murli 04-06-2023

04-06-23प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा”रिवाइज: 31-12-94 मधुबन

नये वर्ष को शुभ भावना गुण स्वरूप वर्ष के रूप में मनाओ

आज नवयुग रचता बापदादा अपने नवयुग राज्य अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। नव वर्ष को देख अपना नवयुग याद आता है! नवयुग के आगे यह नव वर्ष कोई बड़ी बात नहीं। जिस नवयुग में हर वस्तु, हर व्यक्ति, प्रकृति सब नया है। नया वर्ष जब शुरू होता है तो पुरानी वस्तु वा व्यक्ति के पुराने स्वभाव, संस्कार, चाल-चलन कुछ नये होते हैं, कुछ पुराने होते हैं। लेकिन आपके नवयुग में पुराने का नाम-निशान नहीं। व्यक्ति भी नया अर्थात् सतोप्रधान है और प्रकृति भी सतोप्रधान अर्थात् नई है। प्रकृति में भी आजकल जैसा पुरानापन नहीं होगा। तो नवयुग की मुबारक के साथ नव वर्ष की मुबारक।

आज विशेष नया वर्ष मनाने के उमंग-उत्साह से, खुशी-खुशी से सभी पहुँच गये हैं। तो बापदादा भी दिल से दिल की दुआओं सहित नव युग की और नये वर्ष की डबल मुबारक देते हैं। आप सभी को भी डबल याद है या सिंगल याद है? अपना नया युग नयनों के आगे बुद्धि में स्पष्ट है ना? जैसे कहेंगे कल से नया वर्ष शुरू है, ऐसे ही कहेंगे कल नवयुग आया कि आया इतना स्पष्ट है? नशा है? सभी नवयुग के राज्य अधिकारी हैं? सभी राजा बनेंगे तो प्रजा बनाई है? आप सब तो राजा हो लेकिन राज्य किस पर करेंगे? अपने ऊपर! तो बापदादा नवयुग और नया वर्ष डबल देख रहे हैं। कल की बात है ना, वो भी कल और ये भी कल की बात है। फिर नवयुग होगा ना! अपने नवयुग की ड्रेस (शरीर) सामने दिखाई देती है? बस, पुरानी ड्रेस छोड़ेंगे और नई ड्रेस धारण करेंगे। तो वो ड्रेस अच्छी, चमकीली, सुन्दर है ना! अभी तो देखो हर व्यक्ति में कोई ना कोई नुक्स होगा। कोई की नाक टेढ़ी होगी, किसकी आंख टेढ़ी होगी, किसके होंठ ऐसे होंगे और नवयुग में सब नम्बरवन, हर कर्मेन्द्रिय एक्यूरेट। तो ऐसी ड्रेस सामने खूटी पर लगी हुई है ना! बस पहननी है। अपनी ड्रेस अच्छी, पसन्द है? देख रहे हो ना?

बापदादा सदैव जब हर एक बच्चे को देखते हैं तो क्या देखते हैं? एक तो हर एक के मस्तक की चमकती हुई मणि श्रेष्ठ आत्मा को देखते हैं और साथ-साथ हर एक बच्चे के भाग्य की श्रेष्ठ लकीर को देखते हैं। हर एक का भाग्य कितना श्रेष्ठ है! सभी का भाग्य श्रेष्ठ है ना! कि किसका मध्यम भी है? सभी वन हैं? सेकेण्ड, थर्ड और आने वाले हैं? अच्छा है, दुनिया वाले कहते हैं आपके मुख में गुलाब और बापदादा कहते हैं आपके मुख में गुलाब-जामुन। गुलाब-जामुन सबको बहुत अच्छा लगता है ना? गुलाब-जामुन या मिठाई खाने के लिये ही बापदादा ने हर गुरूवार भोग का रखा है। भोग में खुद भी खाते हो और बापदादा को भी स्वीकार कराते हो। घर में बनाये, नहीं बनाये, लेकिन गुरूवार को तो मीठा मिलेगा ना। और जब कभी खुशी का उत्सव होता है तो मुख ही मीठा कराते हैं। मीठा मुख अर्थात् मीठा मुखड़ा। मुख मीठा तो सब करते हैं लेकिन आप सबका मुख भी मीठा है तो मुखड़ा (फेस) भी मीठा है, या थोड़ा-थोड़ा कड़ुवा भी है? अगर एक लकीर भी कड़ुवे की हो तो आज वर्ष को विदाई देने के साथ-साथ इस थोड़े से कड़ुवे-पन को भी विदाई दे देना। विदाई देना आता है कि पास में रखना अच्छा लगता है? या विदाई देकर फिर बुला लेंगे? फिर कहेंगे हम तो छोड़ना चाहते हैं लेकिन माया नहीं छोड़ती है! ऐसे तो नहीं कहेंगे कि हमने छोड़ दिया लेकिन माया आ गई? वहाँ जाकर फिर ऐसे पत्र लिखेंगे? विदाई, तो सदाकाल के लिये विदाई। विदाई देने का अर्थ ही है फिर आने नहीं देना या कभी-कभी आ जाये तो कोई हर्जा नहीं? क्योंकि पुराने संस्कार कइयों को बहुत अच्छे लगते हैं। आज कहेंगे कल से नहीं होगा और फिर परसों परवश हो जायेंगे। तो उसको विदाई नहीं कहेंगे ना। तो विदाई देना भी सीखो। वर्ष को विदाई देना तो कॉमन बात है लेकिन आप सबको अंश, वंश सहित माया को विदाई देना है। अंश मात्र भी नहीं रहे। कई बच्चे कहते हैं 75 प्रतिशत तो फर्क पड़ गया है, और भी पड़ जायेगा। लेकिन माया अंश से वंश बहुत जल्दी पैदा करती है। 25 प्रतिशत अंश मात्र भी रहा तो 25 से 50 तक भी बहुत जल्दी पहुँच सकता है इसीलिये अंश सहित समाप्त करना है। तो नये वर्ष में क्या करेंगे? पुराने वर्ष को विदाई देने के साथ-साथ माया के अंश को भी विदाई देना। और विदाई के साथ बधाई भी देते हो ना! कल सभी एक-दो को मिलेंगे तो कहेंगे नये वर्ष की मुबारक हो, बधाई हो। तो विदाई दो और विदाई के साथ-साथ अपने को भी और दूसरों को भी सदा फरिश्ते स्वरूप की बधाई दो। हैं ही फ़रिश्ता। ऊपर से नीचे आये, अपना कार्य किया और उड़ा। फरिश्ते यही करते हैं ना! उड़ती कला की निशानी पंख दिखाये हैं। कोई आर्टीफिशियल पंख नहीं हैं। लेकिन ये फ़रिश्तों को जो पंख दिखाते हैं उसका अर्थ है फ़रिश्ता अर्थात् उड़ती कला वाले। तो फ़रिश्ते स्वरूप की बधाई स्वयं को भी दो और दूसरों को भी। सदा फ़रिश्ते स्वरूप के स्मृति में भी रहो और दूसरे को भी उसी स्वरूप से देखो। फलानी है, फलाना है…। नहीं, फ़रिश्ता है। ये फ़रिश्ता सन्देश देने के निमित्त है। समझा? तो सभी को फ़रिश्ते स्वरूप की मुबारक दो। चाहे कोई कैसा भी हो लेकिन दृष्टि से सृष्टि बदल सकती है। जब दृष्टि से सृष्टि बदल सकती है तो क्या ब्राह्मण नहीं बदल सकता? आपकी दृष्टि-स्मृति हर आत्मा को बदल देगी।

बापदादा को कभी-कभी बच्चों पर हंसी आती है। आप लोगों को भी अपने ऊपर आती है? एक तरफ कहते हैं कि हम विश्व परिवर्तक हैं, विश्व कल्याणकारी हैं… और फिर विश्व परिवर्तक आकर कहता है कि ये मेरे से बदली नहीं होता! अपने प्रति भी कभी रूहरिहान में कहते हैं चाहते हैं ये नहीं करें, फिर भी कर लेते हैं… तो विश्व परिवर्तक और स्वयं के लिए ही कहे कि मैं चाहता हूँ लेकिन कर नहीं पाता हूँ तो उसका टाइटल क्या होना चाहिये? उसको विश्व परिवर्तक कहना चाहिये या कमजोर कहना चाहिये? गीत सुनाते हैं ना क्या करें, कैसे करें, पता नहीं कब होगा… यह गीत बापदादा तो सुनते हैं ना! जब विश्व परिवर्तक हैं, विश्व कल्याणकारी हैं तो क्या कोई आत्मा को नहीं बदल सकते? स्वयं को नहीं बदल सकते? अगर स्व परिवर्तक भी नहीं तो विश्व परिवर्तक कैसे होंगे?

बापदादा कहते हैं इस वर्ष की विशेष दृढ़ प्रतिज्ञा स्वयं से करो। प्रतिज्ञा का अर्थ ही है कि शरीर चला जाये लेकिन जो प्रतिज्ञा की है, वह प्रतिज्ञा नहीं जाये। तो प्रतिज्ञा करने की इतनी हिम्मत है? करेंगे? डरेंगे तो नहीं? तो यही प्रतिज्ञा स्वयं से करो कि “कभी भी किसी की कमजोरी वा कमी को नहीं देखेंगे। किसी की कमजोरी-कमी को नहीं सुनेंगे, नहीं बोलेंगे।” न सुनेंगे, न बोलेंगे, न देखेंगे। तो ये वर्ष क्या हो जायेगा? ये वर्ष हो जायेगा शुभ भावना गुण स्वरूप वर्ष। हर वर्ष को अपना-अपना नाम देते हो ना। जब ये प्रतिज्ञा सभी कर लेंगे तो ये वर्ष हुआ – शुभ भावना गुण स्वरूप वर्ष। मंज़ूर है? फिर वहाँ जाकर नहीं बदल जाना! फिर कहेंगे मधुबन में तो वायुमण्डल अच्छा था ना और यहाँ तो वायुमण्डल का संग है ना! परिवर्तक किसी के संग में नहीं आता, किसी के प्रभाव में नहीं आता। अगर परिवर्तक ही प्रभाव में आ जायेगा तो परिवर्तन क्या करेगा? इसलिये इस वर्ष को गुण मूर्त, शुभ भावना वर्ष के रूप में मनाओ। किसकी अशुभ बात को भी आप अपने पास शुभ करके उठाओ। अशुभ देखते हुए भी आप शुभ दृष्टि से देखो। जब प्रकृति को बदल सकते हो तो मनुष्यात्माओं को नहीं बदल सकते हो? और उसमें भी ब्राह्मण आत्मायें हैं, उनको नहीं बदल सकते हो? जब सबके प्रति शुभ भावना होगी तो ‘कारण’ शब्द समाप्त होकर ‘निवारण’ शब्द ही दिखाई देगा। इस कारण से ये हुआ, इस कारण हुआ…। नहीं, कारण को निवारण में परिवर्तन करो। हिम्मत है? अच्छा! बाप-दादा जब टी.वी. खोलते हैं तो बड़ा मजा आता है। ये कलियुगी टी.वी. नहीं देखते। ब्राह्मणों की टी.वी. देखते हैं। ऐसे नहीं, आप लोग वह टी.वी. खोल लो, ऐसे नहीं करना। तो जब बच्चों का खेल देखते हैं तो बहुत मजा आता है। मिक्की माउस का खेल तो करते हो ना! थोड़े टाइम के लिये कोई शेर बन जाता, कोई कुत्ता बन जाता। जिस समय क्रोध करते हो उस समय क्या हो? जिस समय किससे डिस्कस करते हो, उसके ऊपर वार करते जाते हो, सिद्ध करते जाते हो तो उस समय क्या हो? मिक्की माउस ही बन जाते हो ना। तो इस वर्ष मिक्की माउस नहीं बनना। फ़रिश्ता बनना। मिक्की माउस का खेल बहुत किया। तो ये वर्ष ऐसे शक्तिशाली वर्ष मनाना क्योंकि समय तो समीप आना भी है और लाना भी है। ड्रामानुसार आना तो है ही लेकिन लाने वाले कौन हैं? आप ही हो ना?

दूसरी विशेषता इस वर्ष में क्या करेंगे? नये वर्ष में एक तो बधाइयाँ देते हो और दूसरा गिफ्ट देते हो। तो इस नये वर्ष में सदैव हर एक को, जो भी जब भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये, चाहे ब्राह्मण परिवार, चाहे और आत्मायें हो, उन सबको एक तो मधुर बोल की गिफ्ट दो, स्नेह के बोल की सौगात दो और दूसरा सदैव कोई न कोई गुण की, शक्ति की सौगात दो। यह सौगात सेकेण्ड में भी दे सकते हो। ऐसे नहीं कह सकते हो कि टाइम ही नहीं मिला, न लेने वाले को टाइम था, न देने वाले को टाइम था। लेकिन अगर अपनी श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति है तो सेकेण्ड के संकल्प से, दृष्टि से अपने दिल के मुस्कराहट से सेकेण्ड में भी किसी को बहुत कुछ दे सकते हो। जो भी आवे उसको गिफ्ट देनी है, खाली हाथ नहीं जावे। तो इतनी गिफ्ट आपके पास है? कि दो दिन देंगे तो खत्म हो जायेगी? सभी का स्टॉक भरपूर है? कि कोई का स्टॉक थोड़ा कम हो गया है? जिसके पास कम हो वो हाथ उठा लो। भर देंगे। जिसके पास कमी हो वो चिटकी लिखकर जनक (दादी जानकी) को देना वो क्लास करा लेगी। कमी तो नहीं रहनी चाहिये ना! दाता के बच्चे और कमी हो तो अच्छा नहीं है ना! इसलिये भरपूर होकर जाना। कमी को लेकर नहीं जाना। वर्ष के साथ कमियों को भी विदाई देकर जाना। ऐसे नहीं, कि सिर्फ कल एक दिन ही गिफ्ट देना है। नहीं, सारा वर्ष सबको गिफ्ट बांटते जाओ। बिना गिफ्ट के कोई नहीं जाये तो कितना अच्छा लगेगा। अगर कोई आता है उसको छोटी-सी प्यार से गिफ्ट दे दो तो कितना खुश होता है। चीज़ को नहीं देखते हैं लेकिन गिफ्ट अर्थात् स्नेह के स्वरूप को देखते हैं। गिफ्ट से कोई मालामाल नहीं हो जाते हैं लेकिन स्नेह से मालामाल हो जाते हैं। तो स्नेह देना और स्नेह लेना। अगर कोई आपको स्नेह नहीं भी दे, तो भी आप उनसे ले लेना। लेना आयेगा कि शर्म करेंगे कैसे लें? इस लेने में कोई हर्जा नहीं है। वो आप पर क्रोध करे, आप स्नेह के रूप में ले लेना। आप विश्व परिवर्तक हो ना। तो विश्व परिवर्तक किसी के निगेटिव को पॉजिटिव में नहीं बदल सकता! तो ये वर्ष सदा स्नेह देना और स्नेह लेना। ऐसे नहीं कहना कोई ने दिया ही नहीं, क्या करुँ…। वो दे या न दे, आप ले लो। कुछ तो देगा ना, निगेटिव दे या पॉजिटिव दे कुछ तो देगा ना! लेकिन हे विश्व परिवर्तक, आप निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेना। समझा, इस वर्ष क्या करना है! अच्छा। डबल विदेशी क्या करेंगे? गिफ्ट देंगे? दाता बन गये हो? वाह, दातापन की मुबारक हो।

बापदादा रोज़ बच्चों की एक बात देखते हैं। कौन-सी? कि ये ‘मैं’ और ‘मेरा’ ये परेशान कर देता है। कभी ‘मेरा’ आ जाता है, कभी ‘मैं’ आ जाता है, जो बीच-बीच में परेशान करता है। तो जब वर्ष परिवर्तन हो रहा है तो इस ‘मैं’ और ‘मेरे’ को भी परिवर्तन करो। शब्द भले ‘मैं’ बोलो लेकिन मैं कौन? ओरीजनल ‘मैं’ किसको कहते हैं? शरीर को या आत्मा को? मैं आत्मा हूँ। तो जब भी ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हो तो क्यों नहीं ‘मैं’ शब्द का ओरीजनल स्वरूप, ओरीजनल अर्थ स्मृति में रखते हो। और सारे दिन में कितने बार ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हो? करना ही पड़ता है ना। ‘मेरा’ भी कई बार यूज़ करते हो और ‘मैं’ भी कई बार यूज़ करते हो। तो जितने बार ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हो उतने बार अगर वास्तविक अर्थ से ‘मैं’ स्मृति में लाओ तो ‘मैं’ धोखा देगा या उड़ायेगा? तो जब भी ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हो उस समय यही सोचो मैं आत्मा हूँ क्योंकि ‘मैं’ और ‘मेरे’ शब्द के बिना रह भी नहीं सकते हो। बोलना ही पड़ता है और आदत भी है, ‘मैं’ ‘मेरे’ के पक्के संस्कार हो गये हैं। तो जिस समय ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हो उस समय ये सोचो कि मैं कौन? मैं शरीर तो हूँ ही नहीं ना। बॉडी-कॉन्सेसनेस तब आवे जब मैं शरीर हूँ। शरीर तो मेरा कहते हो ना? कि मैं शरीर कहते हो? कभी गलती से कहते हो कि मैं शरीर हूँ? गलती से भी नहीं कहेंगे ना कि मैं शरीर हूँ। तो ‘मैं’ शब्द और ही स्मृति और समर्थी दिलाने वाला शब्द है, गिराने वाला नहीं है। तो परिवर्तन करो। विश्व परिवर्तक पक्के हो ना? देखना कच्चे नहीं बनना। तो ‘मैं’ शब्द को भी अर्थ से परिवर्तन करो। जब भी ‘मैं’ शब्द बोलो, तो उस स्वरूप में टिक जाओ और जब ‘मेरा’ शब्द यूज़ करते हो तो सबसे पहले मेरा कौन? सारे दिन में मेरा-मेरा तो बहुत बनाते हो! मेरा स्वभाव, मेरा संस्कार, मेरी ये चीजें, मेरा परिवार, मेरा सेन्टर, मेरा जिज्ञासु, मेरी सेवा, मेरी सेवा इसने क्यों की? ये कहते हो ना? खेल तो करते हो ना। तो जब ‘मेरा’ शब्द बोलते हो तो ‘मेरा’ कहने से पहले ये याद करो कि मेरा कौन? पहले ‘मेरा बाबा’ याद करो। फिर मेरा और याद करो। तो जहाँ बाप होगा वहाँ देह अभिमान वा गिरावट नहीं आयेगी। तो ‘मैं’ और ‘मेरा’ इन दोनों शब्दों को उस वृत्ति से, उस दृष्टि से, उस अर्थ से देखो और बोलो। ‘मेरा’ शब्द मुख से निकले और पहले ‘मेरा बाबा’ याद आये। तो निरन्तर योगी तो हो जायेंगे ना! क्योंकि हर घण्टे में ‘मेरा’ और ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हो। कारोबार में भी करना पड़ता है ना! तो जितने बार ये रिपीट करो, मुख से बोलो वा मन से सोचो – मैं या मेरा, तो अर्थ का परिवर्तन करो। हद से बेहद में जाना है ना। जब बेहद सृष्टि की परिवर्तक आत्मायें हो तो हद में क्यों जाते हो? सिर्फ भारत परिवर्तक तो नहीं हो ना? या डबल विदेशी सिर्फ फॉरेन परिवर्तक तो नहीं हो ना? विश्व परिवर्तक हो। विश्व अर्थात् बेहद। विश्व परिवर्तक हैं – यह पक्का याद है ना? तो ऑटोमेटिकली निरन्तर योगी सहज बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगीक्योंकि भाव और भावना बदल जायेगी। अच्छा!

चारों ओर के नवयुग के राज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को सदा स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन के निमित्त विशेष आत्माओं को, सदा पुरुषार्थ में नवीनता-श्रेष्ठता लाने वाले सर्व स्नेही आत्माओं को, सदा बाप का नाम प्रत्यक्ष करने वाले सपूत आत्माओं को, सदा ‘मेरा’ और ‘मैं’ को यथार्थ भाव और अर्थ में लाने वाले सहजयोगी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

वरदान:-आगे पीछे सोच समझकर हर कार्य करने वाले ज्ञानी तू आत्मा त्रिकालदर्शी भव
जो बच्चे त्रिकालदर्शी अर्थात् तीनों कालों का ज्ञान बुद्धि में रख, आगे पीछे सोच समझकर कर्म करते हैं उन्हें हर कर्म में सफलता मिलती है। ऐसे नहीं बहुत बिजी था इसलिए जो काम सामने आया वह करना शुरू कर दिया, नहीं। कोई भी कर्म करने के पहले यह आदत पड़ जाए कि पहले तीनों काल सोचना है। त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर कर्म करो तो कोई भी कार्य व्यर्थ वा साधारण नहीं होगा।
स्लोगन:-अपने सन्तुष्ट और खुशनुम: जीवन से सेवा करो तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।