16-04-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 03-04-94 मधुबन |
सन्तुष्टता का आधार – सम्बन्ध, सम्पत्ति और सेहत (तन्दुरुस्ती)
आज दिलाराम बाप अपने सदा सन्तुष्ट रहने वाली सन्तुष्ट आत्माओं व सन्तुष्ट मणियों को देख रहे हैं। ये रूहानी मणियों की चमक सारे दरबार को चमका रही है। सन्तोषी आत्मायें स्वयं को भी प्रिय और सर्व को भी प्रिय और बाप को तो प्रिय हैं ही। तो ऐसे हो ना! क्योंकि इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन में अप्राप्ति का नाम ही नहीं है। सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्मायें हो। तो जहाँ सर्व प्राप्ति हैं वहाँ सदा सन्तुष्टता स्वत: और स्वाभाविक है ही। नेचुरल स्वभाव उसका सन्तोष का है। और सन्तुष्टता का स्वरूप व स्वभाव, निजी संस्कार ऐसा श्रेष्ठ है जो असन्तुष्ट आत्मा को भी सन्तुष्टता का वायब्रेशन, वायुमण्डल, सन्तोष वायुमण्डल में बदल देता है। इस संगमयुग में विशेष बापदादा की देन सन्तुष्टता है। एक सन्तुष्टता की विशेषता और विशेषताओं को भी सहज अपने समीप लाती है। लेकिन सदा सन्तुष्ट हो। परिस्थिति कितनी भी बदले लेकिन सन्तुष्टता की स्थिति को परिस्थिति बदल नहीं सकती। परस्थिति है ही बदलने वाली। लेकिन स्व सन्तुष्टता की स्थिति सदा प्रगतिशील है। आपके आगे कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति ऐसे ही अनुभव होती है जैसे पपेट (कठपुतली) शो देखते हो ना। होता सब कुछ है लेकिन होता पपेट है। तो कैसी भी परिस्थिति पपेट शो लगता है वा आजकल का जो फैशन है कार्टून शो, अच्छा लगता है ना। होता तो शेर भी है, बिल्ली भी होती है, लेकिन होता क्या है? कार्टून। कहानी पूरी होती है लेकिन है कार्टून की स्टोरी, रीयल नहीं है। कभी भी, कोई भी परिस्थिति आए तो यही समझो एक बेहद के स्क्रीन पर कार्टून शो चल रहा है वा पपेट शो चल रहा है। तो वह देखकर के परेशान होंगे कि मनोरंजन करेंगे? शो देखना तो अच्छा ही है ना। तो यह माया का वा प्रकृति का यह भी एक शो है। जिसको साक्षी स्थिति में सदा सन्तुष्टता के स्वरूप में देखते रहो। अपनी शान में रहते हुए देखो – सन्तुष्ट मणि हूँ, सन्तोषी आत्मा हूँ। ये है संगम का श्रेष्ठ शान। तो शान में स्थित होना आता है ना? कि परेशान होना अच्छा लगता है? सदा सन्तुष्टता की विशेषता को इमर्ज रूप में स्मृति में रखो।
प्राप्तियों में विशेष सम्बन्ध और सम्पत्ति आवश्यक है। सम्बन्ध में भी अगर एक भी सम्बन्ध अप्राप्त है तो सम्पूर्ण सन्तुष्टता नहीं होगी। तो सम्बन्ध में भी सर्व चाहिये और अविनाशी चाहिये। अगर कोई भी सम्बन्ध विनाशी है तो अप्राप्ति और असन्तुष्टता स्वत: हो जाती है। लेकिन एक ही वर्तमान संगमयुग है जिसमें सर्व अविनाशी सम्बन्ध एक बाप से अनुभव कर सकते हो। सतयुग में भी सम्बन्ध बहुत थोड़े हैं, सर्व नहीं हैं, लेकिन इस समय जिस सम्बन्ध की आकर्षण हो, अनुभूति करना चाहे वो सम्बन्ध परम आत्मा द्वारा अनुभव कर सकते हो। हर एक के जीवन में सम्बन्ध की भी अलग-अलग पसन्दी होती है। किसको बाप का सम्बन्ध इतना अच्छा नहीं लगेगा, फ्रैण्ड ज्यादा अच्छा लगेगा। लेकिन एक समय पर और एक से सर्व सम्बन्ध प्राप्त हैं? सर्व प्राप्ति है कि कुछ रहा हुआ है? पीछे बैठे हुए क्या समझते हैं? आज नये-नये को आगे बैठने का चांस दिया है। अच्छा, जो इस कल्प में इस बार पहली बार आये हैं वो हाथ उठाओ। भले पधारे। बापदादा भी पद्मगुणा स्नेह सम्पन्न वेलकम कर रहे हैं। नये होते भी कल्प-कल्प के अधिकारी हैं, ये तो समझते हो ना! बापदादा सदा कहते हैं बड़े तो बड़े हैं लेकिन छोटे समान बाप हैं इसलिये सदा अपने रूहानी बेहद के सम्पूर्ण अधिकार के निश्चय और नशे में रहो। बेहद का नशा है, हद का नहीं रखना। देखो, कितने श्रेष्ठ अधिकारी हो जो स्वयं बाप ऑलमाइटी अथॉरिटी के ऊपर अधिकार रख दिया। परमात्म अधिकारी इससे बड़ा अधिकार और है ही क्या! जब बीज को अपना बना लिया तो वृक्ष तो समाया हुआ है ही। सर्व सम्बन्धों का भी अविनाशी अधिकार ले लिया और सम्पत्ति में भी अगर सिर्फ स्थूल सम्पत्ति है तो भी सदा सन्तुष्ट नहीं रह सकते। स्थूल सम्पत्ति के साथ अगर सर्व गुणों की सम्पत्ति, सर्व शक्तियों की सम्पत्ति और श्रेष्ठ सम्पन्न ज्ञान की सम्पत्ति नहीं हैं तो सन्तुष्टता सदा नहीं रह सकती। लेकिन आप सबके पास यह श्रेष्ठ सम्पत्तियाँ हैं। सम्पत्तिवान हो ना! दुनिया वाले तो सिर्फ स्थूल सम्पत्ति वाले को सम्पत्ति भव का वरदान देते हैं लेकिन आप सबको वरदाता बाप सर्वश्रेष्ठ सम्पत्ति भव का वरदान देते हैं। तो सब सम्पत्ति हैं ना? कि कोई कम है? फुल है? पीछे वालों के ऊपर सबसे ज्यादा ध्यान है। आगे वालों का ध्यान बाप के तरफ ज्यादा है और बाप का ध्यान पीछे वालों के ऊपर ज्यादा है। जितना ही दूर हैं उतना ही नयनों में समाये हुए हैं।
साकार वतन में तो साकार की बातें होती हैं। देखो, परमधाम में आप सभी आत्मायें कितनी समीप होंगी! सभी साथ होंगे ना! और सूक्ष्म वतन में भी इतना बेहद है जो जितना समीप आना चाहे आ सकते हैं। लेकिन बच्चों का स्नेह निराकार और आकार को भी साकार बनाना चाहता है। तो बाप क्या कहते हैं? जी हजूर, जी हाज़िर। बच्चे तो बाप के भी हज़ूर हैं, मालिक हैं ना! मालिक को हज़ूर कहा जाता है और बालक को भी मालिक कहा जाता है। तो सभी कौन हो? सन्तुष्ट मणियां। सम्बन्ध में भी सन्तुष्ट और सम्पत्ति में भी सन्तुष्ट। सम्बन्ध, सम्पत्ति और तीसरी होती है सेहत, तन्दुरुस्ती। आप सभी तन्दुरुस्त हो ना कि बीमार हो? आत्मा तो तन्दुरुस्त है ना, शरीर की कोई बात ही नहीं। आत्मा सदा शक्तिशाली है। संगम पर श्रेष्ठ सेहत वा तन्दुरुस्ती है आत्मा की तन्दुरुस्ती। इस समय के आत्मा की तन्दुरुस्ती जन्म-जन्म के शरीर की तन्दुरुस्ती भी दिलाती है। लेकिन इस समय थोड़ा-सा प्रकृति अपना रूप दिखाती है। इसमें भी कोई बड़ी बात नहीं। यह भी कार्टून शो है। तो सर्व प्राप्तियाँ हैं ना। सम्बन्ध भी हैं, सम्पत्ति भव भी है, सर्व सम्बन्ध भव भी हैं और सदा तन्दुरुस्त भव भी हैं। तीनों वरदान वरदाता बाप से मिले हुए हैं। तो वरदानों को समय पर कार्य में लगाओ। सिर्फ वरदान सुनकर खुश नहीं हो जाओ कि हाँ, मुझे बहुत अच्छा वरदान मिला या सिर्फ नोट करके नहीं रखो लेकिन समय पर वरदान को काम में लगाने से वरदान कायम रहते हैं। अगर वरदानों को समय पर काम में नहीं लगाया तो वह वरदान फल नहीं देता। वरदान तो अविनाशी बाप का है लेकिन वरदान को फलीभूत करना है। बीज तो है लेकिन उससे फल कितना निकालते हो, वह आपके हाथ में है। कोई सिर्फ वरदान के बीज को देखकरके खुश होते रहते हैं बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, लेकिन फलदायक बनाओ। बार-बार स्मृति का पानी दो, वरदान के स्वरूप में स्थित होने की धूप दो, फिर देखो वरदान सदा फलीभूत होता रहेगा, और वरदानों को भी साथ में लायेगा। वरदानों के फल स्वरूप बन जायेंगे। तो आज के त्रि-वरदान को फलीभूत करना और समय पर जरूर याद रखना। समय पर भूल जाते हैं, पीछे पढ़ते रहते हो कि हाँ, ये वरदान तो था! वरदानों को जितना समय पर कार्य में लगायेंगे उतना वरदान और श्रेष्ठ स्वरूप दिखाता रहेगा। तो सभी को वरदान मिला ना! अच्छा।
चारों ओर के देश-विदेश के सर्व सन्तोषी आत्माओं को, सन्तुष्टमणियों को, सर्व प्राप्ति सम्पन्न आत्माओं को, जिन्होंने भी याद, पत्र, कार्ड आज के दिवस के भी भेजे हैं, तो आज के विशेष दिवस की भी सर्व बच्चों को याद-प्यार पद्मगुणा स्वीकार हो। चाहे दूर बैठकर मन में, दिल में मना रहे हैं, चाहे सम्मुख मना रहे हैं, कार्ड वा पत्र सब पहले वतन में पहुँचते हैं। तो सभी के पत्र, कार्ड और शुभ संकल्पों की याद, शुभ भावनाओं की याद के रिटर्न में बापदादा का विशेष याद-प्यार और सर्व बालक सो मालिक बच्चों को नमस्ते। अच्छा।
दादियों से मुलाकात
सूक्ष्म इशारों की भाषा तो जानते हो ना। जैसे अव्यक्त बाप इशारों की ही भाषा जानते हैं। अव्यक्त वतन में तो नयनों की भाषा और इशारों की भाषा है। तो आप भी जानते हो ना। नयनों की भाषा जानते हो? साकार से सीखे हो ना। मुख की भाषा तो सुनी, अभी है नयनों की भाषा। नयनों की भाषा बड़ी प्यारी है। आवाज़ से परे तो जाना ही है। फिर भी बाप जी हज़ूर तो करते ही हैं। अच्छा।
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात
1- स्वयं और समय पर भरोसा नहीं इसलिए दृढ़ संकल्प से कमजोरियों को निकाल दो
सभी अपने को विश्व सेवाधारी अनुभव करते हो? विश्व सेवाधारी वा विश्व कल्याणकारी वही बन सकता है जिसके पास सर्वशक्तियों का ख़ज़ाना सम्पन्न है। तो सर्वशक्तियों का स्टॉक जमा है? सर्वशक्तियाँ हैं वा कोई शक्ति है, कोई नहीं है? कभी-कभी कोई कम हो जाती है! सदा अपने आपको चेक करो कि सर्वशक्तियां हैं वा कोई शक्ति की कमी है? अगर कमी है तो उसके कारण को सोचो क्योंकि कारण को समझेंगे तो निवारण कर सकेंगे क्योंकि ये माया का नियम है कि जो कमजोरी आपमें होगी उसी कमजोरी के द्वारा ही आपको मायाजीत बनने नहीं देगी। तो वर्तमान समय भी समय प्रति समय माया उसी कमजोरी का लाभ लेगी और आगे चलकर जब अन्त समय आयेगा तो भी वो कमजोरी धोखा दे देगी। तो ऐसे नहीं सोचना कि थोड़ी सी कमजोरी है, एक ही कमजोरी है, बाकी तो बहुत अच्छा हूँ, अच्छी हूँ! एक कमजोरी भी धोखा दे देगी इसलिये कोई भी कमजोरी अपने अन्दर रहने नहीं दो। अगर स्वयं नहीं मिटा सकते हो तो कोई का सहयोग लो, जो शक्तिशाली आत्मायें हैं, उनका सहयोग लो। विशेष योग का प्रयोग करो। किसी भी विधि से कमजोरी को मिटाना ही है यह दृढ़ संकल्प करो। यह भी नहीं सोचो कि आगे चलकर हो जायेगा। नहीं, अभी से निकाल दो क्योंकि स्वयं पर और समय पर कोई भरोसा नहीं है। ऐसे नहीं सोचो कि आगे चलकर ये करेंगे, हो जायेगा। नहीं। आपका स्लोगन है ‘अब नहीं तो कब नहीं’ तो जो करना है वो अभी करना है क्योंकि बाप सम्पन्न है और आपका बाप से प्यार है तो बाप जैसा बनना ही प्यार का प्रैक्टिकल स्वरूप है। जितना बाप से बहुत-बहुत प्यार है इतना ही पुरुषार्थ से भी बहुत-बहुत प्यार है? जितना बाप से प्यार के लिये फ़लक से कहते हो कि 100 प्रतिशत से भी ज्यादा प्यार है, ऐसे पुरुषार्थ के लिये भी कहो। सोचेंगे, करेंगे… नहीं। सब कमजोरियां खत्म। गे, गे नहीं। शिवरात्रि मनाने आये हो तो कुछ तो बलि चढ़ेंगे ना। बापदादा सभी बच्चों को सम्पन्न देखना चाहते हैं। बाप का प्यार है इसलिए बच्चों की कमी अच्छी नहीं लगती। तो क्या याद रखेंगे कि सदा सम्पन्न, सम्पूर्ण रहना ही है कि थोड़ी-थोड़ी कम्पलेन करते रहेंगे? कम्पलीट! कम्पलेन खत्म। सम्पन्न बनना ही मनाना है।
2) वेस्ट को बेस्ट बनाना अर्थात् होलीहंस बनना
सभी अपने को सदा होलीहंस अनुभव करते हो? होलीहंस का अर्थ है संकल्प, बोल और कर्म जो व्यर्थ होता है उसको समर्थ में बदलना क्योंकि व्यर्थ जैसे पत्थर होता है, पत्थर की वैल्यु नहीं, रत्न की वैल्यु होती है। तो व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् होलीहंस बनना। तो व्यर्थ आता है? होलीहंस फ़ौरन परख लेता है कि ये काम की चीज़ नहीं है, ये काम की है। तो आप होली-हंस हो ना। तो व्यर्थ समाप्त हुआ? क्योंकि अभी नॉलेजफुल बने हो कि अगर अभी संकल्प, बोल या कर्म व्यर्थ गंवाते हैं तो सारे कल्प के लिये अपने जमा के खाते में कमी हो जाती है। जानते हो ना, नॉलेजफुल हो? तो जानते हुए फिर व्यर्थ क्यों करते हो? चाहते नहीं हैं लेकिन हो जाता है ऐसे कहेंगे! जो समझते हैं अभी भी हो सकता है वो हाथ उठाओ। आप हो कौन? (राजयोगी) राजयोगी का अर्थ क्या है? राजा हो ना! तो मन को कन्ट्रोल नहीं कर सकते! किंग में तो रुलिंग पॉवर होती है ना! तो आप में रुलिंग पॉवर नहीं है! अमृतवेले और फिर सारे दिन में बीच-बीच में अपना आक्यूपेशन याद करो मैं कौन हूँ? क्योंकि काम करते-करते यह स्मृति मर्ज हो जाती है कि मैं राजयोगी हूँ इसलिये इमर्ज करो। ये नियम बनाओ। ऐसे नहीं समझो कि हम तो हैं ही राजयोगी। लेकिन राजयोगी की सीट पर सेट होकर रहो। नहीं तो चलते-चलते कर्म में बिजी होने के कारण योग भूल जाता है, सिर्फ कर्म ही रह जाता है। लेकिन आप कर्मयोगी कम्बाइण्ड हो। योगी सदा ही रुलिंग पॉवर, कन्ट्रोलिंग पॉवर में रहें। फिर राजयोगी डबल पॉवर वाले कभी भी व्यर्थ सोच नहीं सकते। तो अभी कभी नहीं कहना, सोचना भी नहीं कि राजयोगी वेस्ट कर सकते हैं। तो ये कौन-सा ग्रुप है? बेस्ट ग्रुप। बापदादा को भी बेस्ट ग्रुप अति प्यारा है क्यों? 63 जन्म बहुत वेस्ट किया ना, अभी यह छोटा-सा जन्म बेस्ट ही बेस्ट। अच्छा!
वरदान:- | अटूट याद द्वारा सर्व समस्याओं का हल करने वाले उड़ता पंछी भव जब यह अनुभव हो जाता है कि मेरा बाबा है, तो जो मेरा होता है वह स्वत: याद रहता है। याद किया नहीं जाता है। मेरा अर्थात् अधिकार प्राप्त हो जाना। मेरा बाबा और मैं बाबा का – इसी को कहा जाता है सहजयोग। ऐसे सहजयोगी बन एक बाप की याद के लगन में मगन रहते हुए आगे बढ़ते चलो। यह अटूट याद ही सर्व समस्याओं का हलकर उड़ती पंछी बनाए उड़ती कला में ले जायेगी। |
स्लोगन:- | मनन शक्ति के अनुभवी बनो तो ज्ञान धन बढता रहेगा। |
सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष योग अभ्यास के समय अपने आकारी फरिश्ते स्वरूप में स्थित हो, विश्व परिक्रमा करते हुए प्रकृति सहित सर्व आत्माओं को लाइट माइट देने की सेवा करें।