Murli 12-07-2023

12-07-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – अभी तुम्हें पवित्र जीवात्मा बनना है। इस समय कोई पवित्र जीवात्मा नहीं हैं इसलिए अपने को महात्मा भी नहीं कहला सकते।”
प्रश्नः-सतयुगी राजाई का इनाम किन बच्चों को प्राप्त होता है?
उत्तर:-जो श्रीमत पर याद की रेस में नम्बरवन जाते हैं, उन्हें ही राजाई का इनाम मिलता है। तीखी रेस होगी तो रजिस्टर में नाम अच्छा होगा और इनाम के अधिकारी बनेंगे। तुम बच्चे दूरादेशी बन बड़ी दूर की रेस करते हो। एक सेकेण्ड में निशान तक (परमधाम तक) पहुँच वापस लौटकर आते हो। तुम्हारी बुद्धि में है पहले हम मुक्ति में जायेंगे फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे। तुम्हारे जैसी रेस और कोई कर नहीं सकता।
गीत:-आखिर वह दिन आया आज…….. Audio Player

ओम् शान्ति। यह कौन जानते हैं कि आखिर वह दिन आया आज? बच्चे जानते हैं आखिर वह दिन आया आज, जो हम बाप के सम्मुख हुए हैं। आत्मा कहती है इस शरीर द्वारा। अभी तुम बैठे हो, जानते हो हम आत्मायें अभी परमपिता परमात्मा के सम्मुख बैठी हैं। बरोबर पांच हजार वर्ष पहले भी हम आत्मायें यानी जीव की आत्मायें, परमात्मा से सम्मुख मिली थी। आत्मा कहती है – मेरा यह शरीर है। शरीर नहीं कहेगा – मेरी यह आत्मा है। हम आत्माओं का बाप आखिर आज आया है। आना भी जरूर है, भक्ति के बाद ज्ञान देने लिए। ज्ञान से सद्गति करने लिए आखिर आया है। यह सारी दुनिया नहीं जानती। सारी दुनिया के सम्मुख हो भी नहीं सकेंगे। तुम बच्चों को भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार निश्चय है। पहले तो आत्मा निश्चय करते हैं, फिर निश्चय करते हैं हमारा बाप फिर से आया हुआ है। तुम समझते होंगे ऐसे सब निश्चय करते हैं। परन्तु ऐसे भी नहीं है। यह ऐसा विचित्र है जो घड़ी-घड़ी भूल जाता है। हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा के सम्मुख हैं – यह भूल जाते हैं। यह तो दुनिया भी जानती है पतित जीव आत्माओं को पावन बनाने परमपिता परमात्मा आते हैं। जीव आत्मायें, आत्माओं को पवित्र बनाने नहीं आती। सभी जीव आत्मायें हैं, परमपिता परमात्मा एक ही है, उनको जीव नहीं कहेंगे क्योंकि उनको कोई स्थूल-सूक्ष्म शरीर नहीं है। यह बाप बैठ समझाते हैं। तुम जो भी नामधारी देखते हो, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का चित्र देखते हो वे सूक्ष्मवतन में रहते हैं। वह भी सूक्ष्म जीव आत्मा ठहरे। यह बड़ी समझने की बातें हैं। मनुष्य तो भल कहते हैं फलाना महात्मा है। परन्तु पतित दुनिया में महात्मा आ कहाँ से सकते! यहाँ कोई सुप्रीम पावन हो न सके। हाँ, वह सुप्रीम बाप पावन बनाकर गये हैं। सतयुग आदि में देवी-देवता थे। यह तो जरूर समझेंगे कि पवित्र आत्मायें थी, अभी पतित जीव आत्मायें हैं। पावन जीव आत्मायें भी थी। बरोबर सतयुग आदि से सृष्टि पर पवित्र जीव आत्मायें थी। उन्हों को महान् आत्मा कहेंगे। बाप समझाते हैं पतित दुनिया में कोई भी महान् आत्मा हो नहीं सकते। सब पतित जीव आत्मायें हैं। पतित जीव आत्मा जरूर औरों को भी पतित ही बनायेंगी। वहाँ हैं पवित्र जीव आत्मायें। तो क्या करेंगे? ऐसे नहीं कि पवित्र जीव आत्मा बनायेंगे। नहीं। वहाँ बनाने की बात नहीं रहती। इस समय सभी पवित्र जीव आत्मायें बनती हैं। वहाँ तो हैं ही सब पावन। इतना पावन बनाने वाला कौन? बाप बैठ समझाते हैं तुम जब देवी-देवता थे तो पावन थे। यहाँ आकर पतित बने हो। यह है ही पाप जीव आत्माओं की दुनिया। अक्षर बिल्कुल क्लीयर समझाना है – पाप जीव आत्मा क्योंकि आत्मा भी पतित है, शरीर भी पतित है। वहाँ फिर महात्मा अक्षर नहीं देते। वहाँ तो हैं ही सब पवित्र, कहते ही देवी-देवता हैं। सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, अहिंसा परमो धर्म जीव आत्मायें हैं। सम्पूर्ण निर्विकारी माना सम्पूर्ण पवित्र। तुम बच्चों को समझाया जाता है संन्यासी पवित्र रहने लिए पुरुषार्थी हैं। अच्छे-अच्छे संन्यासी पवित्र रहते हैं, जिनको महात्मा कहा जाता है। पवित्र रहने लिए अलग रहते हैं। परन्तु वह तो हैं निवृत्ति मार्ग वाले। उनको भक्ति मार्ग में महात्मा कहेंगे, ज्ञान मार्ग में नहीं। ज्ञान और भक्ति दोनों अलग-अलग गाये जाते हैं। आधाकल्प सतयुग-त्रेता में ज्ञान की प्रालब्ध है, यहाँ फिर भक्ति की प्रालब्ध कहेंगे। यह है भक्ति मार्ग। पहले भक्ति भी अव्यभिचारी होती है फिर अन्त में तमोप्रधान व्यभिचारी भक्ति होती है। अभी व्यभिचारी भक्ति का अन्त होना है, तब बाप आये हैं। बाप एक ही बार आकर ज्ञान से आधाकल्प के लिए तुम्हारी प्रालब्ध बनाते हैं। तुम नम्बरवन पुरुषार्थ करते हो। कोई तो राजा-रानी बनते हैं, कोई फिर प्रजा वा दास-दासी बन जाते हैं क्योंकि राजधानी स्थापन हो रही है।

तुम अब दूरादेशी बुद्धि बनते हो। दूरादेशी बुद्धि को त्रिकालदर्शी कहा जाता है। जिन्हें तीनों लोकों, तीनों कालों का ज्ञान है उन्हें त्रिकालदर्शी कहा जाता है। तुम अब तीनों लोकों को जानते हो। मूलवतन, सूक्ष्मवतन और स्थूलवतन तीन लोक हुए ना। तुम अब दूरादेशी बन गये हो। तुम्हारी बुद्धि आदि से अन्त तक जाती है – नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। कोई कमजोर होते हैं जो रेस में पीछे रह जाते हैं। यह तो बहुत बड़ी दूरादेशी रेस है। आत्माओं की रेस कभी सुनी नहीं होगी। तुम आत्मायें जानती हो हम स्टूडेन्ट हैं, हमारी ये रेस है। फलाने निशान तक पहुँच कर फिर लौटना है। तुम आत्माओं की यह बड़ी दूर की रेस है। बुद्धि जानती है हम वास्तव में वहाँ के रहने वाले हैं। एक सेकेण्ड में हम वहाँ पहुँच जायेंगे, जीवनमुक्त बन जायेंगे। हम असुल परमधाम के निवासी हैं। यथार्थ रीति बुद्धि जानती है – हम परमधाम जायेंगे फिर आयेंगे। जैसे रेस में निशान तक पहुँचकर फिर लौटते हैं। हम भी बाबा के पास जायेंगे फिर वापिस आयेंगे। अब आत्मायें रेस सीख रही हैं। तुम सबको कहते हो मनमनाभव, बुद्धि का योग अपने बाप और परमधाम से रखो, जहाँ तुम अशरीरी रहते हो। यह सिर्फ तुम्हारी बुद्धि में ही यथार्थ रीति है। तीनों कालों, तीनों लोकों की नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है। 84 जन्मों का ज्ञान और कोई में हो नहीं सकता। तुम जानते हो हमको इस छी-छी दुनिया से, छी-छी शरीर से मुक्त होकर जाना है। हम जा रहे हैं। बाप रोज़ यह रेस सिखलाते हैं। तुम्हारी रेस अविनाशी है। बाप को जितना जास्ती याद करेंगे उतना तुम्हारा रजिस्टर में नाम अच्छा रहेगा। कहेंगे इनकी बुद्धि की यात्रा बहुत तीखी है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। याद नहीं करते हैं, तो विकर्म विनाश न होने के कारण पिछाड़ी में रह जाते हैं। प्रजा वा दास-दासी बनना यह कोई प्राइज़ नहीं है। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनना इसको इनाम कहा जाता है। बाप राजाई का इनाम देते हैं, अगर उनकी मत पर चल दौड़ी लगाई तो। कोई तो दो क़दम भी दौड़ी नहीं लगाते हैं। अगर प्रजा वाले होंगे तो बिल्कुल कम दर्जा पा लेंगे। यहाँ रहने वाले भी होंगे तो भी राजाई में बहुत कम पद पायेंगे। तुम्हारी कितनी विशाल बुद्धि हुई है।

अब बैंगलोर, मद्रास के बच्चे बैठे हैं, उन्हों को फिर मद्रासी भाषा में कोई बैठ समझाये। हमारी भाषा तो हिन्दी है। कल्प पहले भी ऐसे समझाया होगा। कहेंगे भगवान् सब भाषायें क्यों नहीं जानते! परन्तु ड्रामा में है नहीं। ड्रामा में होता तो मैं सब भाषाओं में भाषण करता। समझो भिन्न-भिन्न भाषाओं वाले बैठे हों तो क्या हम सब भाषाओं में बैठ बोलूंगा क्या? यह तो हो नहीं सकता। एक-दो को भी कहाँ तक सुनायेंगे। घमसान हो जाए। तो समझाना चाहिए बाबा ने कल्प पहले जिस भाषा में समझाया था उसी भाषा में ही समझाते हैं, इसलिए हिन्दी का जोर है। अंग्रेजी भी जरूरी है क्योंकि इन्हों का कनेक्शन अंग्रेजों से जास्ती है। रशिया, अमेरिका आदि की भाषा अपनी-अपनी है। हैं एक ही धर्म वाले क्रिश्चियन। परन्तु भाषायें बहुत हैं। यहाँ भी हैं सब भारतवासी आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले परन्तु अपने धर्म को भूल गये हैं। भाषायें कितनी हो गई हैं। सब मिक्सचर हैं। जिसकी जो भाषा है उसमें फिर उनको सुनाना है। इसमें भी बड़ा होशियार चाहिए, जो समझकर और समझाये। साथी ऐसा साथ लाना चाहिए जो एक्यूरेट समझा सके। यह है सबसे बड़ा चैतन्य तीर्थ। वह सब हैं जड़ तीर्थ। साधू, सन्त, महात्मा सब वहाँ जाते हैं। बहुत दूर-दूर जाते हैं। जो भारत को पावन बनाकर गये हैं उन्हों के मन्दिर में जाते हैं। यह भी समझने की बातें हैं ना। बाप कहते हैं झाड़ की टाल, टालियां, पत्ते उसका विस्तार कितना समझायें! तुम तो समझ गये हो – यह छोटे-छोटे टाल-टालियां हैं। टाली में भी कितने पत्ते होंगे। अथाह मठ पंथ हैं। तुम्हारा थुर तो कितना बड़ा होना चाहिए। कितने पत्ते होने चाहिए। आदि सनातन देवी-देवता धर्म सतयुग से लेकर चला आया है। तो हिन्दू कितने होंगे। परन्तु हिन्दू भी नहीं रहे हैं, और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं। यह है कल्प वृक्ष, शुरू में आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे। हिन्दू कहलाने वाले भी वास्तव में हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म के, परन्तु कनवर्ट हो गये हैं। बाप कहते हैं मैं आकर फिर उस देवी-देवता कहलाने वाले धर्म की स्थापना करता हूँ। जो कनवर्ट हो गये हैं वही फिर से आकर वर्सा लेंगे। जब देवी-देवता कहलाने वाला एक भी नहीं रहता तब ही बाप आते हैं। आकर समझाते हैं – तुम्हारे जड़ यादगार खड़े हैं। क्राइस्ट आते हैं तो उनके धर्म की चर्चा आदि होती नहीं। यहाँ तो अभी भी देवताओं के मन्दिर आदि निशानी हैं। तुम्हारा जब राज्य होगा तो क्राइस्ट आदि का नाम-निशान नहीं होगा। यहाँ तो सभी का नाम-निशान है। तुम जानते हो क्राइस्ट कब आया, क्रिश्चियन धर्म कैसे स्थापन हुआ? क्राइस्ट अब किस शरीर में होगा? जरूर पतित शरीर में ही होगा। खुद तो पावन था ना। तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान है। तुमको दूरादेशी बनाया है। हम आत्मायें कहाँ रहती हैं? कहाँ से आती हैं? यह किसको पता नहीं है। रहने के स्थान को परमात्मा मान लिया है। वास्तव में आत्मा झूठी बनने से काया भी झूठी बन जाती है। साधू लोग कह देते झूठी माया, झूठी काया….. बाकी आत्मा तो निर्लेप है। अपने मतलब की बात कह देते हैं। ऐसे क्यों नहीं कहते झूठी आत्मा, झूठी आत्मा की काया। काया को ही काई पर (अर्थी पर) बिठाते हैं। आत्मा को तो काई (अर्थी) पर नहीं बिठाते हैं। काई पर काया को बिठाया जाता है। आत्मा ने तो एक काया को छोड़ दूसरी काया में जाकर प्रवेश किया। यह समझ की बात है। कोई भी साधू-सन्त आदि को तुम समझा सकते हो। यहाँ पतित दुनिया में कोई भी महात्मा नहीं है। महान् आत्माओं को पावन आत्मा कहा जाता है। तो शरीर भी पावन चाहिए। यह है ही आइरन एजड। परन्तु कन्या जब तक विकार में नहीं गई है तो पूजी जाती है। पवित्रता के लिए ही पुकारते हैं – आकरके हमको पावन पवित्र बनाओ। जबकि पुकारते रहते हैं तो तुम उनको महान् आत्मा कैसे मान सकते हो। महात्मा तो कोई है नहीं। यह है विचित्र परमपिता परमात्मा। तुम जानते हो हम जो पावन जीव आत्मायें देवी-देवता थीं, अभी पतित बनी हुई हैं। धर्म भ्रष्ट हैं। क्रिश्चियन लोग अपने धर्म को जानते हैं। झट कहेंगे हम क्रिश्चियन हैं। तुम ऊंच ते ऊंच धर्म वाले अपने धर्म को भूल गये हो। भूल जाने से धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़े हो। तुम श्रेष्ठाचारी थे, अब रावण ने भ्रष्टाचारी कर दिया है। यह अर्थ भी तुम समझ सकते हो। तुम बच्चे अभी अपनी भविष्य ऊंच तकदीर बनाने के लिए धारणा कर रहे हो। श्रीमत का उल्लंघन करने से तकदीर को लकीर लग जाती है। यह भी भूल जाते हैं कि श्रीमत देने वाला बाप है। तो आखिर वह दिन आया आज, यह तुम जानते हो। सभी एक्यूरेट नहीं जानते। अन्त में जानेंगे, जब पूरे समझ जायेंगे। अभी तो घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। मुश्किल कोई सच बतलाते हैं। झूठ बोलने में देरी नहीं करते हैं। माया अच्छे-अच्छे रूसतम बच्चों को थप्पड़ लगा देती है। बाप तो सब जानते हैं, बतलाते हैं – तुम भूल करते हो, बड़ी डिससर्विस करते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) दूरादेशी बन तीनों लोकों और तीनों कालों को जान बुद्धि से रेस करनी है। इस छी-छी दुनिया, छी-छी शरीर से मुक्त होना है।

2) झूठ बोलने की आदत को मिटाना है। श्रीमत का उल्लंघन कर डिससर्विस नहीं करनी है।

वरदान:-लौकिक वृत्ति दृष्टि का परिवर्तन कर अलौकिकता का अनुभव करने वाले ज्ञानी तू आत्मा भव
लौकिक सम्बन्धों में रहते हद के सम्बन्ध को न देख आत्मा को देखो। आत्मा देखने से या तो खुशी होगी या रहम आयेगा। यह आत्मा बेचारी परवश है, अज्ञान में है, अंजान है, मैं ज्ञानवान आत्मा हूँ तो उस अंजान आत्मा पर रहम कर अपनी शुभ भावना से बदलकर दिखाऊंगी। अपनी वृत्ति और दृष्टि को बदलना ही अलौकिक जीवन है, जो काम अज्ञानी करते वह आप ज्ञानी तू आत्मा नहीं कर सकते। आपके संग का रंग उन्हें लगना चाहिए।
स्लोगन:-अपने श्रेष्ठ कर्म से विश्व पिता का नाम बाला करना ही विश्व कल्याणकारी बनना है।