MURLI 15-01-2024|BRAHMA KUMARIS“मीठे बच्चे – पावन बनने के लिए याद की यात्रा बहुत ज़रूरी है, यही मुख्य सबजेक्ट है, इस योगबल से तुम सर्विसएबुल गुणवान बन सकते हो।”

MURLI 15-01-2024|BRAHMA KUMARIS

15-01-2024प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
MURLI 15-01-2024|BRAHMA KUMARIS“मीठे बच्चे – पावन बनने के लिए याद की यात्रा बहुत ज़रूरी है, यही मुख्य सबजेक्ट है, इस योगबल से तुम सर्विसएबुल गुणवान बन सकते हो।”
प्रश्नः-तुम बच्चे जो योग सीखते हो यही सबसे निराला योग है कैसे?
उत्तर:-आज तक जो योग सीखते या सिखाते आये वह मनुष्यों का मनुष्यों के साथ योग जुटा। लेकिन अभी हम निराकार के साथ योग लगाते हैं। निराकार आत्मा निराकार बाप को याद करे – यह है सबसे निराली बात। दुनिया में कोई भगवान को याद भी करते तो बिगर परिचय। आक्यूपेशन के बिना किसी को याद करना यह भक्ति है। ज्ञानवान बच्चे परिचय सहित याद करते हैं।

ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। बच्चों को पहले-पहले तो बाप का परिचय मिला है। छोटा बच्चा पैदा होता है तो उनको पहले-पहले माँ बाप का परिचय मिलता है। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं, जिनको रचता बाप का परिचय मिला है। यह भी बच्चे जानते हैं ऊंच ते ऊंच बाप ही है, उनकी ही महिमा बतानी है। महिमा गाते भी हैं शिवाए नम:, ब्रह्मा नम:, विष्णु नम: शोभता नहीं। शिवाए नम: शोभता है। ब्रह्मा देवता नम:, विष्णु देवताए नम: अक्षर शोभता है। उन्हों को देवता कहना पड़े। ऊंच ते ऊंच है भगवान। जब कोई आते हैं तो पहले-पहले बाप की महिमा ज़रूर बतानी है। वह सुप्रीम बाप है। बच्चे भूल जाते हैं कि बाप की महिमा कैसे सुनायें। पहले तो यह समझाना है कि वह सुप्रीम बाप है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। तीनों को याद करना पड़े। यूँ तो याद शिवबाबा को ही करना है – तीनों रूप में। यह तो पक्का करना पड़े। तुम बाप की महिमा को जानते हो, तब तो करते हो। उन्होंने तो ऊंचे ते ऊंच बाप को ठिक्कर भित्तर में कह दिया है। मनुष्य में भी कह देते हैं लेकिन मनुष्य तन में भी सदैव तो रह नहीं सकते। वह तो सिर्फ लोन लेते हैं। वह खुद कहते हैं मैं इनके तन का आधार लेता हूँ। तो पहली बात पक्की करनी है कि बाप है सत्य। वही सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं। नर से नारायण सत्य बाप ने बनाया है। सतयुग में इन लक्ष्मी-नारायण का ही राज्य था। वह कैसे बने? किसने बनाया? कब कथा सुनाई? कब राजयोग सिखाया? यह सब तुम अभी समझते हो। और सब योग होते हैं मनुष्यों के मनुष्यों के साथ। ऐसा होता नहीं जो मनुष्य का योग निराकार के साथ हो, वह भी परिचय से। आजकल भल शिव से योग लगाते हैं, पूजा करते हैं परन्तु जानते उनको कोई नहीं। यह भी नहीं समझते कि प्रजापिता ब्रह्मा ज़रूर साकार दुनिया में होगा। मूँझे हुए हैं। समझते हैं प्रजापिता ब्रह्मा तो पहले-पहले सतयुग में होना चाहिए। अगर सतयुग में प्रजापिता ब्रह्मा हो तो फिर सूक्ष्मवतन में क्यों दिखाया है? अर्थ नहीं समझते। यह साकार है कर्मबन्धन में, वह सूक्ष्म है कर्मातीत। यह ज्ञान कोई में भी नहीं है। ज्ञान देने वाला एक बाप ही है। वह जब आकर ज्ञान दे तब तुम दूसरों को सुनाओ। बाप का किसको परिचय देना बहुत सहज है। अल्फ पर ही समझाना है। यह सभी आत्माओं का बेहद का बाप है। किसको परिचय देने में कोई तकलीफ नहीं है। बहुत सहज है। परन्तु निश्चय नहीं, प्रैक्टिस नहीं तो किसको समझा नहीं सकते। किसको ज्ञान नहीं देते तो गोया अज्ञानी है। ज्ञान नहीं तो भक्ति है ना। देह-अभिमान है। ज्ञान होगा ही देही-अभिमानी में। हम आत्मा हैं, हमारा बाप परमपिता परमात्मा वही बाप, टीचर, सतगुरू भी है। प्रजापिता ब्रह्मा भी है ना। बाप ने प्रजापिता ब्रह्मा का आक्यूपेशन भी बताया है। तो अपना भी आक्यूपेशन बताया है। मनुष्यों ने तो शिव और शंकर को मिलाकर एक कर दिया है। कहते हैं शंकर ने ऑख खोली तो विनाश हो गया। अब विनाश तो बाम्बस से, नैचुरल कैलेमिटीज़ से होता है। शिव शंकर महादेव कहते हैं। यह चित्र कोई यथार्थ नहीं है। यह सब भक्ति मार्ग के चित्र हैं। वहाँ ऐसी कोई बात नहीं। प्रजापिता ब्रह्मा भी देहधारी है। कितने ढेर बच्चे हैं। तो यह सब चित्र पूजा के लिए ही हैं। बाप ने समझाया है यह व्यक्त वह अव्यक्त। जब अव्यक्त बने हैं तो फरिश्ता हो जाते हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन दोनों ही हैं ज़रूर। सूक्ष्मवतन में भी जाते हैं। बाप ने समझाया है प्रजापिता ब्रह्मा जो मनुष्य है वही फरिश्ता बनता है। फिर राजाई का भी उसमें दिखाया है। फिर यह राज्य करेंगे। सूक्ष्मवतन के चित्र न हो तो समझाने में मुश्किलात हो। वास्तव में विष्णु का चतुर्भुज रूप भी है नहीं। यह हैं भक्ति मार्ग के चित्र। बाप समझाते हैं आत्मा को ही पतित से पावन बनना है। पवित्र बनकर चली जायेगी अपने धाम। आत्मायें निराकारी दुनिया में रहती हैं, साकारी हैं यहाँ। बाकी सूक्ष्म-वतन की कोई मुख्य कहानी है नहीं। सूक्ष्मवतन का राज़ भी बाप अभी समझाते हैं। तो मूलवतन, सूक्ष्मवतन फिर है स्थूलवतन। तो पहले सबको बाप का परिचय देना है। भक्ति मार्ग में भी बाबा को हे भगवान, हे प्रभू कहते हैं। सिर्फ जानते नहीं। हमेशा कहते हैं शिव परमात्माए नम:, शिव देवता कभी नहीं कहेंगे। ब्रह्मा देवता कहेंगे। शिव को परमपिता परमात्मा ही कहते हैं। शिव देवता कभी नहीं कहेंगे, शिव परमात्मा ही कहेंगे। उनको फिर सर्वव्यापी थोड़ेही कहा जाता है। पतितों को पावन बनाने का कर्तव्य करना है तो क्या भित्तर ठिक्कर में जाकर करेंगे? इसको ही घोर अन्धियारा कहा जाता है। यह भी ड्रामा में नूँध है।

बाप आकर समझाते हैं यदा यदाहि.. किसकी ग्लानी? वो लोग तो श्लोक सुनाकर फिर अर्थ सुनाते हैं। यह तो तुम बच्चों को वहाँ जाकर देखना चाहिए। बोलना चाहिए कि हम इनका अर्थ समझाते हैं। फिर फट से बैठ सुनाना चाहिए। ऐसे थोड़ेही समझेंगे कि यह बी.के. हैं। भल स़फेद ड्रेस है परन्तु छापा थोड़ेही लगा हुआ है। तुम कहाँ भी जाकर सुन सकते हो और कह सकते हो इसका अर्थ तो बताओ। देखो वह क्या सुनाते हैं। बाकी यह इतने सब चित्र तो डीटेल समझने के हैं। अथाह ज्ञान है। सागर को स्याही बनाओ.. तो भी अन्त नहीं। फिर सेकेण्ड की भी बात सुनाई, सिर्फ बाप का परिचय देना है। वही बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है। हम सभी उनके बच्चे ब्रदर्स हैं। तो हमको भी जरूर स्वर्ग का राज्य होना चाहिए, परन्तु सबको मिल न सके। बाप आते ही हैं भारत में और भारतवासी ही स्वर्गवासी बनते हैं। दूसरे तो आते ही पीछे हैं। यह तो बहुत सहज है, परन्तु समझते नहीं हैं। बाबा को तो वन्डर लगता है। एक दिन गणिकायें आदि भी आकर सुनेंगी। पिछाड़ी में आने वाले तीखे हो जायेंगे। वहाँ भी कोई जाकर सर्विस कर सकते हैं। बहुतों को लज्जा आती है, देह-अभिमान बहुत है। बाबा कहते हैं वेश्याओं को भी समझाना है। भारत का नाम भी उन्हों ने ही गिराया है। इसमें मुख्य चाहिए योगबल। बिल्कुल ही पतित हैं, पावन होने के लिए याद की यात्रा चाहिए। अभी वह याद का बल कुछ कम है। किसमें ज्ञान है तो फिर याद कम है। डिफीकल्ट सबजेक्ट है, इनमें जब पास हों तब गणिकाओं का उद्धार कर सकें। अच्छी-अच्छी अनुभवी मातायें जाकर समझायें। कन्याओं को तो अनुभव नहीं। मातायें समझा सकती हैं। बाप कहते हैं पवित्र बनो तो विश्व के मालिक बन जायेंगे। दुनिया ही शिवालय बन जायेगी। सतयुग को शिवालय कहा जाता है, वहाँ अथाह सुख हैं। उन्हों को भी ऐसे समझाओ कि बाप कहते हैं अब प्रतिज्ञा करो पवित्र बनने की। ऐसे पतितों को पावन बनाने की तलवार बहुत तीखी चाहिए। इसमें शायद अभी देरी है। समझाने में भी नम्बरवार हैं। सेन्टर पर रहते हैं। बाबा जानते हैं सब एकरस नहीं हैं। सर्विस पर जो जाते हैं उनमें रात दिन का फर्क है। तो पहले जब किसको समझाओ तो बाप का ही परिचय दो। बाप की ही महिमा करो। इतने गुण सिवाए बाप के और किसके हो नहीं सकते। वही गुणवान बनाते हैं। बाप ही सतयुग की स्थापना करते हैं। अभी यह है संगमयुग जबकि तुम पुरुषोत्तम बन रहे हो। तुम आत्माओं को बैठ समझायेंगे। यह तो समझाते हो आत्मा का ही शरीर है। कहाँ तक कोई समझते हैं यह शक्ल से मालूम पड़ता है। कोई मूडी होते हैं तो सारी शक्ल ही बदल जाती है। आत्मा समझ बैठेंगे तो शक्ल भी अच्छी रहेगी। यह भी प्रैक्टिस होती है। घर गृहस्थ में रहने वाले इतने उछल नहीं सकते क्योंकि गोरखधन्धा लगा पड़ा है। पूरा अभ्यास करें तब चलते-फिरते, उठते-बैठते पक्के हों। याद से ही तुम पावन बनते हो। आत्मा जितना योग में रहती उतना पावन बनती है। सतयुग में तुम सतोप्रधान थे तो बहुत खुश थे।

अभी संगम पर तुम हंसते बहलते रहते हो, बेहद का बाप मिला बाकी क्या चाहिए। बाप पर तो कुर्बान होना है। साहूकार कोई मुश्किल निकलते हैं। गरीबों को ही मिलता है, ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है। धीरे-धीरे वृद्धि को पाते रहेंगे। कोटों में कोई विजय माला का दाना बनते हैं। बाकी प्रजा तो बननी ही है नम्बरवार। कितने ढेर बन जायेंगे। साहूकार गरीब सब होंगे। यह पूरी राजधानी स्थापन हो रही है। बाकी सब अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे। तो बाप समझाते हैं बच्चों को दैवीगुण भी धारण करने हैं। तुम्हारा खान-पान भी अच्छा चाहिए। तुम्हें कभी यह आश नहीं रखनी है कि मैं फलानी चीज़ खाऊं। यह आशायें यहाँ होती हैं। बाबा के बड़े-बड़े वानप्रस्थियों के आश्रम देखे हुए हैं। बड़ी शान्ति से रहते हैं। यहाँ तो यह बेहद की बातें सब बाप समझाते हैं। वेश्यायें, गणिकायें भी ऐसी-ऐसी आयेंगी जो तुम से भी तीखी हो जायेंगी। बड़े फर्स्टक्लास गीत गायेंगी, जो सुनते ही खुशी का पारा चढ़ जायेगा। जब ऐसे गिरे हुए को तुम समझाकर श्रेष्ठ बनाओ तब तुम्हारा नाम भी बहुत ऊंचा होगा। कहेंगे यह तो वेश्याओं को भी इतना ऊंच बनाती हैं। खुद ही कहेंगे हम शूद्र थे, अब ब्राह्मण बने हैं, फिर हम सो देवता, क्षत्रिय बनेंगे। बाबा हर एक को समझ सकते हैं कि यह कुछ उन्नति को पायेंगे वा नहीं। पिछाड़ी में आने वाले उनसे आगे चढ़ जायेंगे। आगे चलकर तुम सब देखेंगे। अब भी देख रहे हो। नये बच्चे सर्विस में कितने उछलते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) पतितों को पावन बनाने की सेवा करो, गणिकाओं, वेश्याओं को ज्ञान दो, गिरे हुए को उठाओ, उनका उद्धार करो तब नाम बाला हो।

2) स्वयं की दृष्टि को पवित्र बनाने के लिए चलते फिरते अभ्यास करो कि हम आत्मा हैं, आत्मा से बात करते हैं। बाप की याद में रहो तो पावन बन जायेंगे।

वरदान:-अनादि स्वरूप की स्मृति द्वारा सन्तुष्टता का अनुभव करने और कराने वाले सन्तुष्टमणी भव
अपने अनादि और आदि स्वरूप को स्मृति में लाओ और उसी स्मृति स्वरूप में स्थित हो जाओ तो स्वयं भी स्वयं से सन्तुष्ट रहेंगे और औरों को भी सन्तुष्टता की विशेषता का अनुभव करा सकेंगे। असन्तुष्टता का कारण होता है अप्राप्ति। आपका स्लोगन है – पाना था वो पा लिया। बाप का बनना अर्थात् वर्से का अधिकारी बनना, ऐसी अधिकारी आत्मायें सदा भरपूर, सन्तुष्टमणी होंगी।
स्लोगन:-बाप समान बनने के लिए – समझना, चाहना और करना इन तीनों की समानता हो।

अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो

वरदानी रूप से सेवा करने के लिए पहले स्वयं में शुद्ध संकल्प धारण करो। सारा दिन शुद्ध संकल्पों के सागर में लहराते रहो और जिस समय चाहे शुद्ध संकल्पों के सागर के तले में जाकर साइलेन्स स्वरूप हो जाओ। आपकी यह डीप साइलेन्स स्थिति वायुमण्डल का परिवर्तन कर देगी और आप स्वयं को डबल लाइट फरिश्ता अनुभव करेंगे।M