MURLI 04-12-2023

04-12-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – सतगुरू का सहज वशीकरण मंत्र तुम्हें मिला हुआ है कि चुप रहकर मामेकम् याद करो, यही माया को अधीन करने का महामंत्र है”
प्रश्नः-शिवबाबा ही सबसे भोला ग्राहक है – कैसे?
उत्तर:-बाबा कहते – बच्चे, तुम्हारे पास देह सहित जो भी पुराना कचरा है वह मैं लेता हूँ, सो भी तब जब तुम मरने पर हो। तुम्हारे सफेद कपड़े भी मरने की ही निशानी हैं। तुम अभी बाप पर बलि चढ़ते हो। बाप फिर 21 जन्मों के लिए तुम्हें मालामाल कर देते हैं। भक्ति मार्ग में भी बाप सबकी मनोकामनायें पूर्ण करते हैं, ज्ञान मार्ग में भी सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान दे त्रिकालदर्शी बनाते हैं।
गीत:-भोलेनाथ से निराला……….

ओम् शान्ति। बच्चे भोलानाथ के सम्मुख बैठे हुए हैं। व्यापारी लोग कहते हैं – ऐसा कोई मत का मूरा (कम बुद्धि वाला भोला) हो जो हजार, दो हजार का माल लेकर, हमको खूब धन देकर जाये। हे भगवान्, हमको ऐसा ग्राहक मिलाओ। अब भोलानाथ बाप आकर बच्चों को आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाए त्रिकालदर्शी बना रहे हैं। मेरे जैसा ग्राहक तुमको कभी मिल सकता है? तुम उनको अर्पण करते हो। भक्ति मार्ग में बहुत महिमा करते हो। भोलानाथ की महिमा होती है – तुम मात-पिता……। वह आकर राजयोग सिखलाते हैं, राजाई देते हैं। बाप को कहते हैं यह जो पुराना कचरा है वह हम आपके ऊपर बलि चढ़ाते हैं। आप हमको 21 जन्मों के लिए मालामाल करते हो। सर्राफ होते हैं ना, मट्टा-सट्टा करते हैं, कमीशन लेते हैं। यह भी कहते हैं कचरा जो भी है देह सहित, वह सब तुम्हारा लेता हूँ जब तुम मरने पर हो। यहाँ तुम ब्रह्माकुमारियों के कपड़े भी सफेद हैं। जैसे कि तुम मरे पड़े हो। मरने वाले पर हमेशा सफेद चादर डालते हैं। कोई भी दाग़ न हो। इस समय सबको माया का काला दाग़ लग गया है, इसको ही राहू का ग्रहण कहा जाता है। चन्द्रमा पर भी ग्रहण लगने से काला हो जाता है ना। तो यह माया का ग्रहण भी सारे विश्व को काला कर देता है। इसमें तत्व आदि सब आ जाते हैं।

बाप बैठ समझाते हैं यह तुम्हारा राजयोग है। राजयोग से स्वर्ग में राजाई प्राप्त करनी है। तुम राजाओं का राजा बनते हो, नारायणी नशा रहता है। नर से नारायण बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण का राज्य होता ही है सतयुग में। तो जरूर मुझे अन्त में आना पड़े। यह समय है भक्ति मार्ग का, भक्ति मार्ग में दर-दर माथा टेकते, धक्का खाते रहते हैं। भक्तों का रखवाला है भगवान्, भक्ति का फल आकर देते हैं। सब भक्त तो हैं परन्तु सबको एक जैसा फल नहीं मिलता है। कोई को साक्षात्कार होता है, कोई को पुत्र मिलता है, अल्पकाल के लिए। किस्म-किस्म की मनोकामनायें पूरी करता हूँ। दुनिया में यह किसको पता नहीं कि भगवान् आया हुआ है राजयोग सिखलाने। समझते हैं वह द्वापर में आया तब राजयोग सिखाया होगा। फिर वहाँ नर से नारायण कैसे बनेंगे? अभी ही बाप तुम्हें राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाते हैं। यहाँ तो तुम्हें सिर्फ चुप रहना है। मनमनाभव, यही सतगुरू का सहज वशीकरण मंत्र है। इस मंत्र में बहुत आमदनी है। यह माया को अपने अधीन करने का मंत्र है। मायाजीत जगतजीत। भक्ति मार्ग वालों का है मन जीते जगतजीत, इसके लिए वह हठयोग आदि करते हैं। सो भी जगतजीत बनने के लिए नहीं करते हैं। वह तो मुक्ति के लिए करते हैं। बाप आकर कहते हैं – बच्चे, देह सहित, सर्व धर्मानि……. मैं फलाने धर्म का हूँ, फलाना हूँ। यह सब बातें छोड़ अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो। बस मैं जो मत दे रहा हूँ उस पर चलो। बाकी अब तक जो अनेक मतों पर चलते आये उन सबकी मत छोड़नी पड़े। तो तुम्हारा ज्ञान बिल्कुल नया हो गया। समझते हैं इन्हों की बातें तो नई हैं।

तुम बच्चे जब किसी को भी समझाते हो तो पहले उनकी नब्ज देखनी है। सबके सामने एक जैसी बात नहीं करनी है। मनुष्यों की हैं अनेक मतें। तुम्हारी है एक मत। परन्तु नम्बरवार हैं। जो अच्छा योग में रहते हैं, धारणा करते हैं, वह जरूर अच्छा समझायेंगे। कम धारणा वाले कम समझायेंगे। कोई भी हो उनको एक ही सिम्पुल बात बताओ-भल गृहस्थ व्यवहार में रहते रहो परन्तु कमल फूल समान। तुमको मालूम है कमल के फूल को बाल-बच्चे बहुत होते हैं और मिसाल भी उनका ही दिया जाता है। बाप को भी बाल बच्चे तो बहुत हैं। कमल का फूल खुद पानी के ऊपर रहता है, बाकी बाल बच्चे नीचे रहते हैं। यह मिसाल अच्छा है। बाबा कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहो परन्तु पवित्र रहो। यह बात हो गई पवित्रता पर। सो भी इस अन्तिम जीवन के लिए पवित्र रह मामेकम् याद करो। रचना की पालना भी जरूर करनी है। नहीं तो हठयोग हो जायेगा। दुनिया में पवित्र तो बहुत रहते हैं। बाल ब्रह्मचारी तो भीष्म पितामह मिसल हो गया। अच्छा बाल ब्रह्मचारी वह जो स्त्री-पुरुष दोनों इकट्ठे रह पवित्र रहे। गन्धर्वी विवाह की चर्चा तो शास्त्रों में भी है, परन्तु कोई जानते नहीं हैं। यह तो बाप ही समझाते हैं। बाबा कहते हैं – बच्चे, अब काम चिता के बदले दोनों ज्ञान चिता का हथियाला बांधो। कैसा अच्छा काम तुम ब्राह्मण करते हो। प्रतिज्ञा करनी है पवित्र रहने की। एक-दो को सावधान करते तुम दोनों स्वर्ग में चले जायेंगे। यहाँ तुम इकट्ठे पवित्र रहकर दिखाते हो इसलिए तुम बड़ा ऊंच पद ले सकते हो। मिसाल दिया जायेगा ना। ज्ञान चिता पर बैठ स्वर्ग में जाकर ऊंच पद पाते हैं। इसमें हिम्मत है बड़ी, अगर पक्के हो चलते रहो तो पद बहुत ऊंच है। फिर सर्विस पर भी मदार है। जो बहुत सर्विस करेंगे, प्रजा बनायेंगे वह पद भी अच्छा पायेंगे। बाबा-मम्मा से भी ऊंच चला जाना चाहिए। परन्तु जैसे बाबा कहते हैं वह दोनों क्रिश्चियन अगर आपस में मिल जाएं तो विश्व के मालिक बन जायें, ऐसे जोड़ा कोई निकले जो माँ-बाप से ऊंच जाये, सो है नहीं। जगत अम्बा, जगत पिता ही नामीग्रामी है। इन जैसी सर्विस कर नहीं सकेंगे। यह निमित्त बने हुए हैं इसलिए कभी हार्टफेल नहीं होना चाहिए। अच्छा, मम्मा-बाबा जैसा नहीं तो सेकेण्ड नम्बर तो बन सकते हो। सर्विस पर मदार है। प्रजा और वारिस बनाने हैं, तो यह अपनी बातें हैं नई। नई दुनिया रचने के लिए जरूर बाप को आना पड़े। वही रचयिता है। वह तो कह देते हैं-परमात्मा नाम रूप से न्यारा है। परन्तु ऐसा है नहीं। उनका भी कोई दोष नहीं। तकदीर में हो तो समझें। बहुत आते हैं जो समझते भी हैं कि बात तो बरोबर ठीक है। कोई कहे आत्मा का नाम रूप नहीं है, तब आत्मा नाम किसका पड़ा? आत्मा नाम तो है ना। तुम सबको बोलो यह राजयोग है। परमपिता परमात्मा संगम पर आते हैं, राजयोग जरूर संगमयुग पर सिखायेंगे तब तो पतित को पावन बनायेंगे। तो यहाँ की बात ही न्यारी है। बाप कहते हैं सिर्फ अपने को आत्मा समझो। बाप के पास जाना है। इसमें प्रश्न पूछने की कोई बात ही नहीं। कहते भी हैं कि हमारी आत्मा को न दुखाओ। यह पाप आत्मा है, पुण्य आत्मा है। आत्मा के लिए कोई कह न सके कि उनका कोई रूप नहीं होता है। विवेकानंद जब रामकृष्ण के सामने बैठा तो उनको साक्षात्कार हुआ, देखा कि लाइट आई जो मेरे में प्रवेश हुई। ऐसे कुछ बात बताते हैं। तुम बोलो हमारा है राजयोग। इसमें देह सहित देह के सभी मित्र सम्बन्धियों आदि को भूलना पड़ता है, हम आत्मा उनके बच्चे हैं, आपस में ब्रदरहुड हैं। अगर सभी फादर हो जाते तो फिर फादर ही फादर को प्रार्थना करते। अभी हम राजयोग सीख रहे हैं। यह है राजाओं का राजा बनने का योग। अभी तो राजाई है नहीं। तो समझाना है हम शान्ति में रहकर सिर्फ शिवबाबा को याद करते हैं। अपने को शरीर से न्यारा समझते हैं। आत्मा कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। तो नॉलेज का संस्कार आत्मा में रहता है ना। अच्छा वा बुरा संस्कार आत्मा में है। आत्मा निर्लेप नहीं है, यह समझाना है। आत्मा पुनर्जन्म में आती है। घड़ी-घड़ी आरगन्स लेना पड़ता है। आत्मा स्टॉर है, भ्रकुटी के बीच रहती है। आत्मा का साक्षात्कार हुआ, तो उसने समझा इनमें इतनी ताकत है जो मुझे आत्मा का साक्षात्कार कराया। अब आत्मा तो भ्रकुटी के बीच में रहती है। साक्षात्कार किया न किया, फ़र्क क्या रहा? आत्मा खुद कहती है मैं स्टार हूँ। मेरे में 84 जन्मों का पार्ट है। अगर 84 लाख जन्म हो तो इतने संस्कार हों जो पता नहीं क्या हो जाए! 84 जन्म मान सकते हैं। 84 लाख तो मान न सकें। अभी हम पावन बन रहे हैं। बाबा ने हमें नर से नारायण बनने के लिए पवित्र बनाया है, यह बहुत अच्छा नशा चाहिए। तुम्हें कोई से भी डिबेट करने की दरकार नहीं।

देह सहित देह के सब धर्म त्याग अपने को आत्मा, अशरीरी समझना है। भल हमने शास्त्र आदि पढ़े हैं, परन्तु डिस्कस क्यों करें? जबकि बाप ने कहा है मामेकम् याद करो और दूसरा फ़रमान है गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान पवित्र रहो। योग अग्नि से ही पाप नाश होंगे। भगवानुवाच है, भगवान भी परम आत्मा है। उनको भी स्टॉर कहेंगे। बहुत प्वाइंट्स हैं एक समय नहीं निकल सकती। आसामी देख युक्ति से उठाना है। बोलो, हम भी शास्त्र पढ़ते हैं परन्तु बाप का फ़रमान है कि सभी को भूल मामेकम् याद करो। वह है निराकार। आत्मा को तो सब मानेंगे। विवेकानंद वाले भी मानेंगे। आत्मा तो सभी में है। जरूर उनका बाप होगा ना जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। यह सब प्वाइंट्स हैं ना। यह सिमरण करने से सदैव प्वाइंट्स मिलती रहेंगी, स्टीमर भरता रहेगा। यह भी जैसे अविनाशी ज्ञान रत्नों का वखर (सामग्री) भरता है। प्वाइंट्स नोट कर रिवाइज़ करो। यह हैं रत्न, इनको धारण करने और लिखने का शौक चाहिए। अच्छी तरह से सबको समझाना है, आत्मा तो सभी में है उनका नाम रूप नहीं है। ऐसे तो कह नही सकेंगे आत्मा का रूप है तो परमात्मा का क्यों नहीं है। उनको कहा ही जाता है परमपिता परमात्मा, परमधाम में रहने वाला। कितना बच्चों को समझाया जाता है। तो अब सर्विस करके दिखाओ। बाबा तो सर्विस पर इनाम देते हैं। कितना श्रंगार कराते हैं ज्ञान रत्नों का। हम यहाँ के पदमपति नहीं बनना चाहते हैं, हमको तो चाहिए विश्व की बादशाही। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) ज्ञान रत्न जो मिलते हैं उन पर विचार सागर मंथन कर स्वयं में धारण करना है। ज्ञान रत्नों से सदा भरपूर रहना है।

2) अपने नारायणी नशे में रहना है, वाह्यात बातें किसी से भी नहीं करनी है। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।

वरदान:-दुआ और दवा द्वारा तन-मन की बीमारी से मुक्त रहने वाले सदा सन्तुष्ट आत्मा भव
कभी शरीर बीमार भी हो तो शरीर की बीमारी से मन डिस्टर्ब न हो। सदैव खुशी में नाचते रहो तो शरीर भी ठीक हो जायेगा। मन की खुशी से शरीर को चलाओ तो दोनों एक्सरसाइज हो जायेंगी। खुशी है दुआ और एक्सरसाइज है दवाई। तो दुआ और दवा दोनों से तन मन की बीमारी से मुक्त हो जायेंगे। खुशी से दर्द भी भूल जायेगा। सदा तन-मन से सन्तुष्ट रहना है तो ज्यादा सोचो नहीं। अधिक सोचने से टाइम वेस्ट होता है और खुशी गायब हो जाती है।
स्लोगन:-विस्तार में भी सार को देखने का अभ्यास करो तो स्थिति सदा एकरस रहेगी।

मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य – “परमात्मा की सद्गति करने की गत मत परमात्मा ही जानता है”

तुम्हारी गत मत तुम ही जानो… अब यह महिमा किसकी यादगार में गाते हैं? क्योंकि परमात्मा की सद्गति करने की जो मत है वो तो परमात्मा ही जानता है। मनुष्य नहीं जान सकता, मनुष्य की सिर्फ यह इच्छा रहती है कि हमको सदा के लिये सुख चाहिए, मगर वो सुख कैसे मिले? जब तक मनुष्य अपने 5 विकारों को भस्म कर कर्म अकर्म नहीं बनाये तब तक वो सुख मिल नहीं सकता, क्योंकि कर्म अकर्म विकर्म की गति बहुत गहन है जिसको सिवाए परमात्मा के और कोई मनुष्य आत्मा उसकी गति को नहीं जान सकता। अब जब तक परमात्मा ने वो गति नहीं सुनाई है तब तक मनुष्यों को जीवनमुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती, इसलिए मनुष्य कहते हैं तेरी गत मत तुम ही जानो। इनकी सद्गति करने की मत वो परमात्मा के पास है। कैसे कर्मों को अकर्म बनाना है, यह शिक्षा देना परमात्मा का काम है। बाकी मनुष्यों को तो यह ज्ञान नहीं, जिस कारण वो उल्टा कार्य करते रहते हैं, अब मनुष्य का पहला फर्ज़ है अपने कर्मों को सुधारना, तब ही मनुष्य जीवन का पूरा लाभ उठा सकेंगे। अच्छा। ओम् शान्ति।