MURLI 19-12-2023
19-12-2023 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
MURLI 19-12-2023 “मीठे बच्चे – सर्विस की वृद्धि के नये-नये तरीके निकालो, गांव-गांव में जाकर सर्विस करो, सर्विस करने के लिए ज्ञान की पराकाष्ठा चाहिए” |
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प्रश्नः- | बुद्धि से पुरानी दुनिया भूलती जाए – इसकी सहज युक्ति क्या है? |
उत्तर:- | घर को घड़ी-घड़ी याद करो। बुद्धि में रहे – अब मृत्युलोक से हिसाब-किताब चुक्तु कर अमरलोक जाना है। देह से भी बेगर, यह देह भी अपनी नहीं – ऐसा अभ्यास हो तो पुरानी दुनिया भूल जायेगी। इस पुरानी दुनिया में रहते अपनी परिपक्व अवस्था बनानी है। एकरस अवस्था के लिए मेहनत करनी है। |
गीत:- | माता ओ माता…….. |
ओम् शान्ति। जगत अम्बा की महिमा भारत में बहुत है। जगत-अम्बा को भारतवासियों के सिवाए कोई भी जानते नहीं। नाम सुना है जिसको ईव अर्थात् बीबी भी कहते हैं। अब तुम बच्चों की बुद्धि में है कि बीबी और मालिक के सिवाए रचना तो रची नहीं जा सकती। जरूर जगत अम्बा को प्रकट होना पड़े। जरूर थी तब तो गायन करते हैं। भारत की महिमा बहुत है। स्वर्ग भी कहते हैं और यह भी जानते हैं कि भारत ही प्राचीन था इसलिए जरूर हेविन होना चाहिए। यह तुम ईश्वरीय सन्तान बिगर कोई समझ न सके। जिन्होंने कल्प पहले समझा है वही आते रहेंगे। प्रदर्शनी चलती है। समझते हैं कल्प पहले भी की होगी। सबको समझाने के लिए अक्षर बहुत अच्छे हैं। पवित्र आत्मा, पवित्रता से तुम लाइट का ताज पाते हो। दूसरा पुण्य आत्मा उसको कहा जाता है जो दान-पुण्य करते हैं। उसको अंग्रेजी में फ्लैन्थ्रोफिस्ट भी कहा जाता है। पवित्र को वाइसलेस कहेंगे। अलग-अलग अक्षर हैं। भारत में दान-पुण्य होता तो बहुत है परन्तु अक्सर करके दान करते हैं गुरूओं को। अब उन्हें पवित्र आत्मा तो भल कहें परन्तु पुण्य आत्मा नहीं कह सकते। वह दान-पुण्य नहीं करते हैं वह तो दान-पुण्य लेते हैं। तो इन सबसे बुद्धियोग टूटकर बाप से जुट जाए, इसके लिए बाप को समझाना पड़ता है कि यह ठीक नहीं है। इन सबका उद्धार करने मैं आता हूँ। तुम ज्ञान सागर से निकली हुई ज्ञान गंगायें हो। वास्तव में गंगा अक्षर राइट नहीं है परन्तु गायन चला आता है इसलिए भेंट की जाती है। बाप आकर पुरानी दुनिया की पुरानी सब चीज़ों को नया बनाते हैं। स्वर्ग नई चीज़ है। नई चीज़ का समाचार बाप ही जानते हैं, दुनिया नहीं जानती।
भगवानुवाच है परन्तु गीता में श्रीकृष्ण का नाम डालने से सबका बुद्धियोग टूट गया है इसलिए सर्वव्यापी कह दिया है। श्रीकृष्ण के साथ बहुतों का बुद्धियोग है, जहाँ भी गीता का मान है तो जैसे श्रीकृष्ण का मान है। वास्तव में बाप के महिमा की टोपी बच्चे के ऊपर आ गई है। यह भी ड्रामा में नूँध है। यह बाप आकर समझाते हैं।
बाबा बार-बार समझाते हैं – जब कोई आते हैं तो हर एक का आक्यूपेशन पूछो इससे तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? बाबा ने प्रश्नावली अच्छी बनाई है। सर्विस तो बहुत अच्छी हो सकती है। सर्विस तो जगत अम्बा के मन्दिर में बहुत अच्छी हो सकती है, वहाँ जाकर समझाओ कि यह है जगत अम्बा सृष्टि को रचने वाली माता। कौन-सी दुनिया रचती है? जरूर नई रचना रचेगी। अच्छा, इस माता का पिता कौन है? इनको जन्म किसने दिया? मनुष्य तो मुख वंशावली का अर्थ भी नहीं समझते हैं। तुम जानते हो इनको परमपिता परमात्मा ने जन्म दिया है। तुम बच्चों को ही समझाना पड़े। जगत अम्बा मुख वंशावली है परन्तु कैसे? परमपिता परमात्मा तो निराकार है, समझाया जाता है ब्रह्मा तन से। परमपिता परमात्मा ने आकर जैसे इस ब्रह्मा को एडाप्ट किया, वैसे बच्ची को भी किया। यह बातें सबकी बुद्धि में स्थाई नहीं ठहरती। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। बच्चे सर्विस तो बहुत कर सकते हैं। जगत अम्बा के मन्दिर में परिचय देना चाहिए। तो उन्हों का भी बुद्धियोग बाप से जुटे। जगत अम्बा भी उनसे योग लगाती है तो हम भी उनसे योग लगायें। नीचे जगत अम्बा तपस्या में बैठी है, उनका मन्दिर ऊपर है। नीचे राजयोग की तपस्या कर रहे हैं फिर राज-राजेश्वरी स्वर्ग की मालिक बनी सतयुग में। अभी है कलियुग। फिर से जब तपस्या में बैठे तब तो स्वर्ग के मालिक बने ना। तुम्हारी बुद्धि में यह सारा ज्ञान रहना चाहिए। यह सच्ची राय मनुष्यों को दी जाती है। तुम हर एक का परिचय देते हो। परन्तु सबकी बुद्धि में कोई जल्दी थोड़ेही बैठ सकता है। बैठे तब जब सर्विस में लग जायें। चित्र भी बहुत अच्छे बने हुए हैं। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाकर समझा सकते हो। बाबा कहते हैं – मेरे भक्तों को सुनाओ। भक्त जरूर मन्दिर में ही मिलेंगे। उनको प्यार से समझाओ यह जो लक्ष्मी-नारायण के चित्र हैं, इनके लिए सभी कहेंगे यह स्वर्ग के मालिक थे। अच्छा, अब क्या है? जरूर कहेंगे कलियुग। कलियुग में दु:ख ही दु:ख है फिर इनको बादशाही कैसे मिली? तुम जानते हो तो सबको सुना सकते हो। एक को समझायेंगे तो सतसंग इकट्ठा हो जायेगा। फिर सब कहेंगे – हमारे पास आओ। मन्दिर में बड़ा मेला लगता है। राम के भी मन्दिर में जाकर उनका आक्यूपेशन बता सकते हो। आहिस्ते-आहिस्ते युक्ति से समझाना चाहिए। कई बच्चे लिखते भी हैं – बाबा, हमने ऐसे-ऐसे समझाया। एक को समझाने से फिर दूसरे निमंत्रण देते हैं। हमारे घर में भी सात रोज़ भाषण चले तो अच्छा है फिर वहाँ से और कोई निकलेगा। कोई भी निमंत्रण दे उनको ऐसा समझाना चाहिए जो छोड़े नहीं। भाषण करने से आस-पास वाले मित्र सम्बन्धी आदि भी इकट्ठे होंगे। ऐसे ही वृद्धि होती है। सेन्टर पर इतने नहीं आ सकते हैं। यह अच्छी युक्ति है। ऐसी मेहनत करनी चाहिए। मेहनत करने का ढंग मुश्किल किसको आता है। ज्ञान की पराकाष्ठा चाहिए। बाबा कितनी दूर से हमको सिखाने आया है। अगर सर्विस नहीं करेंगे तो ऊंच पद कैसे पायेंगे? स्कूल में बच्चे बहुत अच्छे चमत्कारी होते हैं, उछलते रहते हैं। यह भी पढ़ाई है, यह वन्डरफुल पढ़ाई है – इसमें बूढ़े, जवान, बच्चे सब पढ़ते हैं। गरीबों को और ही अच्छा चांस है। संन्यासी भी वास्तव में गरीब हैं। कितने बड़े-बड़े धनवान मनुष्य अपने पास बुलाते हैं। संन्यासियों ने घरबार छोड़ा बेगर हुए। कुछ भी उन्हों के पास नहीं है। तुम भी अभी बेगर हो फिर प्रिन्स बनते हो। वह भी बेगर हैं, इसमें पवित्रता की बात है। तुम्हारे पास और कुछ नहीं है। तुम देह को भी भूल जाते हो। देह सहित सब कुछ त्याग कर एक बाप के बनते हो। जितना एक बाप को याद करेंगे उतनी धारणा होगी। एकरस धारणा हो जाए उसके लिए मेहनत चाहिए। हमको बाबा के पास जाना है तो इस पुरानी दुनिया का ख्याल क्या रखें। जब तक परिपक्व अवस्था हो तब तक रहना इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर में है।
अब तुम्हें गृहस्थ व्यवहार में रहकर पवित्र बनना है। इस मृत्युलोक से हिसाब-किताब चुक्तू होता है। अब अमरलोक जाना है। घर को घड़ी-घड़ी याद करने से पुरानी दुनिया भूलती जायेगी। बोलो, गीता में बाबा ने क्या कहा है? भगवान् को बाबा कहा जाता है। निराकार बाबा कहते हैं – मामेकम् याद करो। योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। यह भगवान् के महावाक्य हैं कि इस पुरानी दुनिया और पुरानी देह को भी छोड़ो। देही-अभिमानी बनकर निरन्तर बाबा को याद करो। भगवान् है निराकार। आत्मा शरीर लेकर टॉकी बनती है। बाबा तो गर्भ से जन्म नहीं लेते। उनका नाम एक ही शिव है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को अपना सूक्ष्म शरीर है। यह है ही निराकार परमपिता परमात्मा। फिर उनका नाम है शिव। वही ज्ञान का सागर है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को रचता नहीं कहेंगे। रचयिता एक ही निराकार को कहा जाता है। वह फिर साकारी रचना कैसे रचे? तो ब्रह्मा द्वारा आकर समझाते हैं। श्रीकृष्ण तो हो न सके। ब्रह्मा के हाथ में ही वेद-शास्त्र दिखाते हैं। गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना, ब्रह्मा द्वारा सभी शास्त्रों का सार सुनाते हैं। निराकार सुनाते हैं साकार द्वारा। यह बातें अच्छी रीति धारण करनी पड़े। भगवानुवाच – मैं राजयोग सिखलाता हूँ। विनाश के पहले स्थापना भी जरूर चाहिए। पहले-पहले है स्थापना। बड़ा ही क्लीयर लिखते रहते हैं। ब्रह्मा द्वारा सूर्यवंशी घराने की स्थापना। लिखत में बड़ा अच्छा राज़ है परन्तु जबकि कोई मेहनत कर और सर्विस में लग जाए। सर्विस में लग जाने से फिर मजा आयेगा। मम्मा-बाबा को भी सर्विस में मजा आता है। बच्चों को भी सर्विस करनी है, मम्मा को तो मन्दिर में नहीं ले जायेंगे। मम्मा की तो बड़ी महिमा है, बच्चों को तो जाना ही पड़े। बाबा कहते हैं वानप्रस्थियों के पास जाकर उन्हों से प्रश्न पूछो फिर समझाओ कि कभी गीता अध्ययन की है? गीता का भगवान् कौन है? भगवान् तो एक ही निराकार होता है। साकार को भगवान् नहीं कहेंगे। भगवान् एक है। इसमें सर्विस का बहुत विचार सागर मंथन चलना चाहिए। प्रैक्टिस करनी है तो बाहर जाकर ट्रायल करनी चाहिए। जगत अम्बा का दर्शन करने रोज़ आते हैं। त्रिवेणी पर भी मनुष्य बहुत जाते हैं। वहाँ भी जाकर सर्विस करे, भाषण करे तो ढेर आकर इकट्ठे होंगे। निमंत्रण देते रहेंगे – हमारे पास आकर सतसंग करो। बाबा-मम्मा तो कहाँ जा नहीं सकते, बच्चे जा सकते हैं। बंगाल में काली का मन्दिर है वहाँ भी बहुत सर्विस कर सकते हो। काली कौन है? इस पर भाषण करो। परन्तु हिम्मत चाहिए। बाबा जानते हैं कौन समझा सकते हैं? जिनमें देह-अभिमान है वह क्या सर्विस कर सकेंगे? सर्विस का सबूत नहीं देते। सर्विस अगर पूरी नहीं की तो नाम बदनाम करेंगे। योगी में बल बड़ा अच्छा रहता है। समझाने के लिए प्वाइन्ट्स बहुत देते रहते हैं। परन्तु अच्छे-अच्छे महारथी भी भूल जाते हैं। सर्विस तो बहुत है, इसको कहा जाता है बेहद की सर्विस फिर वह मान भी बहुत पाते हैं। मुख्य है पवित्रता की बात। चलते-चलते टूट पड़ते हैं। लौकिक बाप से कभी किसको भी निश्चय नहीं टूटता। यहाँ बाबा के पास जन्म लेते हैं। ऐसे बाप को फिर घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं क्योकि विचित्र है ऐसे बाप का चित्र नहीं है। बाप कहते हैं मुझे याद करो और तुम पवित्र बनो तो मेरे पास आ जायेंगे। आत्मा समझती है – हमने ही 84 जन्मों का पार्ट बजाया है। आत्मा में पार्ट नूंधा हुआ है। शरीर में थोड़ेही पार्ट है। इतनी छोटी सी आत्मा में कितना भारी पार्ट है! यह बुद्धि में कितना नशा रहना चाहिए, व्यवहार के साथ-साथ यह सर्विस भी कर सकते हैं। माँ-बाप तो कहाँ भी नहीं जायेंगे। बच्चे कहाँ भी जाकर सर्विस कर सकते हैं। बच्चों को ही लकी स्टार्स कहा जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे ज्ञान लकी सितारों को मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देह-अभिमान छोड़ सर्विस करनी है। विचार सागर मंथन कर बेहद की सर्विस का सबूत देना है।
2) इस मृत्युलोक से पुराने सब हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं। पुरानी देह और पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूलते जाना है।
वरदान:- | एक की स्मृति द्वारा एकरस स्थिति बनाने वाले ऊंच पद के अधिकारी भव एकरस स्थिति बनाने के लिए सदा एक की स्मृति में स्थित रहो। अगर एक के बजाए दूसरा कोई भी याद आया तो एकरस के बजाए बहुरस स्थिति हो जायेगी। जिस समय और कोई रस अकर्षित करता है, उसी समय यदि आपका अन्तिम समय आ जाए तो ऊंच पद नहीं मिल सकता, इसलिए हर सेकण्ड अटेन्शन रखो। सदैव एक का पाठ पक्का हो, एक बाप, एक ही संगम का समय है और एकरस स्थिति में रहना है तो ऊंच पद का अधिकार मिल जायेगा। |
स्लोगन:- | शुद्ध सकंल्पों का भोजन स्वीकार करने वाले ही सच्चे-सच्चे वैष्णव हैं। |