murli 01-04-23

01-04-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
“मीठे बच्चे – लक्ष्य सोप से आत्मा रूपी वस्त्र को साफ करो, अन्दर में कोई भी मैल नहीं रहनी चाहिए”
प्रश्नः-पुरुषार्थी बच्चे कर्मों की किस गुह्य गति को जानते हुए पुरुषार्थ में सदा तत्पर रहते हैं?
उत्तर:-आत्मा पर अनेक जन्मों के पाप कर्मो का बोझ है, अनेक कड़े संस्कार हैं, उन संस्कारों को बिगर योग के परिवर्तन नहीं किया जा सकता। आत्मा पाप कर्म करते-करते बिल्कुल मैली हो चुकी है इसलिए इसको साफ करने की मेहनत करनी है। वह याद के सिवाए साफ नहीं होगी। याद में तूफान भी आयेंगे लेकिन कितने भी तूफान आयें वह पुरुषार्थ में सदा लगे रहेंगे।
गीत:-मैं एक नन्हा सा बच्चा हूँ… Audio Player

ओम् शान्ति। अब जो जो आकरके बाप के बच्चे बनते हैं वह खुद ही कहते हैं – हे बाबा, मैं अभी नया छोटा बच्चा हूँ। कोई एक मास का है, कोई 8 रोज़ का है, यहाँ तो सब छोटे हैं ना। नये बच्चे कहेंगे हम छोटे हैं। कोई को 20, कोई को 15 वर्ष हुए हैं। वृद्धि को पाते रहते हैं। कहते हैं बच्चा तो बना हूँ परन्तु हूँ छोटा बच्चा। हमको भी अपना वर्सा दे देना या हमारे ऊपर भी ज्ञान वर्षा करना। ज्ञान वर्षा तो होती है ना। इनको भाग्यशाली रथ कहा जाता है, जिसने ज्ञान गंगा लाई वा ज्ञान अमृत लाया, उनके नाम बहुत हैं। भागीरथ भी है, अर्जुन भी है, दक्ष प्रजापति भी कहते हैं। है तो एक ही प्रजापिता जो सभी को लक्ष्य देते हैं। बहुत बच्चे आते हैं जिनके वस्त्र बिल्कुल मैले पुराने हैं। कोई कपड़े कैसे हैं, कोई कैसे हैं! कोई तो ऐसे सड़े हुए हैं जो धोने से एकदम फट पड़ते हैं। बाप कहते हैं यह धोबीघाट कितने वर्षो से चलता आ रहा है। कपड़े धोते ही आये हैं। कोई तो अच्छे हो गये हैं। कोई को तो कितना भी साफ करो फिर भी मैले के मैले रह जाते हैं! ज्ञान की सोटी जोर से लगाओ तो फट पड़ते हैं। भाग जाते हैं। जो साफ नहीं होते, शुद्ध होकर औरों को शुद्ध नहीं बनाते तो समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है। जो खुद अच्छे बन जाते हैं वह औरों के भी कपड़े धोते रहते हैं। यह धोबीघाट भी है। आत्मा प्योर होने से फिर शरीर भी प्योर मिलता है। सांवरे से गोरे बन जाते हैं। सांवरे तो इस समय सभी हैं। बाप तो आये हैं बिल्कुल ही शाहन का शाह बनाने क्योंकि पाप आत्मा तो सब हैं ना। इस जन्म का तो पता लग जाता है। आगे के जन्मों का तो पता नहीं पड़ता है। समझाते हुए फिर भी नहीं समझते, नहीं सुधरते तो समझा जाता है – शायद आगे कोई पतित होंगे जो संस्कार सुधरते नहीं। जैसे गर्म तवे पर पानी पड़ते ही सूख जाता है।

भगवान आकर लक्ष्य सोप से साफ करते हैं। हर एक की नब्ज देखी जाती है। बाप तो बिल्कुल सहज समझाते हैं। बच्चे मुझे याद करने से आत्मा प्योर होती जायेगी। नष्टोमोहा भी होना है। मोस्ट बील्वेड बाप है, आधाकल्प भक्तों ने भक्ति की है, द्वापर से लेकर। वही फिर देवी-देवता बनने वाले हैं। मालूम पड़ जाता है। बाप कहते हैं उठते बैठते मुझ बाप को याद करो। जैसे कुमार कुमारी की सगाई हो जाती है तो एक दो की याद रहती है ना। यहाँ तो साजन को और ही छोड़ भागन्ती हो जाते हैं। जो साजन स्वर्ग का मालिक बनाते उनको याद ही नहीं करते। ऐसे और कोई कह न सके। मैं कल्प पहले मुआफिक अजामिल जैसी पाप आत्माओं का उद्धार करने आया हूँ। कोई का कपड़ा अच्छा है, कोई का मैला है। स्त्री कहती है – बाबा हमको पवित्र शुद्ध बनाओ। पुरुष फिर कहते मैं तो विकार बिगर रह नहीं सकता हूँ। झगड़ा पड़ जाता है। अबलाओं पर कितने अत्याचार होते हैं! जो पवित्र नहीं बनते वह कितने विघ्न डालते हैं! संन्यासियों को तो कोई रोक नहीं सकता। गवर्मेन्ट भी कह नहीं सकती कि तुम्हारे बाल-बच्चे की सम्भाल कौन करेगा? यहाँ इस पर झगड़ा होता है। एक पवित्र बनते, दूसरा फिर अजामिल पापी रह जाते। जो पक्के निश्चयबुद्धि बन जाते वह कोई की परवाह नहीं करते। बिल्कुल ही नष्टोमोहा हो जाते हैं। राजाई को भी ठोकर मार देंगे। भक्ति मार्ग में मीरा का मिसाल है। भक्ति मार्ग में ऐसे बहुत हुए हैं। यहाँ मुश्किल निकलते हैं। हाँ, ऐसे भी निकलेंगे, कहेंगे हमको तो पवित्र बनना है। फट से कहेंगे हमको राजाई की कोई परवाह नहीं है। जैसे उन राजाओं को रानियों की परवाह नहीं रही, छोड़ दिया, वैसे अब रानियां निकलेंगी जो राजाओं की परवाह नहीं करेंगी। बस, हम तो स्वर्ग के मालिक बनते हैं। भक्ति मार्ग में राजाओं के नाम हैं जिन्होंने संन्यास किया है। अभी तो यह है ज्ञान मार्ग। हर एक समझ सकते हैं हम कहाँ तक धोबी बने हैं? क्यों न अच्छा धोबी बनें। धोबियों में भी नम्बरवार होते हैं ना। विलायत में कपड़े धोने के लिए भेजे जाते हैं तो जरूर वह अच्छे कपड़े साफ करते होंगे। यहाँ भी ऐसे है। कोई तो झट साफ हो श्रीमत पर चल पड़ते हैं। पावन बन और बनाते हैं। पुरुष पवित्र नहीं बनते तो स्त्रियों को कितना सहन करना पड़ता है! आजकल तो बहुत सम्भाल रखनी पड़ती है क्योंकि हर एक मनुष्य 5 भूतों के वश है। क्रोध के वश भी बहुत नुकसान कर देते हैं। कहते हैं बाबा हम परवश हो गये। देह अहंकार आ जाता है। देह अहंकार आने से ही फिर और विकार आ जाते हैं। अपने को देही समझ बाप को याद नहीं करेंगे तो रजिस्टर खराब हो जायेगा। मन्सा में तूफान तो आयेंगे परन्तु कर्मेन्द्रियों से नहीं करना है।

बाप कहते हैं विश्व का मालिक बनना कोई मासी का घर थोड़ेही है। लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक बने हैं तो जरूर कुछ तो पुरुषार्थ किया है ना। बरोबर बाप बैठ स्वर्ग के लिए राजा रानी बनाते हैं तो बाप की श्रीमत पर चलना है। एक बाप की है श्रीमत। बाकी सब हैं भूत मत। श्रीमत को भूले और यह भूत आये। झट माया वार कर कांध नीचे करा देती है। अपने को देखना चाहिए मैं कहाँ तक मैला हूँ? अच्छे बच्चे कुमारका आदि हैं…. सर्विस कर रहे हैं। बच्चे मूत पलीती कपड़ों को धोने, 5 विकारों पर जीत पहनाने जाते हैं। कोई को काम का भूत आया तो एकदम नाम बदनाम कर देते हैं। गन्दा हो गया तो उनको बी.के. थोड़ेही कहेंगे। उनका फिर रजिस्टर एकदम खराब हो जाता है। बाबा कितना सटका मारते हैं साफ करने लिए। कहते हैं बाप को याद करो तो कपड़ा साफ होगा, नहीं तो भूत आते रहेंगे। धारणा नहीं होती है तो समझना चाहिए मैं कोई बहुत मैला हूँ। आगे जन्म में शायद हम बहुत गन्दे थे। शर्म आना चाहिए। पुरुषार्थ नहीं करते तो गन्दे के गन्दे रह जाते हैं। लायक नहीं बनते। तुम यहाँ आते हो लायक बनने। अच्छे कपड़े होंगे तो सूर्यवंशी वा चन्द्रवंशी बनेंगे। बाबा ने अब बेहद की विशाल बुद्धि दी है। सारी दुनिया के चक्र को तुम जान गये हो। मनुष्य कहते भी हैं – हे पतित-पावन, तो वह जरूर एक ही होगा, जिसको ही हेविनली गॉड फादर कहा जाता है। वह है निराकार। 5 हजार वर्ष हुए जबकि यह धोबीघाट निकला था। बाप कहते हैं 5-5 हजार वर्ष बाद धोबीघाट भारत में ही बनाता हूँ। इस योग से तुम एवर पावन बन जायेंगे फिर 21 जन्म तुमको पतित होना नहीं है। वहाँ माया है नहीं। पावन बनने बिगर तुम वैकुण्ठ जा नहीं सकेंगे। प्रजा तो बहुत बनती है, परन्तु इसमें राज़ी नहीं होना चाहिए।

गाते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा से राजाई के सुख घनेरे पायें, न कि प्रजा के। यह तो है ही दु:खधाम। भल धनवान हैं क्योंकि अच्छे कर्म किये हैं। यह है लौकिक राजाई, स्वर्ग की है पारलौकिक राजाई। दोनों कैसे मिलती हैं – यह भी तुम बच्चे जानते हो। बाप कहते हैं मेरी श्रीमत पर चलने से फिर 21 जन्म तुम सजायें नहीं भोगेंगे। ऐसे नहीं धन्धा आदि छोड़ यहाँ बैठ जाना है। बच्चों की तुमको पालना करनी है। तुम्हारी रचना है। धन्धाधोरी में घाटा वा फायदा तो होता ही है। सतयुग में तो है प्रालब्ध। वहाँ घाटे आदि की कोई बात नहीं। यहाँ तुम श्रीमत से इतना फायदा करते हो जो 21 जन्म घाटे की कोई बात नहीं। पूरा ज्ञान न लेने से फिर दर्जा कम मिलेगा। श्रीमत पर चलने से नष्टोमोहा बनते हो तो अच्छा ही पद पा लेते हो। उनका मान यहाँ ही होता है। नम्बरवार राजाई मिलनी है तो फालो करना चाहिए मात-पिता को। मदर फादर कर्म सीखते और सिखलाते हैं। कहते हैं श्रीमत पर चलो, विकारों में न जाओ। परहेज पर चलो। युक्तियां बहुत बतलाते रहते हैं। अविनाशी सर्जन बाबा है। बाकी सभी हैं पेशेन्ट्स। तुम मददगार बनते हो। तुम हो नायब सर्जन, नम्बरवार। सबसे तीखा अविनाशी सर्जन शिवबाबा एक ही है। सर्जनों में नम्बरवार होते हैं ना। कोई तो लाख भी कमाते, कोई तो अपना पेट भी पूरा नहीं भर सकते। कोई चलते-चलते बाप का हाथ छोड़ देते तो उनके लिए कहेंगे ना यह छी-छी मैले कपड़े हैं। बहुत जन्मों के संस्कार खींचते हैं ना फिर ज्ञान धारण नहीं कर सकते। ज्ञान का रंग चढ़ता नहीं। यह भी ड्रामा! बाबा आते ही हैं सुख देने लिए। साधुओं को भी निर्वाणधाम अपने सेक्शन में भेज देंगे। भारत का जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म है, वह प्राय:लोप हो गया है। अपने धर्म-कर्म से भ्रष्ट हो गये हैं। देवी-देवता कहलाने वाला कोई रहा नहीं है। न हो तब तो मैं आकर स्थापन करूं। तो जरूर और भी धर्म की आत्माओं को वापिस ले जाना पड़े। मनुष्य मुक्तिधाम में ही जाना चाहते हैं। बाप कहते हैं मैं इसके लिए ही आया हूँ। तो बच्चों को अपने से पूछना चाहिए – क्या आगे हम बहुत पतित थे, जो धारणा नहीं होती? मम्मा बाबा के तख्तनशीन बन नहीं सकते तो जाकर दास दासी बनेंगे। बाप कहते हैं मैं पतितों को पावन बनाने आया हूँ। इस शरीर का आधार लिया है। नहीं तो पतितों को पावन कैसे करूं? तुम बच्चे कहेंगे बाप द्वारा हम सो देवी-देवता पावन बन रहे हैं। अभी बने नहीं हैं, पुरुषार्थी हैं। श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनना है। यह नॉलेज बाप ही देते हैं। नॉलेजफुल एक गॉड फादर को कहा जाता है। वही सारे ब्रह्माण्ड, मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन, सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का समाचार सुनाते हैं। तुम भी नॉलेजफुल बन जाओ। कोई तो नॉलेजफुल बन जाते हैं, कोई तो बिल्कुल धारणा नहीं करते। समझेंगे उनकी तकदीर में नहीं है। अच्छे बच्चे बड़ा अच्छा पुरुषार्थ करते हैं। बाकी घरबार तो सम्भालना ही है। शुरू में इन्हों की 14 वर्ष भट्ठी रही। कपड़े धोते-धोते कितने अच्छे गोरे बन गये! कोई टूट पड़े, कोई मैले के मैले ही रहे। आजकल तो सात रोज़ भी मुश्किल ठहर सकते हैं। पहले तो पूरा भट्ठी थी। भट्ठी नहीं होती तो तुम तैयार कैसे होते? ईटें भट्ठी में पकती हैं ना। फिर कोई कच्चे रह जाते हैं, कोई टूट पड़ते हैं। यहाँ भी ऐसे हैं – बहुत कपड़े फट पड़ते, श्रीमत पर नहीं चलने से साफ नहीं होते हैं। अब आत्माओं की परमपिता के साथ सगाई कराई जाती है। शिवबाबा कहते हैं मैं तो एवर पावन हूँ। मुझे याद करते रहो तो तुम पावन बनते जायेंगे। गृहस्थ व्यवहार में रहते यह प्रैक्टिस करो। जो अच्छे बच्चे हैं वह तो झट प्रैक्टिस में लग जाते हैं। खुशी में रहते हैं। रात को जागकर अपनी आत्मा को धोते हैं। समझते हैं पवित्र बनेंगे तो कपड़ा भी पवित्र मिलेगा इसलिए बाबा कहते हैं नींद को जीतने वाले बनो। बाप को याद करो तो आत्मा पवित्र होगी। अमृतवेले का समय अच्छा है। उसी समय याद करने की राय देते हैं। नींद आये तो आंखों में तेल लगा लो। मतलब पुरुषार्थ करो। श्रीमत मिलती है याद करो। भल माया तूफान लाये तो भी तुम बाबा को याद करो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) श्रीमत पर पूरा नष्टोमोहा बनना है। परहेज और युक्ति से चलना है। रजिस्टर खराब होने नहीं देना है।

2) नींद को जीतने वाला बन अमृतवेले विशेष आत्मा को साफ बनाने के लिए बाप की याद में रहना है। ज्ञान-योग से आत्मा को पावन बनाना है।

वरदान:-एक ही संकल्प में स्थित हो महातीर्थ की प्रत्यक्षता करने वाले जिम्मेवार आत्मा भव
यह आबू विश्व के लिए लाइट हाउस है। इस महातीर्थ की प्रत्यक्षता करने के लिए सर्व ब्राह्मण बच्चों का एक ही संकल्प हो कि हर आत्मा को यहाँ से ठिकाना मिले। सबका कल्याण हो। जब यह शुभ आशाओं का दीपक हर एक के अन्दर जगे, सबका सहयोग हो तब कार्य में सफलता हो। सबके मन से यह आवाज निकले कि यह मेरी जिम्मेवारी है। जब हर एक स्वयं को ऐसा जिम्मेवार समझेंगे तब प्रत्यक्षता की किरण अब्बा के घर से चारों ओर फैलेगी।
स्लोगन:-अन्तर्मुखता की विशेषता को धारण कर लो तो सर्व की दुआयें मिलती रहेंगी।

सूचना:- इस मास की सभी मुरलियाँ (ईश्वरीय महावाक्य) निराकार परमात्मा शिव ने ब्रह्मा मुखकमल से अपने ब्रह्मावत्सों अर्थात् ब्रह्माकुमार एवं ब्रह्माकुमारियों के सम्मुख 18-01-1969 से पहले उच्चारण की थी। यह केवल ब्रह्माकुमारीज़ की अधिकृत टीचर बहनों द्वारा नियमित बीके विद्यार्थियों को सुनाने के लिए हैं।