18-06-2023

18-06-23प्रात:मुरलीओम् शान्ति”अव्यक्त-बापदादा”रिवाइज: 18-01-95 मधुबन

ज्ञान सरोवर उद्घाटन के शुभ मुहूर्त पर अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य (सुबह 11.00 बजे)

आज स्नेह सम्पन्न दिवस पर स्नेह के सागर बापदादा अपने अति स्नेही, स्नेह में समाए हुए लवलीन बच्चों से मिलने आए हैं। सबके स्नेह के गीत बापदादा सुनते रहे हैं और सुनते रहेंगे। हर एक बच्चे का स्नेह बापदादा देख, बाप भी गीत गाते हैं वाह मेरे स्नेही बच्चे वाह! बच्चों ने भी आज के समर्थ दिवस को सेवा में साकार किया है और करते रहेंगे। ब्रह्मा बाप भी बच्चों के गुण-गान करते हैं। लेकिन साकार रूप से अव्यक्त रूप में और समीप वा साथ का विशेष अनुभव करा रहे हैं। क्या बच्चों को ऐसे लगता है कि बाप साथ नहीं है? लगता है? साथ जन्म लिया है, साथ सेवाधारी साथी रहे हैं और आगे भी साथ-साथ हैं और साथ चलेंगे। ब्रह्मा बाप को भी अकेला अच्छा नहीं लगता। आप लोगों को लगता है अकेले हैं? साथ हैं, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, साथ-साथ राज्य करेंगे। शिव बाप को आराम देंगे और आपके साथ ब्रह्मा बाप भी राज्य करेंगे। अपना राज्य याद है ना? आज सेवाधारी हैं और कल राज्य अधिकारी हैं। अपना राज्य सामने दिखाई दे रहा है ना? अपने राज्य का वो स्वर्ग का स्थान, स्वर्ग का दिव्य शरीर रूपी चोला सबके सामने स्पष्ट है ना। बस धारण किया कि किया। ऐसे अनुभव होता है ना? अपना भविष्य स्पष्ट है ना? आज वर्तमान है और कल भविष्य वर्तमान हो जायेगा – निश्चय है ना? पक्का निश्चय है?

सब पुराने-पुराने पक्के आए हैं ना। बापदादा को भी, विशेष ब्रह्मा बाप को भी खुशी है कि स्थापना के एक हैं आदि साथी रत्न, जो सामने बैठे हैं और दूसरे हैं स्थापना की वृद्धि के श्रेष्ठ रत्न। तो इस संगठन में ब्रह्मा बाप दोनों प्रकार के रत्नों को देख हर्षित हो रहे हैं। और बच्चे भी कितने उमंग-उत्साह से, शरीर का भी, सैलवेशन का भी ख्याल न करते हुए ठण्डी-ठण्डी हवाओं में पहुँच गए। ये ठण्डी हवाएं आप बच्चों से सलाम करने आती हैं। वैसे भी देखो जब राज्य तख्त पर बैठते हैं तो पीछे से क्या होता है? चंवर झुलाते हैं ना, तो उससे ठण्डी-ठण्डी हवाएं तो होती है। तो ये ठण्डी हवाएं भी चंवर झुलाने आती हैं क्योंकि आप सब भी ऊंचे ते ऊंची विशेष आत्माएं हो। नशा है ना? तो आज ब्रह्मा बाप विशेष अपने जन्म के साथी और सेवा के साथी (सेवा के निमित्त पहले रत्न और जन्म के समय के पहले रत्न) दोनों को देख-देख हर्षित होते हैं।

अच्छा, यह हॉल भी राज दरबार माफिक बनाया है। (ज्ञान सरोवर का ऑडोटोरियम हॉल) राज दरबार लगती है तो गैलरी में बैठते हैं, तो गैलरी वाले भी अच्छे लग रहे हैं। (हॉल में सभी भाई बैठे हैं, मातायें सब बाहर बैठी हैं) अच्छा आज तो माताओं के त्याग का भाग्य उन्हों को अभी मिल ही जाएगा। अच्छी तरह से तपस्या कर ही रही हैं। तपस्या का फल मिल जाएगा। ठण्डी-ठण्डी हवा आ रही है तो धूप भी आ रही है। अच्छा।

ज्ञान सरोवर कहेंगे या स्नेह का सरोवर कहेंगे? ज्ञान सरोवर में स्नेह का सरोवर अच्छा है। ये ज्ञान सरोवर सेवा का विशेष लाइट हाउस और माइट हाउस है। इस धरनी से अनेक आत्माओं के भाग्य का सितारा चमकेगा। अनेक आत्माएं अपने बिछुड़े हुए बाप से मिलन मनायेंगी। अनेक आत्माओं के दु:ख दूर करने वाली धरनी है। सरोवर में आते ही सुख की लहरों में लहराने का अनुभव करते रहेंगे। इस ज्ञान सरोवर द्वारा तीन प्रकार के लोग, तीन प्रकार की प्राप्ति के अधिकारी बनेंगे – कोई वर्से के अधिकारी, कोई वरदानों के अधिकारी और कोई सिर्फ दुआओं के अधिकारी। तो तीन प्रकार के प्राप्ति सम्पन्न। ये श्रेष्ठ सरोवर है। साधारण आत्माएं आयेंगी और फ़रिश्ता जीवन का अनुभव कर जायेंगी। साथ-साथ अनेक ब्राह्मण आत्माएं तपस्या के सूक्ष्म अनुभूतियों द्वारा अव्यक्त पालना और सूक्ष्म योग के सहज अनुभव और प्राप्तियों का लाभ लेंगी। कई ब्राह्मण आत्माओं की श्रेष्ठ आशायें स्व उन्नति की पूर्ण होने का साधन बहुत श्रेष्ठ है। स्थान तो कॉमन है लेकिन स्थिति श्रेष्ठ अनुभव कराने वाला है। विधि-पूर्वक ज्ञान के नॉलेज को विश्व में प्रत्यक्ष करने का स्थान है। और सबसे पहला फायदा तो बाप और बच्चों के मिलने का है। देखो, डबल संख्या में मिल तो रहे हैं ना! चाहे बाहर बैठे हैं या कहाँ भी रहे हैं, डबल संख्या तो है ना। तो सबसे प्रत्यक्षफल बच्चों की संख्या डबल मिलन मना रही है। समझा? ऐसे सरोवर में, सरोवर बनाने वालों को, सहयोग देने वालों को, संकल्प से हिम्मत दिलाने वालों को, स्नेह के हाथों से सरोवर को सम्पन्न करने वाले देश विदेश के बच्चों को पद्मगुणा मुबारक हो, मुबारक हो।

यह पहला ही स्थान है जिसमें छोटे बच्चों से लेकर जो भी ब्राह्मण हैं, उनके सहयोग का तन-मन-धन लगा है। तन से ईटें नहीं भी उठाई हैं लेकिन तन से अपने-अपने साथियों को साथी बनाया है, उमंग दिलाया है तो ऐसे स्नेह, सहयोग, शक्ति की बूँद-बूँद से सजा हुआ सरोवर श्रेष्ठ सफलता का अनुभव कराता रहेगा। तो सभी सहयोगियों को, कोने-कोने के विदेश, देश वालों को और विशेष जिन्होंने ठण्डी-ठण्डी हवाओं में, बारिश में भी हिम्मत नहीं हारी है, उन्हों को विशेष मुबारक है, मुबारक है। बापदादा जानते हैं बच्चों ने थोड़ी तकलीफ तो उठाई लेकिन प्यार से उठाई है। मोहब्बत में मेहनत का अनुभव नहीं किया है और जहाँ हिम्मत है वहाँ बापदादा की पद्मगुणा मदद भी है ही इसलिये बापदादा मसाज़ करते रहे हैं, करते रहेंगे। अच्छा, यहाँ के इंजीनियर्स हाथ उठाओ। समय पर सम्पन्न करने की बहुत-बहुत मुबारक हो। आपको बैठने योग्य तो बना कर दे दिया ना! बाप तो आ गए ना! वायदा ही ये था। आप सब भी इन्हों को मुबारक दे रहे हो ना! जिन्होंने हॉल को सजाया वो कहाँ है? ये मुन्नी पार्टी है। देखो, स्नेह का सरोवर है ना तो कलकत्ता से यहाँ फूल आ गए। (कलकत्ता से बहुत सुन्दर रंग-बिरंगे फूल आये हैं जिससे सारी स्टेज सजी हुई है) अच्छा! आप सबको भी पहुँचने की मुबारक है और माताओं को पद्मगुणा मुबारक है।

(जाल मिस्त्री, जिन्होंने हॉल में साउण्ड का प्रबन्ध किया है) देखो अगर इनकी हिम्मत नहीं होती तो आप मुरली नहीं सुन सकते थे। सभी मुरली के पीछे तो दीवाने हैं ना। मुरली का साधन सबसे श्रेष्ठ है। कितना अच्छा प्रबन्ध किया है। आराम से सुनने आ रहा है। बाहर भी सुनाई दे रहा है। ये तो बहुत अच्छा प्रबन्ध किया है। जो भी सेवा के निमित्त हैं एक-एक डिपार्टमेन्ट का नाम नहीं लेते हैं लेकिन हर एक समझे मुझे स्नेह और सहयोग की मुबारक। अच्छा, सबसे पहली मुबारक किसको दें? दादी को। (बापदादा को) बापदादा तो देने वाला है ना। बापदादा सदा कहते हैं कि बच्चों का नम्बरवन सर्वेन्ट है तो बाप है। बाप तो सदा सेवाधारी है लेकिन बच्चे भी सेवा में बाप से भी आगे सहयोगी हैं। क्या एक-एक का नाम लें लेकिन दिल में एक-एक बच्चे का नाम ले रहे हैं और याद-प्यार दे रहे हैं। सभी डिपार्टमेन्ट को मुबारक है। लाइट के बिना भी काम नहीं, माइक के बिना भी काम नहीं। लाइट, माइट, माइक सभी को मुबारक।

(टीचर्स से) आप लोग नहीं होते तो सेन्टर्स नहीं खुलते। एक-एक ने देखो कितने सेन्टर्स खोले हैं। यहाँ सेवा की राजधानी और वहाँ राज्य की राजधानी होगी। अच्छा। पाण्डव भी देख रहे हैं। अच्छे-अच्छे पाण्डव भी पहुँच गये हैं। पाण्डव के बिना भी गति नहीं लेकिन पाण्डवों ने शक्तियों को आगे रखा है। आप लोगों ने रखा है कि बाप ने रखा है? फॉलो फादर किया है। वैसे आप सभी भी बाप के समीप बैठे हो। ऐसे नहीं समझना ये ही हैं समीप। लेकिन जो सामने हैं वो अति समीप हैं।

डबल फारेनर्स भी आए हैं। यह भी कमाल कर रहे हैं। देश-विदेश में प्रत्यक्ष करने की सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैं और करते रहेंगे। अच्छा! (फिर बापदादा ने ज्ञान सरोवर की विशाल स्टेज पर खड़े होकर इंजीनियर्स के साथ मोमबत्ती जलाई तथा मुख्य टीचर्स एवं दादियों के साथ केक काटी, फिर मुख्य दादियां बापदादा के साथ हॉल के बाहर प्लाज़ा में आई, जहाँ पर बापदादा ने 2 हज़ार से भी अधिक संख्या में बैठी हुई माताओं से हाथ हिलाते हुए मुलाकात की तथा ध्वज़ फहराया, तत्पश्चात् जो महावाक्य उच्चारण किये वह इस प्रकार हैं):-

बापदादा, आप सभी बच्चों के दिल में जो बाप के स्नेह का झण्डा लहरा रहा है, उसको देख हर्षित हो रहे हैं। यह सेवा के लिए है और बाप बच्चों के बीच में दिल में स्नेह का झण्डा है। तो जैसे यह फ्लैग सेरीमनी करते हो तो ऊंचा लहराते हो ना, ऐसे ही सदा स्नेह में ऊंचे ते ऊंचा लहराते रहो। यह झण्डा भी बाप को प्रत्यक्ष करने का झण्डा है। यह कपड़े का झण्डा है लेकिन इस कपड़े के झण्डे में आप सबका आवाज़ समाया हुआ है कि “बाप आ गये हैं।” यही प्रत्यक्षता का झण्डा अभी कोने-कोने में लहरायेगा। और आप सभी वह लहराया हुआ प्रत्यक्षता का झण्डा देखेंगे, सुनेंगे, हर्षित होंगे। तो आज ज्ञान सरोवर में है, कल विश्व में यह झण्डा लहरायेगा। आप सभी को तपस्या करनी पड़ी उसकी मुबारक लेकिन बहुत आराम से अच्छे बैठे हो और जितना आपको देखने में आ रहा है उतना अन्दर पीछे वालों को नहीं। आप बाहर नहीं थे लेकिन दिल के अन्दर थे। सब बहुत-बहुत खुशनसीब हो इसलिये सदा खुशी बांटते रहना। खुश रहना और खुशी बांटते रहना। (फिर बापदादा ने चारों ओर बने भवनों पर अपनी दृष्टि डाली तथा पुन: हॉल में आकर सभी इंजीनियर्स को अपने हस्तों से टोली खिलाई)

ज्ञान सरोवर में सेवाओं प्रति बापदादा के इशारे

ज्ञान सरोवर का ऐसा प्रोग्राम बनाओ जो विश्व में ऐसा सेवा समाचार किसी स्थान का नहीं हो। चाहे यू.एन. हो या उससे भी बड़ा स्थान हो, उससे भी बड़ा हो जाये। इसमें सबका तन भी लगा है, मन भी लगा है और छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी का धन भी लगा है। तो जैसे सबके सहयोग की अंगुली लगी है तो सेवा में भी सबके सहयोग की अंगुली लगनी ही है। प्लैन देते रहो लेकिन प्लैन बनाने के टाइम, देने के टाइम, मालिक बनकर दो और जब फाइनल मैजारिटी करे तो बालक बन जाना। बालक क्या करता है? हाँ जी। और मालिक क्या कहता है? नहीं, ऐसा करो। तो बालक और मालिक। प्लैन देना अच्छा है लेकिन प्लैन होना ही चाहिये, ये सोच के नहीं। जो होगा वो अच्छा। किनारा नहीं करो, प्लैन दो लेकिन बालक भी बनो, मालिक भी बनो। बनाने के टाइम मालिक और फाइनल के टाइम बालक। बालक और मालिक बनना आता है? कि सिर्फ मालिक बनना आता है? क्योंकि सभी होशियार हो गये हैं ना। मालिक जल्दी बन जाते हैं। तो सेवा भी करनी है और सेवा के पहले स्वयं परिवर्तक। दोनों ही चाहिये ना!

मधुबन निवासी भाई बहनों से:- (बापदादा ने आबू के भिन्न-भिन्न स्थानों पर सेवा में उपस्थित भाई-बहिनों से हाथ उठवाया) देखो, पीस पार्क भी कम नहीं है। लण्डन अमेरिका सबको भूल जाता है। जो पीस पार्क देखते हैं तो कॉपी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन कितनी भी कॉपी करें, रूहानियत की झलक तो आ नहीं सकती, प्यार की झलक तो आ नहीं सकती। तो मेहनत का फल मिल रहा है। मेहनत तो अच्छी की है। प्यार से मेहनत की है ना। सिर्फ पानी नहीं दिया है लेकिन प्यार का पानी दिया है इसीलिये वायुमण्डल न्यारा और प्यारा है। और ज्ञान सरोवर वाले भी बहुत प्यार से मेहनत कर रहे हैं। अच्छी रिजल्ट है। और निश्चयबुद्धि सबसे नम्बरवन हैं। कितना भी कोई जाकर हिलाता है – नहीं तैयार होगा, नहीं तैयार होगा, जितना वो ना करते हैं उतना ये हाँ करते हैं इसलिये निश्चय की विजय होती है। तैयार होना ही है, बाप को आना ही है इसलिये मुबारक हो निश्चय की। अच्छा। तलहटी वाले भी मौज में आ गये हैं, मेला मनाने की तैयारी कर रहे हैं। अच्छा है, रौनक तो चाहिये ना। कोई नवीनता चाहिये ना। ओम् शान्ति भवन के हॉल में तो सदा बैठते ही हो। लेकिन नवीनता भी चाहिये ना। और कितनी आत्माओं का संकल्प पूरा हो जायेगा। उलहने कम हो जायेंगे। तो तलहटी में ठीक तैयारी हो रही है? बड़ी बात तो नहीं लगती? खुशी में मुश्किल भी सहज हो जाती है। अच्छा। आबू निवासी क्या कर रहे हैं? सहयोग का साथ दे रहे हैं। कभी भी कोई कार्य होता है तो आबू निवासी कार्य कर लेते हैं। अच्छा है, म्यूजियम भी अच्छी सेवा कर रहा है, म्यूजियम वाले बच्चे भी मेहनत अच्छी करते हैं। म्यूजियम तो चलता-फिरता एक सेवा का स्थान है। इस म्यूजियम ने भी कितने सेवाकेन्द्र खोले होंगे। कितनी आत्माओं की धरनी परिवर्तन कर दी है। यहाँ का प्रभाव वहाँ स्थानों पर भी काम में आता है क्योंकि यहाँ आने वाले फ्री होते हैं तो बुद्धि फ्री होने के कारण प्रभाव अच्छा पड़ता है फिर वही वहाँ काम में आता है। तो म्यूजियम की सेवा भी कम नहीं है। सभी स्थानों की सेवा अच्छी है। यहाँ (ओम् शान्ति भवन में) भी जो ग्रुप समझाते हैं, वो भी अच्छी सेवा है। तो सब जगह सेवा सहज होती जाती है, प्रभाव पड़ता जाता है। अच्छा है।

अच्छा, मधुबन वाले क्या करेंगे? मधुबन वाले सदा ही अपने को आधारमूर्त और उदाहरणमूर्त समझो। साकार कर्म में मधुबन निवासी उदाहरण हैं और आधारमूर्त भी हैं क्योंकि जो भी रूहानी साधन चाहिये वो सब तो मधुबन से ही जाते हैं इसलिये मधुबन वाले ये नहीं समझें कि हम मधुबन के कमरे में हैं या पाण्डव भवन के अन्दर रहते हैं लेकिन हर कर्म में, हर संकल्प में, हर बोल में आधारमूर्त हो। हर एक जो विशेषता देखते हैं कर्म में, वाणी में, वो प्रैक्टिकल मधुबन में ही देखते हैं। तो सदा हर समय आधारमूर्त भी हो और उदाहरणमूर्त भी हो। चाहे अच्छा करते हो तो भी उदाहरण बनते हो और मिक्स करते हो तो भी उदाहरण। उदाहरण सभी मधुबन का ही देते हैं। इसीलिये इतना जिम्मेदारी का बड़ा ताज मधुबन निवासियों को पड़ा हुआ है। अच्छा – संगम भवन के थोड़े हैं लेकिन सेवा बहुत अथक करते हैं। संगम निवासी भागदौड़ का काम अच्छा करते हैं।

अच्छा, हॉस्पिटल का क्या हालचाल है? हॉस्पिटल बहुत अच्छा है कि अच्छा है? देखो, हॉस्पिटल की विशेषता क्या है? वैसे सोचते हैं कि पेशेन्ट कोई नहीं हो, और हॉस्पिटल सोचती है कि पेशेन्ट आवें। अगर पेशेन्ट नहीं आते तो उदास हो जाते हैं। पेशेन्ट को पेशन्स में लाते हैं। तो हॉस्पिटल में सिर्फ पेशेन्ट नहीं लेकिन पेशन्स धारण करने वाले पेशेन्ट भी आते हैं। अच्छा है, सबसे ज्यादा हॉस्पिटल का फायदा ब्राह्मणों को है। एम्बुलेन्स में बैठे और पहुँच गये। अच्छी मदद है। एक तो ब्राह्मणों को मदद है और दूसरा जो लोग समझते हैं कि ये कुछ नहीं करते हैं वो समझते हैं कि हाँ ये करते हैं, बहुत करते हैं। हॉस्पिटल ने सेवा बढ़ाई ना। ‘कुछ नहीं’ को ‘करते हैं’ में परिवर्तन कर लिया। ऐसे है ना। अच्छा है, हॉस्पिटल वाले अगर फुर्सत मिलती है तो मन्सा सेवा बहुत करो। उससे फुर्सत नहीं मिलेगी। अच्छा।

वरदान:-कमजोर संकल्पों की जाल को समाप्त कर परतंत्रता के बंधन से मुक्त होने वाले स्वतंत्र आत्मा भव
परतंत्रता का बंधन अपने ही मन के व्यर्थ कमजोर संकल्पों की जाल है। यह जाल क्वेश्चन के रूप में होती है। जब क्वेश्चन उठता है – पता नहीं क्या होगा, ऐसे तो नहीं होगा…..तो जाल बन जाती है। लेकिन संगमयुगी ब्राह्मणों का एक ही समर्थ संकल्प हो कि जो होगा वह कल्याणकारी होगा, श्रेष्ठ वा अच्छे से अच्छा होगा – इस समर्थ सकल्प से जाल को समाप्त कर दो तो बन्धनमुक्त स्वतंत्र आत्मा बन जायेंगे।
स्लोगन:-ज्ञानी और योगी तू आत्मा का प्रैक्टिकल स्वरूप नम्रता और निर्भयता है।

सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सभी राजयोगी तपस्वी भाई बहिनें सायं 6.30 से 7.30 बजे तक, विशेष योग अभ्यास के समय अनुभव करें कि मैं फरिश्ता विश्व ग्लोब के ऊपर विराजमान हूँ। मेरे नयनों से स्नेह वा प्रेम की शक्तिशाली किरणें निकलकर संसार की सर्व आत्माओं पर पड़ रही है जिससे वे आध्यात्मिक शक्ति से सम्पन्न होकर भगवान के असीम प्यार का अनुभव कर रही हैं।

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