murli 05-08-2023

05-08-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम अभी टिवाटे पर खड़े हो, एक तरफ है दु:खधाम, दूसरे तरफ है शान्तिधाम और तीसरे तरफ है सुखधाम, अब जज करो हमें किधर जाना है?”
प्रश्नः-किस निश्चय के आधार पर तुम बच्चे सदा हर्षित रह सकते हो?
उत्तर:-सबसे पहला निश्चय चाहिए कि हम किसके बने हैं! बाप का बनने में कोई वेद-शास्त्र आदि पुस्तकें पढ़ने की दरकार नहीं है। दूसरा निश्चय चाहिए कि हमारा कुल सबसे श्रेष्ठ देवता कुल है – इस स्मृति से सारा चक्र याद आ जायेगा। बाप और चक्र की स्मृति में रहने वाले सदा हर्षित रहेंगे।
गीत:-किसी ने अपना बनाके मुझको……..

ओम् शान्ति। तुम बच्चों को तो पहले-पहले खुशी होती है – हम किसके बने हैं! ऐसे नहीं कहेंगे हम गुरू के बने हैं। बनना होता है बाप का। शरीर छोड़कर भी फिर बाप का बनना होता है। यहाँ भी बाप का बनना है। वेद-शास्त्र आदि किसकी दरकार नहीं। बच्चा पैदा हुआ तो बाप समझते हैं मेरी मिलकियत का यह मालिक है। सम्बन्ध की बात है। तुम बच्चे भी जानते हो हम वास्तव में पहले भी पारलौकिक बाप शिवबाबा के बच्चे हैं। पहले हम आत्मा हैं, पीछे हमको शरीर मिलता है। तुमको शरीर तो है। अब तुमको बेहद का बाप मिला है। उसने आकर अपना परिचय दिया है। तुम कहते हो बाबा हम आपके हैं और कोई संबंध नहीं। बाप के बच्चे बने हो। यह कहते हैं मैं कोई गुरू-गोसाई नहीं हूँ। बोर्ड पर भी ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम लिखा हुआ है तो जरूर बाप भी होगा। लिखते हो हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। यह संबंध हुआ ना। माँ बाप का सम्बन्ध चाहिए। गाते भी हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे…… आत्मा को जैसे वह अविनाशी याद है। हम आपके जब बालक बनेंगे तब हम वर्सा लेंगे। अभी तुम जानते हो हम मात-पिता के बने हैं। हम शिवबाबा के बच्चे हैं तो जरूर बाप और वर्सा याद आता है। तुमको कोई पुस्तक आदि नहीं पढ़ाया जाता, तुमको सिर्फ निश्चय कराया जाता है। बाप के बने हो तो अब उनको याद करो।

बाप कहते हैं मेरे को याद करने से तुम ऐसा (लक्ष्मी-नारायण) बनेंगे। कितनी सहज बात है। विशालबुद्धि होना चाहिए ना। और तो कुछ नहीं समझाते हैं सिर्फ अपने कुल की बात ही बतलाते हैं कि कैसे हम 84 के चक्र में आते हैं। बाकी वेद-शास्त्र आदि पढ़ने से भी तुमको छुड़ाते हैं। बाप को ही याद करते रहना है। यह भी बुद्धि में है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है? उसके आदि-मध्य-अन्त को जानने से ही तुम ऊंच ते ऊंच बनते हो। स्वर्ग के मालिक बनते हो। तुमको सदैव के लिए हर्षितमुख बनाता हूँ। कितनी सहज बात है। परन्तु फिर भी भूल जाते हो। क्या कारण है? माँ-बाप को कभी बच्चे भूलते नहीं हैं। बाप और वर्से को याद करो तो सदैव हर्षित रहेंगे। जब कोई दु:ख होता है तो बाप को ही याद करते हैं। जरूर बाप ने सुख दिया है। कोई दु:ख देते हैं तो कहते हैं हाय बाबा, हाय भगवान्। हर जन्म में हाय-हाय करते आये हो। अब तो तुम बच्चों को बिल्कुल सहज समझाते हैं। भल तुम तन्दरुस्त न भी हो, कितने भी बीमार हो तो भी तुम सर्विस कर सकते हो। जैसे बीमारी में मनुष्य को कहते हैं राम-राम कहो। तुम भी बीमारी में फिर औरों को बोलो – शिवबाबा को याद करो। यह जरूर औरों को याद कराना पड़े। मरने की हालत में भी तुम यह नॉलेज औरों को दे सकते हो। परमात्मा के तुम बच्चे हो, उनको याद करो। शिवबाबा बेहद का बाप है, वही वर्सा देंगे। सर्विस का शौक होगा तो मरने समय भी किसको ज्ञान देंगे। ऐसे नहीं, हॉस्पिटल में पड़े रहें और मुख बन्द हो जाए। मुख से कुछ न कुछ निकलता रहे। कितनी अच्छी अवस्था होनी चाहिए। बीमारी में भी बहुत सर्विस कर सकते हैं। मित्र-सम्बन्धी आयेंगे उनको भी कहेंगे परमात्मा को याद करो। वही सबका रखवाला है इसलिए शिवबाबा को याद करो। वह एक है। वर्सा भी सबको एक से मिलता है। लौकिक सम्बन्ध में वर्सा मेल को मिलता है। कन्या है ही 100 ब्राह्मणों से उत्तम। पवित्र को दान दिया जाता है। तुम कन्यायें सबसे पवित्र हो इसलिए कहते हैं हम कन्या को दान देते हैं। वह बड़ा दान समझते हैं। वास्तव में वह कोई दान होता नहीं। दान तो अभी तुम करते हो। कहते हो हम अपनी कन्या शिवबाबा को देते हैं, स्वर्ग की महारानी बनने के लिए। परन्तु कन्या भी ऐसी अच्छी पढ़ी लिखी हो, अपने दैवी कुल की हो जो समझाने से झट समझ जाये। सर्विसएबुल चाहिए। छोटे बच्चों को तो नहीं सम्भालना है। कोई को भी समझाना बड़ा सहज है कि शिवबाबा तुम्हारा बेहद का बाप है। चित्र सामने हैं। देखो, यह ऐसा सतयुग का वर्सा पा रहे हैं। इन लक्ष्मी-नारायण को वर्सा कहाँ से मिला? कितनी सहज बात है इसलिए बाबा बड़े चित्र भी बनवा रहे हैं। अभी यह नाटक पूरा होता है। हमने 84 जन्मों का पार्ट बजाया, अब वापिस बाबा के पास जाते हैं फिर नई दुनिया में आयेंगे। हमारा बाबा नई दुनिया का रचयिता है, उसका हमको मालिक बनाते हैं। आपको भी तरीका बतलाते हैं कि बेहद बाप से सदा सुख का वर्सा तुमको कैसे मिलेगा? एक तो समझाओ मैं आत्मा हूँ। मैं आत्मा खाती हूँ, मैं आत्मा चलती हूँ। यह बड़ी अच्छी प्रैक्टिस चाहिए। देह-अभिमान टूट जाये, देह-अभिमानी को लौकिक सम्बन्ध याद आयेंगे। देही-अभिमानी को पारलौकिक बाप ही याद पड़ेगा। उठते-बैठते-चलते यह बुद्धि में रखना है – मैं आत्मा हूँ। बाप की मत पर चलना है। शिवबाबा मत दे रहे हैं – अपने को आत्मा समझो। मेहनत करनी है। स्वर्ग के भाती तो बनेंगे। परन्तु थोड़े में खुश नहीं हो जाओ। भल स्वर्ग में तो जायेंगे। परन्तु पक्के मातेले बनो। मातेला उनको कहा जाता है जो बापदादा को ही याद करते। दूसरा कोई याद पड़ता तो वह सौतेले हो जाते हैं। बहुत हैं जिनको दोनों याद पड़ते रहते हैं। यह बाप है अविनाशी स्वर्ग का वर्सा देने वाला। यह भी कुल है, वह भी कुल है। उनसे तो दु:ख ही मिलता है। बाकी अल्पकाल क्षणभंगुर सुख का वर्सा मिलता है। अब बुद्धि से जज करना है – हम किस तरफ जा रहे हैं और किस तरफ जायें? लौकिक तरफ वा पारलौकिक तरफ? बुद्धि कहती है पारलौकिक बाप के बनकर हम क्यों नहीं स्वर्ग तरफ जायें? लौकिक सम्बन्ध से जीते जी मरना है। पारलौकिक बाप का बनने से स्वर्ग का मालिक बनेंगे। यहाँ तो नर्क के मालिक बनते हैं। अब आत्मा कहती है बुद्धि को कहाँ जोड़े? अपने शान्तिधाम, सुखधाम में जायें या यहाँ जायें? वास्तव में यहाँ जायें …..यह उठना ही नहीं चाहिए। यहाँ तो जन्म-जन्मान्तर रहे हैं। अब तो हम पारलौकिक बाप को कभी छोड़ेंगे नहीं।

यहाँ तुम बच्चे सम्मुख बैठे हो। तुम्हारा लौकिक सम्बन्ध कोई है नहीं। बुद्धि कहती है हम तो बाबा के साथ मुक्तिधाम-शान्तिधाम जायें। सवेरे उठ ऐसे-ऐसे बैठ विचार सागर मंथन करना चाहिए। बैठने से बड़ा मजा आयेगा। अब किस तरफ जाना चाहिए? नर्क तरफ क्यों जायें? यह माया बड़ा धोखा देती है। अभी तो तुम्हारे पास एम ऑब्जेक्ट है। अभी तुम किनारे पर हो, जानते हो इस तरफ तो दु:ख ही दु:ख है, उस तरफ 21 जन्मों का सुख है। बाप कहते हैं मेरे को याद करो क्योंकि मेरे पास आना है। माया कहती है दुनिया तरफ जाओ। कहाँ जायें? रास्ता तो मिला है। एक तरफ है स्वर्ग में जाने का रास्ता, दूसरी तरफ है नर्क में जाने का रास्ता। टिवाटा होता है ना। तीन गली के बीच में टिवाटा होता है। अब हम किस तरफ जायें? एक गली है मुक्ति की, एक गली है जीवनमुक्ति की और एक है नर्क की। जैसे तीन नदियों का संगम है। तीन वाटिकायें हैं। एक वाटिका में हम हैं। टिवाटे का मिसाल अच्छा है। अब कहाँ जायें? नर्क का तो विनाश होना है। यहाँ दु:ख बहुत है। अभी हम टिवाटे पर खड़े हैं। पीछे तो नहीं हटेंगे।

दु:ख की गली से निकाल बाबा ने टिवाटे पर खड़ा किया है। दु:खधाम की गली से तो तुम जन्म-जन्मान्तर पास कर आये हो। अब बुद्धि कहती है मुक्ति-जीवनमुक्ति तरफ जायें। मुक्तिधाम में तो सदैव के लिए बैठना नहीं है। ऐसे नहीं, हम पार्ट से छूट जायें, आयें ही नहीं। पार्ट से छूटना नहीं हो सकता। ड्रामा अनुसार आयेंगे जरूर। तो फिर मच्छरों सदृश्य मरेंगे। इतना दु:ख देखा है तो फिर इतना सुख भी देखना चाहिए। ड्रामा में बाबा ने वजन ठीक रखा है, जिनका पार्ट ही थोड़ा है, आये एक दो जन्म लिए, यह गये। अभी तुम टिवाटे पर खड़े हो। वह शान्तिधाम, वह सुखधाम। अगर शान्तिधाम जाना चाहते हो तो शान्तिधाम को याद करते रहो। मुक्ति को तो याद करना पड़े ना। पिछाड़ी वालों को मुक्तिधाम में जास्ती रहने कारण मुक्ति-धाम ही जास्ती याद पड़ेगा। तुमको जीवनमुक्तिधाम याद पड़ता है। स्वर्ग में हम जल्दी जायें। वह चाहते हैं हम मुक्ति में रहें। अच्छा, बाप को याद करते रहो इसमें भी कल्याण है। निर्वाणधाम में रहना चाहते, सुखधाम नहीं आना चाहते तो इससे समझ जायेंगे, इनका पार्ट नहीं दिखता है। तुम तो सुखधाम जाने वाले टिवाटे पर खड़े हो। पुरुषार्थ करते हो।

मनुष्यों को तुम्हारा सच्चा योग पसन्द आयेगा। अच्छा, बाप को याद करते रहो। चक्र को भी याद करने की दरकार नहीं। यह ज्ञान सब धर्म वालों के लिए है। समझते हैं ड्रामा अनुसार जिन्होंने जितना लिया है वही आकर अपना पद ले लेंगे। मुक्तिधाम जाना चाहते हैं तो बाप को याद करो। अगर चाहो हम सदैव सुखी रहें तो वहाँ (सतयुग में) शान्ति भी है, सुख भी है। जो जिस तरफ का होगा उनको वह वर्सा लेना है। सर्व का मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता तो बाप है ना। एक-दो जन्म लेने होंगे तो इसमें ही सुख भी देखेंगे, दु:ख भी देखेंगे। जैसे मच्छर आया और गया। वह कोई अमूल्य जीवन नहीं कहेंगे। तुम तो सदैव हर्षित रहने वाले हो। तुम लाइट हाउस हो खड़े हो। दोनों रास्ता दिखा सकते हो। चाहे मुक्तिधाम चलो, चाहे मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों को याद करो। इसमें शास्त्र आदि पढ़ने की कोई दरकार नहीं। कुमारियों के लिए तो बहुत सहज है क्योंकि सीढ़ी नहीं चढ़ी है। छोटेपन में पढ़ना अच्छा होता है क्योंकि बुद्धि अच्छी होती है। कोई की याद नहीं रहती है। तुम सब कुमारियां हो, तुम्हें और कुछ करना नहीं है, सिर्फ पढ़ाई में लग जाओ, बस, बेड़ा पार है। यह बातें बेहद का बाप ही समझाते हैं जो फिर हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। चित्र भी हैं हमको ऐसा बनना है। बाप कहते हैं इस पढ़ाई से तुम सो देवता बनेंगे। अभी यह खेल पूरा होना है। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में पड़े हैं। तुम अब सोझरे में हो। बाप ने आकर नींद से जगाया है। यह बुद्धि को, आत्मा को जगाया जाता है। बाप आकरके जगाते हैं – जागो, सुखधाम के लिए पुरुषार्थ करो। जो तुम्हारे कुल के होंगे वह आते रहेंगे, वृद्धि को पाते जायेंगे। तुम्हारी प्रजा कितनी बनती है, तुम हिसाब लगा सकते हो? नहीं। कोई कितना सुनते हैं, कोई थोड़ा सुनकर चले जाते हैं। हिसाब थोड़ेही निकाल सकते हैं। बड़ी माला, छोटी माला, साहूकार, प्रजा कैसे बनती है, कौन बनते हैं, वह सब बुद्धि में है। मुख्य सूर्यवंशी महाराजा-महारानी कौन बनेंगे, फिर चन्द्रवंशी कौन बनेंगे, कितनी प्रजा बनना है – सब बातें तुमको यहाँ बतलाई जाती हैं। सारे झाड़ अथवा सभी धर्मों के चक्र के बीच से कैसे टाल-टालियां, पत्ते आदि निकलते हैं, अभी भी पत्ते निकलते रहते हैं। वहाँ निराकारी दुनिया एकदम खाली हो जायेगी। फिर विनाश होना चाहिए। बड़ी लड़ाई में करोड़ों मरे होंगे, अनगिनत। यहाँ तो कितने ख़लास होंगे। बाकी थोड़े सतयुग में आकर राज्य करेंगे। अभी तो कितने मनुष्य हैं। अन्न ही इतना नहीं।

तुम बच्चे जानते हो – बाबा आते ही हैं संगम पर। बाप समझाते हैं – बच्चे, शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना ही है। हर बात में राय पूछते जाओ। हर एक का हिसाब-किताब अपना-अपना है। श्रीमत अविनाशी सर्जन से लेते जाओ। सबको अपनी-अपनी दवाई बतायेंगे। समझाया जाता है – यह दुनिया ख़लास हुई पड़ी है। अब बाप को याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। बाप आये ही हैं नर्क का विनाश कर स्वर्ग की स्थापना करने। हम आपको भी राय देते हैं, श्री श्री से मिली हुई श्रीमत हम आपको भी देते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सर्विस का शौक रखना है। बीमारी में भी बाप की याद में रहना है और दूसरों को भी याद दिलाना है। मुख से ज्ञान दान करते रहना है।

2) पक्का मातेला बनना है अर्थात् एक बाप की ही याद में रहना है। सवेरे-सवेरे उठ विचार सागर मंथन करना है। दूसरा कोई भी याद न आये।

वरदान:-अपनी शुभ और शक्तिशाली भावनाओं द्वारा विश्व परिवर्तन करने वाले विश्व कल्याणकारी भव
आप बच्चों के मन में सदा यही शुभ भावना है कि सर्व का कल्याण हो। हर आत्मा अनेक जन्म सुखी हो जाए, प्राप्तियों से सम्पन्न हो जाए। आपकी इस शुभ और शक्तिशाली भावना का फल विश्व की आत्माओं को परिवर्तन कर रहा है, आगे चल प्रकृति सहित परिवर्तन हो जायेगा क्योंकि आप संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं को ड्रामानुसार प्रत्यक्षफल प्राप्त होने का वरदान है इसलिए जो भी आत्मायें आपके संबंध-सम्पर्क में आती हैं वह उसी समय शान्ति वा स्नेह के फल की अनुभूति करती हैं।
स्लोगन:-त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहकर निर्णय करो तो हर कर्म में सफलता प्राप्त होगी।