Murli 01-07-2023

01-07-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें अपने ही तन-मन-धन से भारत को पावन बनाने की सर्विस करनी है, इस भारत को माया रावण से लिबरेट करना है”
प्रश्नः-जो बच्चे देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करते हैं वह किस फिक्र से छूट जाते हैं?
उत्तर:-इस पुराने शरीर का कर्मभोग जो घड़ी-घड़ी भोगना के रूप में आता है, हिसाब-किताब चुक्तू करना पड़ता है इसकी फिक्र से वह छूट जाते हैं क्योंकि उनकी बुद्धि में रहता – अभी तो हमें पुराने हिसाब-किताब चुक्तू कर कर्मातीत बनना है। फिर आधाकल्प के लिए किसी भी प्रकार का रोग हमारे पास आ नहीं सकता। बाबा ऐसी फर्स्टक्लास नेचर-क्योर करते हैं जो बीमारी का नाम-निशान नहीं रहता।
गीत:-तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो…….. Audio Player

ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। बच्चे जानते हैं हम पतित-पावन मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। पतित भारत को पावन बनाने लिए श्रीमत पर चल रहे हैं क्योंकि तुम बच्चे हो अपने परमपिता परमात्मा की सर्विस में। बाप भी इसी सर्विस में है। यह तो बच्चे जानते हैं बरोबर भारत पावन था। अब पतित बना है। पावन दुनिया को 5 हजार वर्ष हुए। दुनिया इन बातों को कुछ भी नहीं जानती। अभी तुम बच्चे बाप की श्रीमत पर चल तन-मन-धन से भारत की सेवा करते हो। भारत को माया रावण की जंजीरों से छुड़ाए और रामराज्य स्थापन कर रहे हो। यह तो तुम किसको भी समझा सकते हो। हम पतित भारत को पावन बनाने आये हैं, तो जरूर पवित्र बनना पड़े। पवित्रता पर ही झगड़ा चलता है। कोई न कोई तकलीफ होती है। उन्हों की है हिंसक लड़ाई, तुम्हारी लड़ाई है रावण रूपी 5 विकारों से। तुम यह भी जानते हो कल्प-कल्प हम श्रीमत पर चले हैं। इस समय सारी दुनिया रावण की मत पर चल रही है। श्रीमत से तुम दैवी मत वाले देवता बनते हो। अभी तुम ब्राह्मण वर्ण के हो। तुम सारी दुनिया को पतित से पावन बनाते हो। बेहद का बाप आते हैं बच्चों के पास। बच्चे कहते हैं हम तन-मन-धन से भारत को फिर से दैवी राज्य बनाते हैं क्योंकि भारत सतयुग के आदि में राजस्थान था। हम अपना दैवी राज्य स्थापन कर रहे हैं। जैसे बापू गांधी ने तन-मन-धन से सेवा की। जेल में गये तो तन की सेवा हुई ना। मन भी उसमें लगा हुआ था। अभी तुम जानते हो बाप माया रावण से लिबरेट करते हैं। यह बेहद का बाप, वह भारत का बापू जी था। सभी का नहीं था। वैसे भी बुजुर्ग को बापू जी कहते हैं। मेयर को भी बापू जी कहते हैं। फादर्स तो बहुत हैं। तुम्हारा फादर एक है। दूसरा न कोई। बेहद का बापू एक है – शिवबाबा, वह भारत को पावन बनाने की सर्विस में उपस्थित हुए हैं। जरूर कोई शरीर में आया होगा। साथ में मददगार भी होंगे। अकेला तो नहीं होगा। तुम शिव शक्ति सेना हो। तुमको समझाने में बड़ा सहज है। उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने में कितना सहन किया। अबलायें भी जेल आदि में गई। जास्ती दु:ख पुरुषों ने उठाया था। अभी फिर तुम माताओं को बहुत दु:ख सहन करना पड़ता है विष के कारण।

तुम समझा सकती हो बाप आया है नई सृष्टि रचने। तो पहले-पहले ब्राह्मण चाहिए। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण फिर तुम दैवी अर्थात् विष्णु की वंशावली बनते हो। यह बुद्धि में रहना चाहिए। बरोबर हम बाबा के साथ मददगार हैं। श्रीमत पर तो हजारों लाखों को चलना है। बापू को भी बड़ी सेना थी। उनमें भी कोई अच्छे नामीग्रामी थे, कोई कैसे थे। उस बापू ने फिरंगियों (अंग्रेजों) से छुड़ाया। अभी तुम बच्चों को रावण दुश्मन से छुड़ाने लिए श्रीमत दे रहे हैं। जैसे वह कहते हैं हम स्वराज्य स्थापन करते हैं। तुम्हारी बुद्धि में है हम श्रीमत पर दैवी स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं। कदम-कदम पर श्रीमत लेनी पड़ती है। श्रीमत से श्रेष्ठ बनेंगे। हर एक का कर्मबंधन अपना-अपना है। कर्मातीत अवस्था को पाने के लिए अन्त तक पुरुषार्थ करना पड़ता है। कर्मातीत अवस्था अभी आई नहीं है। अजुन बहुत पुरुषार्थ करना है। कर्मातीत अवस्था वह जिसमें शरीर को भी कोई दु:ख न हो। पुराने शरीर को तो अन्त तक दु:ख होता ही है। ऐसे नहीं कि सब सम्पूर्ण हो चुके हैं। कर्मभोग चुक्तू करना है। कर्मातीत अवस्था जब तक हो तब तक माया के तूफान, कर्मों के हिसाब-किताब की भोगना चली आयेगी। उसका फिक्र नहीं करना है। बाप को याद करना है। बाप कहते हैं देही-अभिमानी भव। यह अक्षर अभी के ही हैं जो गाये जाते हैं। मनुष्य तो जानते नहीं – इसका अर्थ क्या है? अभी तुम जानते हो – सोल कॉन्सेस से हम अकेला होकर बाप को याद कर सकते हैं। अब सोल कॉन्सेस बनना है। पुरुषार्थ करना है – मैं आत्मा हूँ, बाप को याद करती हूँ। सर्वव्यापी कहने से हम किसको याद करें? बाप ने समझाया है शान्ति के लिए कहाँ जाना नहीं है। कर्म तो करना ही है। अशरीरी होकर रहना है। हम आत्मा हैं, यह आरगन्स हैं। आत्मा का तो स्वधर्म है ही शान्त। हम बाजा नहीं बजाते। वह संन्यासी आदि तो हठयोग करते हैं, प्राणायाम चढ़ाते हैं। फिर अभ्यास करते हैं, खड्डे में जाकर अनेक प्रयत्न करते हैं। यहाँ हठयोग की कोई बात नहीं। सिर्फ नॉलेज को समझना है। गॉड फादर की नॉलेज को कोई नहीं जानते। या तो कह देते गॉड फादर तो सर्वव्यापी है। इसको ही कहा जाता मिथ्या ज्ञान। तुम अब फादर को जानते हो। सभी का फादर एक है। वही आकर सृष्टि को पतित से पावन बनाते हैं। तुम बाप के साथ मददगार हो। पतित से पावन बन फिर पावन दुनिया में चलेंगे। वहाँ पावन दैवी राज्य चलता है। पावन दुनिया के लिए तुम राजयोग सीख रहे हो। फिर टीचर बन तुमको सृष्टि चक्र का ज्ञान देते हैं। जिससे तुम स्वदर्शन चक्रधारी बन चक्रवर्ती राजा-रानी बनते हो। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए इस अवस्था को जमाना है। तुमको कितना सहन करना पड़ता है! मार खाते हैं, इस यज्ञ में असुरों के कितने विघ्न पड़ते हैं! अबलाओं पर अत्याचार होते हैं – विकार के कारण। काँग्रेसी उस जेल में जाते थे तुम फिर कंस-जरासंधियों की जेल में बाँध होती हो। थोड़ा सहन करना पड़ता है। पावन बनने में मैजारिटी तुम्हारी है। हाँ, कोई कमजोर पुरुष लोग होते हैं तो फिर स्त्री का सहन करना पड़ता है। नहीं तो भारतवासियों का कायदा है 60 वर्ष के बाद वानप्रस्थ अवस्था को धारण करना। फिर गृहस्थ को छोड़ चाबी बच्चों को दे देते हैं कि सम्भालते रहो। सपूत बच्चे अच्छी रीति सम्भालते हैं। बाप ने सेवा कर बड़ा बनाया, फिर बच्चे का फ़र्ज है सम्भालना। कहेंगे – आप सत्संग आदि करो, हम सम्भाल करते रहेंगे। आजकल बच्चे भी दुश्मन बन पड़ते हैं। तुम बच्चों की युद्ध है माया रावण के साथ। उन्होने फिरंगियों से लिबरेट किया – गांधी की मत से।

तुम पर माया रावण ने 2500 वर्ष राज्य किया है। यह माया बड़ी बलवान है। उनको तो लिबरेट करने में 40-50 वर्ष लगे। मेहनत लगती है। यहाँ भी तुम श्रीमत पर जीत पाते हो। रावण तुम्हारा बड़ा पुराना दुश्मन है। तुमको गोली मारती है माया दुश्मन। काम का है सबसे बड़ा बाम। माया से बड़ा ख़बरदार रहना है। बाबा कहते हैं जितना तुम याद करेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा। तुम जानते हो हम ईश्वर की औलाद बने हैं। श्रीमत से स्वराज्य स्थापन करते हैं – 21 जन्मों के लिए। काँग्रेसियों ने स्वराज्य लिया अल्पकाल के लिए। वह कोई स्वराज्य नहीं है, और ही मुसीबत है। परन्तु यह तुम जानते हो मृगतृष्णा के समान राज्य मिला हुआ है। काँग्रेस कैसे बनी – यह कोई गीता-भागवत में नहीं है। अभी तुम समझते हो उनको तो कुछ नहीं मिला। करके एम.पी. आदि बने, सो भी अल्पकाल क्षणभंगुर के लिए। अब तो सब दु:खी हैं। हम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। ड्रामा में विजय तो तुम्हारी नूँधी हुई है। तुम राजयोग सीख रहे हो। जानते हो हम सूर्यवंशी बनेंगे। बाबा पूछते हैं तुम सूर्यवंशी बनने के लिए पुरुषार्थ करते हो वा चन्द्रवंशी बनने के लिए? तो कहते हैं हम सूर्यवंशी का करते हैं। मम्मा-बाबा कहने वाले तो जरूर सूर्यवंशी ही बनेंगे। इसको कहा जाता है फालो फादर-मदर। मात-पिता है ना। यह सूर्यवंशी महाराजा-महारानी बनते हैं। यह तो सबको 100 प्रतिशत निश्चय है। मात-पिता बच्चों को कहते हैं तुमको भी पुरुषार्थ कर तख्तनशीन बनना चाहिए। पुरुषार्थ करके फालो करना चाहिए।

कोई शुभ बोलते हैं तो कहा जाता है – अच्छा, तुम्हारे मुख में गुलाब। अरे, सूर्यवंशी बनना कोई कम बात थोड़ेही है! कितने हीरे-जवाहरों से सजे हुए महल होंगे! कितना ऊंच पद है! विचार करने से रोमांच खड़े हो जाते हैं। बाबा हमको कितना ऊंच बनाते हैं! हम तो कुछ भी नहीं जानते थे। गांवड़े का छोरा गाया हुआ है ना। गांवड़े का छोरा कोई श्रीकृष्ण नहीं था। यहाँ गांव वाले कितने आये हैं! गरीबों का ही सौभाग्य है। साहूकारों का तो हृदय विदीरण हो जाता है। बाप कहते हैं मैं हूँ ही गरीब निवाज़। देखते हो कौन-कौन आते हैं वर्सा लेने। तो कोई भी मिले – बोलो, हम भारत की सर्विस में हैं। तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करते हैं। तो कोई भी इनकमटैक्स वाला ऑफीसर होगा तुमको झट माफ कर देगा। उस गवर्मेन्ट के पास तो बहुत पैसे बरबाद होते हैं। तुम्हारे पैसे तो भारत को आबाद करते हैं। कितना फ़र्क है? किसको भी समझाओ तो वह चक्रित हो जाए – ओहो! यह तो बड़ी भारी सर्विस करने वाले हैं। ऐसी सर्विस करो। बहुत-बहुत मीठे बनो। सच्चे साहेब से सच्चा होकर रहना है। सच्चे साहेब को याद भी करना है। अगर सचखण्ड का मालिक बनना है तो सच्चे बाबा को निरन्तर याद करने का अभ्यास करो। सिमर-सिमर सुख पाओ। ऐसा और कोई नहीं जिसके कलह-कलेष मिटे हुए हों। कुछ न कुछ बीमारी आदि होती रहती हैं। वहाँ तुमको कुछ भी नहीं होगा। बाप ऐसा नेचर-क्योर कर देते हैं जो तुम कभी रोगी नहीं बनेंगे। 21 जन्म तुम निरोगी बन जाते हो। तो इतना नशे में रहना चाहिए। फ़र्क समझाओ – पाण्डव-कौरव क्या करत भये……..। उस बापू जी ने क्या किया, यह बेहद का बापू जी क्या करते हैं? बाप तुम्हें रावण की जंजीरों से छुड़ाते हैं। उस बाप को याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। वह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। जन्म-जन्मान्तर के पाप सिर पर हैं। उनसे पावन बनने का उपाए एक ही है। वह पानी की गंगा किसको पावन नहीं कर सकती। यह बाप की याद पावन बनाती है। ऐसे नहीं कि नेष्ठा में बैठें। हाँ, बैठना भी अच्छा है। एक-दो के बल से बैठ जायेंगे। परन्तु बाबा कहते हैं – कैसे भी बैठो, याद तो चलते-फिरते कार्य करते करना है। उस स्कूल में टीचर पढ़ाते हैं तो स्टूडेन्ट को टीचर को जरूर याद करना पड़े। बच्चों को बुद्धि में यह बैठ जाना चाहिए कि हमको बाबा पढ़ाते हैं। ऐसा कोई नहीं जो बाप-टीचर को याद नहीं करे। तुम तो जानते हो अब वापिस जाना है तो सतगुरू को भी याद करना पड़े। तुम वन्डरफुल बातें सुनाते हो। हमारा बाप, टीचर, सतगुरू – सत बाप, सत टीचर, सत गुरू है। सत का संग ही तारता है अर्थात् मुक्ति-जीवनमुक्ति में ले जाता है। इस पुरानी दुनिया से सब वापिस जायेंगे। फिर आकर नई दुनिया में राज्य करेंगे। तुम्हारी यह रेस है, बेहद की घुड़दौड़ है। सब कहते हैं हम पहले पहुँचे, तो याद करना पड़े। स्टूडेन्ट को दौड़ाया जाता है। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना विजय माला में पिरोयेंगे। अच्छा!

मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार। तुम बहुत प्यारे बनते हो। हम सो पूज्य देवी-देवतायें थे फिर हम पूज्य दो कला कम क्षत्रिय चन्द्रवंशी बने। फिर हम पुजारी वैश्य वंशी, शूद्रवंशी बनें। अब फिर हम पुजारी से पूज्य बन रहे हैं श्रीमत से। यह चक्र बुद्धि में फिराना है। अच्छा – रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) भारत को आबाद करने में अपना तन-मन-धन सब सफल करना है। बहुत-बहुत मीठे बन सेवा करनी है। सच-खण्ड स्थापन करने के लिए सच्चा बनना है।

2) विजय माला में पिरोने लिए याद की रेस करनी है। चलते-फिरते कार्य करते बाप-टीचर-सतगुरू को याद करना है।

वरदान:-त्याग और तपस्या के सहयोग से सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले निरन्तर तपस्वीमूर्त भव
सेवाधारी अर्थात् त्याग और तपस्वीमूर्त। त्याग और तपस्या दोनों के सहयोग से सेवा में सदा सफलता मिलती है। तपस्या है ही एक बाप दूसरा न कोई, यही निरन्तर की तपस्या करते रहो तो आपका सेवास्थान तपस्याकुण्ड बन जायेगा। ऐसा तपस्याकुण्ड बनाओ तो परवाने आपेही आयेंगे। मन्सा सेवा से शक्तिशाली आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी। अभी मन्सा द्वारा धरनी का परिवर्तन करो – यही विधि है वृद्धि करने की।
स्लोगन:-नम्रता और धैर्यता की शक्ति से क्रोधाग्नि को शान्त बना दो।

इस मास की सभी मुरलियाँ (ईश्वरीय महावाक्य) निराकार परमात्मा शिव ने ब्रह्मा मुखकमल से अपने ब्रह्मावत्सों अर्थात् ब्रह्माकुमार एवं ब्रह्माकुमारियों के सम्मुख 18-1-1969 से पहले उच्चारण की थी। यह केवल ब्रह्माकुमारीज़ की अधिकृत टीचर बहनों द्वारा नियमित बीके विद्यार्थियों को सुनाने के लिए हैं।