10-05-2023 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘ | मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम रूहानी सोशल वर्कर हो, तुम्हें भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है, दु:खधाम को सुखधाम बनाना है” | |
प्रश्नः- | संगम पर तुम ब्राह्मण बच्चे किस बात में बहुत एक्सपर्ट (तीखे) बन जाते हो? |
उत्तर:- | सभी मनुष्यात्माओं की मनोकामना पूर्ण करने में अभी तुम एक्सपर्ट बने हो। मनुष्यों की कामना मुक्ति और जीवन्मुक्ति पाने की है, वह तुम्हें पूर्ण करनी है। तुम सभी को शान्ति का रास्ता बताते हो। शान्ति कोई जंगल में नहीं मिलती, लेकिन आत्मा का स्वधर्म ही शान्ति है। शरीर से डिटैच हो बाप को याद करो तो सुख-शान्ति का वर्सा मिल जायेगा। |
गीत:- | मुखड़ा देख ले प्राणी… Audio Player |
ओम् शान्ति। बेहद का बाप अपने सिकीलधे बच्चों को समझा रहे हैं। जिन बच्चों ने बाप को जाना है और बाप की शरण में आये हैं। कहते हैं प्रभू तेरी शरण आये। शरण मिले तब, जबकि बाप आये और बच्चों को समझावे। भगत भगवान की शरण में आते हैं क्योंकि यहाँ सब दु:खी हैं। भारत दु:खधाम है। एक दो को दु:ख देते रहते हैं। बाप ने समझाया है यह है तुम्हारी हंस मण्डली। यहाँ पावन बच्चों बिगर कोई भी आ नहीं सकता। बाप समझाते हैं – बच्चे, पावन भारत को ही सुखधाम कहा जाता है और कोई खण्ड को सुखधाम नहीं कहेंगे। भारत ही सुखधाम और भारत ही दु:खधाम बनता है। भारतवासी बहुत दु:खी हैं क्योंकि पतित हैं। परन्तु यह बात उन्हें कोई समझाते नहीं। बाप समझाते हैं – संन्यासी पावन हैं, घरबार छोड़ते हैं, परन्तु खुद भी गाते हैं – पतित-पावन सीताराम…। अभी तुम आये हो पतित-पावन बाप के पास। जो एक ही परमपिता परमात्मा है वही सारी दुनिया को पावन बनाते हैं। मनुष्य, मनुष्य को पावन बना न सके। यह है ही पतित दुनिया। कोई भी पावन नहीं। कहते भी हैं – हे परमपिता परमात्मा। फिर कह देते ईश्वर सर्वव्यापी है। शिवोहम्, तत् त्वम्। सब बिचारे बाप को भूले हुए हैं। जैसे मनुष्य शराब पीते हैं, तो भले वह देवाला मारा हुआ हो तो भी शराब से एकदम नशा चढ़ जाता है। वैसे ही मनुष्य को यह पता नहीं पड़ता कि यह विकार ही पतित बनाते हैं, तब तो संन्यासी भी पावन बनने के लिए घरबार छोड़ते हैं। परन्तु वह है निवृत्ति मार्ग। यहाँ तो बाप आये हैं। जो आधाकल्प से दु:खी हैं वह आकर शरण लेते हैं। दु:खी करने वाली है माया। पाँच विकारों के महारोगी हैं। मनुष्य को रावण ने बिल्कुल असुर बनाया है। जब बिल्कुल दु:खधाम बन जाता है, तब फिर बाप आकर सुखधाम स्थापन करते हैं।
तुम हो रूहानी सोशल वर्कर। तुमसे बाप सेवा कराते हैं कि – बच्चे, तुम इस भारत को स्वर्ग बनाओ। सारा मदार योग पर है। योग में कोई 7 रोज़ अच्छी रीति रहे तो कमाल हो जाये। ऐसे कोई योग में मुश्किल टिक सकेंगे। घर याद आयेगा, मन भागता रहेगा। सात रोज़ मशहूर हैं। गीता, भागवत, ग्रन्थ का पाठ भी 7 रोज़ रखते हैं। यह रस्म-रिवाज इस संगमयुग की है। सात रोज़ भट्ठी में रहना पड़े। किसकी भी याद न आवे। एक बाप के साथ योग लगा रहे। सात रोज़ इस एकरस अवस्था में रहना – यह बड़ा मुश्किल है। तुम बच्चों के यादगार भी यहाँ ही हैं। तुम अभी झाड़ के नीचे बैठकर राजयोग की तपस्या करते हो। जगत अम्बा भी है तो तुम बच्चे भी हो। तुम हो सभी मनुष्यों की सर्व मनोकामनायें स्वर्ग में पूरी करने वाले अथवा मनुष्यों को मुक्ति-जीवन्मुक्ति का फल देने वाले। तुम एक्सपर्ट हो। दुनिया में कोई नहीं जानते कि मुक्ति-जीवन्मुक्ति किसको कहा जाता है? कौन देते हैं? पतित दुनिया में कौन पावन बना सकते हैं? संन्यासी लोग शान्ति के लिए घरबार छोड़ते हैं। जंगल में जाते हैं, परन्तु शान्ति तो मिल नहीं सकती। आत्मा का स्वधर्म है शान्त और मनुष्य बाहर ढूँढ़ते हैं। यह किसको पता नहीं कि आत्मा का स्वधर्म शान्त है। (रानी के हार का मिसाल) यह आरगन्स हैं, चाहे कर्मेन्द्रियों से काम लो या न लो। हम आत्मा इस शरीर से अपने को डिटैच कर लेते हैं। जैसे रात को आत्मा डिटैच हो जाती है ना। सब कुछ भूल जाती है। उसको फिर नींद कहेंगे। यहाँ सिर्फ शान्ति में तुम बैठते हो। आत्मा कहती है मैं कर्मेन्द्रियों से काम कर थक गयी हूँ। अच्छा, अपने को शरीर से डिटैच कर लो। यह आरगन्स हैं कर्म करने के लिए। यह नॉलेज बाप ही देते हैं। डिटैच कर बैठ जाओ, कुछ न बोलो। परन्तु ऐसे डिटैच हो कहाँ तक बैठेंगे? यह तो तुम जानते हो कर्म बिगर कोई रह न सके। डिटैच तो हुए परन्तु साथ में फायदा भी चाहिए। सिर्फ डिटैच हो बैठने से इतना फ़ायदा नहीं होगा। डिटैच हो फिर मुझे याद करो तो तुमको फायदा होगा, शक्ति मिलेगी। बाप अपने बच्चों को समझाते हैं – बच्चे, यह ज्ञान-इन्द्र-सभा है। यहाँ तुम सब रत्न बैठे हो। कोई पत्थर-बुद्धि बैठा होगा तो वायुमण्डल खराब कर देगा क्योंकि शिवबाबा की याद में रहेगा नहीं। उनको अपने मित्र-सम्बन्धी याद पड़ते रहेंगे। तुमको तो अपने बाप को निरन्तर याद करना है। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। यह बड़ी युनिवर्सिटी है। मेडिकल कॉलेज में कोई अनपढ़ आकर बैठे तो कुछ नहीं समझेगा। उनको तो एलाउ नहीं करेंगे। सिर्फ देखने से कुछ समझ नहीं सकेंगे। इस नॉलेज को भी विकारी पतित समझ न सके, इसलिए ऐसे को एलाउ नहीं किया जाता है। कोई कहे कि हम क्लास में आवें, लेक्चर सुनें? परन्तु इससे कुछ समझ नहीं सकेगा। यह युनिवर्सिटी है – मलेच्छ से स्वच्छ देवता बनने के लिए। यहाँ ऐसे कोई को एलाउ नहीं किया जाता है। बाप को तो जान न सके। बाप है गुप्त। तुम जानते हो बेहद के बाप की शरण में आये हैं – बाप से सदा सुख का वर्सा लेने। बाप खुद कहते हैं यह ब्रह्मा का जो शरीर है यह बहुत जन्मों के अन्त का वानप्रस्थ वाला है। यह भी बहुत शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है। अभी मैं सब वेद-शास्त्रों का सार इन द्वारा सुनाता हूँ। ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दिखाते हैं। विष्णु की नाभी-कमल से ब्रह्मा निकला। समझाया है विष्णु की नाभी-कमल से ब्रह्मा, ब्रह्मा की नाभी-कमल से विष्णु निकला है। ब्रह्मा-सरस्वती दोनों कैसे नारायण-लक्ष्मी बनते हैं। फिर 84 जन्म पूरा कर अन्त में ब्रह्मा सरस्वती बनते हैं। उन्होंने फिर गाँधी की नाभी-कमल से नेहरू दिखाया है। अभी यहाँ तो क्षीरसागर है नहीं। यह है विषय सागर। क्षीरसागर सतयुग में दिखाते हैं।
तुम बच्चे जानते हो – आधाकल्प से माया ने दु:खी बनाया है। भारत जितना दु:खी और कोई नहीं है। भारत जितना सुखी भी और कोई हो नहीं सकता। बाप कहते हैं देवी-देवता धर्म तो प्राय: लोप होना ही है। तब तो मैं आकर फिर से नया धर्म स्थापन करूं। बरोबर अब स्थापन हो रहा है। तुम बच्चे आकर बाप से वर्सा ले रहे हो। जानते हो स्वर्ग में कौन राज्य करते हैं। बचपन में राधे-कृष्ण वही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। अब तो बाप आया हुआ है। भिन्न नाम-रूप से लक्ष्मी-नारायण पढ़ते हैं। श्रीकृष्ण का साँवरा रूप यहाँ बैठा है। बाप इसको उस पार ले जाते हैं। शास्त्रों में दिखाते हैं श्रीकृष्ण को टोकरी में उस पार ले गये। अब शिवबाबा आया हुआ है। तुम बच्चों को ऑखों पर बिठाकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। सारी वंशावली को पढ़ा कर बाप ले जाते हैं – कंसपुरी से कृष्णपुरी में। एक की तो बात नहीं है। रावणपुरी से तुम सबको निकाल, नयनों पर बिठाकर सुखधाम ले जाता हूँ। मैं तुम बच्चों को स्वर्ग तक पहुँचाने आया हूँ। फिर इस पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा। लड़ाई की बात भी शास्त्रों में है। परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। यह दादा भी बहुत शास्त्र पढ़ा हुआ था। अब बाबा कहते हैं इन सबको छोड़ मामेकम् याद करो। मैं सबका सद्गुरू हूँ। कंसपुरी कलियुग को, कृष्णपुरी सतयुग को कहा जाता है। अब तुमको रावणपुरी से रामपुरी वा कृष्णपुरी में ले चलता हूँ। चलेंगे सुखधाम कृष्णपुरी में? गाते हैं ना – भजो राधे-गोविन्द.. यह हुआ भक्ति मार्ग। अभी तुम राधे-गोविन्द फिर से बन रहे हो। अभी तुम्हारा दोनों ताज नहीं रहा है – न लाइट का, न राजाई का। पवित्र को ही लाइट का ताज देते हैं। लक्ष्मी-नारायण तो हैं ही सदा पवित्र। उनको कभी संन्यास नहीं करना पड़ता है। संन्यासी जन्म लेकर फिर घरबार छोड़ते हैं पवित्र बनने के लिए। तुम्हारा 21 जन्मों के लिए यह एक जन्म का संन्यास होता है। वह कोई 21 जन्म पवित्र नहीं होते हैं। वह पहले तो विकारियों के पास जन्म ले पतित बन जाते फिर पवित्र बनने लिए घरबार छोड़ते हैं। वह है रजोगुणी संन्यास। बाप कहते हैं मैं नॉलेजफुल हूँ। नॉलेजफुल, ब्लिसफुल… मेरे में ही फुल नॉलेज है। सूक्ष्मवतन, मूलवतन, स्थूलवतन और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की फुल नॉलेज तुम बच्चों को देता हूँ, जिससे तुम फुल बनते हो। देवी-देवतायें हैं ही फुल। तुम बच्चे बाप की गोद में आये हो। जानते हो हम श्रीमत पर चल फिर से राज्य-भाग्य लेते हैं। यह हार-जीत का खेल है। माया से हारे हार है, माया से जीते जीत है। तुम सर्वशक्तिमान बाप से योग लगाकर, शक्ति ले माया पर विजय पाते हो। समझते हो – हमारा 84 जन्मों का ड्रामा अब पूरा होता है। हम फिर से राज्य-भाग्य लेते हैं। लक्ष्मी-नारायण को क्षीरसागर में दिखाते हैं। यह है विषय सागर। राधे-कृष्ण तो छोटे बच्चे थे। श्रीकृष्ण को बहुत प्यार से झूले में झुलाते हैं। समझते हैं – वह स्वर्ग का प्रिन्स है। श्रीकृष्ण को 16 कला कहा जाता है, राम को 14 कला। वही श्रीकृष्ण फिर 16 कला से 14 कला बनते हैं। पुनर्जन्म तो लेना पड़े ना। बाबा ने समझाया है – पूरे 84 जन्म तो सब नहीं लेते होंगे। और धर्म वाले 84 जन्म नहीं लेंगे। समझने की बातें हैं। फादर से वर्सा जरूर मिलना चाहिए। वह है स्वर्ग का रचयिता। तो जरूर स्वर्ग का मालिक ही बनायेंगे। वह फादर परमधाम में रहते हैं। हम भी वहाँ से आते हैं। बाबा को अच्छी रीति याद करना है। याद से शान्ति मिलेगी। मनुष्य तो कहते हैं – परमात्मा से योग कैसे लगायें? मूँझ पड़ते हैं। तुमको तो सब समझ मिली है।
बाप आते ही हैं दु:खधाम और सुखधाम के संगम पर। कलियुग अन्त है दु:खधाम, सतयुग आदि है सुखधाम। दु:खधाम को बदल सुखधाम में बाप ही बिठायेंगे। इतनी ही समझ की बात है। यह पढ़ाई पवित्रता के बिगर कोई पढ़ न सके इसलिए यहाँ पतित को नहीं बिठाया जाता है। समझाना है – तुम आधा कल्प के महारोगी हो। माया ने महा-रोगी बनाया है इसलिए पहले भट्ठी में रखा जाता है। तुम बच्चे हरेक के आक्यूपेशन को जान गये हो। शिव के मन्दिर में जायेंगे तो समझ जायेंगे – यह बाबा गति-सद्गति दाता है। सबसे बड़ा तीर्थ भी भारत है। परन्तु गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। शिवबाबा का नाम गुम कर दिया है। शिवबाबा ही आकर सबको दु:ख से छुड़ाते हैं। बाकी पानी की गंगा तो पतित-पावनी है नहीं। वह तो पहाड़ों से निकली है। उसको पतित-पावनी कैसे कहेंगे। इसको अन्धश्रद्धा कहा जाता है। मनुष्य क्या-क्या करते रहते हैं। गाते हैं – मनुष्य जैसा दुर्लभ जन्म है नहीं। सो दुर्लभ जन्म तुम्हारा अभी का है जबकि बाप आया हुआ है। यह तुम्हारा अमूल्य जन्म है। तुम पवित्र बन भारत को स्वर्ग बना देते हो इसलिए शिव-शक्ति भारत-माता गाई हुई है। तुम जानते हो – बाबा पवित्रता की मदद से भारत तो क्या, सारी दुनिया को पवित्र बनाते हैं। जो-जो पवित्रता की अंगुली देते हैं, मनमनाभव रहते हैं, वही मददगार हैं। इसका अर्थ भी तुम समझते हो। यह दादा भी नहीं समझते थे। इनके बहुत गुरू किये हुए हैं। शास्त्र पढ़े हुए हैं। तब बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं ही तुम्हारा सब कुछ हूँ। गति-सद्गति दाता हूँ। मनुष्य तो पतित हैं। अब तुम आये हो शिवबाबा के पास, ब्रह्मा द्वारा वर्सा लेने। इस निश्चय बिगर कोई आ न सके। आकर और ही अशान्ति फैला देंगे। तुम भारत को सुप्रीम शान्ति में ले जाते हो। यह है स्थापना का कार्य, जो मनुष्य कर न सके। तुम भी शिवबाबा की मदद से कर रहे हो। तुमको भी प्राइज़ क्या मिलती है? स्वर्ग के मालिक बनते हो। ऐसे बाबा के बनते भी फिर निश्चय-बुद्धि नहीं हैं तो माया एकदम हप कर लेती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस एक जन्म में पुरानी दुनिया से संन्यास कर बाप का मददगार बनना है। पवित्रता की अंगुली देनी है और मनमनाभव रहना है।
2) भारत को सुप्रीम शान्ति में ले जाने की सेवा करनी है। इस शरीर से डिटैच हो बाप की याद में रहकर शक्ति लेनी है। शान्ति का दान देना है।
वरदान:- | तीनों कालों, तीनों लोकों की नॉलेज को धारण कर बुद्धिवान बनने वाले विघ्न-विनाशक भव जो तीनों कालों और तीनों लोकों के नॉलेजफुल हैं उन्हें ही बुद्धिवान अर्थात् गणेश कहा जाता है। गणेश अर्थात् विघ्न-विनाशक। वह किसी भी परिस्थिति में विघ्न रूप नहीं बन सकते। यदि कोई विघ्न रूप बनें भी तो आप विघ्न-विनाशक बन जाओ, इससे विघ्न खत्म हो जायेंगे। विघ्न-विनाशक आत्मायें वातावरण, वायुमण्डल को भी परिवर्तन कर देती हैं, उसका वर्णन नहीं करती। |
स्लोगन:- | अपनी चलन और चेहरे से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराना ही श्रेष्ठता है। |