02-03-2023 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘ | मधुबन |
“मीठे बच्चे – बाप के बने हो तो फर्स्ट नम्बर लेने का पुरुषार्थ करो, मम्मा-बाबा को फालो करने से, पढ़ाई पर ध्यान देने से नम्बर फर्स्ट आ जायेंगे” | |
प्रश्नः- | मनमत पर किये हुए कर्मों की रिजल्ट और श्रीमत पर किये हुए कर्मों की रिजल्ट में अन्तर क्या है? |
उत्तर:- | जो अपनी मत पर कर्म करते हैं, उन्हें आगे चलकर कर्म कूटने पड़ते, दु:खी होते रहते हैं। मनमत अर्थात् माया की मत से कोई देवाला मार देते, कोई बीमार पड़ जाते, कोई की अकाले मृत्यु हो जाती.. यह सब है कर्म कूटना। श्रीमत पर तुम बच्चे ऐसे श्रेष्ठ कर्म करते हो जो आधाकल्प कोई भी कर्म कूटना नहीं पड़ेगा। |
गीत:- | तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है….. Audio Player |
ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत की दो लाइन सुनी। जबकि हमने बेहद के बाप को पा लिया है तो बेहद के बाप से सारे विश्व की बादशाही हम ले रहे हैं। यह तो बिल्कुल साधारण बुद्धि से भी समझ सकते हैं कि भारत में जब देवी-देवताओं का राज्य था तो और कोई धर्म नहीं था। लक्ष्मी-नारायण का ही घराना था। जैसे एडवर्ड दी फर्स्ट, सेकेण्ड राजाई चलती है ना। वह है युनाइटेड किंगडम में। भारत में जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो सारे विश्व पर ही उन्हों का राज्य था। यह मनुष्य भूल गये हैं। अब तुम बच्चों ने बाप को पा लिया तो गोया विश्व की राजाई पा ली। बाप खुद कहते हैं – बच्चे, तुम भूल गये हो। इस भारत में जब देवी-देवताओं का राज्य था, सतयुग था तो तुम सारे विश्व के मालिक थे। पार्टीशन आदि कुछ भी नहीं था। लक्ष्मी-नारायण डबल सिरताज थे। बड़े-बड़े राजे लोग भी पूजा करने के लिए अपने महलों में मन्दिर बनाते हैं – लक्ष्मी-नारायण का वा राम सीता का। थे वे भी भारत के राज़े और वह भी भारत के राज़े। परन्तु वे सतयुग त्रेता के थे, वे द्वापर कलियुग के थे। सतयुग त्रेता में लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता का राज्य था फिर बाद में होते हैं विकारी राजायें। विकारी राजायें भी कैसे बनते हैं? यह बातें शिवबाबा इन द्वारा बैठ समझाते हैं। गाया भी जाता है पूज्य पुजारी। सतोप्रधान से तमोप्रधान जरूर बनना है। कहते हैं – हे बच्चे, तुम पहले सतयुग में सतोगुणी महाराजा महारानी थे और सम्पूर्ण पवित्र थे। यह तुम बच्चों को याद रहता है। बरोबर हम सो पूज्य थे, अब नहीं हैं, फिर पुरुषार्थ से हम वह पद पा रहे हैं। माया ने पुजारी बना दिया है। यह शिक्षा जो मिलती है वह धारण करनी है। कॉलेज में जो शिक्षा मिलती है वह भी स्टूडेन्ट्स की बुद्धि में रहती है ना। बच्चों की बुद्धि में रहता है हम भारतवासी सो देवता थे, कल्प पहले भी बाप ने आकर राजयोग सिखाया था। मुख्य है ही गीता की बात। जब कोई मिले तो बोलो गीता कब सुनी वा पढ़ी है? उसमें लिखा हुआ है भगवानुवाच। तो कैसे सुनाते हैं? कब सुना है भगवान पढ़ाते हैं? एक गीता में ही भगवानुवाच है। तुम बच्चे जानते हो भगवान ने राजयोग सिखाया था और कहा था मैं तुमको राजाओं का राजा बनाऊंगा। उन्होंने फिर श्रीकृष्ण का नाम दे दिया है। अब श्रीकृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स था। श्रीकृष्ण ने यह पद पाया है अपने बाप से। कृष्ण कोई अकेला नहीं था। लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी जो अब फिर से स्थापन हो रही है। तो तुम बच्चों की बुद्धि में यह आना चाहिए। पांच हजार वर्ष पहले भी भगवान ने ऐसे पढ़ाया था। भगवान नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है। श्रीकृष्ण को नॉलेजफुल, ब्लिसफुल आदि यह टाइटिल नहीं देंगे। बाप सारी सृष्टि पर तत्वों सहित सब पर ब्लिस करते हैं। सो तो सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई कर न सके। ब्लिस अर्थात् मेहर। यहाँ तो देखो तत्व आदि सब तमोप्रधान हैं। बरसात पड़ती है तो नुकसान कर देती। तूफान लगते रहते हैं। यह सब बेकायदे हुआ ना। सतयुग में कोई भी बेकायदे बात होती नहीं जो नुकसान आदि हो। खेती टाइम पर तैयार होगी। टाइम पर पानी मिलेगा। वहाँ कोई उपद्रव होते नहीं। यह माया के उपद्रव हैं जो दु:खी करते हैं। माया का भी अर्थ मनुष्य नहीं जानते। अब तुम समझते हो बाप को कहा ही जाता है परमपिता परमात्मा यानी परम आत्मा। बोलना भी ऐसे चाहिए एक्यूरेट।
बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसे कर्म सिखलाता हूँ जो तुमको कभी कर्म कूटने नहीं पड़ेंगे। मनमत पर चलने से हर एक मनुष्य कर्म कूटते हैं ना। बुखार, खांसी हुई यह भी कर्मभोग है। देवाला मारा, यह भी कर्मों को कूटना हुआ। तुमको बाप श्रेष्ठ कर्म सिखलाते हैं। जो भी जितना सीखेंगे उतना ऊंच पद स्वर्ग में पायेंगे। जैसे नाटक में कोई तो स्पेशल रिजर्व सीट लेते हैं। फिर नम्बरवार सेकेण्ड क्लास, थर्ड क्लास होती हैं। अच्छे-अच्छे आदमी नजदीक में सीट लेते हैं। तो पढ़ाई में भी नम्बरवार होते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको मालिक बनाने आया हूँ, जितना जो पढ़ेगा, पढ़ाई बहुत सिम्पुल है। पढ़ाने वाला है निराकार। उनका नाम व्यास वा श्रीकृष्ण आदि नहीं है। उन सबके तो चित्र हैं। ब्रह्मा का भी चित्र है, श्रीकृष्ण का भी चित्र है। सूक्ष्म वा स्थूल चित्र हैं तो उनको भगवान नहीं कह सकते। भगवान एक ही है जिसको शिव कहते हैं। भल मन्दिर कितने भी हैं परन्तु नाम असुल एक ही है, वह कब बदल नहीं सकता। वह है निराकार परमपिता परमात्मा। यह किसने कहा? निराकार आत्मा कहती है कि परमपिता परम आत्मा परमधाम में रहते हैं। हम आत्मा उनकी सन्तान हैं। हम भी वहाँ से आये हैं पार्ट बजाने। अब एक-एक एक्टर की बायोग्राफी तो नहीं बतायेंगे। मुख्य की ही बताई जाती है। यहाँ भी बड़े-बड़े आदमियों की बायोग्राफी बताते हैं ना। अब सारी बेहद सृष्टि में ऊंच ते ऊंच मनुष्य कौन है? ड्रामा में ऊंच ते ऊंच पार्ट किसका है? यह भी समझना चाहिए। हम एक्टर्स को बाप बैठ समझाते हैं। क्रियेटर, डायरेक्टर बाप ही है। शिवबाबा डायरेक्शन देते हैं ब्रह्मा को कि तुमको देवी-देवता धर्म की स्थापना करनी है। स्थापना कर फिर तुमको जाकर पालना करनी है। हम नहीं करेंगे। तुमको सिखलाते हैं, डायरेक्शन देते हैं ना। करनकरावनहार है ना। खुद करते भी हैं। नॉलेज सुनाते हैं और तुम से कराते भी हैं ना। श्रीमत मिलती है यह करो। ड्रामा अनुसार ब्रह्मा यह स्थापना कर फिर राज्य करेंगे। ब्राह्मण, ब्राह्मणियां भी राज्य करेंगे।
तो बाप समझाते हैं मैं निराकार एक हूँ और सब साकारी हैं। अब वह निराकार परमपिता परमात्मा आत्माओं को मत देते हैं। आत्मा इन कानों से सुनती है, मुख से बोलती है। तो सबसे मुख्य हुआ परमपिता परमात्मा फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर सूक्ष्मवतन वासी फिर संगमयुग पर है जगदम्बा सरस्वती और जगतपिता ब्रह्मा। यह बड़े ते बड़े हुए ना। इन द्वारा रचना होती है। तुम सब मिलकर भारत को स्वर्ग बनाते हो, बाप की मदद से तुम मनुष्य को देवता बनाते हो। सतयुग में होते हैं दैवी सम्प्रदाय। बाप कहते हैं हम तुमको ऐसे कर्म सिखलाते हैं जो कभी दु:खी नहीं होंगे। अब सारा मदार है तुम्हारे पुरुषार्थ पर। चाहे बाप का बन फर्स्टक्लास टिकेट लो, सूर्यवंशी बनो, चाहे चन्द्रवंशी बनो। यह तो जानते हो तुम्हारे मम्मा बाबा सबसे जास्ती पुरुषार्थ करते हैं। सर्विस करते हैं। वह तो महारानी महाराजा बनेंगे। तुम उन्हों की गद्दी पकड़ेंगे ना या नापास हो जायेंगे! जगत अम्बा का कितना नाम है! सरस्वती है ब्रह्मा की बेटी। तो दोनों का मन्दिर अलग-अलग कर दिया है। ब्रह्मा का भी अजमेर में बड़ा मन्दिर है। वह है जगत पिता, वह जगत माता। जगत को रचने वाले।
मुख्य धर्म हैं चार फिर तो बहुत छोटे-छोटे मठ आदि निकलते रहते हैं। आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं क्योंकि पार्टीशन है बहुत। जहाँ तहाँ झगड़ा लगा पड़ा है। सतयुग में तो ऐसे नहीं होता। तो बाप समझाते हैं – मीठे लाडले बच्चे, इस ड्रामा को समझना है। यह तो जानते हैं हम आत्मा परमधाम से आती हैं, गर्भ में चोला धारण कर हम पार्ट बजाते हैं। अभी पार्ट पूरा हुआ है फिर यह शरीर छोड़ अशरीरी होकर जाना है। बाप आया हुआ है, शिव जयन्ती भी है। जरूर शिवबाबा ने आकर अवतार लिया है। उनकी जयन्ती कब, कैसे हुई, शिवबाबा कैसे, किसमें आये, क्या आकरके किया – यह कोई नहीं जानते। जरूर भारत को स्वर्ग बनाया होगा। बाप न आये तो बच्चों को कौन सिखलाये! और सबकी मत है – कलियुगी, आसुरी मत। उनसे श्रेष्ठ बन नहीं सकते। अब मैं तुमको सुमत देता हूँ। और कोई की भी मत पर न चलो। मैं श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हूँ, जरूर ऊंचा बनाऊंगा। तो वह श्रीमत पकड़नी चाहिए और कोई की मत ली तो धोखा खायेंगे। कदम-कदम पर श्रीमत लेंगे तो इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बनेंगे। उनकी महिमा ही है – त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव। मैं बाप, टीचर, सतगुरू के रूप में तुमको मत देता हूँ, जिससे तुम ऐसे लक्ष्मी-नारायण समान बनते हो। यह ज्ञान तुमको है तब समझा सकते हो। नम्बरवार तो होते ही हैं। तुम जानते हो मम्मा बड़ा रिफ्रेश करती थी। बाबा भी रिफ्रेश करते हैं। तो तुम बच्चों को भी फालो करना है। बाबा हम आपसे सुनकर औरों को सुनायेंगे। है बहुत सहज। बोलो – भगवानुवाच लिखा हुआ है। भगवान तो है निराकार। तुम जानते हो ड्रामा में यह वेद-शास्त्र आदि सब पहले से ही बने हुए हैं। शास्त्रों में जो कुछ है, जैसे बने हुए हैं फिर भी वही बनेंगे। कितनी गुह्य बातें हैं। गुह्य ते गुह्य बातें सुनाते रहेंगे। जो बच्चे समझकर फिर समझा सकें। व्यास तो लिखने वाला मनुष्य होगा ना। भगवान किसको कहा जाता है! वह तो सभी का बाप है। श्रीकृष्ण नहीं। श्रीकृष्ण की हिस्ट्री-जॉग्राफी को भी तुम बच्चे जानते हो। भगवान तो सृष्टि का रचता ठहरा। राजयोग भगवान ने सिखलाया, न कि श्रीकृष्ण ने। तुमको यह नशा रहना चाहिए कि हम यह राजयोग सीख भविष्य प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे। बैरिस्टरी पढ़ते हैं तो नशा रहता है। इम्तिहान पास कर जाकर कुर्सी पर बैठ बैरिस्टर बनेंगे। तुम जानते हो मरना तो सभी को है। अभी बाप कहते हैं मरने से पहले पुरुषार्थ करो। इस समय सिर्फ तुम्हारी प्रीत है मेरे साथ। कौरवों की विपरीत बुद्धि थी और पाण्डवों की प्रीत बुद्धि थी। तो प्रीत बुद्धि वालों की स्थापना और विपरीत बुद्धि वालों का विनाश हुआ। यह है पढ़ाई। पहले तो निश्चय चाहिए कि बाप हमको राजाओं का राजा बनाने पढ़ाते हैं। पांच-पांच हजार वर्ष के बाद तुमको पढ़ाने आता हूँ। ड्रामा में कोई भी चेन्ज नहीं हो सकती।
तुम जानते हो कि सत्य बोलने वाला एक ही बाप है। बाकी जो सभी मनुष्य मात्र ईश्वर के लिए रास्ता बताते हैं और उनकी रचना के लिए जो बोलते हैं सो तो सभी झूठ है। मनुष्य समझते भी हैं परन्तु अभी तक प्रभाव निकलने का समय नहीं है तो देरी लगेगी। ट्रेन तो अपने टाइम पर पहुंचेगी ना। 8 के बदले 2 बजे तो नहीं पहुंचेगी। हम यह पुरुषार्थ करते-करते समझते हैं – अभी जल्दी स्वर्ग में चले जायें। परन्तु बाबा स्टेशन मास्टर कहते हैं कि फ्लैग डाउन वा सिंगनल नहीं है, अजुन देरी है। राजाई स्थापन हो जाए तब तो चलेंगे ना। बहुत बच्चे कहते हैं – बाबा, यहाँ रहकर हम तंग हो गये हैं। बाबा कहते हैं यह तो तुम्हारा नम्बरवन जन्म है, इसमें तुम्हें कभी तंग नहीं होना है। वन्दे मातरम् गाया हुआ है। तुमको योगबल से सारे विश्व को पावन बनाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस विनाश काल में एक बाप से सच्ची प्रीत रखनी है। सदा इसी नशे में रहना है कि हम राजयोग सीख भविष्य प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे।
2) योगबल से सारे विश्व को पावन बनाने की सेवा करनी है। इस नम्बरवन जन्म से कभी भी तंग नहीं होना है।
वरदान:- | स्नेह और भावना के बंधन में भगवान को भी बांधने वाले गायन योग्य भव भक्ति मार्ग में गायन हैं कि गोपियों ने भगवान को भी बंधन में बांध दिया। यह है स्नेह और भावना का बंधन, जो चरित्र रूप में गाया जाता है। आप बच्चे इस समय बेहद के कल्प वृक्ष में स्नेह और भावना की रस्सी से बाप को भी बांध देते हो, इसका ही गायन भक्ति मार्ग में चलता है। बाप फिर इसके रिटर्न में स्नेह और भावना की दोनों रस्सियों को दिलतख्त का आसन दे झूला बनाए बच्चों को दे देते हैं, इसी झूले में सदा झूलते रहो। |
स्लोगन:- | स्वयं को हर परिस्थिति में मोल्ड करने वाले ही सच्चे गोल्ड हैं। |