24-06-23 | प्रात:मुरलीओम् शान्ति”मातेश्वरी” | रिवाइज: 21-06-61 मधुबन |
जगदम्बा माँ के स्मृति दिवस पर प्रात:क्लास में सुनाने के लिए – अनमोल महावाक्य
“माया के अनेक प्रकार के विघ्नों से पार होना है, तो चेकिंग पॉवर से अपने आपको सावधान रखो, सम्भलकर चलो”
(मीठी माँ की मधुर लोरी)
अभी चारों ओर माया का ज़ोर है क्योंकि उसका राज्य है और पिछाड़ी के समय उसमें जितनी भी ताकत है वह अभी अपनी पूरी ताकत लगायेगी, इसलिये जितना आगे बढ़ते जायेंगे उतना माया भी फोर्स देकर लड़ेगी। पहले तो माया का पता ही नहीं था। माया के वश में थे। अभी पता चला है तो हमसे ही लड़ेगी। दुश्मन बनेंगी। प्यार भी करेगी तो अन्दर दुश्मनी रख करके करेगी। जबकि जानते हो कि माया हमारी दुश्मन है तो किसम-किसम की सभी बातें सामने आयेंगी। कोई बन्धन नहीं है फिर भी मन के फालतू विकल्प तंग करेंगे। पहले शरीर में कभी रोग नहीं हुआ होगा, अभी वह भी होगा, कहेंगे इतना समय तो हम कभी बीमार नहीं पड़े, अभी बीमार पड़ गये हैं। धन की भी कमी पड़ेगी, बिजनेस में घाटा पड़ जायेगा, ऐसे और भी कई बातें होगी। दोस्त दुश्मन बन जायेंगे, मित्र-सम्बन्धी नहीं पूछेंगे, कई ऐसी उलट-पुलट बातें आ सकती हैं और आयेंगी क्योंकि अभी अपना पिछला हिसाब सब चुक्तू होना है।
अभी यह सब जो रावण का खाता था, उसको हम खत्म कर रहे हैं। देह सहित देह के सर्व सम्बन्धों से अपनी बुद्धि हटाते हैं तो फिर वह सामना भी होगा, इसलिये ऐसी-ऐसी बातों में सम्भलना है। कई तो सोचते हैं भगवान के बने तो और ही मुसीबतें आ गई। जब मैं परमात्मा का बना हूँ, एक उसका ही सहारा लिया है तो मेरा सब अच्छा हो जाना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं है। कई ऐसे ख्याल करते हैं कि हमारे पास कोई तकलीफ नहीं आनी चाहिए। परन्तु परीक्षायें जरूर होंगी, तरह-तरह की बहुत बातें आयेंगी। तो ऐसा ख्याल नहीं करना कि शायद मुझे भगवान ही नहीं मिला है। यह भगवान है या नहीं, पता नहीं हम कहीं उल्टे रास्ते पर तो नहीं हैं, जो भगवान नाराज़ हुआ है। ऐसे कई संकल्प आयेंगे…। ऐसे-ऐसे विघ्नों के कारण कई टूट जाते हैं। कोई मुसीबत आयी, बात आयी तो समझते हैं शायद यह भगवान ही नहीं है, पता नहीं क्या है… इसलिये इन सब बातों से बिचारे डर करके, किसी ने कुछ कह दिया या डरवा दिया तो टूट पड़ते हैं। लेकिन यह सब तो होता आया है। यह भी बाप बतला देते हैं कि इन सबका मूल कारण है देह-अभिमान। देह-अभिमान के कारण कहाँ काम की गोली, कहाँ क्रोध की, कहाँ लोभ की, कहाँ मोह की, कहाँ फिर अनेक प्रकार के संशय की गोली लग जाती है। ऐसी बातें लाकर ही माया हटाने की कोशिश करेगी। यह सब माया के पास सही मार्ग से हटाने के अस्त्र-शस्त्र हैं। बुद्धि में उल्टी-उल्टी बातें ले आना, उल्टी बुद्धि बनाना, यही तो माया का काम है। इसमें ही तो अपने को सम्भलना है, इसमें ही अपनी हिम्मत रखनी है इसके लिये बाप कहते हैं मेरे से बुद्धियोग रखो तो तेरी बुद्धि उल्टी न बनें। झट से उसको चेक कर सको। स्वयं को चेक करने की भी पॉवर चाहिए। तो चेकिंग पॉवर से अपने को सावधान रखो और फिर उसी सावधानी से अपने को पार करो। यही माया के अनेक प्रकार के विघ्न हैं, इन्हीं से पार होना है। बाकी ऐसे नहीं है कि अभी हमारा सबकुछ ठीक हो जाये। नहीं, अभी तो पार होना है, अभी जो हमारा यह जन्म है, इसमें तो हमको बदलना है। इसी में मेहनत की आवश्यकता है। सबकुछ अभी आराम से मिल जाये, तो फिर हम तो समझेंगे यहाँ ही वैकुण्ठ है, यहाँ ही स्वर्ग है। फिर तो स्वर्ग को भी याद करना भूल जायेंगे इसलिये बाप कहते हैं यह थोड़ी अन्दर की मेहनत है। इसमें बाहर से कुछ नहीं करना पड़ता है। यह यह विघ्न आते हैं, ऐसी ऐसी बातें आयेंगी, इन सब बातों में अपना निश्चय अटल रख करके अपना पुरुषार्थ करना है। सावधान रहना है। फिर दूसरों को भी सावधान किया जाता है कि गिरने वाले इस तरह से फिसलते हैं तो अपने को फिसलने से बचाना है।
चलते-चलते कोई काम विकार के कारण फिसले, कोई क्रोध के कारण फिसले, कोई फिर मतभेद में आकर फिसले…यहाँ से ही गिरते हैं, तो अभी गिरने से सम्भलना है। मन में अनेक प्रकार के संकल्प, विकल्प आयेंगे। इन सब बातों को यथार्थ रीति से समझना है कि यह भी सब बहुत जन्मों का उल्टा खाता जो बना हुआ है, वह अभी एक ही जन्म में चुकाना है। इस एक जन्म में हम बहुत जन्मों का खाता चुकाने का पुरुषार्थ करते हैं। बहुत जन्मों के कर्जदार अगर अभी नहीं आयेंगे तो कब आयेंगे? क्योंकि हम जन्म-जन्म उनके थे, अनेक जन्मों का खाता स्टॉक होता आया है। कभी किसी जन्म में थोड़ा-थोड़ा चुकाया भी होगा, फिर भी जो कुछ बचा हुआ है, इसी एक जन्म में पूरा हिसाब-किताब चुकाना है। माया भी देखती है कि अगर अभी यह पूरा कर्जा नहीं चुकायेंगे तो फिर कब चुकायेंगे इसलिए वह घेराव करेगी ना। कई जन्म के कर्जदार निकल पड़ेंगे, समझ में आयेगा कि हमने अभी तो ऐसा कुछ किया ही नहीं है। फिर यह हमारा ऐसा दुश्मन क्यों बना, यह बात ऐसी क्यों आई! यह रोग क्यों आया, यह बात क्यों हुई?.. परन्तु नहीं। सब प्रकार की परीक्षायें अभी ही आयेंगी।
अभी इन्हीं सब बातों से अपने को सम्भलना, समझना यही तो नॉलेज है। ज्ञान तो इसी का नाम है। कर्म की गति क्या है, यह सब बाप विस्तार से समझाते हैं। कर्म का हिसाब कैसे बनता है, कैसे बिगड़ता है, कैसे सवँरता है और सँवर करके फिर क्या बनते हो! यह सभी बातें बाप ही बैठ करके समझाते हैं क्योंकि हमारे सारे कर्म की नॉलेज बाप के पास है। हमारे किन कर्मों से दुर्गति हुई है, उससे कैसे छूटें, कैसे हमारी गति फिर सद्गति होगी, इस पूरी नॉलेज के गति का चक्र बाप ने समझाया है, जिसके पास पूरा ज्ञान है वह कभी हिलेगा नहीं। अगर नॉलेज की कमी है तो फिर हिलेगा, उसके पांव ढीले पड़ेंगे। फिर आश्चर्यवत पश्यंती, सुनन्ती, कथन्ती भागन्ती.. ज्ञान सुनने वाले, दूसरों को सुनाने वाले साक्षात्कार करने वाले… सब तरह के टूट पड़ते हैं। यह सभी होता आया है इसलिये इन्हीं सब बातों में सम्भलने के लिये यह सावधानी दी जाती है। अपने पांव कैसे मजबूत रखना है, उसी मजबूती के लिये बाप किसम-किसम से समझाते हैं क्योंकि अभी मजबूत पांव रख करके बाप से पूरा पूरा अधिकार पाना है। तो अधिकार पाने वालों को यह बतलाते हैं कि इन्हों को कितना हिम्मत और भरोसे से, बल से काम लेना है।
हम भी वारियर्स है ना, अपनी रूहानी लड़ाई कोई हाथ-पाँव से नहीं है परन्तु गुप्त है। हमारी अन्दर की युद्ध है और युद्ध करके उसमें हमें जीत प्राप्त करनी है। विकारों से गुप्त लड़ाई है, बाप भी गुप्त बैठ करके बच्चों में अभी सब बल भर रहा है, सावधान कर रहा है कि बच्चे सावधान हो रहना। यह माया का पिछाड़ी का फोर्स तुम्हारे पास आयेगा परन्तु तुम इन सब बातों में हिलना नहीं। इन बातों को समझ करके अपने पुरुषार्थ को बहुत हिम्मत से और धारणाओं के साथ चलाना है। उसमें अपना उल्हास उमंग रखते हुए, उसी नशे और खुशी से आगे बढ़ने का पुरुषार्थ करते रहना है। इसमें कोई दु:ख और अशान्ति की बात ही नहीं है।
अभी लाचारी वाला पुरुषार्थ नहीं करना है। कई ऐसे चलते हैं जैसे दूसरों पर मेहरबानी करते हैं। मेहरबानी तो अपने ऊपर करनी है, जो अपने लिये समझ करके पुरुषार्थ करते हैं उन्हों का पुरुषार्थ ठीक रहेगा। हम अपने लिये करते हैं और किसी के लिये नहीं करते हैं। अगर बिगाड़ते हैं तो भी अपना बिगाड़ते हैं, सुधारते हैं तो भी अपना सुधारते हैं। तो हर एक को अपने ऊपर अटेन्शन देना है, दूसरों को नहीं देखना है। इसने ऐसा किया, उसने ऐसा किया.. भाव स्वभाव की बातें भी इसमें बहुत आती हैं। बाहर के लोगों का सुनना करना सहज है क्योंकि समझते हैं वह तो अज्ञानी है ना। लेकिन ब्राह्मण परिवार में कोई ने कुछ कहा किया तो कहेंगे यहाँ भी वही चलता है। यहाँ आपस में कुछ होता है तो वह बात बहुत बड़ी लगती है। परन्तु नहीं, यही तो माया है। इधर भी माया किसी न किसी रूप में घुसेगी ना! कहेगी देखें, इसने मुझे छोड़कर इन्हें साथी बनाया है तो उन साथियों में भी इसको टक्कर खिलायें। परन्तु हमें तो यह नॉलेज है कि यह जो हिसाब-किताब की टक्कर है, यह पिछली है इसलिये ऐसे नहीं कहो कि अरे! भगवान के बच्चे होकर यह क्या कर रहे हैं? इसमें हिलना नहीं क्योंकि अभी ज्ञान है कि यह भी इनके साथ कुछ हिसाब-किताब है, उसे योग और ज्ञान से काटना है। ऐसे नहीं, टक्कर खा करके काटना है। नहीं, वह तो हमारा विकर्म बन जायेगा। उसमें सम्भलना है। परन्तु कई संशय में आ जाते हैं कि देखो, यह ज्ञान में आ करके भी क्या कर रहे हैं। तो कोई भी हिसाब-किताब में टक्कर खाना अज्ञान है। अभी यह अज्ञान निकल जाना चाहिए। यह सब बातें समझाई जा रही हैं क्योंकि अभी ऐसी ऐसी बातें हो रही हैं। तो इन्हीं सब बातों में सावधान किया जाता है। कहीं इन बातों के कारण बाप से जो तकदीर लेनी है, वह तकदीर लेना भूल न जायें। बेहद बाप से बेहद का वर्सा लेना ही छोड़ दें, इसलिये बाप समझाते हैं बच्चे, भले आपस में कुछ है भी लेकिन आलवेज सी फादर। बाप को ही देखो। बाप से जो वर्सा लेना है उससे ही मतलब है ना! जिससे मतलब है उसको पकड़ करके रखो। टक्कर आपस में खाते हो और छोड़ देते हो बाप को। इसमें तुम्हारा ही नुकसान है, तेरा वर्सा चला जायेगा। ऐसा महामूर्ख नहीं बनना है। इसमें सावधान रहकर स्वयं को सम्भालना है। ऐसे नहीं यहाँ गेट के अन्दर आये तो सेफ हो गये, नहीं। सेफ्टी तो अपनी स्वयं करनी है। अगर कोई भी धारणा में कमी है तो फिर माया इधर भी घुस आयेगी। इधर भी टक्कर खिलायेगी, कोई के भाव से, कोई के स्वभाव से फिर बाप पढ़ाता है यह भूल जायेगा। ऐसे टक्कर-चक्कर की बातों में गिर पड़ेंगे इसलिये सावधान! एक को गिरता हुआ देखेंगे तो दूसरे को सावधान करेंगे ना कि देखना यहाँ फिसलन है, सम्भलना, सावधान रहना। यही तो अपना धर्म है। कहाँ से कौन-कौन कैसे फिसलते या खिसकते हैं, वह आप लोगों के ध्यान में इनएडवांस दिया जाता है। आप चल रहे हो तो खबरदारी से चलना। बाप से पूरा वर्सा पाना है तो फिर पूरा पांव दृढ़ता से रखना। परमात्मा के ज्ञान की यह मंजिल बहुत ऊंची है। यही जो बातें आती हैं इनसे पार होना और अपना पूरा अधिकार प्राप्त करना। तो इन सभी बातों में अपने को सम्भालना है। चाहे पुराने हैं या नये हैं, यह बातें सबके लिए हैं। नये पुराने सबके ऊपर माया की नज़र है। अभी हम कोई मायाप्रूफ नहीं हो गये हैं। अगर आत्मा कम्पलीट हो गयी तो शरीर भी कम्पलीट होना चाहिए। परन्तु नहीं, अभी अनकम्पलीट शरीर में बैठे हैं, तो इसका मतलब कि आत्मा कुछ अनकम्पलीट है। लेकिन घड़ी-घड़ी माया की अंगूरी नहीं खानी है, इससे चोट लगती है, फिर वह रजिस्टर अच्छा नहीं रहेगा। नाम तो खराब होगा ना। माया बहुत युक्तिबाज़ होके गिराती है। यही तो हमारी माया से लड़ाई है, बाकी कौरव पाण्डव की कोई युद्ध नहीं हुई है। यह तो पाण्डवों ने माया से युद्ध की है।
अभी हमें क्या करना है! अपने को माया से सेफ करते चलो, दूसरा अपना तन मन धन फिक्स डिपॉजिट ऑलमाइटी बैंक में रख दो। इसे इनश्योर करके अपने श्रेष्ठ कर्म से अपना भविष्य ऊंच बनाते चलो। जो करेगा सो पायेगा। डायरेक्शन तो सबके लिए एक जैसा है लेकिन जो भी करेगा वह अपना बनायेगा। बाप से सभी को अपना सम्बन्ध पूरा रखना है इसमें दूसरों को नहीं देखना है। यह सब धारणायें अपने को समझाने के लिये हैं। क्या राँग है, क्या राइट है, यह दूसरों को समझाना माना अपने को समझाना इसलिये बाबा भी कहते दूसरों को खबरदार करेंगे तो खुद भी खबरदार रहेंगे। तो सभी ऐसी तेज रफ्तार से चल रहे हो ना। अच्छा।
बाकी सारे दिन की दिनचर्या का, बाबा की याद का, सर्विस का पूरा चार्ट रखते चलो। शरीर निर्वाह के लिए जो काम करते हो वह भी करना है लेकिन लोभ लालच बहुत नहीं रखना है। अपने पेट की आजीविका जितना काम चलाना है। बाकी जो टाइम है, बुद्धि बल से, तन, मन, धन ईश्वरीय कार्य में लगाने से फायदा ही फायदा है क्योंकि उससे अभी जमा होगा। तो बाप कहते हैं बच्चे, अभी अपना जमा करो, जिससे तुमको 100 गुणा, 1000 गुणा हो करके मिले। अच्छा।
मीठे मीठे बहुत सपूत बच्चों प्रति और ऐसे अच्छी तरह से जो सावधान रह करके चल रहे हैं, ऐसे बच्चों प्रति बापदादा और माँ का यादप्यार और गुडमार्निंग।
वरदान:- | बिन्दू रूप बाप की याद से हर सेकण्ड कमाई जमा करने वाले पदमापदमपति भव आप बच्चे एक-एक सेकण्ड में पदमों से भी ज्यादा कमाई जमा कर सकते हो। जैसे एक के आगे एक बिन्दी लगाओ तो 10 हो जाता, फिर एक बिन्दी लगाओ तो 100 हो जाता, ऐसे एक सेकण्ड बिन्दू रूप बाप को याद करो, सेकण्ड बीता और बिन्दी लग गई, इतनी बड़ी कमाई जमा करने वाले आप बच्चे अभी पदमापदमपति बनते हो जो फिर अनेक जन्म तक खाते रहते हो। ऐसे कमाई करने वाले बच्चों पर बाप को भी नाज़ है। |
स्लोगन:- | बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े हुए संस्कारों को, बिगड़े हुए मूड को शुभ भावना से ठीक कर देना – यही श्रेष्ठ सेवा है। |