02-04-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा” | रिवाइज: 18-02-94 मधुबन |
स्वमान की स्मृति का स्विच ऑन करने से देह भान के अंधकार की समाप्ति
आज अकाल मूर्त बाप सभी अकाल तख्तधारी, विश्व कल्याण के ताजधारी, मस्तक में चमकते हुए बिन्दी के तिलकधारी बच्चों को देख रहे हैं। हर एक तख्तधारी भी हैं, ताजधारी भी हैं, तिलक भी सभी का चमक रहा है। सभी के मस्तक बीच आत्मा बिन्दी सितारे के समान दिखाई दे रही है। आप सभी भी अपने तख्त, ताज और तिलक को देख रहे हो। सारी सभा बापदादा को ताज और तिलकधारी, तख्तनशीन दिखाई दे रही है। ये अलौकिक सभा, कलियुगी राज्य सभा और सतयुगी राज्य सभा से कितनी न्यारी और प्यारी है! तो ऐसी सभा की अधिकारी आत्मायें कितनी प्यारी हैं! आप सभी को भी अपना ये तख्त, ताज और तिलकधारी स्वरूप प्यारा लगता है ना! जब अकाल तख्तनशीन, अकालमूर्त, श्रेष्ठ आत्मा स्थिति में स्थित हो तख्त पर बैठते हो तो यह स्थिति कितनी श्रेष्ठ है! सभी के श्रेष्ठ स्थिति की झलक इस सूरत को फ़रिश्ता बना देती है। साधारण सूरत नहीं, फ़रिश्ता सूरत। तो फ़रिश्ता सूरत भी कितनी प्यारी है! फ़रिश्ते सभी को बहुत प्यारे लगते हैं क्योंकि फ़रिश्ता सर्व का होता है, एक-दो का नहीं। बेहद की दृष्टि, बेहद की वृत्ति, बेहद की स्थिति वाला है। फ़रिश्ता सर्व आत्माओं के प्रति परमात्म सन्देश वाहक है। फ़रिश्ता अर्थात् सदा उड़ती कला वाला। फ़रिश्ता अर्थात् सर्व का रिश्ता एक बाप से जुटाने वाला है। फ़रिश्ता अर्थात् डबल लाइट। देह और देह के सम्बन्ध से न्यारा, हल्का। फ़रिश्ता अर्थात् सर्व को स्वयं की चलन और चेहरे द्वारा बाप समान बनाने वाला। फ़रिश्ता अर्थात् सहज और स्वत: अनादि और आदि संस्कार सदा इमर्ज स्वरूप में दिखाने वाला। फ़रिश्ता अर्थात् निमित्त भाव, निर्मान स्वभाव और सर्व प्रति कल्याण की श्रेष्ठ भावना वाला। ऐसे फ़रिश्ते हो ना? फ़लक से कहो हम नहीं होंगे तो कौन होगा! फ़लक है ना! तो बापदादा ऐसे फ़रिश्तों की दरबार देख रहे हैं। सिर्फ इसी स्वमान में स्थित रहने से देहभान स्वत: ही समाप्त हो जायेगा।
बाप देखते हैं कि बच्चे देहभान को छोड़ने की बहुत मेहनत करते हैं। एक देहभान के रूप को छोड़ते हैं तो दूसरा आ जाता है, फिर दूसरे को छोड़ते हैं तो तीसरा आ जाता है। लेकिन छोड़ना सदा मुश्किल होता है और धारण करना सहज होता है। तो बापदादा कहते हैं कि स्वमान में सदा रहो। जहाँ स्वमान है वहाँ देहभान आ ही नहीं सकता। तो छोड़ने की मेहनत नहीं करो लेकिन स्वमान में स्थित रहने का अटेन्शन रखो और संगमयुग पर स्वयं बाप द्वारा कितने अच्छे-अच्छे स्वमान प्राप्त हैं। प्राप्त करना नहीं है, प्राप्त हैं। अपने स्वमान की लिस्ट निकालो। कितनी बड़ी लिस्ट है! सारे कल्प में कितने भी स्वमान अर्थात् टाइटल्स किसी भी नामीग्रामी आत्मा के हो, चाहे राजनेता हो, चाहे अभिनेता हो, चाहे धर्मात्मा हो, चाहे महान् आत्मा हो, उनके अगर टाइटल गिनती भी करो तो आपके स्वमान की लिस्ट से ज्यादा हो सकते हैं? और रोज़ सवेरे-सवेरे बापदादा स्वमान की स्मृति दिलाते हैं, स्वमान में स्थित कराते हैं। रोज़ भी एक नये ते नया स्वमान स्मृति में रखो तो स्वमान के आगे देहभान ऐसे भाग जाता जैसे रोशनी के आगे अंधकार भाग जाता। न समय लगता, न मेहनत लगती। तो बार-बार भिन्न-भिन्न देहभान को मिटाने की मेहनत क्यों करते हो? स्वमान की स्मृति का स्वीच ऑन करना नहीं आता है क्या? कितना भी गहरा काला बादल सूर्य की रोशनी को छिपाने वाला हो लेकिन आपके पास ऑटोमेटिक डायरेक्ट परमात्म लाइट का कनेक्शन है। डायरेक्ट लाइन है ना? लाइन क्लीयर है या लीकेज़ है? किसका लिंक होता है लेकिन लीकेज़ हो जाती है। तो डायरेक्ट लाइन कितनी पॉवरफुल होती है! डायरेक्ट कनेक्शन है या इनडायरेक्ट है? सभी की डायरेक्ट लाइन है ना? सभी को डायरेक्ट लाइन मिल गई है? फिर तो एक बादल क्या, सारे बादल आ जायें, अंधकार कर सकते हैं क्या? स्मृति का स्वीच डायरेक्ट लाइन से ऑन किया और इतनी लाइट आ जायेगी जो स्वयं तो लाइट में होंगे ही लेकिन औरों के लिये भी लाइट हाउस हो जायेंगे। ऐसे होता है ना? अनुभवी हो ना? लेकिन कभी-कभी अनुभव को किनारे रख देते हैं। सहारा मिला है लेकिन कभी-कभी सहारे के बजाय किनारे हो जाते हैं। मेहनत लगती है क्या? सदा नहीं लगती, कभी-कभी लगती है! स्वीच ऑन करना भूल जाते हो क्या? वास्तव में अगर एक मास्टर सर्वशक्तिमान् का स्वमान भी याद हो तो मेहनत की कोई बात ही नहीं है। मार्ग मेहनत का नहीं है लेकिन हाइवे के बजाय गलियों में चले जाते हो वा मंज़िल के निशाने से और आगे बढ़ जाते हो तो लौटने की मेहनत करनी पड़ती है। बापदादा सदा अपने स्नेह और सहयोग की गोदी में बिठाकर मंज़िल पर ले जा रहे हैं। गोदी में बैठकर मंज़िल पर पहुँचने में मुश्किल क्यों होता है? स्नेह और सहयोग के गोदी से निकल कभी और आकर्षण खींचती है तो चक्कर लगाने निकल जाते हो। थक भी जाते हो फिर मेहनत भी महसूस करते हो। तो इस वर्ष क्या करेंगे? मेहनत समाप्त। मोहब्बत में, लव में लीन हो जाओ, लवलीन हो हर कार्य करो। जो लीन होता है उसको और कुछ दिखाई नहीं देता, आकर्षित नहीं करता। तो लव में रहते हो। ऐसा कोई होगा जो कहे मुझे बाप से प्यार नहीं है, लव नहीं है! सभी का लव है ना! लेकिन कभी लव में रहते हो, कभी लव में लीन रहते हो। नहीं तो देखो मन-बुद्धि द्वारा स्थिति में बाप का सर्व सम्बन्धों से साथ है। साथ भी है और सेवा में बाप हर समय साथी है। तो स्थिति में साथ है और सेवा में साथी है। जहाँ सदा साथ भी है और साथी भी है तो वहाँ क्या मुश्किल है! परम आत्मा की महिमा ही है मुश्किल को सहज करने वाले। ऐसा बाप आपके साथ है और साथी है तो मुश्किल हो सकता है? फिर क्यों मुश्किल करते हो?
समय प्रमाण बाप स्वयं हर बच्चे को सर्व संबंधों की ऑफर करते हैं। जैसा समय वैसे सम्बन्ध से साथ रहो वा साथी बनाओ। कोई समय तो सम्बन्ध से साथी बनाते हो और कोई समय साथी को किनारे कर देते हो। फिर कहते हैं कि अकेलापन फ़ील होता है। चलते-चलते अकेलापन लगता है। और अकेलापन होने से क्या होता है? अपनी श्रेष्ठ जीवन साधारण जीवन अनुभव होती है। फिर कहते हैं बोरिंग लाइफ हो गई है, कुछ चेंज चाहिये। एक तरफ बापदादा को खुश करते हैं कि हम तो कम्बाइण्ड हैं। कम्बाइण्ड कभी अकेला होता है क्या? बड़ी अच्छी-अच्छी बातें करते हैं बाबा, हम तो हैं ही कम्बाइण्ड। फिर 15-20 वर्ष बीतता तो कहते हैं चेंज चाहिये, अकेले हो गये हैं। वैसे भी देखो दुनिया में अगर चेंज चाहते हैं तो कोई सागर के किनारे पर जाकर सो जाते हैं, कोई मनोरंजन में चले जाते हैं, डांस करते हैं, कोई गीतों की मौज़ में मौज़ मनाते हैं, कोई कम्पनी या कम्पैनियन का साथ लेते हो। यही करते हो ना! खेल करते हो? खेलों की दुनिया में बगीचे में चले जाते हो! यहाँ ज्ञान सागर का किनारा है, यह भूल जाते हो। अगर सागर पसन्द है तो सागर के किनारे बैठ जाओ। बाप ज्ञान सागर है ना। बाप कम्पैनियन नहीं है क्या? उससे मज़ा नहीं आता है? कि समझते हो बिन्दी से क्या मज़ा आयेगा! आप सभी को सदा बहलाने के लिये तो ब्रह्मा बाप भी अव्यक्त हुए। लेकिन यहाँ तो सदा का साथी चाहिये ना। जब भी अपने को अकेलापन अनुभव करो तो उस समय बिन्दु रूप नहीं याद करो। वह मुश्किल होगा, उससे बोर हो जायेंगे। लेकिन अपने ब्राह्मण जीवन की भिन्न-भिन्न समय की रमणीक अनुभव की कहानियाँ स्मृति में लाओ। अनुभव की कहानियों का किताब सभी के पास है। जब बोर हो जाते हैं तो नॉवेल्स पढ़ते हैं ना! तो आप अपने कहानियों का किताब खोलो और उसे पढ़ने में बिजी हो जाओ। अपने स्वमान की लिस्ट को सामने लाओ, अपने प्राप्तियों की लिस्ट को सामने लाओ। ब्राह्मण संसार के विचित्र प्रैक्टिकल कहानियों को स्मृति में लाओ। जैसे अपने को चेंज करने के लिये समाचार पत्र पढ़ने का भी आधार लेते हैं तो ब्राह्मण संसार के कितने अलौकिक समाचार आदि से अब तक देखे हैं वा सुने हैं, समाचार पत्र भी आपके पास है। कइयों को पेपर पढ़ने के बिना चैन नहीं आता है। पेपर भी आपके पास है। पेपर पढ़ो। डान्स और साज़ तो जानते ही हो। बिना थकावट के डांस करते हो। मनमनाभव होना ही सबसे बड़ा मनोरंजन है क्योंकि सर्व सम्बन्धों का रस वा अनुभूतियां करना ही मनमनाभव है। सिर्फ बाप के रूप में या विशेष तीन रूपों के सम्बन्ध से अनुभव नहीं है लेकिन सर्व सम्बन्धों के स्नेह का अनुभव कर सकते हो। सम्बन्धों से याद तो करते हो लेकिन फ़र्क क्या हो जाता है? एक है दिमाग से नॉलेज के आधार पर सम्बन्ध को याद करना और दूसरा है दिल से उस सम्बन्ध के स्नेह में, लव में लीन हो जाना। आधा तो करते हो बाकी आधा रह जाता है इसलिये थोड़ा समय तो ठीक रहते हो, थोड़े समय के बाद सिर्फ दिमाग से ही सम्बन्ध को याद किया तो दिमाग में दूसरी बात आने से दिल बदल जाता है। फिर मेहनत करनी पड़ती है। फिर क्या कहते हो हमने याद तो किया, बाबा मेरा कम्पैनियन है, लेकिन कम्पैनियन ने तोड़ तो निभाई नहीं! अनुभव तो कुछ हुआ नहीं! ये दिमाग से याद किया। दिल में स्नेह को समाया नहीं। जब भी कोई बात दिमाग में आती है तो वह निकलती भी जल्दी है। लेकिन दिल में समा जाती है तो उसको चाहे सारी दुनिया भी दिल से निकालना चाहे, तो भी नहीं निकाल सकती। तो सर्व सम्बन्धों को समय प्रमाण, जिस समय जिस सम्बन्ध की आवश्यकता है, आवश्यकता है फ्रैण्ड की और याद करो बाप को तो मज़ा नहीं आयेगा इसलिये जिस समय, जिस सम्बन्ध की अनुभूति चाहिये, उस सम्बन्ध को स्नेह से, दिल से अनुभव करो। फिर मेहनत भी नहीं लगेगी और बोर भी नहीं होंगे, सदा मनोरंजन। तो इस वर्ष क्या करेंगे?
मेहनत से निकलना है। हर मास सिर्फ ओ.के. लिखना, और कुछ नहीं लिखना। ओ.के. से समझ जायेंगे कि मेहनत से निकल गये। लम्बे-लम्बे पत्र नहीं लिखना। नहीं तो कहते हैं कि पत्र तो लिखा, जवाब नहीं मिलता। ऐसे नहीं है कि आपके पत्र पहुँचते नहीं हैं। पत्र लिखना शुरू करते हो और वहाँ कम्प्युटर में पहले आ जाता है, पोस्ट में पीछे पहुँचता है। वैसे बापदादा इतने लम्बे पत्रों का रोज़ की मुरली में सबको जवाब देता है। रोज़ पत्र लिखते हैं। इतना लम्बा पत्र कोई लिखता है! तो इतने अपने स्वमान को देखो परमात्मा का कितना प्यार है आप सबसे। परमात्मा का प्यार है तब पत्र लिखते हैं अर्थात् मुरली में उत्तर भी देते हैं और याद-प्यार भी देते हैं। अगर कोई भी क्वेश्चन उठता है या कोई भी समस्या सामने आती है तो मुरली से रेसपॉन्स मिलता है। तो फिर कभी शिकायत नहीं करना कि उत्तर नहीं आया। बाकी अच्छा करते हो जो दिल में बात आती है वो बाप के आगे रखना अर्थात् दिल से निकाल दिया। वो भले करो, लेकिन शॉर्ट लिखो। पत्र जब लिखते हो तो उसी समय दिल तो हल्की हो जाती है ना! क्योंकि दे दिया ना। फिर दूसरे दिन की मुरली उस विधि से देखो कि जो मैंने पत्र लिखा उसका उत्तर क्या है? रेसपॉन्स मिलता तो है ना। बेहद का बाप है तो पत्र भी बेहद का लिखेगा, छोटा थोड़ेही लिखेगा।
बापदादा ने देखा कि चारों ओर के डबल विदेशी बच्चे सेवा में अच्छी लगन से लगे हुए हैं। एक-एक को देखते हैं तो हर एक एक-दो से प्यारे लगते हैं। अगर नाम लेंगे तो कितने नाम लेंगे! इसीलिये सभी अपने नाम से विशेष सेवा की रिटर्न मुबारक स्वीकार करना। नाम लेना शुरू करेंगे तो माला बनानी पड़ेगी। लेकिन माला के सभी मणके बापदादा के सामने हैं। समय प्रति समय सेवा बेहद की और सफलता सम्पन्न होती जा रही है। वर्तमान समय विशेष विदेश में दो सेवाओं का रिजल्ट अच्छा प्रत्यक्ष हुआ। अनेक प्रकार की सेवायें तो चलती ही रहती हैं लेकिन विशेष एक ये ग्लोबल बुक, जो मेहनत करके तैयार किया है, उसके निमित्त चारों ओर विशेष आत्माओं का सम्बन्ध-सम्पर्क में आना सहज हो गया। तो जिन बच्चों ने दिल व जान, सिक व प्रेम से समय दिया, सहयोग दिया, उसके प्रत्यक्षफल सेवा के निमित्त आत्माओं को बापदादा पद्म गुणा मुबारक दे रहे हैं। और साथ-साथ जो अभी डायलॉग वा रिट्रीट किया उसकी रिजल्ट भी पहले से अच्छे ते अच्छी रही। और सभी देश वालों ने इसमें जो सहयोग दिया, उन सबको भी मुबारक। लक्ष्य अच्छा रखा। तो चारों ओर अभी इस दो प्रकार की सेवा की अच्छी धूम-धाम चल रही है और आगे भी चलती रहेगी। बापदादा को याद है कि पहले विदेश से वी.आई.पीज. तो छोड़ो, आई.पीज. लाना भी मुश्किल लगता था। और अभी तो सहज लगता है ना! तो यह सेवा का प्रत्यक्षफल है। और कितनों की दुआयें मिली! जिसके हाथ में बुक जाता है, उन सबकी दुआयें किसके खाते में जमा होती हैं? जो निमित्त बनते हैं। चाहे देने की सेवा, चाहे बनाने की सेवा, चाहे आइडिया निकालने की, चाहे लिखने की – सबको दुआयें मिलती हैं। तो कितनी दुआयें मिल रही हैं! बहुत दुआयें मिलती हैं, आप सिर्फ रिसीव करो। अपने में ही बिजी रहते हो तो दुआयें रिसीव नहीं करते हो। और जो भी आई.पीज. या वी.आई.पीज. सम्पर्क में आते हैं तो एक कितनों को अनुभव सुनायेंगे तो उन सभी की दुआयें ब्राह्मण आत्माओं को बहुत-बहुत प्राप्त होती हैं। अगर दुआयें रिसीव करो तो भी सम्पन्न तो हो ही जायेंगे। बुक भी अच्छा निकाला और ये प्रोग्राम भी बहुत अच्छा है। और भारत वालों की विशेष सेवा अभी कार यात्रा की चल रही है। (बिज़नेस विंग के भाई-बहिनों ने 11 कारों की एक रैली राजकोट से बाम्बे तक निकाली है, जिसमें अनेक प्रकार की सेवायें हो रही हैं) उसकी भी रिजल्ट बहुत अच्छी निकल रही है और आगे एक भी निमित्त बन गये तो अनेकों के भाग्य जगाते रहेंगे। तो ये भी सेवा की रिजल्ट अच्छी दिखाई दे रही है। जो भी इस सेवा में निमित्त हैं, उमंग-उत्साह से बढ़ रहे हैं, उन सभी को भी, चारों ओर के भारतवासी बच्चों को, सहयोगी बच्चों को, निमित्त बच्चों को बापदादा मुबारक देते हैं। मेहनत नाम मात्र और सफलता ज्यादा, अब ऐसी सेवा के प्लैन बनाओ। इस सेवा में भी यह दिखाई देता है कि मेहनत कम, रिजल्ट ज्यादा। ऐसे विदेश के दोनों प्रोग्राम में भी ऐसे हैं। अच्छा।
देश-विदेश के सर्व सेवा में उमंग-उत्साह से आगे बढ़ने वाले, अथक बन औरों को दान-वरदान देने वाली आत्माओं को, चारों ओर के बाप के सर्व सम्बन्ध के लव में लीन रहने वाली लवलीन आत्माओं को, सदा सहज अनुभव करने, औरों को भी सहज अनुभव कराने वाली सहजयोगी आत्माओं को, सदा स्वयं को स्वमान द्वारा सहज देहभान से मुक्त करने वाली जीवनमुक्त आत्माओं को, सदा बाप को साथ अनुभव करने वाले और साथी अनुभव करने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
वरदान:- | अपने आदि और अन्त दोनों स्वरूप को सामने रख खुशी व नशे में रहने वाले स्मृति स्वरूप भव जैसे आदि देव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण दोनों का अन्तर दिखाते भी साथ दिखाते हो। ऐसे आप सब अपना ब्राह्मण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनों को सामने रखते हुए देखो कि आदि से अन्त तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें रही हैं। आधाकल्प राज्य भाग्य प्राप्त किया और आधाकल्प माननीय, पूज्यनीय श्रेष्ठ आत्मा बनें। तो इसी नशे और खुशी में रहने से स्मृति स्वरूप बन जायेंगे। |
स्लोगन:- | जिनके पास ज्ञान का अथाह धन है, उन्हें सम्पन्नता की अनुभूति होती है। |