09-07-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 26-02-95 मधुबन |
संगमयुग उत्सव का युग है – उत्सव मनाना अर्थात् अविनाशी उमंग-उत्साह में रहना
आज त्रिदेव रचता त्रिमूर्ति शिव बाप अपने रूहानी डायमण्ड्स के साथ डायमण्ड जुबली वा डायमण्ड जयन्ती मनाने आये हैं। इसी विचित्र जयन्ती को डायमण्ड जयन्ती कहते हो क्योंकि बाप अवतरित होते ही हैं कौड़ी समान आत्माओं को हीरे तुल्य बनाने। तो बापदादा चारों ओर के बच्चों को जो हीरे से भी अमूल्य हैं, सबको सामने देख रहे हैं। बापदादा के आगे सिर्फ मधुबन की सभा नहीं है लेकिन विश्व के चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों की सभा है। सबके दिल की मुबारक के स्नेह भरे गीत कहो, बोल कहो बाप समीप से सुन रहे हैं। दिल का आवाज़ दिलाराम के पास पहले पहुँचता है। तो बापदादा देख रहे हैं कि बच्चों के सेवा का प्रत्यक्ष प्रमाण चारों ओर से मधुबन, बाप के स्वीट होम तक पहुँच रहा है। वैसे भी शिव जयन्ती को उत्सव कहते हैं। यथार्थ रीति से उत्सव आप ब्राह्मण ही मनाते हो क्योंकि उत्सव का अर्थ ही है – सर्व उत्साह-उमंग में रहें। तो आप जो भी बैठे हो, सभी के दिल में उत्साह और उमंग कितना है? अविनाशी है या आज के लिये है? अविनाशी है ना? इसलिये बापदादा इस श्रेष्ठ संगमयुग को उत्सव का युग कहते हैं। हर दिन आपके लिये उत्साह सम्पन्न है। हर दिन उत्सव है।
जो गायन है, आप लोग टॉपिक रखते हो ‘अनेकता में एकता’ तो प्रैक्टिकल में अनेक देश, अनेक भाषायें, अनेक रूप-रंग लेकिन अनेकता में भी सबके दिल में एकता है ना! क्योंकि एक बाप है। चाहे अमेरिका से आये हो, चाहे अफ्रीका से आये हो लेकिन दिल में एक बाप है। एक श्रीमत पर चलने वाले हो। तो बापदादा को अच्छा लगता है कि अनेक भाषाओं में होते हुए भी मन का गीत, मन की भाषा एक है। चाहे किसी भी भाषा वाले हो, काला ताज तो मिला है (सभी हेडफोन से अपनी-अपनी भाषा में सुन रहे हैं), अभी यही काला ताज बदलकर गोल्डन हो जायेगा। लेकिन सबके मन की भाषा एक है और एक ही शब्द है, ‘मेरा बाबा’। सभी भाषा वाले बोलो ‘मेरा बाबा’। हाँ, यह एक ही है। तो अनेकता में एकता है ना!
तो उत्साह में रहने वाले अर्थात् सदा उत्सव मनाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। कभी भी उत्साह कम नहीं होना चाहिये। पहले भी सुनाया था – ब्राह्मण जीवन का सांस है उमंग-उत्साह। अगर सांस चला जाये तो जीवन सेकेण्ड में खत्म हो जायेगी ना! तो ब्राह्मण जीवन में यदि उमंग-उत्साह का सांस नहीं तो ब्राह्मण जीवन नहीं। जो सदा उमंग-उत्साह में होगा, वो फ़लक से कहेगा कि ब्राह्मण हैं ही उत्साह-उमंग के लिये। और जिसका उमंग-उत्साह कम हो जाता है उसके बोल ही बदल जाते हैं। वो कहेगा – हैं तो सही…, होना तो चाहिये…, हो जायेगा… तो ये भाषा और उस भाषा में कितना अन्तर है! उसके हर बोल में ‘तो’ जरूर होगा – होना तो चाहिये… तो ये जो ‘तो-तो’ होता है ना, ये उमंग-उत्साह का प्रेशर कम होने से ही ऐसे बोल, कमजोरी के बोल निकलते हैं। तो उमंग-उत्साह कभी कम नहीं होना चाहिये। उमंग-उत्साह कम क्यों होता है? बापदादा कहते हैं सदा वाह-वाह कहो और कहते हैं व्हाई-व्हाई (क्यों, क्यों)। अगर कोई भी परिस्थिति में व्हाई शब्द आ जाता है तो उमंग-उत्साह का प्रेशर कम हो जाता है। बापदादा ने अगले साल भी विशेष डबल फारेनर्स को कहा था कि व्हाई शब्द को ब्राह्मण डिक्शनरी में चेंज करो, जब व्हाई शब्द आये तो फ्लाय शब्द याद रखो तो व्हाई खत्म हो जायेगा। कोई भी परिस्थिति छोटी भी जब बड़ी लगती है तो व्हाई शब्द आता है – ये क्यों, ये क्या… और फ्लाय कर लो तो परिस्थिति क्या होगी? छोटा-सा खिलौना। तो जब भी व्हाई शब्द मन में आवे तो कहो ब्राह्मण डिक्शनरी में व्हाई शब्द नहीं है, फ्लाय है क्योंकि व्हाई-व्हाई, हाय-हाय करा देता है। बापदादा को हंसी भी आती है, एक तरफ कहेंगे – नहीं, हमारे जैसा श्रेष्ठ भाग्य किसका नहीं है। अभी-अभी यह कहेंगे और अभी-अभी उत्साह कम हुआ तो कहेंगे – पता नहीं मेरा भाग्य ही ऐसा है! मेरे भाग्य में इतना ही है! तो हाय-हाय हो गया ना! तो जब भी हाय-हाय का नज़ारा आवे तो वाह-वाह कर लो तो नज़ारा भी बदल जायेगा और आप भी बदल जायेंगे।
डबल विदेशी आजकल ‘पॉजिटिव थिंकिंग’ का कोर्स कराते हो ना। सभी विदेश में विशेष कोर्स यह कराते हो? तो अपने को भी कराते हो या दूसरों को कराते हो? जिस समय कोई ऐसी परिस्थिति आ जाये तो अपने को ही स्टूडेण्ड बनाकर, खुद ही टीचर बन करके अपने को यह कोर्स कराओ। अपने को करा सकते हो या सिर्फ दूसरे को करा सकते हो? दूसरे को कराना सहज है। जब यह नेचुरल स्थिति हो जाये कि हर व्यक्ति को, बात को पॉजिटिव वृत्ति से देखो, सुनो या सोचो तो कैसी स्थिति रहेगी? आजकल के साइन्स द्वारा भी ऐसे साधन निकले हैं जो ऱफ माल को भी बहुत सुन्दर रूप में बदल देते हैं। देखा है ना – क्या से क्या बना देते हैं! तो आपकी वृत्ति क्या ऐसा परिवर्तन नहीं कर सकती? आवे निगेटिव रूप में लेकिन आप निगेटिव को पॉजिटिव वृत्ति से बदल दो। अगर हलचल में आते हैं तो उसका कारण है – निगेटिव सुनना, सोचना वा बोलना या करना। ये मॉडल बनाते हो ना – न सोचो, न देखो, न बोलो, न करो। साइलेन्स की पॉवर क्या निगेटिव को पॉजिटिव में नहीं बदल सकती! आपका मन और बुद्धि ऐसा बन जाये जो निगेटिव टच नहीं करे, सेकेण्ड में परिवर्तन हो जाये। ऐसे तीव्र गति की अनुभूति कर सकते हो? मन और बुद्धि ऐसा तीव्र गति का यंत्र बन जाये। बन सकता है कि टाइम लगेगा? कि निगेटिव बात आयेगी तो कहेंगे कि थोड़ा सोचने तो दो, देखें तो सही क्या है! क्विक स्पीड से परिवर्तन हो जाये – इसको कहा जाता है ब्राह्मण जीवन का मज़ा, मौज़। अगर जीना है तो मौज़ से जीयें। सोच-सोचकर जीना वो जीना नहीं है। आप लोग औरों को कहते हो कि राजयोग जीने की कला है। तो आप लोग राजयोगी जीवन वाले हो ना! कि कहने वाले हो? जब राजयोग जीने की कला है तो राजयोगियों की कला क्या है? यही है ना? तो उत्सव मनाना अर्थात् मौज में रहना। मन भी मौज में, तन भी मौज में, सम्बन्ध-सम्पर्क भी मौज में।
कई बच्चे कहते हैं अपने रीति से तो ठीक रहते हैं, अपने मौज में रहते हैं लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क में मौज में रहें, यह कभी-कभी होता है। लेकिन सम्बन्ध-सम्पर्क ही आपके स्थिति का पेपर है। यदि स्टूडेण्ट कहे वैसे तो मैं पास विद् ऑनर हूँ लेकिन पेपर के टाइम मार्क्स कम हो जाती है तो ऐसे को क्या कहेंगे? तो ऐसे तो नहीं हो ना! फुल पास होने वाले हो ना? बापदादा ने सुनाया है कि जो सदा बाप के पास रहते हैं वो पास हैं। पास नहीं रहते तो पास नहीं हैं। तो सदा कहाँ रहते हो? दूर रहते हो, पास नहीं रहते हो! डबल विदेशियों को तो डबल पास होना चाहिये ना! अच्छा।
तो डबल विदेशियों ने इस बारी हाई जम्प लगा दी है। मधुबन में हाई जम्प लगाकर पहुँच गये हैं। (इस बार हर वर्ष से ज्यादा संख्या में डबल विदेशी मधुबन पहुँचे हुए हैं) अच्छा, डबल विदेशियों को भी कइयों को पटरानी बनने का चांस तो अच्छा मिला है। पटरानी बनने में मज़ा है कि नहीं? आप लोगों की तो अटैची इतनी है जो उस पर ही सो सकते हैं क्योंकि एक बड़ी लाते हैं, एक छोटी लाते हैं, तो छोटी को तकिया बनाओ। जगह बच जायेगी ना! अच्छा लगता है बापदादा सीन देखते हैं कैसे भारी-भारी अटैचियाँ घसीट कर ला रहे हैं! अच्छी सीन लगती है ना! संगम पर ये मेहनत भी थोड़े समय की है फिर तो प्रकृति भी आपकी दासी होगी तो दासियाँ भी बहुत होंगी। फिर आपको सामान उठाने की जरूरत नहीं। अभी अपना राज्य स्थापन हो रहा है, इस समय गुप्त वेश में हो, सेवाधारी हो फिर राज्य अधिकारी बनेंगे। तो सेवाधारियों को तो सब प्रकार की सेवा करनी पड़ती है। जितनी अभी तन, मन, धन और सम्पर्क से सेवा करते हो उतना ही वहाँ सेवाधारी मिलेंगे। सबसे पहले तो ये प्रकृति के पांच ही तत्व आपके सेवाधारी बनेंगे। अपना राज्य-भाग्य स्मृति में है ना! कितने बारी राज्य अधिकारी बने हैं! अनगिनत बार बने हैं और बनते ही रहेंगे। लेकिन राज्य अधिकारी से भी अब का सेवाधारी जीवन श्रेष्ठ है क्योंकि अभी बाप और बच्चों का साथ है। चाहे किसी भी प्रकार की सेवा है लेकिन सेवा का प्रत्यक्षफल अभी मिलता है। बाप का स्नेह, सहयोग और बाप द्वारा मिले हुए खजाने प्रत्यक्षफल के रूप में मिलते हैं। जब भी कोई विशेष सेवा करते हो और युक्तियुक्त सेवा करते हो तो कितनी खुशी होती है! उस समय के चेहरे का फ़ोटो निकालो तो कैसा होता है! तो एक तरफ सेवा करते हो, दूसरे तरफ प्रत्यक्षफल आपके लिये सदा तैयार है ही है। एक हाथ से सेवा करो, दूसरे हाथ से फल खाओ – ऐसे अनुभव होता है? कि सेवा में बड़ी मेहनत है? सेवा में हलचल होती है या नहीं? कभी-कभी होती है। ये हलचल ही परिपक्व बनाती है, अनुभवी बनाती है। हलचल में इसीलिये आते हो जो सिर्फ वर्तमान को देखते हो। लेकिन वर्तमान में छिपा हुआ भविष्य जो है वो स्पष्ट नहीं दिखाई देता है, इसलिये हलचल में आ जाते हैं। कोई भी बड़े ते बड़ी नाज़ुक परिस्थिति वास्तव में आगे के लिये बहुत बड़ा पाठ पढ़ाती है, परिस्थिति नहीं है लेकिन वह आपकी टीचर है। उस नज़र से देखो कि इस परिस्थिति ने क्या पाठ पढ़ाया? इसको कहा जाता है निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना। सिर्फ परिस्थिति को देखते हो तो घबरा जाते हो। और परिस्थिति माया द्वारा सदा नये-नये रूप से आयेगी। वैसे ही नहीं आयेगी, जिस रूप में आ चुकी है, उस रूप में नहीं आयेगी। नये रूप में आयेगी। तो उसमें घबरा जाते हैं – ये तो नई बात है, ये तो होता नहीं है, ये तो होना नहीं चाहिये…। लेकिन समझ लो कि माया अन्त तक बहुरूपी बन बहुरूप दिखायेगी। माया को बहुरूपी बनना बहुत जल्दी और अच्छा आता है। जैसे आपकी स्थिति होगी ना वैसी परिस्थिति बनाकर आयेगी। आज मानो आप थोड़ा-सा अलबेले जीवन में हो तो माया भी उसी अलबेले परिस्थिति के रूप में आयेगी। आज मूड थोड़ी ऑफ है, जैसे होनी चाहिये वैसे नहीं है, तो मूड ऑफ की परिस्थिति के रूप में ही आयेगी। फिर सोचते हैं कि पहले ही मैं सोच रही थी फिर ये क्या हुआ? इसलिये माया को देखने के लिये, जानने के लिये त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनो। आगे, पीछे, सामने त्रिनेत्री बनो।
आप सभी त्रिनेत्री और त्रिकालदर्शी हो ना? डबल फॉरेनर्स त्रिकालदर्शी हैं – यस या नो? सब बोलो – हाँ जी या ना जी। (हाँ जी) अपनी भाषा से तो ये अच्छा बोलते हो। सब खुश हो? (हाँ जी) इतने बड़े संगठन में मज़ा आ रहा है? (हाँ जी) कोई-कोई यह तो नहीं सोच रहे हैं कि अगले वर्ष भीड़ में नहीं आयेंगे, थोड़ा पीछे आयेंगे? संगठन का मज़ा भी प्यारा है। वैसे आना तो प्रोग्राम प्रमाण ही, ज्यादा नहीं आना लेकिन आदत ऐसी होनी चाहिये जो सबमें एडजेस्ट कर सके। एडजेस्ट करने की पॉवर सदा विजयी बना देती है। ब्रह्मा बाप को देखा तो बच्चों से बच्चा बनकर एडजेस्ट हो जाता, बड़ों से बड़ा बनकर एडजेस्ट हो जाता। चाहे बेगरी लाइफ, चाहे साधनों की लाइफ, दोनों में एडजेस्ट होना और खुशी-खुशी से होना, सोचकर नहीं। यहाँ दु:खी तो नहीं होते हो लेकिन खुशी के बजाय थोड़ा सोच में पड़ जाते हो – ये क्या हुआ, कैसे हुआ…। तो सोचने वाले को एडजेस्ट होने के मजे में कुछ समय लग जाता है। अपने को चेक करो कि कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे अच्छी हो, चाहे हिलाने वाली हो लेकिन हर समय, हर सरकमस्टांस के अन्दर अपने को एडजेस्ट कर सकते हैं? डबल फॉरेनर्स को अकेलापन भी अच्छा लगता है और कम्पैनियन भी बहुत अच्छे लगते हैं। लेकिन कम्पनी में हो या अकेले हो, दोनों में एडजेस्ट होना – ये है ब्राह्मण जीवन। ऐसे नहीं, संगठन हो और माथा भारी हो जाये – नहीं, मुझे एकान्त चाहिये, ये घमसान में नहीं, मुझे अकेला चाहिये…। मन अकेला अर्थात् बाहरमुखता से अन्तर्मुख में चले जाओ तो अकेलापन है। कोई-कोई कहते हैं ना – अकेला कमरा चाहिये, दो भी नहीं चाहिये। अकेला मिले तो भी मौज़ से सोओ और दस के बीच में भी सोना हो तो मौज़ से सोओ। फॉरेनर्स दस के बीच में सो सकते हैं कि मुश्किल है? सो सकते हैं? (हाँ जी) अच्छा, अभी अगले वर्ष 20-20 को सुलायेंगे। देखो समय बदलता रहता है और बदलता रहेगा। दुनिया की हालतें नाज़ुक हो रही हैं और भी होंगी। होनी ही है। अभी सिर्फ एक स्थान पर अलग-अलग होती हैं, आखिर में सब तरफ इकट्ठी होगी। तो नाज़ुक समय तो आना ही है। समय नाज़ुक हो लेकिन आपकी नेचर नाज़ुक नहीं हो। कइयों की नेचर बहुत नाज़ुक होती है ना, थोड़ा-सा आवाज़ हुआ, थोड़ा-सा कुछ हुआ तो डिस्टर्ब हो गये। इसको कहते हैं नाज़ुक स्थिति, नाजुक नेचर। तो नाज़ुक नेचर नहीं हो। जैसा समय वैसा अपने को एडजेस्ट कर सको। ये अभ्यास आगे चलकर आपको बहुत काम में आयेगा क्योंकि हालतें सदा एक जैसी नहीं रहनी है। और फाइनल पेपर आपका नाज़ुक समय पर होना है। आराम के समय पर नहीं होना है। नाजुक समय पर होना है। तो जितना अभी से अपने को एडजेस्ट करने की शक्ति होगी तो नाजुक समय पर पास विद् ऑनर हो सकेंगे। पेपर बहुत टाइम का नहीं है, पेपर तो बहुत थोड़े समय का है लेकिन चारों ओर की नाजुक परिस्थितियाँ, उनके बीच में पेपर देना है इसलिये अपने को नेचर में भी शक्तिशाली बनाओ। क्या करें, मेरी नेचर ये है, मेरी आदत ही ऐसी है, ये नहीं, इसको नाज़ुक नेचर कहा जाता है। देखो, बापदादा ने स्थापना के आदि में सब अनुभव करा लिया। जब आदि हुई तो राजकुमार और राजकुमारियों से भी ज्यादा पालना, साधन, सब अनुभव कराया और आगे चलकर बेगरी लाइफ का भी पूरा अनुभव कराया। तो जिन्होंने दोनों अनुभव किया उनकी आदत बन गई। तो आप लोगों के आगे तो ऐसा समय आया नहीं है लेकिन आना है। जहाँ भी रहते हो, सभी हिलने हैं, सब आधार टूटने हैं। तो ऐसे टाइम पर क्या चाहिये? एक ही बाप का आधार। आप लोग तो बहुत-बहुत-बहुत लक्की हो, जो आने का समय आपका सहज साधनों का है। सहज साधनों के साथ-साथ आपका ब्राह्मण जन्म है। लेकिन साधन और साधना – साधनों को देखते साधना को नहीं भूल जाना क्योंकि आखिर में साधना ही काम में आनी है। समझा? अच्छा।
चारों ओर के अमूल्य विशेष रत्नों को, सदा हर दिन उत्साह से उत्सव मनाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्व-स्थिति और सेवा के उन्नति में बैलेन्स रखने वाली ब्लेसिंग के अधिकारी आत्माओं को, सदा परिस्थिति को सहज पार करने वाली ऐसे अचल, अडोल, महावीर आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
वरदान:- | सम्पूर्णता द्वारा सम्पन्नता की प्रालब्ध का अनुभव करने वाले सर्व झमेलों से मुक्त भव संगमयुग पर सागर गंगा से अलग नहीं, गंगा सागर से अलग नहीं। इसी समय नदी और सागर के समाने का मेला होता है। जो इस मेले में रहते हैं वह सर्व झमेलों से मुक्त हो जाते हैं। लेकिन इस मेले का अनुभव वही कर सकते हैं जो समान बनते हैं। समान बनना अर्थात् समा जाना। जो सदा स्नेह में समाये हुए हैं वह सम्पूर्णता और सम्पन्नता की प्रालब्ध का अनुभव करते हैं। उन्हें कोई भी अल्पकाल के प्रालब्ध की इच्छा नहीं रहती। |
स्लोगन:- | सदा एक बाप के श्रेष्ठ संग में रहो तो होलीएस्ट और हाइएस्ट बन जायेंगे। |