MURLI 02-01-2024
02-01-2024 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘ | मधुबन |
“मीठे बच्चे – देही-अभिमानी बनो तो विकल्प समाप्त हो जायेंगे, किसी भी बात से डर नहीं लगेगा, तुम फिकर से फ़ारिग हो जायेंगे।” | |
प्रश्नः- | नये झाड़ की वृद्धि किस तरह से होती है और क्यों? |
उत्तर:- | नये झाड़ की वृद्धि बहुत धीरे-धीरे और जूँ मिसल होती है। जैसे ड्रामा जूँ मिसल चल रहा है, ऐसे ड्रामा अनुसार यह झाड़ भी धीरे-धीरे वृद्धि को पाता है क्योंकि इसमें माया का मुकाबला भी बहुत करना पड़ता है। बच्चों को देही-अभिमानी बनने में मेहनत लगती है। देही-अभिमानी बनें तो बहुत खुशी रहे। सर्विस में भी वृद्धि हो। बाप और वर्से की याद रहे तो बेड़ा पार हो जाए। |
ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। रूहानी बाप भी अकालमूर्त है। रूहानी बाप कहा जाता है परमपिता परमात्मा को। तुम बच्चे भी अकालमूर्त हो। तुम सिक्ख लोगों को भी अच्छी तरह से समझा सकते हो। यूँ तो कोई भी धर्म वालों को समझा सकते हो। यह भी बाप ने बताया है कि यह झाड़ धीरे-धीरे बढ़ता है। जैसे ड्रामा जूँ मिसल चलता है वैसे झाड़ भी जूँ मिसल बढ़ता है। पूरा कल्प लगता है बढ़ने में। अभी तुम्हारा यह नया झाड़ है, तुम बच्चों की भी कल्प की आयु हो जाती है। 5 हज़ार वर्ष से तुम चक्र लगाते हो, जूँ मिसल यह चक्र चलता है। पहले-पहले तो आत्मा को समझना है। यही डिफीकल्ट बात है। बाप जानते हैं ड्रामा अनुसार आहिस्ते-आहिस्ते झाड़ बढ़ता है क्योंकि माया का मुकाबला होता है, इस समय उसका राज्य है फिर तो रावण ही नहीं रहता। तुम बच्चों को पहले देही-अभिमानी बनना है। देही-अभिमानी बच्चे सर्विस बहुत अच्छी करेंगे और बहुत खुशी में भी रहेंगे। बुद्धि में फालतू विकल्प नहीं आयेंगे। गोया तुम माया पर जीत पाते हो तो फिर तुमको कोई हिला न सके। अंगद का भी दृष्टान्त है ना, इसलिए तुम्हारा महावीर नाम रखा है। अभी तो एक भी महावीर नहीं। महावीर पिछाड़ी में बनेंगे, सो भी नम्बरवार। जो अच्छी सर्विस करते हैं उनको महावीर की लाइन में रखेंगे। अभी वीर हैं, महावीर पिछाड़ी में होंगे। जरा भी कोई संशय नहीं आना चाहिए। कोई तो बहुत अहंकार में आ जाते हैं। कोई की भी परवाह नहीं करते। इसमें तो बड़ी निर्माणता से कोई को समझाना होता है। अमृतसर में सिक्खों की तुम सर्विस कर सकते हो। सन्देश तो सबको एक ही देना है। बाप को याद करने से तुम्हारी आत्मा की कट उतर जायेगी। वो लोग कहते हैं जप साहेब को.. साहेब की महिमा भी है। एकोअंकार सत नाम, अकाल मूर्त। अब अकालमूर्त कौन? कहते हैं सतगुरू अकाल। अकालमूर्त तो आत्मा है ना। उनको कभी काल खा न सके। आत्मा को तो पार्ट मिला हुआ है, सो तो पार्ट बजाना ही है। उनको काल खायेगा कैसे। शरीर को खा सकता है। आत्मा तो अकाल मूर्त है। तुम सिक्खों के पास जाकर भाषण कर सकते हो। जैसे गीता वाले भी भाषण करते हैं। तुम बच्चे जानते हो भक्ति मार्ग की तो अथाह सामग्री है। ज्ञान जरा भी नहीं। ज्ञान का सागर है ही एक बाप। मनुष्य को ज्ञानवान नहीं कहा जायेगा। देवतायें भी तो मनुष्य हैं ना। परन्तु दैवीगुण हैं इसलिए देवता कहा जाता है। उन्हों को भी बाप से ही वर्सा मिला था। तुम भी इस राजयोग से विश्व के मालिक बन रहे हो। सतगुरू अकाल कहते हैं ना। सत्य तो वह एक ही बाप है। वही पतित-पावन है। दो बाप का भी परिचय देना है। तुमको भाषण के लिए दो मिनट मिलें तो भी बहुत है। एक मिनट एक सेकेण्ड मिले तो भी बहुत है। जिनको कल्प पहले तीर लगा होगा उनको ही लगेगा, कोई बड़ी बात नहीं। सिर्फ पैगाम देना है। बाबा ने समझाया है – समझो गुरूनानक आता है तो वह कोई मैसेज नहीं देते कि तुमको वापिस घर चलना है, उसके लिए पवित्र बनो। वह तो पवित्र आत्मायें ऊपर से आती हैं। उनके धर्म की वृद्धि होती है, आते रहते हैं। वास्तव में सद्गति दाता कोई मनुष्य हो नहीं सकता। सद्गति दाता एक बाप है। मनुष्य तो मनुष्य ही हैं फिर समझाया जाता है फलाने धर्म का है। बाप ने समझाया है तुम अपने को आत्मा समझो, पवित्र बनो, गुरूनानक ने कहा है मूत पलीती कपड़ धोए.. यह भी पीछे शास्त्र बनाने वालों ने लिखा है। पहले तो बहुत थोड़े होते हैं। उनको क्या बैठ सुनायेंगे। यह ज्ञान भी बाप तुमको अभी देते हैं फिर शास्त्र तो पिछाड़ी में बनते हैं। सतयुग में तो शास्त्र होते नहीं। पहले तो समझाना है बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। विनाश तो होना ही है। पूछना चाहिए सर्वव्यापी किसको कहते हो जिसकी यह महिमा गाते हो एकोअंकार..वह तो बाप ठहरा ना। उनके बच्चे हम आत्मायें भी अकालमूर्त हैं। हमारा तख्त यह है। हम एक तख्त छोड़ दूसरे पर बैठे हैं। 84 तख्त पर बैठते हैं। अभी यह है पुरानी दुनिया, कितने हंगामे हैं। नई दुनिया में यह बातें हो न सके। वहाँ तो एक ही धर्म होता है। बाप तुमको विश्व की बादशाही दे देते हैं। तुम्हारे पर कोई चढ़ाई नहीं कर सकते। द्वापर से धर्म स्थापक आते हैं अपने-अपने धर्म की स्थापना करने। उनका धर्म जब वृद्धि को पाये, ताकत में आये तब लड़ाई की बात हो। इस्लामी पहले कितने थोड़े होंगे। तुम्हारा धर्म तो यहाँ स्थापन होता है। वह आते ही द्वापर में हैं। उस समय ही धर्म स्थापन होता है। फिर एक दो के पिछाड़ी आते जायेंगे। यह बड़ी समझने की बातें हैं। कोई तो ड्रामा अनुसार कुछ भी धारण नहीं कर सकते हैं। बाप समझाते हैं ज़रूर उनका पद कम होगा। यह कोई श्राप नहीं है। माला तो महावीरों की बनती है। ड्रामा अनुसार सभी एक जैसा पुरुषार्थ तो कर नहीं सकते। आगे भी नहीं किया होगा। कहेंगे फिर हमारा क्या दोष है। बाप भी कहते हैं तुम्हारा कोई दोष नहीं। तकदीर में नहीं है तो बाप क्या कर सकते। समझ सकते हैं कौन-कौन किस पद के लायक हैं। सिक्खों को भी समझाना है कि साहेब को जपो तो सुख-शान्ति मिले। उनको सुख तब मिलता है जब उनके धर्म की स्थापना होती है। अब तो सब नीचे आ चुके हैं। तुम मानते हो सतगुरू अकाल.. फिर गुरू किसको कहते हो? सद्गति देने वाला गुरू एक है। भक्ति सिखलाने वाले तो ढेर गुरू चाहिए। ज्ञान सिखलाने वाला एक बाप है। तो तुम मातायें उनको समझाओ कि यह कंगन तुम जो पहनते हो ये भी पवित्रता की निशानी है। तुम्हारा वह मान लेंगे क्योंकि तुम मातायें ही स्वर्ग का द्वार खोलने वाली हो। तुम माताओं को अभी ज्ञान का कलष मिला है जिससे सबकी सद्गति हो जाती है।
तुम बच्चे अभी अपने को महावीर कहलाते हो। तुम कह सकते हो हम गृहस्थ व्यवहार में रह स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। रात दिन का फर्क है। यह जटायें भी पवित्रता की निशानी हैं। अकालमूर्त पतित-पावन बाप की महिमा पूरी करनी चाहिए। साधू सन्यासी परमात्मा नम: कहते हैं फिर कहते हैं सर्वव्यापी है। यह है रांग। बाप की तुम खूब महिमा करो। बाप की महिमा से तुम तर जाते हो। जैसे कहानी है राम-राम कहने से पार हो जायेंगे। बाप भी कहते हैं बाप को याद करने से विषय सागर से पार हो जायेंगे। तुम सबको मुक्ति में जाना ही है। तुम अमृतसर में जाकर भाषण करो कि तुम पुकारते हो सतगुरू अकालमूर्त..परन्तु वह अब कहते हैं देह सहित देह के सब धर्मों को छोड़ अपने को आत्मा समझो। बाप को याद करो तो पाप भस्म हो जायेंगे। अन्त मती सो गति हो जायेगी। शिवबाबा अकालमूर्त, निराकार है। तुम आत्मा भी निराकार हो। बाप कहते हैं मेरा शरीर तो है नहीं। मैं लोन लेता हूँ। मैं आता ही पतित दुनिया में हूँ – रावण पर जीत पाने। यहाँ ही डायरेक्शन दूँगा क्योंकि पतित होते ही पुरानी दुनिया में हैं। नई दुनिया में एक ही देवी देवता धर्म था, उस समय और सब शान्तिधाम में रहते हैं। फिर नम्बरवार सतो रजो तमो में आते हैं। जिनको सुख बहुत मिलता है, उनको दु:ख भी बहुत मिलता है।
तुम्हें सबको बाप का पैगाम देना है कि बाप को याद करो तो घर पहुँच जायेंगे। सद्गति सबकी तब होती है जब झाड़ पूरा होता है, सब आ जाते हैं। ऐसे तुम भी किसी को बहुत प्यार और धीरज से समझाओ। तुमको चित्र उठाने की भी दरकार नहीं है। वास्तव में चित्र हैं नयों के लिए। तुम कोई भी धर्म वालों को समझा सकते हो। परन्तु बच्चों में इतना योग नहीं जो तीर लगे। कहते हैं बाबा हम हार खा लेते हैं। माया एकदम काला मुँह करा देती है, उनको यह पता ही नहीं पड़ता है कि हम देवता थे। इस समय असुर बन पड़े हैं।
अब बाबा कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। बाप का पैगाम सबको देते रहो। बाइसकोप के स्लाइड्स पर भी लिखो कि त्रिमूर्ति परमपिता परमात्मा शिव कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम मुक्ति जीवनमुक्ति पा लेंगे। पैगाम तो सबको देना है ना। स्लाइड्स भी बन जाना चाहिए। इसमें यह जैसे एक वशीकरण मंत्र मनमनाभव का सबको दो। इस पढ़ाई में देरी नहीं लगती। आगे चलकर सब समझेंगे। कोई फिकर की बात नहीं। फिकर से रहित तो होना ही है। मनुष्य देखो – मौत से कितना डरते हैं। यहाँ डरने की तो बात ही नहीं। तुम तो कहेंगे अभी मौत न आये। अभी हमने इम्तहान ही पूरा कहाँ किया है। अभी यात्रा पूरी नहीं की है तो शरीर क्यों छूटना चाहिए। ऐसे मीठी-मीठी बातें बाप से करनी है। बहुत अच्छी टेव (आदत) पड़ जायेगी। यहाँ चित्र के आगे आकर बैठ जाओ। तुम जानते हो हमको बाबा से विश्व की राजाई मिलती है। तो ऐसे बाप को बहुत याद करना चाहिए ना। याद नहीं करेंगे तो सजायें भोगनी पड़ेगी। बाबा को तो याद पड़ गया है कि हम यह बनने वाले हैं। तो बहुत खुशी होती है कि हम यह बनेंगे। देखने से ही नशा चढ़ जाता है। तुमको भी यह बनना है। बाबा हम आपको याद कर ऐसे बनेंगे ज़रूर। और कोई काम नहीं है तो यहाँ चित्रों के सामने आकर बैठ जाओ। बाप द्वारा हमको यह वर्सा मिलता है। यह पक्का कर दो। यह युक्ति कम नहीं है। परन्तु तकदीर में नहीं है तो याद नहीं करते। बाबा कहते हैं यहाँ आते हो तो बहुत प्रैक्टिस करो। तो जो कुछ ग्रहचारी होगी वह उतर जायेगी। सीढ़ी के चित्र पर यह विचार करो। परन्तु तकदीर में नहीं है तो श्रीमत पर चल नहीं सकते। बाबा रास्ता बताते हैं माया काट देती है। बाबा युक्तियाँ बहुत बतलाते हैं। बाप और वर्से को याद करते रहो। कहते हैं अतीन्द्रिय सुख गोप गोपियों से पूछो, जिनको निश्चय है कि हम बाप से वर्सा ज़रूर लेंगे। बाबा स्वर्ग की स्थापना कर हमें उसका मालिक बनाते हैं। चित्र भी ऐसे बने हुए हैं। तुम सिद्ध कर बताते हो कि ब्रह्मा, विष्णु का क्या सम्बन्ध है। और किसको भी पता नहीं, ब्रह्मा का चित्र देख मूँझ जाते हैं। स्थापना में टाइम ज़रूर लगता है, कर्मातीत अवस्था में भी टाइम लगता है। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। यह आदत डालनी चाहिए। नौधा भक्ति वाले भी चित्र के आगे बैठ जाते हैं – हमको दीदार हो। तुम तो यह बनते हो तो तुमको याद करना चाहिए। बैज भी तुम्हारे पास है। बाबा अपना भक्ति मार्ग का मिसाल बताते हैं कि नारायण की मूर्ति से मेरा बहुत प्यार था। वह सब था भक्ति मार्ग। अब बाप कहते मामेकम् याद करो और कुछ भी नहीं करना है। बाबा कहते हैं हम तो ओबीडियन्ट सर्वेंन्ट हैं। हमें तुम माथा क्यों टेकते हो। अच्छा!
मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) निर्माणता का गुण धारण करना है। ज़रा भी अहंकार में नहीं आना है। ऐसा महावीर बनना है जो माया हिला न सके।
2) सभी को मनमनाभव का वशीकरण मंत्र सुनाना है। बहुत प्यार और धीरज से सबको ज्ञान की बातें सुनानी है। बाप का पैगाम सब धर्म वालों को देना है।
वरदान:- | कर्म और संबंध दोनों में स्वार्थ भाव से मुक्त रहने वाले बाप समान कर्मातीत भव आप बच्चों की सेवा है सबको मुक्त बनाने की। तो औरों को मुक्त बनाते स्वयं को बंधन में बांध नहीं देना। जब हद के मेरे-मेरे से मुक्त होंगे तब अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकेंगे। जो बच्चे लौकिक और अलौकिक, कर्म और संबंध दोनों में स्वार्थ भाव से मुक्त हैं वही बाप समान कर्मातीत स्थिति का अनुभव कर सकते हैं। तो चेक करो कहाँ तक कर्मो के बंधन से न्यारे बने हैं? व्यर्थ स्वभाव-संस्कार के वश होने से मुक्त बने हैं? कभी कोई पिछला संस्कार स्वभाव वशीभूत तो नहीं बनाता है? |
स्लोगन:- | समान और सम्पूर्ण बनना है तो स्नेह के सागर में समा जाओ। |
अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो
अभी तीव्र पुरूषार्थ का यही लक्ष्य रखो कि मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ, चलते-फिरते फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति को बढ़ाओ। डीप साइलेन्स द्वारा अशरीरीपन का अभ्यास करो। सेकण्ड में कोई भी संकल्पों को समाप्त करने में, संस्कार-स्वभाव में डबल लाइट रहो।
MURLI 02-01-2024
MURLI 02-01-2024 is a significant date for Brahma Kumaris, as the Murli delivered on this day holds transformative power. The Murli, Murli, Murli, and Murli again—each repetition brings profound insights, guiding spiritual seekers on their journey. The spiritual leaders of Brahma Kumaris share teachings in the Murli, unlocking the path to self-realization. Join the MURLI 02-01-2024, to immerse yourself in the divine wisdom of Murli, and embrace the spiritual guidance that resonates with Murli’s profound energy.