16-07-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 07-03-95 मधुबन |
ब्राह्मण अर्थात् धर्म सत्ता और स्वराज्य सत्ता की अधिकारी आत्मा
आज बापदादा चारों ओर के बच्चों में दो विशेष सत्ता को देख रहे हैं। वो दो सत्तायें हैं एक धर्म सत्ता और दूसरी स्वराज्य सत्ता। ब्राह्मण जीवन की विशेषता – ये दोनों सत्तायें हर एक को प्राप्त होती हैं। धर्म सत्ता अर्थात् सत्यता, पवित्रता के धारणा स्वरूप और स्वराज्य सत्ता अर्थात् अधिकारी बन सर्व कर्मेन्द्रियों को अपने अधिकार से ऑर्डर में चलाना। स्वराज्य अधिकारी वा स्वराज्य के सत्ताधारी किसी भी परिस्थिति, प्रकृति और माया के सर्व स्वरूपों में अधीन नहीं बनेंगे, अधिकारी रहेंगे। हर ब्राह्मण आत्मा को बापदादा ने ये दोनों ही सत्तायें प्राप्त कराई है ना? सभी में ये दोनों सत्तायें हैं कि अभी पूरी नहीं आई हैं? अभी की दोनों सत्तायें प्राप्त करने वाले ही भविष्य में धर्म और राज्य सत्ता के अधिकारी बनते हैं। दोनों ही सत्तायें धारण की हैं? अपना चित्र देखा है? डबल विदेशियों का चित्र है या औरों का चित्र है? तो उस चित्र में दोनों सत्ताओं की निशानी देखी है? धर्म सत्ता की निशानी है – लाइट का ताज और राज्य सत्ता की निशानी है रत्न जड़ित ताज। तो ऐसा अपना चित्र देखा है? तो दोनों सत्ता धारण इस समय करते हो। जो आधाकल्प दोनों ही सत्तायें आप सबके, एक के हाथ में हैं। द्वापर से देखो तो धर्म सत्ता अलग हो गई और राज्य सत्ता अलग हो गई, इसीलिये धर्म पिताओं को आना पड़ा। तो धर्म पिता और राजा दोनों अलग-अलग रहे। लेकिन आपके राज्य में अलग होंगे क्या? हर एक के पास दोनों सत्तायें इकट्ठी होती हैं इसलिये अखण्ड निर्विघ्न राज्य चलता है। तो हर एक में ये दोनों ही सत्तायें देख रहे थे कि हर एक ने कितनी अपने में धारण की है? कहाँ तक अधिकारी बने हैं? क्या सदा अधिकारी रहते हैं या कभी अधीन, कभी अधिकारी? अभी-अभी अधिकारी हैं और अभी-अभी अधीन हो जाये तो अच्छा लगेगा? कि सदा अधिकारी अच्छा है? सदा अधिकार चाहिये या थोड़े टाइम के लिये चलेगा? जब स्वयं बाप अधिकार दे रहा है, देने वाला दे रहा है और लेने वाले जो हैं उनको क्या करना चाहिये? लेना सहज है या देना सहज है? लेने में तो कोई मुश्किल नहीं है ना? देने मे सोचा जाता है – दें, नहीं दें, थोड़ा दें, ज्यादा दें… लेकिन लेने में तो सब कहेंगे – जितना मिले उतना ले लें। तो लेने में नम्बरवन हो या नम्बर टू हो? इसमें तो नम्बर दो कोई नहीं बनता और जब देना पड़ता है तो… देने में भी नम्बरवन हो कि सोचना पड़ता है, हिम्मत रखनी पड़ती है! वास्तव में देखो कि देते क्या हो? ब्राह्मण जीवन में देना है या लेना है? अगर देने वाली चीज़ से लेने वाली चीज़ श्रेष्ठ है तो लेना हुआ या देना हुआ? देना पड़ेगा, देना है – ये सोचते हो तो भारी होते हो। लेना है, तो सदा खुश रहेंगे, हिम्मत में रहेंगे। देने में सोचते हो देना मुश्किल है लेकिन पहले लेते हो फिर देते तो कुछ भी नहीं हो। आपके पास कुछ है जो बाप को देंगे? दी तो अच्छी चीज़ जाती है या खराब चीज़? तो क्या अच्छा है आपके पास – तन अच्छा है? मन अच्छा है? धन अच्छा है? बेकार है। दवाइयों के धक्के से शरीर चला रहे हो। तो धक्के वाली गाड़ी अच्छी होती है क्या! तो ब्राह्मण जीवन में लेना ही लेना है। और बाप तो मुस्कराते हैं कि बच्चे बाप से भी चतुर हैं। पहले लेते हैं फिर देने का सोचते हैं। होशियार हो ना! अच्छा है, बच्चे होशियार होते हैं तो बाप को अच्छा लगता है लेकिन चलते-चलते यदि डल हो जाते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। कभी-कभी बच्चों की शक्ल (फेस) ऐसे लगती है कि पता नहीं क्या हो गया! जैसे शरीर में चलते-चलते खून कम हो जाता है तो कमजोर हो जाते हैं ना, फेस से भी कमजोरी नज़र आती है। तो यहाँ भी खुशी की, शक्तियों की कमी हो जाती है ना तो चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे…, सब जानते हैं, सभी अनुभवी हैं। एक तरफ कहते हो कि खुशियों की खान मिली है और वो भी अविनाशी फिर कम कैसे हो जाती है? तो बाप के पास आपके सारे दिन के मन के मूड और मूड प्रमाण जो फेस बदलता है वो सारे दिन के चित्र वहाँ होते हैं। आप तो चित्रों का म्यूज़ियम बनाते हो ना, बाप के पास आपके चित्रों का म्यूज़ियम होता है। तो सदा यह याद रखो कि मैं ब्राह्मण आत्मा राज्य सत्ता और धर्म सत्ता की अधिकारी आत्मा हूँ। यह स्मृति का निश्चय है तो नशा है, निश्चय कम तो नशा भी कम। तो चेक करो – ये सत्तायें सदा साथ रहती हैं वा कभी खो जाती हैं, कभी आ जाती हैं?
अच्छा, आज डबल विदेशी मैजारिटी हैं। बापदादा विशेष डबल विदेशियों से पूछते हैं कि सारे दिन में अपने अधिकार के सीट पर सेट रहते हो या अपसेट बहुत जल्दी होते हो? कि अपसेट होना – ये पास्ट की बात है, अभी नहीं होते। पास्ट हो गया ना! अभी तो नहीं होते हो ना! अभी नॉलेजफुल, पॉवरफुल बन गये। ऐसे तो नहीं कि छोटी-सी बात में अपसेट हो जाओ, चेहरा बदल जाये, मूड बदल जाये! ऐसा कभी-कभी होता है? कभी-कभी अपसेट होते हो? अच्छा! जो समझते हैं कि अपसेट होना क्या होता है वह भी भूल गया है, ऐसे शक्तिशाली आत्मायें जो कभी अपसेट नहीं होते हैं वो हाथ उठाओ। सच तो बोल रहे हो उसकी मुबारक। अभी इस सीजन में कुछ तो मधुबन में छोड़कर जायेंगे या कुछ लेकर जायेंगे? मैजारिटी ने मधुबन में शिवरात्रि मनाई है ना! तो जिसका बर्थ डे होता है उसको गिफ्ट देते हो ना। तो बाप को क्या गिफ्ट दी? ये अपसेट होना यही गिफ्ट दे दो – नहीं होंगे। हिम्मत है? अच्छा, हाथ उठाओ और टी.वी. में सबके हाथ निकालो। सोच-समझकर पक्के हाथ उठाना। देखो सभी के हाथ का फोटो निकाला। देखना अभी फोटो निकल गया है। बापदादा को वो चेहरा अच्छा नहीं लगता। बापदादा हर एक बच्चे को सदा खिला हुआ रुहानी गुलाब देखना चाहते हैं। मुरझाया हुआ नहीं, खिला हुआ। जिससे प्यार होता है ना तो उसको जो अच्छा लगता है वही किया जाता है! डबल फारेनर्स तो बाप से बहुत प्यार करते हैं। तो जो बाप को अच्छा लगता है वही आपको अच्छा लगता है ना! अभी किसी का भी ऐसा समाचार नहीं आये कि क्या करें, बात ही ऐसी थी, इसीलिये अपसेट हो गये! अगर बात अपसेट की आती भी है तो आप अपसेट स्थिति में नहीं आओ। जैसे झूला झूलते हो ना, तो वो बहुत नीचे-ऊपर होता है, बहुत नीचे हो, बहुत ऊपर हो और बहुत फास्ट हो तो शरीर को अपसेट करेगा ना। लेकिन आप अपसेट होते हो क्या? क्यों नहीं होते हो? खेल समझते हो तो अपसेट होने के बजाय मनोरंजन समझते हो। कारण क्या हुआ? खेल है। ऐसे अगर कोई अपसेट करने की बातें आये भी, आयेंगी जरूर, जिन्होंने हाथ उठाया उन्हों के पास और बड़ी अपसेट करने वाली बातें आयेंगी क्योंकि माया भी मुरली सुन रही है। लेकिन उसको एक खेल समझो। घबराओ नहीं। अच्छा, झुलाती है, झूलने दो। लेकिन मन घबराये नहीं। नॉलेजफुल, पॉवरफुल बन जाओ। उस सीट को छोड़ो नहीं। अगर एक-दो बार भी माया ने देखा कि ये अपसेट होने वाले नहीं हैं तो खुद अपसेट हो जायेगी, आपको नहीं करेगी। बात की लेन देन भले करो, कोई भी बात आती है तो नॉलेजफुल होने के कारण समझते तो हो ना – ये ठीक है, ये नहीं ठीक है, ये होनी चाहिये, ये नहीं होनी चाहिये… लेकिन बात की लेन-देन बात के रीति से करो, अपसेट रूप से नहीं करो। एक तरफ बोलते जायेंगे, दूसरे तरफ गंगा-जमुना बहाते रहेंगे। चाहे मन में बहाओ, चाहे आंख से बहाओ, दोनों ही ठीक नहीं है। तो गिफ्ट देने के लिये तैयार हो? सोच लिया कि ऐसे ही हाँ कर लिया?
बापदादा बहुत सहज शब्दों में युक्ति बता रहे हैं कि जब भी कोई परिस्थिति या प्रकृति हलचल के रूप में आये तो दो शब्द याद रखो, विधि है – या नॉट (नहीं) करो या डॉट (बिंदु) लगाओ। नॉट या डॉट। अगर कोई बात राँग है तो यही सोचो नॉट माना नहीं करना है। न सोचना है, न करना है, न बोलना है। और डॉट लगा दो तो नॉट हो ही जायेगा। सोचो नॉट, लगाओ डॉट। फिनिश। डॉट (बिन्दी) लगाने में कितना टाइम लगता है? सेकेण्ड से भी कम। लेकिन होता क्या है? समझते हो कि यह नहीं करना है, ठीक नहीं है लेकिन डॉट लगाना नहीं आता है। नॉलेजफुल तो बन गये लेकिन सिर्फ नॉलेजफुल नहीं चाहिये, नॉलेज के साथ पॉवरफुल भी चहिये। तो पॉवरफुल स्थिति की कमजोरी है इसीलिये डॉट नहीं लगा सकते हो। और जिसे डॉट लगाना आयेगा वो बाप को भी नहीं भूलेगा, बाप भी डॉट (बिन्दी) है। आप भी तो डॉट हो। तो सभी याद आ जायेगा। फुलस्टॉप। क्वेचन मार्क (?), आश्चर्य की मात्रा (!) या कॉमा (,) ये नहीं दो, फुलस्टॉप (.)। फुलस्टॉप की मात्रा इज़ी है ना। और सब तो मुश्किल है। और सबसे मुश्किल है क्वेश्चन मार्क। वो लगाने बहुत जल्दी आता है। सुनाया है ना कि व्हाई (क्यों) शब्द आये तो क्या करो? फ्लाय। ऊपर उड़ जाओ। व्हाई नहीं फ्लाय। फ्लाय (उड़ना) करना आता है?
वैसे डबल फारेनर्स में अच्छे-अच्छे रत्न निकले हैं। बापदादा ऐसे रत्नों को देख हर्षित होते हैं। साथ-साथ ऐसे रत्न जो बहुत अमूल्य हैं, ऐसे अमूल्य रत्नों में अगर बहुत ज़रा-सा भी कहाँ दाग़ दिखाई देता है तो अमूल्य रत्न के आगे वो दाग़ अच्छा नहीं लगता। होता छोटा-सा दाग़ है लेकिन कहेंगे तो दाग़ ना! तो जब अमूल्य रत्न बन गये हो तो बाकी छोटा-सा दाग़ क्यों रखा है? अच्छा लगता है क्या? ये तो नहीं सोचते हो कि चन्द्रमा में भी काला दिखाई देता है इसीलिये अच्छा है! डबल विदेशी सैम्पल बनकर दिखाओ। ज़रा भी कोई कमी नहीं। वैसे दाग़ का कारण क्या होता है? चाहते नहीं हो कि दाग़ लगे लेकिन लग जाता है। क्यों लग जाता है? मूल कारण जानते हो? जानने में तो होशियार हो। जानते भी हो और जब आपस में वर्कशॉप करते हो तो बापदादा वर्कशॉप के भी फोटो देखते हैं, कारण बहुत निकालते हो – ये कारण है, ये कारण है… और अच्छी-अच्छी बातें वर्कशॉप में निकालते हो लेकिन वर्क में नहीं लाते हो। बॉडी कॉन्सेसनेस के बहुत सूक्ष्म रूप बनते जाते हैं। अभी मोटे-मोटे रूप में बॉडी कॉन्सेस नहीं आता लेकिन सूक्ष्म और रॉयल रूप में आता है। बुद्धि बहुत अच्छी चलाते हो, जब अच्छी-अच्छी बातें सोचते हो तो बापदादा खुश होते हैं लेकिन अच्छी बातें सोचते-करते फिर थोड़ा भी अगर कोई एडीशन-करेक्शन करते हैं तो मैं-पन आ जाता है। जैसे खुशी से अपने विचार देते हो ऐसे दूसरे के विचार भी खुशी से लो। घबराओ नहीं – ये कैसे होगा, ये क्या किया, ये तो हो नहीं सकता, ये तो चल नहीं सकता…। दूसरे की राय, दूसरे की बात को भी इतना ही रिगार्ड दो जितना अपनी बात को रिगार्ड देते हो। विचार देना अलग चीज़ है, आपको उनके विचार अगर ठीक नहीं भी लगते हैं तो उसके इफेक्ट में आना, अवस्था नीचे-ऊपर हो जाये तो ये सेवा, सेवा नहीं होती। एडजेस्ट करना, दूसरों के विचार को भी अपने विचारों के माफिक सोचना-समझना – यह है दूसरे के विचारों को रिगार्ड देना। जैसे समझते हो ना कि मैंने यह सोचा या विचार निकाला, विचार किया, काम किया, तो मेरे विचारों का महत्व होना चाहिये, दूसरों को रिगॉर्ड देना चाहिये, ऐसे दूसरे का विचार भी अपने विचारों से मिलाना, वो मिलाना नहीं आता है, दूसरे के विचार को दूसरों के विचार समझते हो क्योंकि अभी आप डबल विदेशी भी सेवा के क्षेत्र में प्लैन बनाने में अच्छी प्रोग्रेस कर रहे हो और आगे भी होनी है। लेकिन एडजेस्टमेन्ट की विशेषता को यूज़ करो। अगर कोई भी बच्चा आगे बढ़ता है तो बापदादा को खुशी होती है। ऐसे नहीं समझते कि ये क्यों आगे बढ़े! जो बढ़ता है वो बहुत अच्छा। तो डबल विदेशियों के लिये बापदादा को स्नेह तो है ही लेकिन सेवा के प्लैन वा प्रैक्टिकल सेवा के लिये जो करते हो, कर रहे हो, उसके लिये बहुत-बहुत रिगार्ड है।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि अगर आप डबल विदेशी नहीं होते तो बाप का एक टाइटल प्रैक्टिकल में सिद्ध नहीं होता। कौन-सा? विश्व कल्याणकारी। तो अभी देखो विश्व के चारों ओर बाप का मैसेज दे रहे हो ना! इस सीज़न में चारों ओर के आये हैं ना! टोटल कितने देशों के आये हैं? (58) बाकी कितने मुख्य देश रहे हैं? (125) छोटे-छोटे देश तो बहुत होंगे, लेकिन मुख्य देश 125 रहे हुए हैं! तो अभी डबल विदेशियों को तो बहुत काम करना पड़ेगा! भारत में भी करना है तो विदेश में भी करना है, दोनों जगह करना है। बापदादा ने पहले भी कहा है कि सेवा की सम्पूर्ण सफलता की निशानी ये है कि कोई भी तरफ की आत्मा उलहना नहीं दे कि हमारे तरफ तो मैसेज पहुँचा ही नहीं। मैसेज पहुँचाया और सुनते हुए कोई ने अपना भाग्य नहीं बनाया तो आपके प्रति उलहना नहीं हुआ, वह उन आत्मा के प्रति हुआ। लेकिन आपके प्रति कोई उलहना नहीं रह जाये। जब कहते ही हैं कि मास्टर विश्व कल्याणकारी हैं तो विश्व के चारों ओर मैसेज़ तो पहुँचना चाहिये। भारत में भी पहुँचना चाहिये तो विदेश में भी पहुँचना चाहिए। जिस समय आपका विजय का झण्डा लहराता हो उस समय यदि कोई आत्मा आकर यह उलहना दे तो अच्छा लगेगा? एक तरफ आप झण्डा लहरा रहे हैं और दूसरे तरफ लोग उलहना दे रहे हैं तो अच्छा लगेगा? नहीं लगेगा ना! डबल विदेशियों की हिम्मत अच्छी है, बाप से प्यार तो है ही लेकिन सेवा से भी प्यार अच्छा है। दोनों से प्यार का सर्टीफिकेट अच्छा है। अभी कौन-सा सर्टीफिकेट लेना है? जितने सेवाधारी, उतने ही शक्तिधारी। तो शक्तिस्वरूप बन गये – यह सर्टीफिकेट लेना है। बापदादा देखते हैं – मैजारिटी बाप से और सेवा से प्यार में पास हैं। अच्छा।
चारों ओर के धर्म सत्ता के अधिकारी आत्मायें, सदा स्वराज्य सत्ता के अधिकारी आत्मायें, सदा डबल सत्ताधारी डबल ताजधारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा सर्व शक्तियों द्वारा शक्ति स्वरूप का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले शक्तिशाली आत्मायें, सदा लक्ष्य को लक्षण के रूप में दिखाने वाले, अनुभव कराने वाले शक्तिशाली महावीर, अचल-अडोल आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
वरदान:- | दृढ़ संकल्प द्वारा व्यर्थ की बीमारी को सदा के लिए खत्म करने वाले सफलतामूर्त भव सफलता मूर्त बनने के लिए सभी बच्चों को यही एक दृढ़ संकल्प करना है कि न कभी व्यर्थ सोचेंगे, न कभी व्यर्थ देखेंगे, न व्यर्थ सुनेंगे, न व्यर्थ बोलेंगे और न व्यर्थ करेंगे…सदा सावधान रह व्यर्थ के नाम निशान को भी समाप्त करेंगे। यह व्यर्थ की बीमारी बहुत कड़ी है जो योगी बनने नहीं देती, क्योंकि व्यर्थ है विस्तार, विस्तार में भटकने वाली बुद्धि को समेटने की शक्ति द्वारा सार स्वरूप में स्थित करो तब सहजयोगी, सफलतामूर्त बनेंगे। |
स्लोगन:- | दूसरों को कहकर सिखाने के बजाए करके सिखाने वाले बनो। |
सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष योग अभ्यास के समय अनुभव करें कि मैं आत्मा भ्रकृटी आसन पर विराजमान एक चैतन्य दीपक हूँ। मैं अज्ञानता का अंधकार दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाकर विश्व को रोशन करने के निमित्त ब्राह्मण कुल दीपक हूँ।