26-06-2023

26-06-2023प्रात:मुरलीओम् शान्ति“बापदादा”‘मधुबन
मीठे बच्चे – तुमने ईश्वर की गोद ली है मनुष्य से देवता बनने के लिए, उनकी श्रीमत ही तुम्हें मनुष्य से देवता बना देती है“
प्रश्नः-आप मुये मर गई दुनिया – इसका अर्थ क्या है?
उत्तर:-आप बच्चे जब बाप के पास जीते जी मरते हो तो सारी दुनिया ही खत्म हो जाती है। दूसरे मनुष्य तो जिस दुनिया में मरते हैं उसी दुनिया में जन्म लेते, लेकिन तुम्हारा जन्म फिर इस पुरानी दुनिया में नहीं होता। नया जन्म नई दुनिया में होता है। तुम बच्चों को स्वर्ग की बादशाही मिल जाती है।
गीत:-मरना तेरी गली में….. Audio Player

ओम् शान्ति। यह भी गायन इस समय का है, जो फिर भक्ति मार्ग में गाया जाता है। इस समय जबकि तुम बाप के पास जीते जी मरते हो तो बरोबर सारी दुनिया ही खत्म हो जाती है। अज्ञान काल में मनुष्य मरते हैं तो फिर उसी ही दुनिया में जन्म लेते हैं। दुनिया कायम है। जिस दुनिया में मरते उसी दुनिया में जन्म लेते हैं। तुम बच्चे जब बाप के बनते हो तो यह दुनिया ही खत्म हो जाती है। कहावत है – आप मुये तो मर गई दुनिया.. परन्तु दुनिया विनाश तो नहीं हो जाती। इस ही दुनिया में फिर जन्म लेना पड़ता है। अभी तुम जबकि जीते जी मरते हो, तो आप मर जाते हो तो दुनिया भी खत्म हो जाती है। तुम मरेंगे तो यह दुनिया ही खत्म हो जायेगी। तुम जानते हो – हम फिर नई दुनिया में आयेंगे। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही जानते हो। ईश्वर का बच्चा होने से हमको सतयुग का बर्थ राइट मिलता है। स्वर्ग की बादशाही मिलती है। नर्क खत्म हो जाता है। इसमें कोई मेहनत नहीं है, सिर्फ बाप को याद करना है। मनुष्य जब कोई मरने पर होते हैं तो उनको कहते हैं राम-राम कहो। पिछाड़ी में उठाने समय कहते हैं – राम नाम सत है… यह भगवान को ही कहते हैं। राम नाम सत है अर्थात् परमपिता परमात्मा जो सत है उसका ही नाम लेना चाहिए। उसको राम कह देते हैं। माला भी राम-राम कह सिमरते हैं। राम-राम की धुनि ऐसी लगाते हैं जैसे बाजा बजाते हैं। तुम बच्चों को बाप समझाते हैं कि कोई आवाज नहीं करना है। सिर्फ बुद्धि से याद करना है। तुम जानते हो – जीते जी ईश्वर की गोद में आने से यह दु:ख रूपी दुनिया खत्म हो जाती है। बाबा हम आपके गले का हार बन जायेंगे। गाया भी जाता है रुद्र माला। तुम रुद्र माला में पिरोने लिए इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो कल्प पहले मुआफिक। दूसरा कोई सतसंग नहीं जहाँ ऐसे समझते हो कि हम ईश्वर बाप के गले में पिरोयेंगे। बाप से तो जरूर वर्सा मिलेगा। बाप – कौन कहते हैं? आत्मा। आत्मा में ही मन-बुद्धि है ना। बुद्धि समझती है फिर कहती है। पहले संकल्प आता है फिर कर्मेन्द्रियों से कहा जाता है – बरोबर हम बाबा के बने हैं, बाबा के ही होकर रहेंगे। गॉड फादर कहते हैं ना। फिर पूछो तुम्हारे में गॉड फादर की नॉलेज है? तो कहेंगे गॉड तो सर्वव्यापी है। बोलो – तुम्हारी आत्मा कहती है परमपिता परमात्मा तो पिता है, फिर सर्वव्यापी कैसे होगा? बच्चे में बाप आ गया क्या? बाप को सर्वव्यापी कहना बिल्कुल रांग है। लौकिक बाप के भी 5-7 बच्चे होंगे। क्या वह कहेंगे कि बाबा आप सर्वव्यापी हो? यह भी समझने की बात है। मुख से कहते हो परमपिता, फिर सर्वव्यापी कैसे कहते हो? पिता फिर मेरे में है – यह कैसे हो सकता! बच्चा फिर कहे मेरे में बाप का प्रवेश है, बच्चा थोड़ेही कहेगा मैं बाप हूँ। तुम आत्मा उनके बच्चे हो। फिर कहते हो पिता मेरे में भी है। बाप कैसे बच्चे में होगा? बहुत अच्छी रीति समझकर फिर समझाना है।

रुद्र ज्ञान यज्ञ तो मशहूर है। रुद्र है निराकार। श्रीकृष्ण तो साकार है। आखरीन भगवान किसको कहा जाये? मनुष्य तो बहुत भूले हुए हैं, कह देते गॉड फादर इज़ ओमनी प्रेजेन्ट, मेरे में भी है। बाप तो घर में ही रहता और कहाँ रहेंगे। अभी बाप इस बेहद के घर में आया हुआ है। यहाँ विराजमान है। कहते हैं मैंने इसमें प्रवेश किया है। कुछ पूछना हो तो पूछो। आगे पित्रों को बुलाने का बहुत रिवाज था। पित्र तो आत्मा है ना। पित्र को यानी आत्मा को खिलाया जाता है। कहेंगे आज हमारे दादे का पित्र है, आज फलाने का पित्र है। तो आत्मा को बुलाया जाता है, खिलाया जाता है। समझो किसका स्त्री से प्यार है, उसकी आत्मा को बुलाते हैं। कहते हैं हमने हीरे की फुल्ली पहनाने का वायदा किया था, ब्राह्मण को बुलाकर उसे हीरे की फुल्ली पहनाते हैं। बुलाया तो आत्मा को ना। शरीर थोड़ेही आया। यह रस्म भारत में ही है। जैसे तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो। कोई मर गया तो उनका भोग लगाते हो। सूक्ष्मवतन में वह आत्मा आती है। यह है बिल्कुल नई-नई बातें। जब तक कोई अच्छी रीति न समझे तब तक संशय उठता है। यह क्या करते हैं? ब्राह्मणों की रस्म-रिवाज देखो कैसी है।

इस समय सभी मनुष्य-मात्र तमोप्रधान हैं। बाबा तो है ही पतित-पावन। वह कभी तमोप्रधान नहीं होते। मनुष्य को पतित-पावन नहीं कहेंगे। पतित-पावन माना सारी दुनिया को पतित से पावन बनाने वाला। वह तो एक बाप के सिवाए दूसरा कोई हो न सके। धर्म स्थापक तो आते हैं अपना-अपना धर्म स्थापन करने। क्रिश्चियन धर्म का सिजरा वहाँ है। पहले क्राइस्ट आया, फिर उनके पिछाड़ी भी आते रहेंगे। वृद्धि को पाते रहेंगे। वह कोई पतित को पावन नहीं बनाते। नम्बरवार उन्हों की संख्या आती है। पतित-पावन तो इस समय चाहिए, जबकि सब कब्रदाखिल हो जाते हैं। सबको पावन बनाने वाला एक ही है। यह तो समझते हो बरोबर इस समय सारी दुनिया जड़जड़ीभूत है। बनेन ट्री का मिसाल देते हैं। बहुत बड़ा झाड़ होता है। उनके नीचे बहुत पार्टियां जाकर बैठती हैं। उसका फाउण्डेशन सड़ा हुआ है। बाकी सब टाल-टालियाँ खड़ी हैं। यह भी झाड़ है। देवी-देवता धर्म का जो झाड़ है उसका फाउण्डेशन उल्टा ऊपर है और जड़ एकदम कट गई है। बाकी सब हैं। बीज हो तब तो फिर से स्थापन करें। बाप कहते हैं – मैं फिर से आकर स्थापन कराता हूँ। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश। बरोबर अनेक धर्मों का विनाश हुआ था इस महाभारत लड़ाई में। जो राजयोग सीखते थे उन्हों की फिर राजधानी स्थापन हो गई। तुम जानते हो अभी हम बाबा के पास जायेंगे, फिर नई दुनिया में आयेंगे। फिर झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। देवी-देवता धर्म जो था वह इस समय प्राय:लोप है। तो बाप कहते हैं – मैं फिर से आकर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ। भारत जो ऊंच ते ऊंच था उनको अब ग्रहण लगा हुआ है। काम चिता पर बैठने से इस समय सारी दुनिया काली हो गई है। अब फिर तुम ज्ञान चिता पर बैठ गोरे बनते हो। तुम जो श्याम बन गये थे, श्याम से गोरा, सुन्दर बनाने वाला है परमपिता परमात्मा। उनकी श्रीमत मिलती है। परमपिता परमात्मा की आत्मा तो एवर प्योर गोरी है। आत्मा में ही खाद पड़ती है। (सोने का मिसाल) अभी तुम जानते हो इस पुरानी दुनिया का विनाश होना है। सबका मौत है। फिर तुमको कहने वाला कोई नहीं रहेगा कि राम-राम कहो। यह मौत ऐसा होता है जो सब मरेंगे। अभी कितने मरेंगे! कितनी खाद मिलेगी! तो क्यों नहीं धरती फर्स्टक्लास अनाज देगी। सतयुग में सब हरे-भरे सब्ज हो जायेंगे। सड़ी हुई चीज़ को खाद कहा जाता है। किचड़ा जलकर खाद बन जाता है। खाद बनने में भी टाइम लगता है। इस सृष्टि को भी नया बनने में टाइम लगेगा। तुम सूक्ष्मवतन में जाते हो। कितने बड़े-बड़े फल तुमको दिखाते हैं। शूबीरस पिलाते हैं। तुम विचार करो कितनी खाद मिलेगी – सो भी खास भारत को। वहाँ कितनी अच्छी-अच्छी चीज़ें निकलेंगी। सूक्ष्मवतन में बैकुण्ठ का शूबीरस तुमको पिलाते हैं। बगीचे आदि का साक्षात्कार कराते हैं। वहाँ हमारा बगीचा होगा। बच्चों ने साक्षात्कार किया है। शूबीरस पीकर आते थे। प्रिन्स बगीचे से फल ले आते थे। अब सूक्ष्मवतन में तो बगीचा हो न सके। जरूर बैकुण्ठ में गये होंगे। एक-एक को साक्षात्कार नहीं करायेंगे। जो निमित्त बनते हैं उनको कराते हैं। हो सकता है अगर तुम याद में रहेंगे, बाबा के बच्चे होकर रहेंगे तो पिछाड़ी में तुमको बहुत साक्षात्कार होंगे – जो पूरे सरेण्डर होंगे। यह तो पहले भट्ठी बननी थी। भट्ठी में पकना था तो बहुत आ गये। बच्चों को समझाया है सिर्फ कोई को लिटरेचर देने से समझ नहीं सकेंगे। समझाने वाला टीचर जरूर चाहिए। टीचर सेकेण्ड में समझायेगा – यह तुम्हारा बाबा है, यह दादा है, यह बेहद का बाप स्वर्ग का रचयिता है। सिर्फ कोई को लिटरेचर दिया तो देखकर फेंक देंगे। कुछ भी समझेंगे नहीं। इतना जरूर समझाना है कि बाप आया हुआ है। यह ढिंढोरा पिटवाना तुम्हारा फ़र्ज है।

बरोबर यादव कौरव पाण्डव भी हैं। महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है। जरूर राजयोग सिखलाने वाला भी होगा। जरूर स्वर्ग की स्थापना भी होगी। एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मो का विनाश होगा। तुम जानते हो हम ही नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनते हैं। यह है एम ऑब्जेक्ट। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार… देवता सिर्फ सूर्यवंशी को कहा जाता है। चन्द्रवंशी को क्षत्रिय कहा जाता है। पहले तो देवता बनना चाहिए ना। नापास होने से क्षत्रिय बन जाते हैं। तो बाप कहते हैं मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे, कितने ढेर सिकीलधे बच्चे हैं। किसका बच्चा गुम हो जाता है, 6-8 मास बाद आकर मिलता है तो कितना प्यार से आकर मिलेगा। बाप को कितनी खुशी होगी। यह भी बाप कहते हैं – लाडले सिकीलधे बच्चे, तुम 5 हजार वर्ष बाद आकर मिले हो! लाडले बच्चे, तुम बिछुड़ गये थे, अब फिर आकर मिले हो बेहद का वर्सा लेने लिए। डीटी वर्ल्ड सावरन्टी इज़ योर गॉड फादरली बर्थ राइट। बाबा तुमको बेहद की बादशाही देने आया है। यह है हेविनली गॉड फादर। कहते हैं तुम बच्चों के लिए कितनी बड़ी सौगात लाये हैं। परन्तु इतना लायक बनना है। श्रीमत पर चलना है। बाबा-मम्मा कहकर फिर अगर भूल गये या फारकती दे दी तो गले का हार नहीं बनेंगे। बच्चों को कितना प्यार किया जाता है! बाप बच्चों को सिर पर रखते हैं। बेहद के बाप के कितने बच्चे हैं। बाबा कितना ऊंच चढ़ाते हैं। पाँव में जो गिरे हुए हैं उन्हों को भी ऊपर चढ़ाते हैं। तो कितना खुशी में रहना चाहिए और श्रीमत पर चलना चाहिए! एक की मत पर चलना है। अपनी मत पर चला तो यह मरा। श्रीमत पर चलेंगे तो तुम श्रेष्ठ मनुष्य अर्थात् देवता बनेंगे। क्षत्रिय तो फिर भी दो कला कम हो गये। यहाँ है ही मनुष्य से देवता बनने का, क्षत्रिय नहीं। बाप पूछते हैं ना कि कितने नम्बर में पास होंगे? आबरू (इज्जत) रखना। बेहद का बाप भी कहते हैं सूर्यवंशी बनो। जानते हो विजय माला 108 की ही पास हुई है। फालो करना है मम्मा-बाबा को। आप समान स्वदर्शन चक्रधारी बनाकर शिवबाबा के आगे सौगात ले आते हैं। बाबा पूछते हैं कितने को आप समान बनाया है? कितने मज़े की बातें हैं! तुम ही समझ सकते हो। नया कोई बिल्कुल नहीं समझेगा। यह मनुष्य से देवता बनने की कॉलेज है। कोई को तो 7 रोज में ही बहुत रंग चढ़ जाता है। कोई को तो बिल्कुल नहीं चढ़ता। छी-छी कपड़े पर बड़ा मुश्किल से रंग चढ़ता है। बहुत मेहनत करनी पड़ती है।

पहली-पहली बात बच्चों को समझाई कि पहले सबको बोलो – बेहद के बाप को तुम जानते हो? कहते – हाँ, मेरे में भी है, सर्व-व्यापी है। अरे, तुम्हारे में भी है फिर तो पूछने की बात ही नहीं। कहते हो बाप है, तो फिर बाप तेरे में अथवा मेरे में कैसे हो सकता! बाप है, तो बाप से वर्सा जरूर मिलना चाहिए। पहले-पहले अल्फ पर समझाओ। बाप कहते हैं – हे मेरे सिकीलधे बच्चे। ऐसे कोई संन्यासी वा गुरू गोसाई नहीं कह सकते। तुम जानते हो बरोबर हम शिवबाबा के सिकीलधे बच्चे हैं। पाँच हजार वर्ष बाद फिर आकर मिले हो, स्वर्ग का वर्सा लेने। जानते हो हम स्वर्ग के मालिक थे, फिर हम ही मालिक बनते हैं। स्वर्ग में जाना जरूर है। फिर पुरुषार्थ अनुसार ऊंच पद पाना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) मम्मा-बाबा को फालो कर सूर्यवंशी में आना है। अपनी मत पर नहीं चलना है। श्रीमत से ऊंच देव पद पाना है।

2) हम बाबा के ही होकर रहेंगे – इसी निश्चय में रहना है। कभी किसी बात में संशय नहीं उठाना है।

वरदान:-बाप के हर डायरेक्शन वा कायदे से फ़ायदा लेने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भव
कहा जाता – जितना कायदा उतना फायदा, इसलिए अमृतवेले से जो भी कायदे बने हैं उनसे कभी किनारा नहीं करो। पढ़ाई, अमृतवेला, सेवा जो भी दिनचर्या बनी हुई है, उसमें मन नहीं भी लगे तो भी दिनचर्या में कुछ मिस नहीं करो। जैसे भक्त लोग नियम का पालन जरूर करते हैं, मन्दिर में मन नहीं भी लगे तो भी जायेंगे जरूर। आप तो स्वयं ला-मेकर्स हो, इसी अनुभव से हर नियम का पालन करते चलो तो मर्यादा पुरुषोत्तम बन जायेंगे।
स्लोगन:-जिनके पास सन्तुष्टता का विशेष गुण है उनके पास सर्व गुण स्वत: आते जायेंगे।