murli 03-06-2023

03-06-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – जैसे बाप सबको सुख देते हैं, ऐसे तुम बच्चे भी फूल बन सबको सुख दो, किसी को काँटा नहीं लगाओ, सदा हर्षित रहो”
प्रश्नः-बाप जब बच्चों से मिलते हैं तो कौन-सी बात और किन मीठे शब्दों में पूछते हैं?
उत्तर:-मीठे-मीठे लाडले सिकीलधे बच्चे – खुश मौज में हो? यह प्यार के बोल शिवबाबा के मुख से ही अच्छे लगते हैं। प्यार से शिवबाबा पूछते हैं – बच्चे, राजी खुशी हो? क्योंकि बाप जानते हैं बच्चे अभी युद्ध के मैदान में खड़े हैं। माया पहलवान बन बच्चों को पीछे हटाने आती है, इसलिए बाबा पूछते हैं कि – बच्चे, मायाजीत बने हो, सदा समर्थ उस्ताद याद रहता है? खुशी रहती है?
गीत:-माता ओ माता…. Audio Player

ओम् शान्ति। शिव भगवानुवाच। अब शिव कोई शरीर का नाम नहीं है। इन ब्रह्मा को कोई भगवान कह न सके। ब्रह्मा कहते हैं शिव भगवानुवाच। ब्रह्मा का बाप शिव है। रचयिता बाप जरूर मूलवतनवासी ऊंच ते ऊंच होगा। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को ऊंच ते ऊंच नहीं कहा जाता। ऊंच ते ऊंच एक क्रियेटर बाप ठहरा। बच्चे जानते हैं ऊंच ते ऊंच बाप से हम वर्सा लेने आये हैं। वह बाप स्वर्ग का रचयिता है। अब बाप सम्मुख बैठे हुए हैं। तो मात-पिता भी चाहिए। त्वमेव माताश्च पिता… गाया जाता है। अभी शिव-बाबा स्वयं कहते हैं मैं इस तन में आकर मुख वंशावली रचता हूँ। वंशावली माता बिगर तो रच नहीं सकते। तो यह ब्रह्मा माता है। परन्तु यह माता पालना नहीं कर सकती है। यह तो पिता का रूप हो गया। माता का रूप चाहिए। यह दादा (ब्रह्मा) है। यह बड़ी गुह्य, रमणीक बातें समझने की हैं। यह तो बच्चे जानते हैं हम ब्रह्मा की मुख वंशावली हैं। इनको एडाप्शन कहा जाता है। कुख वंशावली को एडाप्शन नहीं कहेंगे। मुख से कहते हैं तुम मेरी हो, इसको मुख वंशावली कहा जाता है। जैसे संन्यासी होगा तो कहेंगे आप हमारे गुरू हो। वह कहते हैं तुम हमारे शिष्य हो। तो वह हो गये मुख के फालोअर्स। मुख की उत्पत्ति। कुख वंशावली नहीं कहेंगे। अब बाबा पूछते हैं कि शंकराचार्य का बाप कौन? क्या जिससे वह पैदा हुआ, उनको बाप कहेंगे? नहीं। शंकराचार्य का बाप परमपिता परमात्मा है। शंकराचार्य की नई सोल आकर प्रवेश करती है, धर्म स्थापन करने। जैसे परमपिता परमात्मा ने इनमें प्रवेश किया है, वैसे शंकराचार्य की नई सोल ने प्रवेश कर मुख वंशावली बनाई। फिर वह मुख वंशावली चलती है। उन द्वारा धर्म स्थापन होता है। जैसे ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म स्थापन होता है। बाप हर बात समझाते हैं। शिवबाबा ऐसे नहीं कहेंगे कि आत्मायें मेरी मुख वंशावली हैं। आत्मायें तो हैं ही हैं। शिवबाबा आते हैं, आकर इस प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं। शिवबाबा इस मुख द्वारा कहते हैं – तुम मेरे हो। बच्चे फिर कहते हैं – बाबा, आप हमारे हो। ब्रह्मा द्वारा ही तुम बच्चे बन सकते हो। शिवबाबा कहते हैं – बच्चे, ख्याल रखना, वर्सा तुमको हमसे लेना है, ब्रह्मा से नहीं मिलना है। बिल्कुल नहीं मिलना है। स्वर्ग की राजधानी का वर्सा हमसे ही मिल सकता है। रचयिता स्वर्ग का मैं हूँ, मुझे हेविनली गॉड फादर कहा जाता है। प्रजापिता ब्रह्मा को हेविनली गॉड फादर नहीं कहेंगे। फिर इनको मास्टर क्रियेटर कहेंगे। वह हो गया बाप। क्या क्रियेट करते हैं? स्वर्ग की रचना। किस द्वारा? मुख्य एक बच्चा ब्रह्मा है। फिर हैं उनके पोत्रे पोत्रियाँ। एक है रूहानी बाप, दूसरा है जिस्मानी बाप। अब निराकारी रूहानी बाप आये कैसे? जरूर उनको शरीर चाहिए। ऐसे तो नहीं शिवबाबा सागर में पत्ते पर अंगूठा चूसकर आयेगा। शरीर तो चाहिए ना। गाया हुआ है ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण। तो ब्रह्मा का बाप चाहिए। ब्रह्मा का बाप है शिव, इसलिए शिवबाबा कहते हैं – तुमको ब्रह्मा अथवा ब्रह्मा की बेटी सरस्वती को याद नहीं करना है। इन्हों द्वारा तुमको शिवबाबा की याद मिलती है। ब्रह्मा मुख वंशावली में सरस्वती नम्बरवन चली गई। जगत अम्बा का बड़ा भारी मेला लगता है क्योंकि बाल ब्रह्मचारी पवित्र है। पवित्रता से कितना नाम बाला हो जाता है। जगत अम्बा का नाम इस (ब्रह्मा) को दे नहीं सकते। जगत अम्बा जरूर चाहिए। तो बाप कैसे रचना रचते हैं। बाप ही बच्चों को समझाते हैं। बच्चे बहुत हैं ना। कहते हैं रुकमणी, सत्यभामा आदि को भगाया अर्थात् अपना बनाया। ऐसे-ऐसे नाम बहुत डाल दिये हैं। थोड़ा बहुत आटे में नमक कोई ऐसी-ऐसी बातें हैं।

महाभारी महाभारत युद्ध भी शास्त्रों में गाई हुई है। फिर उनको कहते थर्ड वर्ल्ड वार। यह रिहर्सल होती रहेगी। फर्स्ट वर्ल्ड वार, सेकेण्ड वर्ल्ड वार, थर्ड वर्ल्ड वार भी है। अब बच्चे जानते हैं यह लड़ाई तो बहुत ज़ोर से लगेगी। नहीं तो मौत कैसे आयेगा। यादव कुल का विनाश, कौरव कुल का विनाश। बाकी पाण्डव कुल रह जाता है। तुम पाण्डव कुल वाले बैठे हो। तुम्हारी बुद्धि में गीता का ज्ञान है। बाप बैठ सब शास्त्रों का सार समझाते हैं। साक्षात्कार कराते हैं। खुद जानते हैं तब तो साक्षात्कार कराते हैं ना। जो भी शास्त्र-वेद आदि तुमने पढ़े है, मैं तुमको सबका सार सुनाता हूँ। मेरी है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी भगवत गीता। जो मैं राजयोग सिखलाता हूँ उनका बैठकर किताब बनाते हैं। हमने तुम बच्चों को आकर युद्ध के मैदान में नॉलेज दी है। राजयोग सिखलाया है। युद्ध है माया की। उन्होंने फिर स्थूल युद्ध का मैदान दिखाया है। मुख्य जो बड़े होते हैं उनकी बायोग्राफी बताते हैं। तुम्हारे में भी मुख्य कौन-कौन हैं, वह भी बताते हैं। यहाँ बरोबर मुख्य है सरस्वती। ब्रह्मा भी है जिन्होंने यज्ञ की स्थापना की और फिर जिन्होंने शाखाओं की स्थापना की है उन्हों में भी नम्बरवार प्रिय लगते हैं। कहेंगे फलाने द्वारा बहुत ही काँटे से कली और कली से फूल बने हैं। जो अच्छी रीति धारण करते हैं उनको फूल कहा जाता है। काँटे उसको कहते हैं जो एक दो को दु:ख देते हैं। दु:ख देना काँटे का काम है। वह काँटे जड़ हैं। यह फिर हैं ह्यूमन काँटे। बाबा कहते हैं मैं तुमको फूल बनाता हूँ। फूल एक-दो को अथाह सुख देते हैं। वहाँ तो जानवर भी एक-दो को सुख देते इसलिए कहा जाता है शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं अर्थात् वहाँ दु:ख बिल्कुल नहीं होता। वह अवस्था अभी बच्चों को धारण करनी है। सतयुग में तो तुमको प्रालब्ध मिलती है। ड्रामा अनुसार नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार धारणा करते रहते हैं और फिर धारणा कराते हैं। पुरुषार्थ बिगर कुछ होता नहीं। बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। यह ब्रह्मा तो ऐसे कह न सके। यह कहते हैं तुमको वर्सा बाप से मिलना है। माँ से मिलता नहीं। भल ज्ञान समझाते हैं परन्तु वर्सा उनसे मिलना है जिसके पास जाना है। उनकी आत्मा को भी मेरे पास आना है। मेरे को याद करना है। याद पर ही सारा मदार है। अल्फ मिला तो सब कुछ मिला। अल्फ अर्थात् अल्लाह, ईश्वर। ईश्वर अर्थात् बाप। बच्चा बाप के पास जन्म लेता है। बच्चों को बाप मिला गोया सब कुछ मिला। बाप की सारी प्रापर्टी मिली। सेकेण्ड में सारी प्रापर्टी मिल जाती है। जन्म लिया और सेकेण्ड में बाप की मिलकियत का मालिक बना। यह बाप कहते हैं मैं तुमको मालिक बनाता हूँ, मैं नहीं बनता हूँ। वह तो है सदैव कर्मातीत। हमको कर्मबन्धन से अतीत होकर फिर नये कर्म सम्बन्ध में जुटना है, इसलिए पुरुषार्थ करना है। पुरुषार्थ कराने वाला है बाप। यह वण्डरफुल बातें हैं। बाप बैठ समझाते हैं और सब गुरू लोग मनुष्य हैं। मनुष्य मैं नहीं बनता हूँ। मेरा तो शरीर ही नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को सूक्ष्म चोला है। उनको देवता कहते हैं, मुझे तो देवता नहीं कहते। ऊंच ते ऊंच भगवान ही कहेंगे। गाया जाता है त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव… तो वही माता ठहरी। बाप एडाप्ट करते हैं। माताओं की सेवा करते हैं इसलिए इनका नाम जगत अम्बा पड़ा है। शिवबाबा ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ रचते हैं ब्रह्मा मुख द्वारा। यह है मुख वंशावली। इनको अपना रथ बनाकर रचना रचते हैं। ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ ठहरे। परन्तु ब्रह्मा से तो वर्सा मिल न सके। ब्रह्मा के पास क्या है, कुछ भी नहीं। सब कुछ संन्यास कर दिया। ब्रह्मा तो बेगर है। देह सहित सब कुछ दे दिया। सर्व धर्मानि परित्यज… हम तो आत्मा हैं। बेहद बाप का बच्चा हूँ। यह इनकी आत्मा कहती है। बाबा भी कहते हैं – मेरा यह मुरब्बी बच्चा है। परन्तु प्रजा तो माता द्वारा रचते हैं। तो ब्रह्मा के मुख द्वारा ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ रचते हैं। तुम सब ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ पुरुषार्थ कर रहे हो। तुम ब्राह्मणों को भी इतना ही मीठा बनना है। सबको सुख देना है। बाप कितना मीठा है, ऐसा मीठा बनना है।

बाप बहुत प्यार से बोलते हैं – मीठे-मीठे लाडले बच्चे, शिवबाबा कैसे प्यार से बोलते हैं। बच्चे, राजी खुशी हो? यह बाबा भी पूछते हैं। कभी माया का वार तो नहीं होता है ना! तूफान तो माया के बहुत आयेंगे। बॉक्सिंग में हारना नहीं है। उस्ताद समर्थ बैठा है। माया भी कोई कम नहीं है। परन्तु ऐसे थोड़ेही है कि सबको हरायेगी। अभी तुम तो समझते हो – पहलवान कौन है? माया पर जीत पाने वाले, बरोबर ब्रह्मपुत्रा (ब्रह्मा) सबसे पहलवान है। है तो मेल। फिर नम्बरवार तुम गंगायें हो। फिर मेल्स भी बहुत हैं। जगदीश संजय है, उनको समझाने की टैक्ट बहुत अच्छी है। यह मिलेट्री है। कमाण्डर-इन-चीफ, मेजर, जनरल आदि सब हैं। परन्तु यह है गुप्त रूहानी सेना। भेंट तो है ना। उन्होंने कौरव-पाण्डवों की भेंट उल्टी कर दी है। अब बाप कहते हैं जज करो। मेरी सुमत “श्रीमत” पर चलो। जन्म-जन्मान्तर कुमत पर चलते हो। यह है सुमत। शास्त्रों में लिखा है चिड़ियाओं ने सागर को हप किया। अब चिड़ियायें थोड़े-ही सागर को हप कर सकती हैं। चिड़ियायें तुम बच्चियाँ हो। ज्ञान की भूँ-भूँ करती रहती हो। तुम ज्ञान सागर को पूरा ही हप कर लेती हो। उनसे वर्सा लेकर तुम सब कुछ ले लेती हो। बाप के लिए राजाई आदि कुछ नहीं रखती हो। पूरा हप कर लेती हो। पूरा खजाना ले लेती हो। सब रत्न तुम ले लेती हो। बाकी चिड़ियायें कोई पंछी थोड़ेही हो। तुम चिड़ियाओं ने सागर को हप किया है। कहाँ की बात कहाँ पंछियों से जाकर लगाई है। तुमको रत्न दे देते हैं। कहाँ ज्ञान रत्नों की बात, कहाँ पानी का सागर बैठ दिखाया है। है यह ज्ञान सागर, ज्ञान रत्न। रूप-बसन्त की भी कहानी सुनी है। तुम जानते हो रूप बाबा है, इस द्वारा आकर रत्न देते हैं। इनकी कोई वैल्यू नहीं रख सकते। यह नॉलेज है, जिससे बड़ी भारी कमाई होती है। बाप इस मुख द्वारा तुमको रत्न देते हैं। बाप रूप भी है, ज्योति स्वरूप भी है। ज्ञान का सागर है। जरूर ज्ञान ही सुनायेंगे। ज्योति स्वरूप तुम भी हो। परन्तु ज्ञान का सागर एक है। वह आकर राजयोग सिखलाते हैं। पहले ब्रह्मा को फिर तुम बच्चों को बैठ ज्ञान देते हैं। बच्चों को रूप-बसन्त बनाते हैं। तुम्हारी आत्मा की झोली एक ही बार आकर भरते हैं। ज्ञान-रत्नों की झोली तुम भरते हो। साधू आदि कहते हैं भर दो झोली। इस भक्ति मार्ग की झोली में क्या रखा है? कुछ भी नहीं। मांगते ही रहते हैं। यह है बुद्धि रूपी झोली। याद से पवित्र बनाते हैं। बर्तन बड़ा शुद्ध चाहिए। नॉलेज भी ब्रह्मचर्य में अच्छी धारण होती है। वह तो होते हैं छोटे बच्चे। यहाँ तो बूढ़े जवान सब हैं। योग से बर्तन शुद्ध होता है। बुद्धि का ताला खुलता है। तुम जानते हो हम बच्चों में युद्ध के मैदान में मुख्य कौन है? ब्रह्मा। सेकेण्ड ग्रेड में मम्मा सरस्वती। इनका नाम तो बहुत ऊंच है। नाम बाला करना है। यह ब्रह्मा तो गुप्त है। शक्ति सेना में नाम है मम्मा का। जगत अम्बा ब्रह्मा की बेटी सरस्वती। इनकी मम्मा फिर कौन? यह गुह्य बातें अब सुनाते हैं। जरूर कल्प पहले भी सुनाई हुई हैं तब तो कहते हैं – गुह्य बातें सुनाता रहता हूँ। बच्चे तो ढेर आयेंगे। पिछाड़ी तक वृद्धि को पाते रहेंगे। विघ्न भी जरूर पड़ेंगे। परन्तु झाड़ अवश्य फलीभूत होना है। कोई किंग ऑफ फ्लावर है। जैसे माला के ऊपर बाबा का रूप है, तुम भी ऐसे रूप वाले हो। सिर्फ तुम बसन्त नहीं हो। अब बाबा रूप-बसन्त आया है तुमको भी अपने समान बनाते हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) काँटे से फूल बनाने की सेवा करनी है, बाप समान रूप-बसन्त बनना है।

2) समर्थ उस्ताद की सुमत (श्रीमत) पर चल मायाजीत जगतजीत बनना है। कभी भी हार नहीं खानी है।

वरदान:-स्वमान के साथ निर्मान बन सबको मान देने वाली पूज्यनीय आत्मा भव
जो बच्चे अविनाशी स्वमान में रहते हैं वही पूज्य आत्मा बनते हैं। लेकिन जितना स्वमान उतना निर्मान। स्वमान का अभिमान नहीं। ऐसे नहीं हम तो ऊंच बन गये, दूसरे छोटे हैं या उनके प्रति घृणा भाव हो, नहीं। कैसी भी आत्मायें हों लेकिन सबके प्रति रहम की दृष्टि हो, अभिमान की नहीं। ऐसी निर्मान आत्मायें हर एक को आत्मिक दृष्टि से, ऊंची दृष्टि से देखते हुए मान देंगी। अपमान नहीं करेंगी।
स्लोगन:-बापदादा के स्नेह की दुआओं में पलते, उड़ते चलो – यही श्रेष्ठ पुरुषार्थ है।