MURLI 02-12-2023

02-12-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – समय प्रति समय ज्ञान सागर के पास आओ, ज्ञान रत्नों का वखर (सामान) भरकर फिर बाहर जाकर डिलेवरी करो, विचार सागर मंथन कर सेवा में लग जाओ”
प्रश्नः-सबसे अच्छा पुरूषार्थ कौन-सा है? बाप को कौन-से बच्चे प्यारे लगते हैं?
उत्तर:-किसी का भी जीवन बनाना, यह बहुत अच्छा पुरूषार्थ है। बच्चों को इसी पुरूषार्थ में लग जाना चाहिए। कभी अगर कोई भूल हो जाती है तो उसके बदले में खूब सर्विस करो। नहीं तो वह भूल दिल को खाती रहेगी। बाप को ज्ञानी और योगी बच्चे ही बहुत प्यारे लगते हैं।
गीत:-जो पिया के साथ है….

ओम् शान्ति। बच्चे समझ सकते हैं कि सम्मुख मुरली सुनना वा टेप में सुनना वा कागज पर पढ़ने में फ़र्क जरूर है। गीत में भी कहते हैं जो पिया के साथ है….. बरसात तो सबके लिए है परन्तु साथ में रहने से बाप के एक्सप्रेशन को समझने, भिन्न-भिन्न डायरेक्शन को जानने का बहुत फायदा होता है। परन्तु ऐसे भी नहीं किसको बैठ जाना है। वखर (सामान) भरा और जाकर सर्विस की। फिर आया वखर भरने। मनुष्य सामान खरीद करने जाते हैं, बेचने के लिए। बेच कर फिर सामान लेने आते हैं। यह भी ज्ञान रत्नों का वखर है। वखर लेने वाले तो आयेंगे ना। कोई डिलेवरी नहीं करते हैं, पुराने वखर पर ही रहते हैं, नया लेने नहीं चाहते हैं। ऐसे भी बेसमझ हैं। मनुष्य तीर्थों पर जाते हैं, तीर्थ तो नहीं आयेंगे ना क्योंकि वह तो जड़ चित्र हैं। इन बातों को बच्चे ही जानते हैं। मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते। बहुत बड़े-बड़े गुरू लोग श्री श्री महामण्डलेश्वर आदि जिज्ञासुओं को तीर्थों पर ले जाते हैं, त्रिवेणी पर कितने जाते हैं। नदी पर जाकर दान करने को पुण्य समझते हैं। यहाँ भक्ति की तो बात ही नहीं। यहाँ तो बाप के पास आना है तो बच्चों को समझकर फिर समझाना है। प्रदर्शनी में भी मनुष्यों को समझाना है। यह जो 84 जन्मों का चक्र लगाते हैं यह तो बच्चे जानते हैं, सब नहीं लगाते हैं। इसमें समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। इस चक्र में ही मनुष्य मूंझते हैं। झाड़ का तो किसको पता ही नहीं है। शास्त्रों में भी चक्र दिखाते हैं। कल्प की आयु चक्र से निकालते हैं। चक्र में ही रोला है। हम तो पूरा चक्र लगाते हैं। 84 जन्म लेते हैं, बाकी इस्लामी, बौद्धी आदि वह तो बाद में आते हैं। हम कैसे उस चक्र से सतो, रजो, तमो में पास करते हैं – वह गोले में दिखाया हुआ है। बाकी और जो आते हैं इस्लामी, बौद्धी आदि उनका कैसे दिखावें? वह भी तो सतो, रजो, तमो में आते हैं। हम अपना विराट रूप भी दिखाते हैं – सतयुग से लेकर कलियुग तक पूरा राउण्ड ले आते हैं। चोटी है ब्राह्मणों की फिर मुख को सतयुग में, बाहों को त्रेता में, पेट को द्वापर में फिर टांगों को लास्ट में खड़ा करें। अपना तो विराट रूप दिखायें। बाकी अन्य धर्म वालों का कैसे दिखायें? उसे भी शुरू करें तो पहले सतोप्रधान, फिर सतो-रजो-तमो। तो इससे सिद्ध हो जायेगा कि कभी भी कोई निर्वाण में नहीं गया है। उनको तो इस चक्र में आना ही है। हरेक को सतो-रजो-तमो में आना ही है। इब्राहम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि भी तो मनुष्य थे। रात में बाबा को बहुत ख्याल चलता है। ख्यालात में फिर नींद का नशा उड़ जाता है, नींद फिट जाती है। समझाने की बड़ी अच्छी युक्ति चाहिए। उनका भी विराट रूप बनाना पड़े। उनका भी पैर पिछाड़ी में ले जायें फिर लिखत में समझायें। बच्चों को समझाना है क्राइस्ट जब आते हैं उनको भी सतो-रजो-तमो से पास करना पड़ता है। सतयुग में तो वह आते नहीं। आना तो बाद में है। कहेंगे क्राइस्ट हेविन में नहीं आयेगा! यह तो बना-बनाया खेल है। तुम जानते हो क्राइस्ट के आगे भी धर्म थे फिर वो ही रिपीट करना है। ड्रामा का राज़ समझाना होता है। पहले-पहले तो बाप का परिचय देना है। बाप से कैसे सेकेण्ड में वर्सा मिलता है? गाया भी हुआ है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। देखो, बाबा के कितने ख्यालात चलते हैं। बाबा का पार्ट है विचार सागर मंथन का। गॉड फादरली बर्थ राइट, “नाउ आर नेवर” अक्षर लिखा हुआ है। जीवनमुक्ति अक्षर लिखना है। लिखत क्लीयर होगी तो समझाने में सहज होगा। जीवनमुक्ति का वर्सा मिला। जीवनमुक्ति में राजा, रानी, प्रजा सब हैं। तो लिखत को भी ठीक करना पड़े। बिगर चित्र भी समझाया जा सकता है। सिर्फ इशारे पर भी समझाया जा सकता है। यह बाबा है, यह वर्सा है। जो योगयुक्त होंगे वह अच्छी रीति समझा सकेंगे। सारा मदार योग पर है। योग से बुद्धि पवित्र होती है तब ही धारणा हो सकती है। इसमें देही-अभिमानी अवस्था चाहिए। सब कुछ भूलना पड़े। शरीर को भी भूलना है। बस, अब हमको वापिस जाना है, यह दुनिया तो खत्म हो जाने वाली है। इस (बाबा) के लिए तो सहज है क्योंकि इनका धन्धा ही यह है। सारा दिन बुद्धि इसी में लगी हुई है। अच्छा, जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं उनको तो कर्म करना है। स्थूल कर्म करने से वह बातें भूल जाती हैं, बाबा की याद भूल जाती है। बाबा खुद अपना अनुभव सुनाते हैं। बाबा को याद करता हूँ, बाबा इस रथ को खिला रहे हैं फिर भूल जाता हूँ तो बाबा विचार करते हैं जबकि मैं भी भूल जाता हूँ तो इन बिचारों को कितनी तकलीफ होती होगी! इस चार्ट को बढ़ा कैसे सकते होंगे? प्रवृत्ति मार्ग वालों के लिए मुश्किल है। उन्हों को फिर मेहनत करनी पड़े। बाबा समझाते तो सबको हैं। जो पुरूषार्थ करते होंगे वह रिजल्ट लिख भेज सकते हैं। बाबा जानते हैं बरोबर डिफीकल्ट है। बाबा कहते हैं रात को मेहनत करो। तुम्हारा थक सारा उतर जायेगा, अगर तुम योगयुक्त हो विचार सागर मंथन करते रहेंगे तो। बाबा अपना अनुभव बताते हैं – कब और बातों तरफ बुद्धि चली जाती है तो माथा गर्म हो जाता है। फिर उन तूफानों से बुद्धि को निकाल इस विचार सागर मंथन में लग जाता हूँ तो माथा हल्का हो जाता है। माया के तूफान तो अनेक प्रकार के आते हैं। इस तरफ बुद्धि लगाने से वह थकावट सारी उतर जाती है, बुद्धि रिफ्रेश हो जाती है। बाबा की सर्विस में लग जाते हैं तो योग और ज्ञान का मक्खन मिल जाता है। यह बाबा अनुभव बता रहे हैं। बाप तो बच्चों को बतायेंगे ना – ऐसे-ऐसे होगा, माया के विकल्प आयेंगे। बुद्धि को फिर उस तरफ लगा देना चाहिए। चित्र उठाकर उसी पर ख्यालात करना चाहिए तो माया का तूफान उड़ जाये। बाबा जानते हैं कि माया ऐसी है जो याद में रहने नहीं देती। थोड़े हैं जो पूरा याद में रहते हैं। बड़ी-बड़ी बातें तो बहुत करते हैं। अगर बाबा की याद में रहें तो बुद्धि क्लीयर रहे। याद करने जैसा माखन और कोई है नहीं। परन्तु स्थूल बोझ बहुत होने से याद कम हो जाती है।

बम्बई में देखो पोप आया, कितनी उनकी महिमा थी जैसेकि सबका भगवान् आया था। ताकत वाले हैं ना। भारतवासियों को अपने धर्म का पता नहीं है। अपना धर्म हिन्दू कहते रहते हैं। हिन्दू तो कोई धर्म ही नहीं है। कहाँ से आया, कब स्थापन हुआ, किसको पता नहीं है। तुम्हारे में ज्ञान की उछल आनी चाहिए। शिव शक्तियों को ज्ञान में उछल मारनी चाहिए। उन्होंने तो शक्तियों को शेर पर दिखाया है। है सारी ज्ञान की बात। पिछाड़ी में जब तुम्हारे में ताकत आयेगी तो साधू सन्त आदि को भी समझायेंगे। इतना ज्ञान जब बुद्धि में हो तब उछल आ सकती है। जैसे पाता गांव में खेती करने वालों को टीचर पढ़ाते हैं तो वह पढ़ते नहीं। उनको खेती-बाड़ी ही अच्छी लगती है। ऐसे आज के मनुष्यों को यह ज्ञान दो तो कहेंगे यह अच्छा नहीं लगता, हमको तो शास्त्र पढ़ने हैं। परन्तु भगवान् साफ कहते हैं जप, तप, दान, पुण्य आदि से अथवा शास्त्र पढ़ने से मेरे को किसी ने नहीं पाया है। ड्रामा को नहीं जानते। वह थोड़ेही समझते हैं नाटक में एक्टर्स हैं, पार्ट बजाने यह चोला लिया है। यह है ही कांटों का जंगल। एक-दूसरे को कांटा लगाते, लूटते मारते रहते हैं। सूरत भल मनुष्य की है परन्तु सीरत बन्दर जैसी है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। कोई नया सुने तो गर्म हो जाये। बच्चे थोड़ेही गर्म होंगे। बाप कहते हैं मैं बच्चों को ही समझाता हूँ। बच्चों को तो माता-पिता कुछ भी कह सकते हैं। बच्चों को बाप चमाट भी मारे तो दूसरा थोड़ेही कुछ कर सकता। मात-पिता का तो फर्ज है बच्चों को सुधारना। परन्तु यहाँ लॉ नहीं है। जैसा कर्म मैं करूंगा मुझे देख और भी करेंगे। तो बाबा ने जो विचार सागर मंथन किया वह भी बतलाया। यह पहला नम्बर में है, इनको 84 जन्म लेने पड़ते हैं। तो और भी जो हेड्स (धर्म स्थापक) हैं वे फिर निर्वाण में कैसे जायेंगे। उनको सतो, रजो, तमो में जरूर आना है। पहला नम्बर में लक्ष्मी-नारायण हैं जो विश्व के मालिक हैं। उन्हों को भी 84 जन्म लेने पड़ते हैं। मनुष्य सृष्टि में जो हाइएस्ट न्यू मैन है उनके साथ न्यू वीमेन भी चाहिए। नहीं तो वीमेन बिगर पैदाइस कैसे होगी? सतयुग में न्यू मैन हैं यह लक्ष्मी-नारायण। ओल्ड से ही न्यू होते हैं। यह तो आलराउन्ड पार्ट वाले हैं। बाकी भी सब सतो से तमो में आते हैं, ओल्ड बनते हैं फिर ओल्ड से न्यू हो जाते हैं। जैसे क्राइस्ट पहले न्यू आया फिर ओल्ड बनकर गया फिर न्यू होकर आयेगा अपने टाइम पर। यह बात बड़ी समझने की है। इसमें योग अच्छा चाहिए। पूरा सरेन्डर भी चाहिए तब ही वर्से का हकदार बन सके। सरेन्डर होगा तो फिर बाबा डायरेक्शन भी दे सकेंगे कि ऐसे-ऐसे करो। कोई सरेन्डर है फिर कहता हूँ कि व्यवहार में भी रहो तो बुद्धि का मालूम पड़े। व्यवहार में रहते हुए ज्ञान उठाओ, पास होकर दिखाओ। गृहस्थ में नहीं जाना। ब्रह्मचारी होकर रहना तो अच्छा है। बाबा हरेक का हिसाब भी पूछते हैं। मम्मा-बाबा की पालना ली है तो फिर कर्ज भी उतारना है तो बल मिलेगा। नहीं तो बाप भी कहेगा कि हमने इतनी मेहनत कर पालना की और हमको छोड़ दिया। हरेक की रग देखनी पड़ती है फिर डायरेक्शन दिये जाते हैं। समझो इनसे भूल हो जाती है तो बाप उसको अभुल कराए ठीक कर देते हैं। यह भी क़दम-क़दम श्रीमत पर चलते रहते हैं। कब नुकसान हो जाता है तो समझते हैं ड्रामा में था। आगे फिर ऐसी बात होनी नहीं चाहिए। भूल तो अपने दिल को खाती है। भूल की है तो उसकी एवज में फिर बहुत सर्विस में लगना चाहिए, पुरूषार्थ बहुत करना चाहिए। कोई का जीवन बनाना – यह है पुरूषार्थ।

बाबा कहते हैं मुझे योगी और ज्ञानी सबसे प्यारा है। योग में रहकर भोजन बनाये, खिलाये तो बहुत उन्नति हो सकती है। यह शिवबाबा का भण्डारा है। तो शिवबाबा के बच्चे जरूर ऐसे योगयुक्त होंगे। धीरे-धीरे अवस्था ऊंच होती है। टाइम जरूर लगता है। हरेक का कर्मबन्धन अपना-अपना है। कन्याओं पर कोई बोझ नहीं। हाँ, बच्चों पर है। बड़े बच्चे हो गये हैं तो मात-पिता को बोझ पड़ता है। बाप ने इतना समझाया, इतना समय पालना की है तो उन्हों की पालना करनी पड़े। हिसाब चुक्तू करना है तो उनकी भी दिल खुश होगी। सपूत बच्चे जो होते हैं तो वह मुसाफिरी से लौटने पर सब कुछ बाप के आगे रखते हैं। कर्जा उतारना है ना। बहुत समझने की बातें हैं। ऊंच पद पाने वाले ही शेर मुआफिक उछलते रहेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) योग में रहकर भोजन बनाना है। योग में ही रहकर भोजन खाना और खिलाना है।

2) बाबा ने जो समझाया है उस पर अच्छी रीति विचार सागर मंथन कर योगयुक्त हो औरों को भी समझाना है।

वरदान:-स्व परिवर्तन और विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी के ताजधारी सो विश्व राज्य के ताजधारी भव
जैसे बाप के ऊपर, प्राप्ति के ऊपर हर एक अपना अधिकार समझते हो, ऐसे स्व-परिवर्तन और विश्व परिवर्तन दोनों के जिम्मेवारी के ताजधारी बनो तब विश्व राज्य के ताज अधिकारी बनेंगे। वर्तमान ही भविष्य का आधार है। चेक करो और नॉलेज के दर्पण में देखो कि ब्राह्मण जीवन में पवित्रता का, पढ़ाई और सेवा का डबल ताज है? यदि यहाँ कोई भी ताज अधूरा है तो वहाँ भी छोटे से ताज के अधिकारी बनेंगे।
स्लोगन:-सदा बापदादा की छत्रछाया के अन्दर रहो तो विघ्न-विनाशक बन जायेंगे।