murli 07-04-2023

07-04-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें डबल अहिंसक बनना है, मन्सा-वाचा-कर्मणा तुम कभी किसी को दु:ख नहीं दे सकते हो।”
प्रश्नः-कल्प-कल्प जिन बच्चों ने बाप से पूरा वर्सा लिया है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-वे पतितों का संग छोड़ बाप से वर्सा लेने के लिए श्रीमत पर चलने लग पड़ेंगे। बाप का जो पहला फरमान है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो, इस फरमान पर पूरा-पूरा चलेंगे। कभी प्रश्न नहीं उठेगा कि आखिर भी दुनिया कैसे चलेगी। उनकी आपस में कभी क्रिमिनल एसाल्ट हो नहीं सकती। वे अपने को शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहिन समझकर चलते हैं।
गीत:-माता ओ माता… Audio PlayerVideo Player 

ओम् शान्ति। बच्चों को अब कोई की भी महिमा नहीं करनी है। भक्त महिमा करते हैं, यह गीत भक्ति मार्ग वालों ने मम्मा की महिमा में गाया है। परन्तु बिचारे यह नहीं जानते कि मम्मा ने ऐसी क्या सेवा की है! होकर गई है, उनकी महिमा गाते हैं। परन्तु वास्तव में महिमा एक की ही गाई जाती है। वह एक बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं और ऐसा बनाते हैं। तुम भी उनके बच्चे हो जो भारत वा विश्व की सेवा करते हो। महिमा भारत की करते हैं। चित्र भी भारत में ही हैं। पूजा भी जगत अम्बा की यहाँ बहुत होती है। बाहर में नहीं है। कहाँ-कहाँ शिव के चित्र हैं परन्तु वह यह समझते नहीं। वास्तव में महिमा है शिव की। जो शिव बाबा फिर जगत अम्बा और जगतपिता की महिमा निकालते हैं। बाबा से ही सबको श्रीमत मिलती है। देलवाड़ा मन्दिर में सबके चित्र नहीं हैं। बच्चे तो ढेर हैं। तुम सब बच्चे राजयोग सीख रहे हो। चित्र तो थोड़ों के ही निकालेंगे।

तुम जानते हो बाबा हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। शिवबाबा इनमें बैठा है। कल्प पहले भी ऐसे ही परमपिता परमात्मा ने हमको राजयोग सिखाया था। अब प्रैक्टिकल बुद्धि से लगता है। जब दूसरे सुनते हैं तो कोई कहते हैं बिल्कुल ठीक बात है, कोई कहते हैं हम कैसे मानें। एक जैसे सब नहीं हैं, जब कोई नये आते हैं तो प्रश्न पूछा जाता है – गॉड फादर का नाम कब सुना है? कब भगवान का नाम सुना है? ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जो कहे कि हम गॉड फादर को याद नहीं करते हैं क्योंकि अभी सब दु:खी हैं इसलिए परमात्मा को याद जरूर करते हैं। सतयुग में कोई ऐसा नहीं कहेंगे कि पतित-पावन आओ। दु:ख में सिमरण सब करते हैं, सुख में सिमरे न कोई। दु:ख में सिमरण किसका करते हैं? एक का। भल सिमरण करते हैं परन्तु जानते नहीं, सिर्फ महिमा करते हैं।

यहाँ तो है सारी धर्म की बात। गाया जाता है रिलीजन इज़ माईट। कौन से रिलीजन में इतनी माइट है? सभी रिलीजन में तो इतनी माइट नहीं है। बाप आकर एक देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। बाबा को कहा जाता है आलमाइटी। तो जो धर्म स्थापन करते हैं, उसमें भी माइट है। तुम जानते हो हम देवता धर्म वाले बनते हैं तो हमारे में कितनी माइट आती है! हम बाप से राजाई लेते हैं। हम कोई हिंसा नहीं करते हैं। सतयुग में दोनों हिंसा नहीं होती। एक काम कटारी की हिंसा, दूसरी किस पर क्रोध करना, कुछ बुरा अक्षर कहना, यह भी बाण चलाना है। इनको वायोलेन्स कहा जाता है। तुम किसको दु:ख नहीं दे सकते। बाबा कितना अच्छा सिखलाते हैं। सबको सुखी बनाओ। मुख्य बात काम कटारी चलाना – यह है सबसे बड़ी हिंसा। बन्दूक आदि चलाना, मारना वह भी हिंसा है। कोई भी प्रकार से किसको दु:ख देना हिंसा है इसलिए बाप ने कहा है काम महाशत्रु है। गाया भी जाता है अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म। उनमें दोनों हिंसायें नहीं थी। कभी भी किसको मन्सा-वाचा-कर्मणा दु:ख नहीं देते थे। बाप आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। कल्प पहले की थी, अब फिर कर रहे हैं। किसको मारना, पीटना, क्रोध करना सबसे छुड़ा देते हैं। मुख्य बात है पवित्रता की, इसलिए राखी बन्धन गाया हुआ है। बहनें बैठ भाईयों को राखी बाँधती हैं कि काम कटारी नहीं चलाना। परन्तु मनुष्य यह अर्थ नहीं समझते। तुम हो ब्रह्मा के बच्चे, शिव के पोत्रे। तो तुम भाई-बहिन हो गये। आपस में कभी क्रिमिनल एसाल्ट नहीं कर सकते। यह है पवित्र बनने की युक्ति। बहन-भाई कभी आपस में शादी नहीं करते हैं। तो बाप समझाते हैं कल्प-कल्प जिन्होंने वर्सा लिया है वही श्रीमत पर चलते हैं। अधरकुमारी, कुवाँरी कन्या का मन्दिर भी है। गृहस्थ से निकल फिर बाप के बच्चे बने हैं तो उन्हों को अधर कहा जाता है। जरूर होकर गये हैं अब फिर प्रैक्टिकल में हैं। ऐसे मत समझो कि हम पवित्र बनेंगे तो सृष्टि कैसे चलेगी! अब यह तो पतित दुनिया हो गई है। अब चाहिए पावन दुनिया। पतित दुनिया तो चलती ही रहती है, बन्द नहीं होती है। तो तुम्हें पतितों का संग छोड़ना पड़े। बाबा आकर विकारी दुनिया की रचना बन्द कराते हैं। सतयुग से निर्विकारी दुनिया शुरू होगी।

बाप आकर बच्चों को फरमान करते हैं, फिर कोई माने, न माने। श्रीमत भगवानुवाच। भगवान बच्चों को बैठ पढ़ाते हैं। क्या बनायेंगे? जरूर भगवान भगवती बनायेंगे। जो जैसा है वह ऐसा ही बनायेगा। निराकार भगवान बैठ निराकार आत्माओं को पढ़ाते हैं इस शरीर द्वारा। यह है बाबा का लाँग बूट। बाबा को शरीर तो चाहिए ना। उनकी शरीर रूपी जूती पुरानी हो गई है। जब नई थी तो गोरी थी, अब काली हो गई है। बाबा ने समझाया है तुम इस समय श्याम हो फिर सुन्दर बनते हो। इस समय हर एक श्याम बन गया है। उनको 84 जन्म लेने पड़े। श्रीकृष्ण पहले सुन्दर था। धीरे-धीरे सुन्दरता कम होती गई। श्रीकृष्ण का चित्र भी है, नर्क को लात मार रहे हैं और हाथ में स्वर्ग है। कहते हैं मैं स्वर्ग में सुन्दर था और नर्क में श्याम हूँ तो लात मारता हूँ। जो भी सूर्यवंशी घराने के हैं वह सब सुन्दर थे। सारी डिनायस्टी राज्य करती थी। अब सभी काले बन गये हैं इसलिए श्याम सुन्दर नाम चला आता है। श्रीकृष्ण की आत्मा ही पहले जन्म लेती है। श्रीकृष्ण के साथ सारी राजधानी भी है। सभी पुरुषार्थ कर रहे हैं फिर से गोरा बनने का। कहते हैं कालीदह में सर्प ने डसा। वह भी अभी की बात है, माया सबको डसती रहती है। माया ने सबको काला बना दिया है। बाप फिर से गोरा बनाते हैं। स्वर्ग में ऐसा होगा नहीं। वहाँ 21 जन्म सदा सुखी रहते हैं। अकाले मृत्यु कभी होता नहीं। अभी दैवी राजधानी स्थापन हो रही है। बाप आकर सबको राज्य-भाग्य देते हैं। और कोई धर्म स्थापन करने वाले राज्य-भाग्य नहीं दे सकते। इब्राहम, बुद्ध आदि राजाई नहीं स्थापन करते। वह सिर्फ धर्म स्थापन करते फिर धर्म की वृद्धि होती है। उनको वास्तव में गुरू भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि गुरू करते हैं सद्गति के लिए। वह तो आते हैं धर्म स्थापन करने, न कि सद्गति करने। उनके पिछाड़ी उनके धर्म की आत्मायें नीचे उतरती हैं। तो गुरू भी वास्तव में कोई को कह न सकें। सबकी सद्गति करने वाला एक शिवबाबा है। उनके लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि वह जन्म लेते हैं, यह रांग हो जाता है। वह अवतार लेते हैं। जन्म लेना अर्थात् गर्भ में आना। मैं गर्भ से जन्म नहीं लेता हूँ। अवतार लेता हूँ। परन्तु कैसे आते हैं, यह कोई समझते नहीं हैं। मैं परमधाम से आकर इस तन में प्रवेश करता हूँ। मुझे शरीर तो चाहिए ना। और चाहिए बड़ा शरीर। छोटे तन से तो बात कर न सके। मैं अनुभवी रथ, बहुत जन्मों के अन्त के जन्म, वानप्रस्थ अवस्था में आता हूँ। गीता में भी है कि मैं इनके जन्मों को जानता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानता था। अब तो जानते हैं। एक बार बता देता हूँ – पहले यह देवता था, 84 जन्म लेते-लेते अन्तिम जन्म में है तब मैंने इनमें प्रवेश किया है। यह है कल्याणकारी जन्म। बाबा आकर इनके द्वारा पढ़ाते हैं तो यह माता भी हो गई। वास्तव में यह है माता परन्तु सर्विस पिता के रूप में करते हैं इसलिए मम्मा को निमित्त बनाया है। तुम बच्चे भी उनके साथ निमित्त बनते हो। सबको स्वर्गवासी बनने का रास्ता बताते हो।

मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। वह पुरुषार्थ नहीं करते हैं। हम तो स्वर्गवासी बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण थे, उन्हों को स्वर्ग का मालिक बनाने वाला कौन? जरूर नहीं थे, तब बनाया। इसमें तकल़ीफ की कोई बात नहीं है। बाबा सिर्फ राय देते हैं कि गृहस्थ व्यवहार में रहते इस अन्तिम जन्म में पवित्र बनो। अब पुरानी दुनिया का विनाश होना है। सतयुग में रावण को जलाते नहीं। मनुष्य कहते हैं यह रसम अनादि चली आती है परन्तु कब से चली, जानते नहीं। द्वापर से रावण को जलाना शुरू किया है। रावण का कोई ठिकाना नहीं है। शिवबाबा का ठिकाना है परमधाम। रावण का धाम कहाँ है? वह सभी में प्रवेश कर लेता है। कोई एक ठिकाना नहीं है। जब रावण राज्य पूरा होगा, सभी पावन बन जायेंगे फिर रावण का नाम निशान भी नहीं होगा। राम और रावण दो चीज़े हैं। राम स्वर्ग स्थापन करते, रावण दु:खी बनाते। मैं कोई सर्वव्यापी नहीं हूँ। रावण सर्वव्यापी है फिर मैं आकर इन भूतों को निकालता हूँ। यह भूत ही सभी को दु:ख देते हैं। इन भूतों पर विजय पहनाकर स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। तुम बच्चे सभी स्वर्गवासी बनने लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। वह लोग कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। तो फिर रोते क्यों हो? वहाँ तो वैभव ही वैभव हैं। मनुष्यों को स्वर्ग ही याद पड़ता है। परन्तु पुनर्जन्म फिर भी नर्क में ही लेते हैं। तुम जब सतयुग में हो तो पुनर्जन्म सतयुग में ही मिलता है। अब नर्क बदल स्वर्ग आने वाला है। दु:ख की दुनिया बदल सुख की दुनिया आने वाली है। अब सर्व का सद्गति दाता आया है सबको सुखी करने लिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) डबल अहिंसक बन मन वचन कर्म से किसी को भी दु:ख नहीं देना है। पवित्रता की सच्ची राखी बाँधनी है।

2) पतितों का संग छोड़ एक बाप के फरमान पर ही चलना है। स्वर्ग का मालिक बनने के लिए भूतों पर विजय प्राप्त करनी है।

वरदान:-हर कर्म का बोझ बाप पर छोड़ स्वयं ट्रस्टी बन रहने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव
हिम्मत रखने वाले बच्चों को बापदादा सदा ही मदद करते हैं। बच्चे श्रेष्ठ संकल्प करते और बाप हाज़िर हो जाते। सिर्फ बाप के ऊपर सारा कार्य छोड़ दो तो बाप जाने, कार्य जाने। खुद अपने ऊपर जवाबदारियों का बोझ नहीं उठाओ, ट्रस्टी बनकर रहो तो सदा हल्के, डबल लाइट फरिश्ता बन उड़ते रहेंगे। दिल साफ है तो मुराद हांसिल हो जाती है।
स्लोगन:-उमंग-उत्साह के पंख साथ हों तो उड़ती कला में उड़ते रहेंगे।
07-04-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें डबल अहिंसक बनना है, मन्सा-वाचा-कर्मणा तुम कभी किसी को दु:ख नहीं दे सकते हो।”
प्रश्नः-कल्प-कल्प जिन बच्चों ने बाप से पूरा वर्सा लिया है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-वे पतितों का संग छोड़ बाप से वर्सा लेने के लिए श्रीमत पर चलने लग पड़ेंगे। बाप का जो पहला फरमान है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो, इस फरमान पर पूरा-पूरा चलेंगे। कभी प्रश्न नहीं उठेगा कि आखिर भी दुनिया कैसे चलेगी। उनकी आपस में कभी क्रिमिनल एसाल्ट हो नहीं सकती। वे अपने को शिवबाबा के पोत्रे, ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहिन समझकर चलते हैं।
गीत:-माता ओ माता… Audio PlayerVideo Player 

ओम् शान्ति। बच्चों को अब कोई की भी महिमा नहीं करनी है। भक्त महिमा करते हैं, यह गीत भक्ति मार्ग वालों ने मम्मा की महिमा में गाया है। परन्तु बिचारे यह नहीं जानते कि मम्मा ने ऐसी क्या सेवा की है! होकर गई है, उनकी महिमा गाते हैं। परन्तु वास्तव में महिमा एक की ही गाई जाती है। वह एक बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं और ऐसा बनाते हैं। तुम भी उनके बच्चे हो जो भारत वा विश्व की सेवा करते हो। महिमा भारत की करते हैं। चित्र भी भारत में ही हैं। पूजा भी जगत अम्बा की यहाँ बहुत होती है। बाहर में नहीं है। कहाँ-कहाँ शिव के चित्र हैं परन्तु वह यह समझते नहीं। वास्तव में महिमा है शिव की। जो शिव बाबा फिर जगत अम्बा और जगतपिता की महिमा निकालते हैं। बाबा से ही सबको श्रीमत मिलती है। देलवाड़ा मन्दिर में सबके चित्र नहीं हैं। बच्चे तो ढेर हैं। तुम सब बच्चे राजयोग सीख रहे हो। चित्र तो थोड़ों के ही निकालेंगे।

तुम जानते हो बाबा हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। शिवबाबा इनमें बैठा है। कल्प पहले भी ऐसे ही परमपिता परमात्मा ने हमको राजयोग सिखाया था। अब प्रैक्टिकल बुद्धि से लगता है। जब दूसरे सुनते हैं तो कोई कहते हैं बिल्कुल ठीक बात है, कोई कहते हैं हम कैसे मानें। एक जैसे सब नहीं हैं, जब कोई नये आते हैं तो प्रश्न पूछा जाता है – गॉड फादर का नाम कब सुना है? कब भगवान का नाम सुना है? ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जो कहे कि हम गॉड फादर को याद नहीं करते हैं क्योंकि अभी सब दु:खी हैं इसलिए परमात्मा को याद जरूर करते हैं। सतयुग में कोई ऐसा नहीं कहेंगे कि पतित-पावन आओ। दु:ख में सिमरण सब करते हैं, सुख में सिमरे न कोई। दु:ख में सिमरण किसका करते हैं? एक का। भल सिमरण करते हैं परन्तु जानते नहीं, सिर्फ महिमा करते हैं।

यहाँ तो है सारी धर्म की बात। गाया जाता है रिलीजन इज़ माईट। कौन से रिलीजन में इतनी माइट है? सभी रिलीजन में तो इतनी माइट नहीं है। बाप आकर एक देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। बाबा को कहा जाता है आलमाइटी। तो जो धर्म स्थापन करते हैं, उसमें भी माइट है। तुम जानते हो हम देवता धर्म वाले बनते हैं तो हमारे में कितनी माइट आती है! हम बाप से राजाई लेते हैं। हम कोई हिंसा नहीं करते हैं। सतयुग में दोनों हिंसा नहीं होती। एक काम कटारी की हिंसा, दूसरी किस पर क्रोध करना, कुछ बुरा अक्षर कहना, यह भी बाण चलाना है। इनको वायोलेन्स कहा जाता है। तुम किसको दु:ख नहीं दे सकते। बाबा कितना अच्छा सिखलाते हैं। सबको सुखी बनाओ। मुख्य बात काम कटारी चलाना – यह है सबसे बड़ी हिंसा। बन्दूक आदि चलाना, मारना वह भी हिंसा है। कोई भी प्रकार से किसको दु:ख देना हिंसा है इसलिए बाप ने कहा है काम महाशत्रु है। गाया भी जाता है अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म। उनमें दोनों हिंसायें नहीं थी। कभी भी किसको मन्सा-वाचा-कर्मणा दु:ख नहीं देते थे। बाप आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। कल्प पहले की थी, अब फिर कर रहे हैं। किसको मारना, पीटना, क्रोध करना सबसे छुड़ा देते हैं। मुख्य बात है पवित्रता की, इसलिए राखी बन्धन गाया हुआ है। बहनें बैठ भाईयों को राखी बाँधती हैं कि काम कटारी नहीं चलाना। परन्तु मनुष्य यह अर्थ नहीं समझते। तुम हो ब्रह्मा के बच्चे, शिव के पोत्रे। तो तुम भाई-बहिन हो गये। आपस में कभी क्रिमिनल एसाल्ट नहीं कर सकते। यह है पवित्र बनने की युक्ति। बहन-भाई कभी आपस में शादी नहीं करते हैं। तो बाप समझाते हैं कल्प-कल्प जिन्होंने वर्सा लिया है वही श्रीमत पर चलते हैं। अधरकुमारी, कुवाँरी कन्या का मन्दिर भी है। गृहस्थ से निकल फिर बाप के बच्चे बने हैं तो उन्हों को अधर कहा जाता है। जरूर होकर गये हैं अब फिर प्रैक्टिकल में हैं। ऐसे मत समझो कि हम पवित्र बनेंगे तो सृष्टि कैसे चलेगी! अब यह तो पतित दुनिया हो गई है। अब चाहिए पावन दुनिया। पतित दुनिया तो चलती ही रहती है, बन्द नहीं होती है। तो तुम्हें पतितों का संग छोड़ना पड़े। बाबा आकर विकारी दुनिया की रचना बन्द कराते हैं। सतयुग से निर्विकारी दुनिया शुरू होगी।

बाप आकर बच्चों को फरमान करते हैं, फिर कोई माने, न माने। श्रीमत भगवानुवाच। भगवान बच्चों को बैठ पढ़ाते हैं। क्या बनायेंगे? जरूर भगवान भगवती बनायेंगे। जो जैसा है वह ऐसा ही बनायेगा। निराकार भगवान बैठ निराकार आत्माओं को पढ़ाते हैं इस शरीर द्वारा। यह है बाबा का लाँग बूट। बाबा को शरीर तो चाहिए ना। उनकी शरीर रूपी जूती पुरानी हो गई है। जब नई थी तो गोरी थी, अब काली हो गई है। बाबा ने समझाया है तुम इस समय श्याम हो फिर सुन्दर बनते हो। इस समय हर एक श्याम बन गया है। उनको 84 जन्म लेने पड़े। श्रीकृष्ण पहले सुन्दर था। धीरे-धीरे सुन्दरता कम होती गई। श्रीकृष्ण का चित्र भी है, नर्क को लात मार रहे हैं और हाथ में स्वर्ग है। कहते हैं मैं स्वर्ग में सुन्दर था और नर्क में श्याम हूँ तो लात मारता हूँ। जो भी सूर्यवंशी घराने के हैं वह सब सुन्दर थे। सारी डिनायस्टी राज्य करती थी। अब सभी काले बन गये हैं इसलिए श्याम सुन्दर नाम चला आता है। श्रीकृष्ण की आत्मा ही पहले जन्म लेती है। श्रीकृष्ण के साथ सारी राजधानी भी है। सभी पुरुषार्थ कर रहे हैं फिर से गोरा बनने का। कहते हैं कालीदह में सर्प ने डसा। वह भी अभी की बात है, माया सबको डसती रहती है। माया ने सबको काला बना दिया है। बाप फिर से गोरा बनाते हैं। स्वर्ग में ऐसा होगा नहीं। वहाँ 21 जन्म सदा सुखी रहते हैं। अकाले मृत्यु कभी होता नहीं। अभी दैवी राजधानी स्थापन हो रही है। बाप आकर सबको राज्य-भाग्य देते हैं। और कोई धर्म स्थापन करने वाले राज्य-भाग्य नहीं दे सकते। इब्राहम, बुद्ध आदि राजाई नहीं स्थापन करते। वह सिर्फ धर्म स्थापन करते फिर धर्म की वृद्धि होती है। उनको वास्तव में गुरू भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि गुरू करते हैं सद्गति के लिए। वह तो आते हैं धर्म स्थापन करने, न कि सद्गति करने। उनके पिछाड़ी उनके धर्म की आत्मायें नीचे उतरती हैं। तो गुरू भी वास्तव में कोई को कह न सकें। सबकी सद्गति करने वाला एक शिवबाबा है। उनके लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि वह जन्म लेते हैं, यह रांग हो जाता है। वह अवतार लेते हैं। जन्म लेना अर्थात् गर्भ में आना। मैं गर्भ से जन्म नहीं लेता हूँ। अवतार लेता हूँ। परन्तु कैसे आते हैं, यह कोई समझते नहीं हैं। मैं परमधाम से आकर इस तन में प्रवेश करता हूँ। मुझे शरीर तो चाहिए ना। और चाहिए बड़ा शरीर। छोटे तन से तो बात कर न सके। मैं अनुभवी रथ, बहुत जन्मों के अन्त के जन्म, वानप्रस्थ अवस्था में आता हूँ। गीता में भी है कि मैं इनके जन्मों को जानता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानता था। अब तो जानते हैं। एक बार बता देता हूँ – पहले यह देवता था, 84 जन्म लेते-लेते अन्तिम जन्म में है तब मैंने इनमें प्रवेश किया है। यह है कल्याणकारी जन्म। बाबा आकर इनके द्वारा पढ़ाते हैं तो यह माता भी हो गई। वास्तव में यह है माता परन्तु सर्विस पिता के रूप में करते हैं इसलिए मम्मा को निमित्त बनाया है। तुम बच्चे भी उनके साथ निमित्त बनते हो। सबको स्वर्गवासी बनने का रास्ता बताते हो।

मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। वह पुरुषार्थ नहीं करते हैं। हम तो स्वर्गवासी बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण थे, उन्हों को स्वर्ग का मालिक बनाने वाला कौन? जरूर नहीं थे, तब बनाया। इसमें तकल़ीफ की कोई बात नहीं है। बाबा सिर्फ राय देते हैं कि गृहस्थ व्यवहार में रहते इस अन्तिम जन्म में पवित्र बनो। अब पुरानी दुनिया का विनाश होना है। सतयुग में रावण को जलाते नहीं। मनुष्य कहते हैं यह रसम अनादि चली आती है परन्तु कब से चली, जानते नहीं। द्वापर से रावण को जलाना शुरू किया है। रावण का कोई ठिकाना नहीं है। शिवबाबा का ठिकाना है परमधाम। रावण का धाम कहाँ है? वह सभी में प्रवेश कर लेता है। कोई एक ठिकाना नहीं है। जब रावण राज्य पूरा होगा, सभी पावन बन जायेंगे फिर रावण का नाम निशान भी नहीं होगा। राम और रावण दो चीज़े हैं। राम स्वर्ग स्थापन करते, रावण दु:खी बनाते। मैं कोई सर्वव्यापी नहीं हूँ। रावण सर्वव्यापी है फिर मैं आकर इन भूतों को निकालता हूँ। यह भूत ही सभी को दु:ख देते हैं। इन भूतों पर विजय पहनाकर स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। तुम बच्चे सभी स्वर्गवासी बनने लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। वह लोग कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। तो फिर रोते क्यों हो? वहाँ तो वैभव ही वैभव हैं। मनुष्यों को स्वर्ग ही याद पड़ता है। परन्तु पुनर्जन्म फिर भी नर्क में ही लेते हैं। तुम जब सतयुग में हो तो पुनर्जन्म सतयुग में ही मिलता है। अब नर्क बदल स्वर्ग आने वाला है। दु:ख की दुनिया बदल सुख की दुनिया आने वाली है। अब सर्व का सद्गति दाता आया है सबको सुखी करने लिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) डबल अहिंसक बन मन वचन कर्म से किसी को भी दु:ख नहीं देना है। पवित्रता की सच्ची राखी बाँधनी है।

2) पतितों का संग छोड़ एक बाप के फरमान पर ही चलना है। स्वर्ग का मालिक बनने के लिए भूतों पर विजय प्राप्त करनी है।

वरदान:-हर कर्म का बोझ बाप पर छोड़ स्वयं ट्रस्टी बन रहने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव
हिम्मत रखने वाले बच्चों को बापदादा सदा ही मदद करते हैं। बच्चे श्रेष्ठ संकल्प करते और बाप हाज़िर हो जाते। सिर्फ बाप के ऊपर सारा कार्य छोड़ दो तो बाप जाने, कार्य जाने। खुद अपने ऊपर जवाबदारियों का बोझ नहीं उठाओ, ट्रस्टी बनकर रहो तो सदा हल्के, डबल लाइट फरिश्ता बन उड़ते रहेंगे। दिल साफ है तो मुराद हांसिल हो जाती है।
स्लोगन:-उमंग-उत्साह के पंख साथ हों तो उड़ती कला में उड़ते रहेंगे।