच्चे लायक बन स्वर्ग के मालिक बनें
ओम् शान्ति। बच्चे जानते हैं अभी भगवान सम्मुख बैठकर हमको ज्ञान के गीत सुनाते हैं वा ज्ञान की डांस कराते हैं। इस ज्ञान डांस से तुम देवताओं मुआफिक सदा सुखी और हर्षित रहेंगे। भगवान को ही बेहद का बाप वा विश्व का रचयिता कहा जाता है। आत्मा समझती है बाबा हमारे लिए स्वर्ग की सौगात लाये हैं। वही रचयिता है। स्वर्ग का मालिक बनाने के लिए राजयोग सिखाते हैं। कहते हैं बाप को और विश्व के मालिकपने को याद करो। बाप बेहद का मालिक है तो जरूर बेहद की बड़ी दुनिया ही रचेंगे। तुम बच्चों के लिए सारी विश्व ही घर है अर्थात् पार्ट बजाने का स्थान है। बेहद का बाप आकरके बेहद का विश्व अथवा घर बनाते हैं, वह है स्वर्ग। तो ऐसे बाप का बच्चों को कितना शुक्रिया मानना चाहिए। विश्व का रचता बाप डायरेक्ट समझा रहे हैं हम तुमको विश्व का मालिक बनाने आया हूँ तो तुम्हारा स्वभाव बहुत फर्स्टक्लास चाहिए। तुम्हारी चलन ऐसी होनी चाहिए जो सब कहें कि यह तो जैसे देवता है। देवतायें नामीग्रामी हैं। कहते हैं इनका स्वभाव एकदम देवताई है। बिल्कुल मीठे शान्त स्वभाव के हैं। तो ऐसे बच्चों को बाप भी देख खुश होते हैं। बाबा स्वर्ग का मालिक बनाने आते हैं तो तुम्हें कितना मददगार बनना चाहिए। सर्विस में आपेही लग जाना चाहिए। ऐसे नहीं मैं थक गया हूँ, फुर्सत नहीं है। समय पर सब काम करने में कल्याण है। यज्ञ सर्विस का इज़ाफा शिवबाबा देते हैं। बाबा बच्चों की दैवी चलन देखते हैं तो कुर्बान जाते हैं।
तुम बच्चे इस पढ़ाई से कितनी ऊंची कमाई करते हो। तुम पदमा-पदमपति बनते हो। बाबा तुम्हें कितना धनवान बनाते हैं। बाप तुमको अखुट खजाने में ऐसा वज़न करते हैं जो 21 जन्म साथ रहेगा। वहाँ दु:ख का नाम नहीं। कभी अकाले मृत्यु नहीं होगा। मौत से कभी डरेंगे नहीं। यहाँ कितना डरते हैं, रोते हैं। तुमको तो खुशी है – यह पुराना शरीर छोड़ जाए नई दुनिया में प्रिन्स बनेंगे। तुम इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटाते रहो, इस देह को भी भूलते जाओ। हम आत्मा इन्डिपिडेंट हैं। बस एक बाप के सिवाए और किसी की याद न आये। जीते जी जैसेकि मौत की अवस्था में रहना है। इस दुनिया से मर गये। कहते भी हैं ना – आप मुये मर गई दुनिया। शरीर के भान को उड़ाते रहो। एकान्त में बैठ यह अभ्यास करो – बाबा बस अभी हम आपकी गोद में आये कि आये। एक की याद में शरीर का अन्त हो – इसको कहा जाता है एकान्त।
मीठे बच्चे, तुम जानते हो कि ऐसी ऊंची पढ़ाई पढ़ाने वाला कौन है! इस चैतन्य डिब्बी में चैतन्य हीरा बैठा है, वही सत-चित आनन्द स्वरूप है। सत बाप तुम्हें सच्ची-सच्ची श्रीमत देते हैं। बाप के बने हो तो कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। चुप रहना है और पढ़ना है, एक बाप को याद करना है। घड़ी-घड़ी इस बैज को देखते रहो तो बाप और वर्से की याद आयेगी। याद से ही तुम जैसे सारे विश्व को शान्ति का दान देते हो। हर एक बच्चे को अपनी प्रजा भी बनानी है, वारिस भी बनाने हैं। मुरली कोई भी मिस नहीं करनी चाहिए। बाबा बहुत प्यार से समझाते हैं – मीठे बच्चे अपने पर रहम करो, कोई अवज्ञा नहीं करो।
जो खुशबूदार फूल हैं वह खींचते हैं। जो जैसा है ऐसी सर्चलाइट लेने की कशिश करते हैं। खुशबूदार, गुणवान बच्चों को देख प्यार में, खुशी में नयन गीले हो जाते हैं। कुछ तकलीफ होती है तो बाबा सर्चलाइट देते हैं।
बाबा समझाते हैं मीठे बच्चे, तुम्हें इस पुरानी दुनिया में कोई भी आशा नहीं रखनी है। अब तो एक ही श्रेष्ठ आश रखनी है कि हम तो चलें सुखधाम। कहाँ भी ठहरना नहीं है। देखना नहीं है। आगे बढ़ते जाना है। एक तरफ ही देखते रहो तब ही अचल-अडोल स्थिर अवस्था रहेगी। अब यह दुनिया खत्म होनी ही है, इसकी बहुत सीरियस हालत है। इस समय सबसे अधिक गुस्सा प्रकृति को आता है इसलिए सब खलास कर देती है। तुम जानते हो यह प्रकृति अभी अपना गुस्सा जोर से दिखायेगी। सारी पुरानी दुनिया को डुबो देगी। अर्थक्वेक में मकान आदि सब गिर पड़ेंगे। अनेक प्रकार से मौत होंगे। यह सब ड्रामा का प्लैन बना हुआ है। इसमें दोष किसी का भी नहीं है। विनाश तो होना ही है इसलिए तुम्हें इससे बुद्धि का योग हटा देना है। तुमने तो अपना सब कुछ इन्श्योर कर दिया है इसलिए तुम्हें किसी भी प्रकार की चिंता नहीं। तुम्हारा सब कुछ सफल हो रहा है।
अब तुम कहेंगे वाह सतगुरू वाह! जिसने हमको यह रास्ता बताया है। वाह तकदीर वाह! वाह ड्रामा वाह! तुम्हारे दिल से निकलता – शुक्रिया बाबा आपका जो हमारे दो मुट्ठी चावल लेकर हमें सेफ्टी से भविष्य में सौगुणा रिटर्न देते हो। परन्तु इसमें भी बच्चों की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बच्चों को अथाह ज्ञान धन का खजाना मिलता रहता तो अपार खुशी होनी चाहिए ना। जितना हृदय शुद्ध होगा तो औरों को भी शुद्ध बनायेंगे। योग की स्थिति से ही हृदय शुद्ध बनता है। तुम बच्चों को योगी बनने बनाने का शौक होना चाहिए। अगर देह में मोह है, देह-अभिमान रहता है तो समझो हमारी अवस्था बहुत कच्ची है। देही-अभिमानी बच्चे ही सच्चा डायमण्ड बनते हैं इसलिए जितना हो सके देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो। बाप को याद करो। बाबा अक्षर सबसे बहुत मीठा है। बाप बड़े प्यार से बच्चों को पलकों पर बिठाकर साथ ले जायेंगे। ऐसे बाप की याद के नशे में चकनाचूर होना चाहिए। बाप को याद करते-करते खुशी में ठण्डे-ठार हो जाना चाहिए। जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं – तुम भी फालो फादर करो। सुखदाई बनो। बाप की दिल अन्दर बच्चों को सदा सुखी बनाने की कितनी फर्स्टक्लास आश रहती है कि बच्चे लायक बन स्वर्ग के मालिक बनें।
तुम बच्चे अभी ड्रामा के राज़ को भी जानते हो – बाप तुम्हें निराकारी, आकारी और साकारी दुनिया का सब समाचार सुनाते हैं। आत्मा कहती है अभी हम पुरुषार्थ कर रहे हैं, नई दुनिया में जाने के लिए। हम स्वर्ग में चलने लायक जरूर बनेंगे। अपना और दूसरों का कल्याण करेंगे। अच्छा-बाप मीठे बच्चों को समझाते हैं, बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है तो बच्चों को भी सबको सुख देना है। बाप का राइट हैण्ड बनना है। ऐसे बच्चे ही बाप को प्रिय लगते हैं। शुभ कार्य में राइट हाथ को ही लगाते हैं। तो बाप कहते हर बात में राइटियस बनो, एक बाप को याद करो तो फिर अन्त मति सो गति हो जायेगी। इस पुरानी दुनिया से ममत्व मिटा दो। यह तो कब्रिस्तान है। धन्धाधोरी बच्चों आदि के चिन्तन में मरे तो मुफ्त अपनी बरबादी कर देंगे। शिवबाबा को याद करने से तुम बहुत आबाद होंगे। देह-अभिमान में आने से बरबादी हो जाती है। देही-अभिमानी बनने से आबादी होती है। धन की भी बहुत लालच नहीं रखनी चाहिए। उसी फिकरात में शिवबाबा को भी भूल जाते हैं। बाबा देखते हैं सब कुछ बाप को अर्पण कर फिर हमारी श्रीमत पर कहाँ तक चलते हैं। शुरू-शुरू में बाप ने भी ट्रस्टी हो दिखाया ना। सब कुछ ईश्वर अर्पण कर खुद ट्रस्टी बन गया। बस ईश्वर के काम में ही लगाना है। विघ्नों से कभी डरना नहीं चाहिए। जहाँ तक हो सके सर्विस में अपना सब कुछ सफल करना है। ईश्वर अर्पण कर ट्रस्टी बन रहना है। अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
अव्यक्त-महावाक्य (रिवाइज-15-4-74)
क्या सभी उन्नति की ओर बढ़ते जा रहे हो? सदा लगन में मग्न और विघ्न-विनाशक, यह दोनों निशानियाँ क्या अनुभव में आ रही हैं? विघ्न-विनाशक बनने के बजाय, विघ्नों को देख अपनी स्टेज से नीचे तो नहीं आ जाते हो? क्या अनेक प्रकार के आये हुए तूफान आपकी बुद्धि में तूफान तो पैदा नहीं करते हैं? जैसे कोई के द्वारा तोहफा मिलता है तो बुद्धि में हलचल नहीं होती है बल्कि उल्लास होता है। इसी प्रकार आये हुए तूफान उल्लास बढ़ाते हैं या हलचल बढ़ाते हैं? अगर तूफान को तूफान समझा तो हलचल होगी और तोहफा समझा व अनुभव किया तो उससे उल्लास और हिम्मत अधिक बढ़ेगी। यह है चढ़ती कला की निशानी। घबराने के बजाय गहराई में जाकर अनुभव के नये-नये रत्न इन परीक्षाओं के सागर से प्राप्त करेंगे क्योंकि हलचल के अन्दर रत्न समाये हुए हैं। ऊपर-ऊपर से अर्थात् बाह्यमुखता की दृष्टि और बुद्धि द्वारा देखने से हलचल दिखाई देगी अथवा अनुभव होगी लेकिन उसी आई हुई बातों को अन्तर्मुखी दृष्टि व बुद्धि से देखने से अनेक प्रकार के ज्ञान-रत्न अर्थात् प्वाइन्ट्स प्राप्त होंगी।
अगर कोई भी बात को देखते या सुनते हुए आश्चर्य अनुभव होता है तो यह भी फाइनल स्टेज नहीं है। ऐसा तो होना नहीं चाहिए.. ड्रामा के होने पर अगर ऐसा भी संकल्प उत्पन्न होता है तो इसको भी अंशमात्र की हलचल का रूप कहेंगे। अब तक भी क्यों-क्या का क्वेश्चन अगर उठता है तो इसका अर्थ है हलचल। जितना विघ्न आना आवश्यक है उतना विघ्न-विनाशक स्थिति में रहना, यही हर्षित रहने का साधन है। नथिंग न्यू यह है फाइनल स्टेज। यदि कोई भी हलचल का कर्तव्य करते हो व पार्ट बजाते हो तो सागर समान ऊपर से हलचल भले ही दिखाई दे रही हो अर्थात् चाहे कर्मेन्द्रियों की हलचल में आ रहे हो लेकिन स्थिति नथिंग न्यू की हो। एकाग्र, एकरस, एकान्त अर्थात् एक रचयिता और रचना के अन्त को जानने वाले, त्रिकालदर्शी की स्टेज पर आराम से शान्ति की स्टेज पर स्थित हैं या कर्मेन्द्रियों की हलचल आन्तरिक स्टेज को भी हिला देती है? जब स्थूल सागर दोनों ही रूप दिखाता है तो क्या मास्टर ज्ञान सागर ऐसा रूप नहीं दिखा सकते? यह प्रकृति ने पुरुष से कॉपी की है। आप तो पुरुषोत्तम हो। जब प्रकृति अपनी क्वॉलिफिकेशन दिखा सकती है, तो क्या वह पुरुषोत्तम नहीं दिखा सकते?
अभी समय अति की तरफ बढ़ रहा है। सभी तरफ अति दिखाई पड़ रही है। अन्त की निशानी अति है। तो जैसे प्रकृति समाप्ति की तरफ अति में जा रही है, वैसे ही सम्पन्न बनने वाली आत्माओं के सामने अब परीक्षायें व विघ्न भी अति के रूप में आयेंगे इसलिये आश्चर्य नहीं खाना है कि पहले यह नहीं था, अब क्यों है? यह आश्चर्य भी नहीं। फाइनल पेपर में आश्चर्यजनक बातें क्वेश्चन के रूप में आयेंगी तब तो पास और फेल हो सकेंगे। ऐसी-ऐसी बातें आयेंगी जो न चाहते हुए भी बुद्धि में क्वेश्चन उत्पन्न हों, यही तो पेपर है। और है भी एक सेकेण्ड का पेपर। क्यों का संकल्प चन्द्रवंशी की क्यू में लगा देगा इसलिए एकरस स्थिति में स्थित होने का अभ्यास निरन्तर हो। समस्या की सीट को सम्भालने नहीं लग जाओ। लेकिन सीट पर बैठ समस्या का सामना करना है। अभी तक समस्या सीट की याद दिलाती है। विघ्न आता है, तो विशेष योग लगाते हो और भट्टी रखते हो, इससे सिद्ध होता है कि दुश्मन ही शस्त्र की स्मृति दिलाते हैं लेकिन स्वत: और सदा स्मृति नहीं रहती। निरन्तर योगी हो या अन्तर वाले योगी हो? टाइटिल तो निरन्तर योगी का है ना! दुश्मन आवे ही नहीं, समस्या सामना न कर सके। सूली से कांटा बनना, यह भी फाइनल स्टेज नहीं है। सूली से कांटा बने उसके बजाए कांटे को योगाग्नि से दूर से ही भस्म कर दें। कांटा लगे और फिर निकालो, यह फाइनल स्टेज नहीं है। कांटे को अपनी सम्पूर्ण स्टेज से समाप्त कर देना, यह है फाइनल स्टेज। ऐसा लक्ष्य रखते हुए अपनी स्टेज को आगे चढ़ती कला की तरफ बढ़ाते चलो। बड़ी बात को छोटा अनुभव करना, इस स्टेज तक नम्बरवार यथाशक्ति पहुंचे हैं। अब पहुंचना वहाँ तक है जो कि अंश और वंश भी समाप्त हो जाए।
आप सभी हिम्मत, उल्लास और सर्व के सहयोगी सदा रहते हुए चल रहे हो ना! कलियुगी दुनिया को समाप्त करने के लिये व परिवर्तन करने के लिए, माया को विदाई देने के लिये संगठन अर्थात् घेराव डाला हुआ है ना! मजबूत घेराव डाला हुआ है या बीच-बीच में कोई ढीले हो जाते हैं अथवा थक जाते या चलते-चलते रूक जाते हैं? न आगे बढ़ना, न पीछे हटना, जैसे-के-वैसे रहना, यह पाठ तो पक्का नहीं करते हो? समय धक्का लगायेगा तो चल पड़ेंगे, ऐसा सोचकर जहाँ के तहाँ रूक तो नहीं गये हो? किसी के किसी प्रकार के सहारे का इन्तजार करते हुए खड़े तो नहीं हो गये हो? ऐसी स्टेज वालों को क्या कहेंगे? क्या इसको ही अंगद की स्टेज समझते हो? अगर ऐसे रूक गये, तो फिर लास्ट वाले फास्ट चले जायेंगे। जब भी पहाड़ों पर बर्फ गिरती है और जम जाती है तो रास्ते रूक जाते हैं, फिर उस बर्फ को गलाने के लिए वा उसे हटाने के लिये पुरुषार्थ करते हैं, यहाँ भी अगर बर्फ के मुआफिक जम जाते हो तो इससे सिद्ध होता है कि योग-अग्नि की कमी है। योग-अग्नि को तेज करो तो रास्ता क्लियर हो जायेगा। मिली हुई हिम्मत और उल्लास के प्वाइन्ट्स बुद्धि में दौड़ाओ तो रास्ता क्लियर हो जायेगा। पुरुषार्थ की गति में अंगद बनो, माया से हार खाने में अंगद नहीं बनो, बल्कि विजयी बनने के लिए अंगद बनो। अच्छा!
ऊंच-ते-ऊंच बाप द्वारा पालना लेने वाले, विश्व की पालना करने वाले, विष्णु-कुल की श्रेष्ठ आत्मायें, प्रकृति को परिवर्तन करने वाली पुरुषोत्तम आत्मायें, विश्व के आगे साक्षातमूर्त प्रसिद्ध होने वाली आत्मायें, योगी तू आत्माओं के प्रति बाप-दादा का याद-प्यार और गुड मार्निग।
वरदान:- | सेवा में रहते सम्पूर्णता के समीपता की अनुभूति करने वाले ब्रह्मा बाप समान एक्जैम्पुल भव जैसे ब्रह्मा बाप सेवा में रहते, समाचार सुनते एकान्तवासी बन जाते थे। एक घण्टे के समाचार को 5 मिनट में सार समझ बच्चों को खुश करके, अपनी अन्तर्मुखी, एकान्तवासी स्थिति का अनुभव करा देते थे। ऐसे फालो फादर करो। ब्रह्मा बाप ने कभी नहीं कहा कि मैं बहुत बिजी हूँ लेकिन बच्चों के आगे एक्जैम्पुल बनें। ऐसे समय प्रमाण अभी इस अभ्यास की आवश्यकता है। दिल की लगन हो तो समय निकल आयेगा और अनेकों के लिए एक्जैम्पुल बन जायेंगे। |
स्लोगन:- | हर कर्म में – कर्म और योग का अनुभव होना ही कर्मयोग है। |
अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो
सदा यही लक्ष्य याद रहे कि हमें बाप समान बनना है तो जैसे बाप लाइट है वैसे डबल लाइट। औरों को देखते हो तो कमजोर होते हो इसलिए सी फादर, फालो फादर करो। उड़ती कला का श्रेष्ठ साधन सिर्फ एक शब्द है – सब कुछ तेरा। मेरा शब्द बदल तेरा कर दो। तेरा हूँ, तो आत्मा लाइट है और जब सब कुछ तेरा है तो लाइट (हल्के) बन गये।